We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing
इस साल अक्टूबर में हिंदी की मासिक पत्रिका समयांतर ने अपने प्रकाशन के 26 वर्ष पूरे कर लिए. इसके चार हज़ार से अधिक पाठकों के लिए पत्रिका का हर अंक उस भारत का दस्तावेज़ है, जो इन वर्षों में धीरे-धीरे बदलते हुए लगभग अपरिचित हो गया है. शुरुआती दौर में लिखने वाले कई लेखक अब इस दुनिया में नहीं हैं, जबकि कई नए नाम समयांतर के माध्यम से उभर कर आज स्थापित पत्रकार, लेखक और बुद्धिजीवी के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं.
शुरुआत दिनों में, जब 1990 के दशक में भारत विश्व बाज़ार के लिए खुल रहा था, समयांतर का मुख्य ध्यान वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण के असर और महिलाओं, किसानों, मज़दूरों के संघर्षों पर था, पर आज पत्रिका में बढ़ते लोकतांत्रिक संकट, हिंदुत्व राजनीति के उभार और जाति के प्रश्नों पर लगातार विमर्श होता है. 2002 में गुजरात में हुए मुसलमान-विरोधी नरसंहार के बाद पत्रिका ने ‘बहुसंख्यक हिंसा और धर्म का भारतीय राजनीति व समाज में हस्तक्षेप’ जैसे विषयों पर लेखों, रिपोर्टों और संपादकियों की एक महत्त्वपूर्ण शृंखला प्रकाशित करनी शुरू की.
लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सिद्धार्थ रामू ने मुझे बताया, 'समयांतर आज की तारीख में एकमात्र हिंदी पत्रिका है जो जीवित है.' उन्होंने पत्रिका द्वारा देश के पूर्वोत्तर और आदिवासी इलाकों पर की जाने वाली नियमित कवरेज की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा, 'पूरा देश समयांतर के नक्शे पर है और किसी हिंदी पत्रिका के लिए यह आसान नहीं होता.'
पत्रिका के बीते वर्षों के विशेषांकों पर एक नज़र डालते ही पता चलता है कि कैसे उसने अपनी राजनीतिक दृष्टि बनाए रखते हुए अपने वैचारिक विस्तार को और व्यापक किया है : धर्म: प्रासंगिकता के सवाल (मार्च 2003), वैज्ञानिक चेतना और हमारा समाज (फ़रवरी 2004), 1857 और बदलाव का विमर्श (फ़रवरी 2007), हिंदू राष्ट्र की दस्तक (अप्रैल 2017), सवर्ण राजनीति के दलित मोहरे (जुलाई 2017) और जाति और भारत का इंकलाब (नवंबर 2017)
Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute