भारत और पाकिस्तान के बीच हाल के टकराव के बाद, मुख्यधारा के भारतीय मीडिया में, पाकिस्तानी सीमा के भीतर भारतीय वायुसेना के हमले और दोनों देशों के बीच हुई हवाई झड़प की परिस्थितियों पर, अटकलबाजियों की बाढ़ सी आ गई. कई मीडिया संस्थानों ने अज्ञात सूत्रों, असत्यापित साक्ष्य पर पूरी तरह से निर्भर रह कर गंभीर दावे किए और कई बार तो पूरी तरह से फर्जी खबर प्रकाशित की.
ऐसी अप्रमाणित सूचनाओं को प्रकाशित करने वाले मीडिया संस्थानों में फर्स्टपोस्ट भी है. इसके प्रमुख प्रवीण स्वामी नेटवर्क 18 के सलाहकार संपादक हैं. फर्स्टपोस्ट, नेटवर्क 18 की संस्था है. स्वामी को राष्ट्रीय सुरक्षा बीट के शीर्ष पत्रकारों में माना जाता है. उनके पास इस बीट में रिपोर्टिंग का 30 साल का अनुभव है. उनकी अधिकांश रिपोर्ट, गुप्तचर एजेंसियों के अज्ञात सूत्रों के हवाले से हैं. प्रवीण ने अपने करियर का ज्यादातर समय “द हिंदू समूह” के साथ बिताया है. वे 1990 के दशक में द हिंदू से जुड़े और 2014 तक कुछ अंतरालों के अलावा निरंतर इससे जुड़े रहे. इसके बाद, कुछ साल उन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस के साथ काम किया. फिर 2018 में अचानक द इंडियन एक्सप्रेस को छोड़ दिया. कयास लगाया गया है कि पाकिस्तान की जेल में कैद नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव पर उनकी विवादास्पद रिपोर्ट के कारण उनको इस्तीफा देना पड़ा.
2013 में अंग्रेजी कारवां में भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा बीट पर मैंने स्टोरी की थी. उस रिपोर्ट में मैंने बताया था कि भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा बीट के लिए रिपोर्ट करना एक संदेहास्पद काम है जो सुरक्षा एजेंसियों और पत्रकारों के बीच लेनदेन वाले संबंधों पर आधारित रहता है. इस बीट का आकर्षण कुछ ऐसा है जो यह सुनिश्चित करता है कि पत्रकार अपने सूत्रों को अज्ञात रख सकते हैं, संपादक उनसे बहुत कम सवाल करते हैं. इस बीट के पत्रकार लीकों पर निर्भर रहते हैं और इन्हें हासिल करने के लिए सूचनाओं के स्रोत को नजरअंदाज करना पड़ता है. इस डाइनैमिक्स का लाभ भारतीय सुरक्षा संस्थान और सरकार उठाते हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में सार्वजनिक जांच और जवाबदेहिता से परे रह कर काम करना पसंद करते हैं.
प्रवीण स्वामी, जिनके काम की मैंने 2013 की अपनी रिपोर्ट में समीक्षा की है, उपरोक्त पैटर्न में फिट बैठते हैं. मानव अधिकार समूह जामिया टीचर्स सेलिब्रिटी एसोसिएशन की 2010 की रिपोर्ट कहती है, “यदि आपको जानना है कि भारत की शीर्ष गुप्तचर एजेंसियां क्या योजना बना रहीं हैं तो प्रवीण स्वामी के लेखों में इसका सटीक संकेत मिल जाता है.”
स्वामी की अधिकांश रिपोर्ट इंटेलिजेंस एजेंसियों के अज्ञात सूत्रों के हवाले से होती हैं और इनमें बार बार दोहराया जाने वाला पैटर्न दिखाई देता है. 2013 में मैंने लिखा था कि उनकी रिपोर्ट में मुश्किलों से मिलने वाले ब्यौरे आत्मविश्वास से बताए जाते हैं. उनका काम आज तक ऐसे ही चल रहा है. 26 फरवरी को विदेश सचिव विजय गोखले ने घोषणा की कि भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला किया है. इस हमले से संबंधित आरंभिक खबर देने वालों में फर्स्टपोस्ट भी थी. उस रिपोर्ट में दावा किया गया कि, “अज्ञात सूत्रों के अनुसार, भारतीय वायु सेना के विमानों ने जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को ही नहीं बल्कि मुजफ्फराबाद में लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के अड्डों को भी लक्ष्य बनाया है.” सूत्रों ने यह भी दावा किया कि “चकोटी, बालाकोट और मुजफ्फराबाद” सहित 6 अन्य लक्ष्यों पर भी हमला किया गया और “खैबर पख्तूनख्वा के कांगर” के पांच अन्य आतंकी अड्डों को भी वायु सेना ने अपना निशाना बनाया. यह रिपोर्ट एफपी स्टाफ के नाम से छपी थी.
