10 अक्टूबर 2022 को समाचार वेबसाइट द वायर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें आरोप लगाया गया कि भारतीय जनता पार्टी के आईटी विभाग के राष्ट्रीय संयोजक अमित मालवीय को मेटा के क्रॉस-चेक या एक्सचेक सिस्टम के तहत खास रियायत मिली हुई है जिसके चलते उनके पास किसी भी इंस्टाग्राम पोस्ट को हटा सकने की क्षमता है फिर भले ही वह पोस्ट इंस्टाग्राम के दिशानिदेर्शों के खिलाफ हो या न हो. एक्सचेक सिस्टम के जरिए मेटा हाई-प्रोफाइल उपयोगकर्ताओं के कंटेट के बारे में फैसलों की समीक्षा करता है. मेटा सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक का हाल ही में बदला हुआ नाम है. यह कंपनी फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप जैसे ब्रांडों की मूल कंपनी है. एक्सचेक सिस्टम के बारे में पहले भी रिपोर्टें आई इैं लेकिन ऐसी किन्हीं व्यापक शक्तियों को शामिल करने को लेकर कोई रिपोर्ट नहीं थी. द वायर की पहली रिपोर्ट में एक कथित आंतरिक इंस्टाग्राम रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट शामिल थे, जिसे वायर ने संगठन के भीतर एक स्रोत के जरिए पाने का दावा किया था. मेटा में एक नीति संचार निदेशक एंडी स्टोन ने आरोप लगाया कि द वायर की रिपोर्ट में पेश सबूत "मनगढ़ंत जान पड़ते हैं."
द वायर ने अपने दावे की शाख बढ़ाने के लिए दो फॉलो-अप रिपोर्टें प्रकाशित कीं. इनमें से पहले में स्टोन द्वारा अपने सहयोगियों को भेजे गए एक कथित ईमेल के स्क्रीनशॉट शामिल थे, जिसमें उन्होंने सवाल किया था कि द वायर को इंस्टाग्राम पर मालवीय के अकाउंट के बारे में दस्तावेजों तक कैसे पहुंच मिली. जब मेटा और अन्य स्वतंत्र विशेषज्ञों ने इस ईमेल की सत्यता पर शक जाहिर करना शुरू किया तब द वायर ने अपनी तीसरी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें दावा किया गया कि उसने स्टोन के ईमेल को प्रमाणित करने के लिए एक तकनीकी परीक्षण किया था और यह परीक्षण दो स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा सत्यापित किया गया था. फिर भी, इन दोनों रिपोर्टों में भी विसंगतियों की भरमार थी. उदाहरण के लिए, द वायर ने जिन दो विशेषज्ञों से संपर्क किया था, उन्होंने इसकी तीसरी रिपोर्ट की बातों को सत्यापित करने से इनकार किया था.
द वायर द्वारा पहली रिपोर्ट प्रकाशित किए जाने के लगभग एक पखवाड़े बाद इसने अपने कवरेज की लंबित आंतरिक समीक्षा के चलते तीनों रिपोर्टों को वापस ले लिया. 29 अक्टूबर को, द वायर ने देवेश कुमार के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की, जिसने तीसरी रिपोर्ट का सह-लेखन किया था और अप्रैल 2021 से जुलाई 2022 तक प्रकाशन के सलाहकार था. शिकायत में कुमार पर "दस्तावेज गढ़ने और जालसाजी" का आरोप लगाया गया. शिकायत में दावा किया गया कि वह इन रिपोर्टों के लिए मेटा में प्राथमिक स्रोतों के संपर्क का मुख्य बिंदु था और उसने अपने सहयोगियों को गुमराह किया था. एक दिन बाद, जब द वायर ने अपनी रिपोर्ट वापस ले ली और माफीनामा जारी किया, तो पुलिस ने मालवीय की एक शिकायत पर कार्रवाई करते हुए द वायर के दिल्ली कार्यालय और इसके संस्थापक संपादकों, इसके व्यापार प्रमुख और उन पत्रकार के घरों में छापे मारे जिन्होंने पहली रिपोर्ट लिखी थी और उसके बाद की दो रिपोर्टों का सह-लेखन किया था.
