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कारवां के पत्रकार अहान पेनकर के साथ उत्तरी दिल्ली के मॉडल टाउन पुलिस थाने में हुई मारपीट का भारतीय प्रेस क्लब, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स सहित कई जानीमानी प्रेस संस्थाओं ने विरोध किया है.
16 अक्टूबर को उत्तरी दिल्ली में एक 17 वर्षीय निषाद युवती के बलात्कार और हत्या के मामले की रिपोर्टिंग करते समय पेनकर को पुलिस ने हिरास्त में ले लिया और मारपीट की. पेनकर ने मामले की शिकायत दिल्ली के पुलिस आयुक्त से भी की है. उसी दिन शाम को की गई उस शिकायत में पेनकर ने पुलिस आयुक्त को बताया, “पहुंचने के तीस मिनट बाद जब मैं लड़की की चाची से बात कर रहा था तभी पुलिस आई और प्रदर्शनकारियों तथा चाची को अंदर ले गई. मैं अपने मोबाइल से घटना का वीडियो बनाने लगा और मेरे एक हाथ में प्रेस कार्ड था जिसे मैं पुलिस वालों को दिखा रहा था. मैंने उन्हें बार-बार बताया कि मैं कारवां का पत्रकार हूं. मेरा प्रेस कार्ड देखने और मेरे बार-बार बताने के बावजूद पुलिस वाले चार अन्य लोगों के साथ मुझे एक कमरे के अंदर ले गए और हमें जमीन पर बैठने को कहा. पुलिस ने मेरा फोन छीन लिया और मुझे पुलिस स्टेशन के बाहर तक घसीटा.”
पेनकर ने आगे लिखा है, “पुलिस पूरे वक्त हमें गालियां देती और धमकाती रही. थोड़ी देर में एसीपी अजय कुमार कमरे में आए. उनके पास स्टील की एक रॉड थी. वह हमें उससे मारने और डराने लगे. एसीपी कुमार ने मेरे चेहरे पर लात मारी और मैं जमीन पर गिर गया. फिर अजय कुमार ने मेरी पीठ और कंधे पर लात मारी. जब मैं उठ कर बैठा, तो एसीपी ने मेरा सिर जमीन में दबा दिया और फिर मेरी पीठ पर मारने लगे.” अपनी शिकायत में पेनकर ने मांग की है कि अजय कुमार और अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 323, 342 और 506 (2) के तहत कार्रवाई की जाए. ये धाराएं जानबूझकर शारीरिक क्षति पहुंचाने, गलत तरीके से बंधक रखने और आपराधिक धमकी से संबंधित हैं.
पत्रकार पेनकर के साथ दिल्ली पुलिस द्वारा की गई मारपीट का विरोध करते हुए दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने वक्तव्य जारी कर दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की है.
साथ ही प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने भी वक्तव्य जारी कर घटना पर विरोध किया है और दिल्ली पुलिस कमिश्नर से कठोर कदम उठाने की मांग की है. भारतीय प्रेस क्लब ने लिखा है कि वे पेनकर का पूर्ण रूप से समर्थन करते हैं और मारपीट करने वाले पुलिस वालों को निलंबित करने की मांग करते हैं. पीसीआई ने कहा है कि एक पत्रकार को अपना काम करने से रोकने और उसको बुरी तरह पीटने के जुर्म में पुलिस वालों पर आईपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज होने चाहिए. पीसीआई के अध्यक्ष आनंद के सहाय और महासचिव अनंत बगाइतकर द्वारा जारी बयान में कहा गया है, “देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख देने वाले हाथरस मामले के तुरंत बाद प्रकाश में आया बलात्कार का यह मामला चौंकाने वाला है. दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत आती है. बलात्कार और हत्या के मामलों को दबाने और सच्चाई को बाहर आने से रोकने के लिए एक पत्रकार की बर्बरता से पिटाई करने से ऐसा लगता है कि बर्बरता में दिल्ली पुलिस ने इस चिंतित करने वाली घटना में यूपी पुलिस को पीछे छोड़ दिया है.”
साथ ही पीसीआई ने इस मामले में दिल्ली महिला आयोग और दिल्ली मानव अधिकार आयोग से भी उचित कदम उठाने की मांग की है. इसके अलावा पीसीआई ने यह भी लिखा है कि “यदि पुलिस अपने उन अधिकारियों पर कार्रवाई करने में विफल होती है जिन्होंने कानून को अपने हाथों में लेने का प्रयास किया है तो प्रेस क्लब ऑफ इंडिया दिल्ली उच्च न्यायालय से इस अपमानजनक प्रकरण का संज्ञान लेने का आग्रह करेगा."
चंडीगढ़ प्रेस क्लब की तरफ से महासचिव सौरभ दुग्गल द्वारा जारी किए गए बयान में पेनकर के साथ हुई मारपीट पर कहा गया है, "चंडीगढ़ प्रेस क्लब दिल्ली पुलिस के अधिकारीयों द्वारा की गई इस हरकत की निंदा करता है और आगे की कार्रवाई के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री कार्यालय और केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस मुद्दे के बारे में अवगत कराने के लिए प्रतिनिधी नियुक्त करता है."