29 सितंबर 2016 को वायु सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक करने का दावा किया था. इस घोषणा के एक सप्ताह बाद प्रवीण स्वामी ने द इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर लिखी. उस वक्त स्वामी अखबार में रणनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के संपादक थे. उस रिपोर्ट में “ऐसी जानकारी होने का दावा किया गया जिसे भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने सार्वजनिक नहीं किया है”. हालांकि उस रिपोर्ट में स्ट्राइक के भारतीय दावों की ही पुष्टि की गई थी. रिपोर्ट में स्वामी ने दावा किया कि उन्होंने बाजार में उपलब्ध इनक्रिप्टेड चैट सिस्टम का प्रयोग कर हमले किए गए गांवों में जाकर वहां के लोगों से बात करने वाले 5 लोगों को सवाल भेजे थे. स्वामी ने उन्हें “प्रत्यक्षदर्शी” बताया.
हाल के कोलाहल के बाद फर्स्टपोस्ट ने पहले पहल इटली के पत्रकार फ्रांसेस्का मरीनो की रिपोर्ट प्रकाशित की. मरीनो ने दावा किया कि हाल के हमले में 35 लोगों की जान गई है. रिपोर्ट में बताया गया कि “इस हमले के प्रत्यक्षदर्शियों से संवाददाता ने “इनक्रिप्टेड प्रणाली” के जरिए संपर्क किया था.
2016 की इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में स्वामी ने सर्जिकल स्ट्राइक के बाद लश्कर-ए-तैयबा में व्याप्त बदले की भावना का भी जिक्र किया.
दूसरे प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि चलहाना की मस्जिद में जुमे की नमाज के अंत में मौलवी ने, एक दिन पहले मारे गए लोगों का बदला लेने का संकल्प लिया. “वहां उपस्थित लश्कर के सदस्यों ने पाक सीमा की रक्षा न कर पाने का इल्जाम पाक सेना पर लगाया”. मौलवी ने कहा, “जल्द ही हिंदुस्तान को ऐसा जवाब दिया जाएगा जो उसे लंबे समय तक याद रहेगा”.
1 मार्च को प्रवीण स्वामी ने फर्स्टपोस्ट में जो खबर लिखी उसमें बालाकोट में भारतीय हमले के बाद जैश-ए-मोहम्मद के नेतृत्व में भी इसी तरह बदले की भावना होने की बात है.
28 फरवरी को खैबर पखतुंख्वा में आयोजित जैश-ए-मोहम्मद की रैली को संबोधित करते हुए जैश के संस्थापक मसूद अजहर के भाई अब्दुल रऊफ रशीद अल्वी, जिसे रऊफ नाम से जाना जाता है, ने “हमारे मुख्यालय” में भारतीय हमले की पुष्टि की और बदला लेने का वादा किया.
इसके बाद 2 मार्च को स्वामी ने फर्स्टपोस्ट में खबर प्रकाशित की जिसमें दावा किया गया कि नौशेरा सेक्टर में भारतीय वायु सेना द्वारा मार गिराए गए पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 के पायलट विंग कमांडर शहजाज-उद-दीन को भारतीय पायलट समझ कर पाकिस्तानियों ने कूट-कूट कर मार डाला. यह खबर लंदन में रहने वाले अधिवक्ता खालिद उमर नाम के एक व्यक्ति के फेसबुक पेज से हूबहू उठाई गई थी.
इसके दो दिन बाद सीएनएन-न्यूज 18 के जक्का जैकब से बात करते हुए प्रवीण स्वामी ने
आत्मविश्वास के साथ कहा कि “विश्वसनीय सूचनाओं के अभाव में और विवादों के चलते एक ऐसा जहरीला वातावरण बन गया है जहां जो कुछ भी हमने हासिल किया था वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के चलते हाथ से निकलता जा रहा है.” इसके अगले दिन एशिया टाइम्स और न्यूजलॉन्ड्री के पत्रकारों ने स्वामी की खबर की जांच की और पाया कि यह पूरी तरह गलत खबर है. लेकिन तब तक स्वामी की खबर वाइरल हो चुकी थी.
जब किसी ने ट्वीटर पर स्वामी से पूछा कि क्या वे अब इस खबर को हटाएंगे तो उन्होंने बेशर्मी से जवाब दिया: “मैंने यह खबर उमर खालिद की कैमरे के सामने दी गई गवाही के आधार पर की है. जैसा कि मैंने पहले भी एक ट्वीट में कहा है, सैकत दत्ता और कुंवर खालदून ने अच्छी स्टोरी की है जो इस गवाही का खंडन करती है. जब भी नए तथ्य सामने आते हैं मैं अपने विचार बदल लेता हूं. आप क्या करते हैं?” इस लेख के प्रकाशित होने तक प्रवीण स्वामी की फर्जी खबर फर्स्टपोस्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध है.
स्वामी की अज्ञात सूत्रों वाली पत्रकारिता को समझने के लिए 2013 में अंग्रेजी में प्रकाशित मेरी रिपोर्ट को यहां पढ़ा जा सकता है.