नवंबर में कारवां में सहयोगी लेखिका निकिता सक्सेना ने मेटा की पूर्व डेटा वैज्ञानिक सोफी झांग से बात की, जो व्हिसल ब्लोअर बन गई थीं. झांग का काम यह स्थापित करने में सहायक रहा है कि मेटा ने कई अप्रामाणिक नेटवर्क के खिलाफ समयबद्ध तरीके से कार्रवाई नहीं की, जो संभवतः भारत सहित कई देशों में राजनीतिक नतीजों को प्रभावित कर रहे थे. अन्य स्वतंत्र विशेषज्ञों और तकनीकी पत्रकारों के साथ, झांग इस मामले पर द वायर की रिपोर्टों के प्रति शुरुआती और सार्वजनिक संदेहवादियों में से थीं. सक्सेना से बात करते हुए झांग ने तीन रिपोर्टों के बारे में अपनी समझ के साथ-साथ तकनीकी पत्रकारों और व्हिसल ब्लोअर के लिए गलत रिपोर्टिंग के संभावित नतीजों का जिक्र किया. झांग की प्रतिक्रियाओं का एक संपादित अंश नीचे पुन: प्रस्तुत किया गया है.
द वायर की रिपोर्ट की मेरी पहली याद तब की है जब एक रिपोर्टर ने पहली बार इसके बारे में ट्वीट किया था और उस ट्वीट में मेरा जिक्र किया था. ट्वीट कुछ इस तरह था, "यह मुझे ऐसा ही लगता है जैसा सोफी ने बताया था कि भारत में मेटा ने खास रियायत रखी हैं." मेरी पहली प्रतिक्रिया थी : "ठीक है, यह एक बड़ी स्टोरी लगती है, मुझे इसे पढ़ना चाहिए." आमतौर पर, जब मैं इन चीजों में जाती हूं तो मैं शुरुआत में खुले दिमाग से जाने की कोशिश करती हूं. मैं तुरंत नतीजे पर नहीं पहुंचती. मैं देखती हूं कि वे क्या कह रहे हैं, देखती हूं कि बात कायदे की है या नहीं. क्या मैं निजी तौर पर इसकी पुष्टि कर सकती हूं? क्या इसके कुछ हिस्से झूठे हैं?
इसके बारे में मेरे पहले ट्वीट सीधे तौर पर संदेहपूर्ण नहीं थे. मेरी स्थिति यह थी कि, "मुझे नहीं पता कि यह सच है या नहीं, यह सच हो सकता है." विस्तृत तर्क, विशिष्ट विवरण के बिना, मुमकिन तो थे, लेकिन अभी तक साबित नहीं हुए थे. कुछ ब्योरे खुद मुमकिन नहीं थे.
मुझे याद है कि मैं सोच रही थी कि द वायर वाले बहुत भाग्यशाली है कि उन्हें एक आंतरिक दस्तावेज मिला जो इतना सरल, संक्षिप्त और स्पष्ट था. मुझे यकीन है कि आपने वे दस्तावेज देखे होंगे जो मैंने दिए थे. [बीजेपी सांसद विनोद सोनकर से जुड़े एक अप्रामाणिक नेटवर्क को हटाने में मेटा की निष्क्रियता के संबंध में] वे सरल, संक्षिप्त और स्पष्ट नहीं है. कंपनी के आंतरिक दस्तावेज को ढूंढना बहुत नायाब है जो कहता हो कि, "हमने खराब काम किया. हमसे इस वजह से चूक हुई. शुक्रिया कि आपने हमें हमारी गलती बतलाई!” यह मुझे शुरू से ही चौंकाने वाला लगा. उस वक्त मैंने सोचा था कि किस्मत से ही यह उन्हें मिला है. लेकिन जाहिर है कि यह हिंट था कि सत्यता की पड़ताल करो.
मुझे यकीन है कि भारत में हर रिपोर्टर ने अब तक द वायर के दस्तावेजों के कुछ हिस्से को पढ़ लिया है. मेरे द्वारा डाले गए दस्तावेजों की तुलना में इन झूठे दस्तावेजों पर अधिक ध्यान दिया गया. मैंने अगले दिन देखा कि उनमें से कुछ को तो पांच दर्जन बार देखा गया है. यह सच है कि वे बहुत ठोस हैं. लेकिन मुझे लगता है कि एक मामला यह भी है कि झूठे दस्तावेजों को असली दस्तावेजों की तुलना में बहुत ज्यादा भाव मिला क्योंकि वे स्पष्ट और समझने में आसान थे और शायद इसलिए कि वे अधिक विस्फोटक थे. ये ऐसी बातें भी थीं जो उन्हें अधिक संदिग्ध बनाते थे.