वहीं इंडियन जर्नलिस्ट्स यूनियन (आईजेयू) की तरफ से महासचिव बलविंदर सिंह जम्मू ने बयान जारी कर कहा है कि कारवां के पत्रकार पर हुआ यह हमला प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के मूल्यों को बचाने के लिए दोषी पुलिस वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए. उन्होंने मांग की कि प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति सीके प्रसाद को इस घटना पर संज्ञान लेना चाहिए और दिल्ली पुलिस के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अपने पेशेगत दायित्व का निर्वहन करते समय पत्रकारों को गैरकानूनी क्रूर हमलों से बचाया जा सके.
वहीं मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों के लिए कमिश्नर मिशेल बैचलेट ने भारत सरकार से मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले लोगों और गैर-सरकारी संगठनों के अधिकारों की रक्षा करने की अपील की है. उन्होंने कहा है, “भारत में लंबे समय से एक मजबूत नागरिक समाज रहा है जो देश और वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की वकालत करने में सबसे आगे है. लेकिन मुझे चिंता है कि इन स्वरों को खामोश करने के लिए अस्पष्ट परिभाषित कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है."
बैचलेट ने विदेशी योगदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के इस्तेमाल की चिंता का हवाला दिया कि वह अपने उद्देश्य में अस्पष्ट है. अधिनियम सार्वजनिक हित के लिए या किसी भी अन्य गतिविधि के लिए विदेशी धन की प्राप्ति पर प्रतिबंध लगाता है.
पेरिस स्थित पत्रकारिता और पत्रकारों के निगरानी संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने 20 अक्टूबर को पनेकर के साथ हुई मारपीट की घटना पर प्रेस नोट जारी कर कहा है कि जिन पुलिस वालों ने यह हिंसा की, पेनकर से उनका पहचान पत्र, फोन, पर्स छीना उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. आरएसएफ के हिंद प्रशांत डेस्क के प्रमुख डैनियल बास्टर्ड ने कहा, "नई दिल्ली पुलिस का ऐसा व्यवहार, जिसमें उसने जानबूझकर अहान पेनकर की पत्रकार के रूप में अवहेलना की है, पूरी तरह से अस्वीकार्य है. पिटाई करने वाले पुलिस वालों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए." आरएसएफ के इस नोट में लिखा है कि इससे पहले भी कारवां के तीन पत्रकारों पर सत्तारूढ़ बीजेपी के समर्थकों ने अगस्त में हमला किया था लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया और तब भी उनसे फोन और पहचान पत्र छीन लिया था.
नोट में लिखा है, “पिछले फरवरी में दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान, आरएसएफ ने बीजेपी समर्थकों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाए जाने से बचाने की अपील दिल्ली पुलिस से की थी. आरएसएफ के अनुसार, उस दौरान कम से कम 18 पत्रकारों को निशाना बनाया गया था और उन पर हमला किया गया था और पुलिस हस्तक्षेप करने में विफल रही थी. आरएसएफ ने कहा है कि साल 2020 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का 180 देशों में 142वां स्थान है.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा और महासचिव संजय कपूर ने नोट जारी कर दिल्ली पुलिस के अधिकारीयों द्वारा कारवां के पत्रकार पर किए गए बर्बर हमले की निंदा की है. बयान में लिखा है कि जब पेनकर अपने पेश की जिम्मेदारियों को पूरा कर रहे थे तब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के साथ-साथ पेनकर को भी हिरासत में ले लिया. अपना प्रेस पहचान पत्र दिखाने के बावजूद पेनकर को पुलिस ने 4 घंटे तक बंधक रखा, थप्पड़, लात और घूसे मारे, उनका फोन जब्त कर लिया और तस्वीरों सहित उसकी रिपोर्ट की गई सामग्री को मिटा दिया. नोट में आगे लिखा है, “कारवां के रिपोर्टर पर इस तरह का हमला संवैधानिक सिद्धांतों और मीडिया के स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने के अधिकार का उल्लंघन करता है.” ईजीआई ने कहा है कि वह इस हमले में शामिल पुलिस अधिकारियों के खिलाफ केंद्रीय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस आयुक्त से सख्त कार्रवाई की मांग करता है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों. साथ ही उन्हें पेनकर के खिलाफ मामला दर्ज न करने का भी निर्देश देना चाहिए.
इससे पहले इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी ने वक्तव्य जारी करते हुए दोषियों पर तत्काल कार्रवाई करने की मांग की थी. अपने बयान में आईएनएस ने कहा था, “भारतीय समाचार पत्र सोसायटी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर और संबंधित प्राधिकरणों से अपील करती है कि वह इस मामले के दोषियों के खिलाफ सख्त एक्शन लें और पत्रकारों के लिए ऐसा महौल सुनिश्चित करें जिसमें वे बिना किसी डर और व्यवधान के अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम हों.”