न्यूज़क्लिक पर रेड

तेजी से निरंकुश हो रही इस सरकार पर सवाल उठाने वालों को बनाया जा रहा निशाना

05 अक्टूबर 2023
4 अक्टूबर 2023 को दिल्ली के वेस्टेंड मार्ग पर स्थित समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक का सील कर दिया गया कार्यालय.
फोटो: शाहिद तांत्रे
4 अक्टूबर 2023 को दिल्ली के वेस्टेंड मार्ग पर स्थित समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक का सील कर दिया गया कार्यालय.
फोटो: शाहिद तांत्रे

भारत में आज पत्रकारिता एक छोटे, युद्धरत समूह के हिस्से है जो कम तनख्वाह पाता है लेकिन बहुत ज्यादा काम करता है और हमेशा तनाव में रहता है. यह तनाव डेडलाइन का नहीं है, बल्कि इस बात का है कि सरकारी एजेंसियां पत्रकारिता को राजद्रोह मानने लगी हैं. पत्रकार होने के खतरे यहां तक बढ़ चुके हैं कि लगता है कि "अर्बन नक्सल" या "एंटी नेशनल" जैसे कपोलकल्पित चस्पे असल हों क्योंकि कानूनी एजेंसियां पत्रकारिता करने को ऐसा ही समझती हैं.

मैंने पत्रकारिता को छोटा समूह इसलिए कहा है कि जो लोग आज अंग्रेजी और हिंदी मीडिया के मुख्यधारा के चैनलों और अधिकांश समाचारपत्रों और पत्रिकाओं में काम कर रहे हैं, उन सबको पत्रकार नहीं माना जा सकता. जो लोग सरकार के प्रचार में दिन-रात लगे हुए हैं, सरकार के झूठ के प्रचारक बने हुए हैं, और सच बोलने वालों के खिलाफ सरकारी दमन की वकालत करते हैं, उन्हें पत्रकार नहीं कहा जा सकता. ऐसे लोग इस पेशे के गद्दार हैं.

जनता के दिमाग से सरकार के मियां-मिट्ठू और सच्चे पत्रकारों के बीच का अंतर गायब कर दिया गया है. पत्रकार जिस माहौल में काम करते हैं, उसकी हवा जहरीली है. सरकार ने जी-हजूरी नहीं करने वालों की बदनामी की और उनके पीछे कानूनी एजेंसियां छोड़ दी. इसके साथ, ऐसे सच्चे पत्रकारों के खिलाफ जनता की भावना को भड़काने के काम पर अपने प्राइमटाइम एंकरों को लगा दिया. ऐसे एंकर जब टीवी चैनलों पर रात-दिन नफरत सीखते हैं, तो इनको देख कर जनता पत्रकारिता की सबसे बुरी तस्वीर को असली पत्रकारिता मानने लगी है.

इस माहौल में न्यूज़क्लिक के बहाने पचासों पत्रकारों के घरों पर छापेमारी, सरकारी घटियापन का उच्चतर स्तर है. बात को घुमा-फिरा कर नहीं बल्कि हमें साफ कहना चाहिए कि जब कोई नेविल रॉय सिंघम से पत्रकारिता के लिए पैसे लेता है तो वह एक बड़ी नैतिक गलती करता है. एक आदमी जो शिंजियांग में चीन की बर्बरता को नकारता है, या फिर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के काम को बढ़ा-चढ़ा कर बताता है, ऐसा आदमी स्वतंत्र पत्रकारिता की मदद कभी नहीं कर सकता.

फिर भी यदि ऐसी फंडिंग मिली है-- फिलहाल कानूनन इसे साबित किया जाना बाकी है-- तो भी सरकार को यह बताना ही होगा कि क्या अपराध हुआ है और यूएपीए किन कारणों से लगाया गया है.

हरतोष सिंह बल कारवां के कार्यकारी संपादक और वॉटर्स क्लोज ओवर अस : ए जर्नी अलॉन्ग द नर्मदा के लेखक हैं.

Keywords: Newsclick raid Indian media Modi government Delhi Police Delhi Violence UAPA Umar Khalid
कमेंट