द वायर की रिपोर्ट के बारे में, जिस बिंदु पर मैंने ध्यान लगाया, वह यह दावा था कि एक्सचेक कार्यक्रम अमित मालवीय को यह ताकत दे रहा था. मैंने इस पर गौर इसलिए किया क्योंकि वह मुझे शुरू से ही मुमकिन नहीं लगता था. कई करोड़ उपयोगकर्ता हैं जो मेटा में एक्सचेक किए गए हैं. आप संभावित रूप से एक्सचेक्ड हैं, कारवां की संभावना है, जैसा कि अधिकांश पत्रकार और राजनेताओं की है. शाहरुख खान लगभग निश्चित रूप से इसमें हैं. ऐसे ही अधिकांश बॉलीवुड सितारे हैं. मेरा शुरुआती अनुमान यह था कि एक्सचेक का इस्तेमाल किसी और चीज के लिए एक लक्षणा बतौर किया जा सकता है, जैसे दिल्ली कहे जाने का मतलब दिल्ली के हर व्यक्ति के बजाए भारत सरकार से हो सकता है.
मेरा सबसे अच्छा अनुमान यह था कि यह ताकत मालवीय की स्थिति या भारत सरकार के साथ जुड़ाव से संबंधित थी क्योंकि मेटा के पास और सामान्य रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के पास सरकारें उच्च प्राथमिकता पर पोस्टों को हटाने के लिए याचिका दायर करती हैं. ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं है. उदाहरण के लिए इजराइली और फिलिस्तीनी पोस्टों के साथ ऐसा होता है. या उदाहरण के लिए जर्मनी में नाजियों के बारे में पोस्ट के साथ ऐसा होता है. मेरा मानना है कि तुर्की उन देशों में से है जो ऐसा सबसे ज्यादा करता है, मोटे तौर पर कुर्द लोगों के बारे में जिन्हें वह आतंकवादी मानता है. आमतौर पर ऐसा नहीं है कि कोई जांच ही नहीं होती है. आमतौर पर जब कंपनी को लगेगा कि यह उचित है, तो वह वापस लड़ेगी. ऐसा नहीं है कि वह महज सरकार की ही बात मानेगी.
लेकिन मेरे लिए यह विश्वास करने लायक था कि भारत में चीजें अलग हो सकती हैं. खासकर मेरे दिमाग में जो आया, वह यह था कि पिछले साल किसान आंदोलन के साथ भारत सरकार और सोशल-मीडिया कंपनियों के बीच बड़ी तकरार हुई थी. इसमें पोस्टों को हटाने की मांग की गई. ट्विटर ने सार्वजनिक रूप से यह लड़ाई लड़ी और यह एक बड़ी लड़ाई थी. और जहां तक मुझे जानकारी है, सार्वजनिक रूप से कभी कोई नहीं जान पाया कि मेटा और भारत के बीच मामले का क्या हुआ.
इसलिए शुरुआत में मुझे लगा कि हो सकता कि अमित मालवीय के पास यह शक्ति इसलिए थी क्योंकि वह भारत सरकार से जुड़े हुए हैं और किसान आंदोलन के दौरान हुई तकरार के एवज में ऐसा हो सकता है. यह इस बात को भी समझाता कि किसी ने इसके बारे में पहले क्यों नहीं सुना. यह निश्चित रूप से एक परिकल्पना थी जो गलत निकली क्योंकि रिपोर्ट वास्तव में सच नहीं थी.
मुझे लगता है कि शुरू से ही रिपोर्ट ऐसी थी जो व्यापक रूप से मुमकिन था. इसने ध्यान खींचा क्योंकि कंपनी के भीतर के बहुत से लोगों ने भारत में इसके कामकाज सहित कंपनी द्वारा किए गए गलत कामों को उजागर किया था. लेकिन साथ ही विडंबना यह भी है कि ये मेरे जैसे लोग थे (मुझ पर मेटा की कठपुतली होने का आरोप लगाना बहुत मुश्किल होगा) जो बाद में रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे थे. हम ही थे जिन्होंने रिपोर्ट को मुमकिन और विश्वसनीय बनाया और हम ही थे जिन्होंने इस पर सवाल उठाया.
मुझे लगता है कि पहली बार में गलत सूचना इसी तरह काम करती है. यह फैलती है क्योंकि यह उन बातों में फिट बैठती है जिन पर लोग पहले से ही यकीन करते हैं- चाहे यह उन लोगों के लिए लव जिहाद की कहानियां हों जो मानते हैं कि मुस्लिम एक खतरा हैं या द वायर की कहानी जो उन लोगों तक फैलती हैं जो मानते हैं कि मेटा और बीजेपी एक खतरनाक गठजोड़ किए हुए हैं. मेरे लिए यह विश्वास करना कठिन था कि मेटा कंटेट को बिना किसी जांच के हटाने की इजाजत देगा, बिना सरसरी निगरानी के भी. लेकिन कुल मिला कर मैं यकीन कर सकती थी कि यह हो रहा है और मुझे लगता है कि ठीक यही कारण था कि इसे इतना ध्यान और प्रचार मिला.
पूरी रिपोर्ट सच्ची या झूठी हो सकती है लेकिन लोग ऐसी रिपोर्ट सुनने को तैयार हैं जो शायद सही न हो क्योंकि वे उस पर विश्वास करना चाहेंगे. यह सच नहीं हो सकता है, लेकिन यह सच लगता है. सिर्फ इसलिए कि किसी कंपनी ने कुछ गलत काम किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि सभी आरोप सही हैं. मुझे लगता है कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है. द वायर ने दावा किया कि कई लोगों ने माना कि ऐसा पहले से ही हो रहा है. लेकिन जो नया था वह यह कि उन्होंने इसका समर्थन ऐसे सबूतों के साथ किया जो साफ, संक्षिप्त और स्पष्ट प्रतीत होते थे. और मुझे लगता है कि बहुत से लोग इस तरह के कंटेंट में रुचि रखते हैं. खासकर ऐसा कंटेंट जो इतना विस्फोटक लग रहा था लेकिन तब भी आसानी से समझ में आने वाला और हजम होने लायक था.
कई बार जब मैं चीजों को देखती हूं, तो चीजों को मुझ तक पहुंचने में थोड़ा समय लगता है. द वायर द्वारा साझा किए गए दस्तावेजों के कुछ हिस्से मुझे असामान्य लगे. मैं इसके बारे में अन्य लोगों, मौजूदा मेटा कर्मचारियों और कंपनी से पूर्व में जुड़े लोगों से भी उनकी राय जानने के लिए बात कर रही थी. यह उन चीजों का संयोजन है जिन पर मैंने व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया है और जिन पर अन्य लोगों ने ध्यान दिया है. उन्होंने अटकलों और चिंताओं को उठाया और मैंने भी और हम बेशक एक दूसरे का ज्ञान बढ़ा रहे थे.
जो चीजें असामान्य थीं, उनमें एक कथित आंतरिक इंस्टाग्राम रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट में "Instagram.workplace.com" यूआरएल का दिखना था, जिसे द वायर के दावे के सबूत बतौर पहली रिपोर्ट में पोस्ट किया गया था. मैंने मेटा में अपने समय के दौरान इस यूआरएल को कभी भी उपयोग में नहीं देखा था. किसी कारण से मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया. मुझे लगता है कि शोशना वोडिंस्की [वित्तीय समाचार पोर्टल मार्केटवॉच की एक खोजी रिपोर्टर] ने इस तरफ इशारा किया था. इससे पहले पूर्व कर्मचारियों के साथ मेरी बातचीत में, मैं कह रही थी, "हम्म, यह अलग दिखता है, लेकिन शायद यह इसलिए है क्योंकि यह Instagram.workplace है. मैंने इसे पहले नहीं देखा है."
जो चीजें खटकीं, वे थीं : टैब आइकन- जो कि एक खास वेबसाइट से जुड़ा आइकन है- आंतरिक रिपोर्ट के स्पष्ट स्क्रीनशॉट पर सलेटी के बजाए नीले रंग का था. देवेश [कुमार] ने मुझे बताया कि यह बदल गया है. मुझे नहीं पता कि यह हुआ या नहीं.
शब्दावली असामान्य थी. रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट में एक पॉइंट सूचीबद्ध था जिसमें लिखा था, "रिपोर्टेड बाई : @amitmalviya (केस आईडी: IR982614)." मैं "केस आईडी" शब्द के उपयोग से हैरान थी जो कि मेटा में मेरे समय के दौरान मैंने उपयोग में नहीं देखा था. मैं अलग शब्दावली के उपयोग की अपेक्षा करती. आईडी केवल-संख्यात्मक के बजाय अल्फान्यूमेरिक थी. यह बहुत ही विचित्र लग रहा था. समीक्षा प्रक्रिया के एक स्क्रीनशॉट में दिखाई देने वाले टाइमस्टैम्प में स्वरूपण भी बहुत ही असामान्य था जो मैंने मेटा में अपने समय के दौरान देखा था उससे असामान्य था.
फिर मैंने उन लोगों से बात की जो अभी भी मेटा में थे और जिन पर मुझे भरोसा था और उन्होंने मुझे बताया कि दस्तावेजों में कई विसंगतियां उनके लिए भी अजीब थीं. विसंगतियों के लिए मेरा मुख्य बचाव था, "जब मैं वहां थी तब से यह बदल गई होंगी," और एक बार जब यह स्पष्ट हो गया कि ऐसा नहीं था, तो क्वॉलिटी के मद्देनजर उनका बचाव करना कठिन हो गया.
मुझे लगता है कि मैं शुरुआत में ही द वायर को संदेह का लाभ देने के लिए तैयार थी क्योंकि मैंने उनके साथ पहले काम किया था और वहां मेरे व्यक्तिगत संबंध थे. मैं उम्मीद नहीं कर रही थी कि द वायर को अगर बहुत विश्वास नहीं है और अगर उसके पत्रकारों ने दोबारा जांच नहीं की है, तो वे इतनी मुस्तैदी से आगे बढ़ेंगे. आखिरकार, मुझे लगता है कि द वायर को संदेह का लाभ देने वाले मेरे जैसे बहुत सारे लोगों की शुरुआती प्रतिक्रिया थी : "चलो, अभी देखते हैं आगे क्या होगा.”
रिपोर्ट के बारे में अपने संदेह जाहिर करते हुए एक प्रारंभिक ट्विटर थ्रेड बनाने के बाद, मुझसे देवेश कुमार ने संपर्क किया, जो मुख्य व्यक्ति था जिसके साथ मैंने द वायर में काम किया था. मेरा मानना है कि द वायर ने अब उसके खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज की है और फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोप लगाया है.
टेक फॉग लेख के बाद मैंने पहली बार उनसे बातचीत की थी क्योंकि द वायर उनके निष्कर्षों और संभावित प्रभावों पर एक पैनल चर्चा आयोजित कर रहा था. [यह द वायर की एक पिछली जांच रिपोर्ट थी, देवेश कुमार इसका सह-लेखक था, जिसमें दावा किया गया था कि बीजेपी कार्यकर्ता सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कंटेंट में हेरफेर करने के लिए एक ब्राउजर-आधारित एप्लिकेशन का इस्तेमाल कर रहे थे. तब से इसे एक आंतरिक समीक्षा के लिए द वायर की वेबसाइट से हटा दिया गया है.] लगभग उसी समय, मुझे द वायर के किसी व्यक्ति ने टेक फॉग के बारे में लिखने के लिए कहा. लेकिन मैंने उन्हें बताया कि मैं ऐप से सीधे तौर पर परिचित नहीं हूं और इसलिए इसके बजाए मैंने भारतीय आईटी सेल के बारे में एक ऑप-एड लिखा.
बाद में, देवेश उन कई पत्रकारों में से एक था जिनसे मैंने संपर्क किया था, जब मैं इस साल की शुरुआत में विनोद सोनकर से जुड़े अप्रामाणिक नेटवर्क पर मेटा की निष्क्रियता के बारे में अपने दस्तावेज के साथ आगे आना चाहती थी. शुरुआत में मुझे छापने वालों में, द वायर ही एकमात्र ऐसा संस्थान था, जिसने दस्तावेजों को पूर्ण रूप से प्रकाशित किया था. तब वे बिल्कुल ठीक लग रहे थे और द वायर द्वारा प्रकाशित किए जाने पर मैंने अपने दस्तावेजों में किसी भी तरह के बदलाव पर ध्यान नहीं दिया था- जिसे मैंने मेहनत करके खोजा था. इस तरह मैंने देवेश के साथ पहले बातचीत की. वह अनिवार्य रूप से द वायर में मेरा प्राथमिक संपर्क बन गया. मैंने मान लिया कि वह संगठन के साथ जुड़ा हुआ है. मुझे यह ख्याल भी नहीं आया कि उसके हित सामान्य रूप से द वायर के हितों से भिन्न हो सकते हैं और मैं यह मान रही थी कि वह नेक नीयत से काम कर रहा है.
देवेश ने निजी तौर पर और मेरे ट्वीट के जवाब में जाहिर किया कि एक्सचेक प्रणाली के बारे में मेरा ज्ञान या तो गलत था या पुराना था और यह कि उसका ज्ञान बेहतर था. मुझे संदेह था कि वह इस बात को मुझसे बेहतर समझता है. मैंने स्वीकार किया कि यह संभव था कि मेरे जाने के बाद से यह बदल गया हो. उसने निजी तौर पर भी जाहिर किया कि "हमने मेटा के साथ इसकी पुष्टि की है," और मेटा ने यह नहीं कहा कि दस्तावेज नकली थे. मुझे बहुत हैरानी हुई कि उसने कहा कि मेटा ने कहा कि ये दस्तावेज फर्जी नहीं हैं. मुझे उम्मीद थी कि कम से कम मेटा थोड़ा ज्यादा समय मांगेगा या ऐसा ही कुछ होगा. केवल इसलिए कि मेटा को दस्तावेज खोजने और उसकी जांच करने में समय लगता है. यहां तक कि अगर वे इसकी जल्दी से पुष्ट कर भी सकें तो भी हो सकता है कि वे इस तरह की विस्फोटक रिपोर्ट के लिए ऐसा नहीं करना चाहेंगे. लेकिन निश्चित रूप से, पहली रिपोर्ट प्रकाशित होने के तुरंत बाद, मेटा ने सार्वजनिक रूप से कहा कि ये दस्तावेज नकली हैं और इसने साफ तौर पर देवेश को लेकर थोड़ा अविश्वास जगाया क्योंकि उसने मुझे कुछ और ही बताया था.
मैंने कभी मेटा को वास्तविक दस्तावेज से इंकार करते नहीं देखा है. अतीत में, जब मैं पहली बार कई देशों में राजनीतिक नतीजों को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किए जा रहे अप्रामाणिक नेटवर्कों का मुकाबला करने के लिए मेटा की अनिच्छा के बारे में अपने खुलासे के साथ सामने आई, तो उन्होंने मुझ पर झूठ बोलने का आरोप लगाया, लेकिन जैसे ही हमने इसके उलट दस्तावेज पेश किए, वे इससे मुकर गए. उन्होंने उन दस्तावेजों के फर्जी होने का आरोप नहीं लगाया. वे मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं, जैसे वे कहते हैं, "हम सोफी झांग द्वारा जारी दस्तावेजों पर टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने वह हमें देखने के लिए नहीं दिए हैं," भले ही विचाराधीन दस्तावेज - भारत में मेरे काम के संबंध में - सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि वे दस्तावेज आंशिक रूप से नकली हैं क्योंकि उन पर काम करने वाले अन्य लोगों द्वारा उनका आसानी से खंडन किया जा सकता है. मेटा अपने आंतरिक कर्मचारियों से जो कहता है उसे सही भी ठहराना होता है, और संभवतः इस तरह के मामलों के लिए अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने में इसका बड़ा फायदा भी है.
ज्यादातर मामलों में मेटा सीधे तौर पर झूठ नहीं बोलता है. भारत में मेरे दस्तावेजों के संबंध में मेटा ने तीन-चार बार अपनी बात बदली. मेरे द्वारा दस्तावेज जारी करने के बाद उनकी अंतिम टिप्पणी इस प्रकार थी, "हम इन दस्तावेजों पर टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि वे हमें प्रदान नहीं किए गए हैं," भले ही मैंने उन्हें पूरी दुनिया को देखने के लिए जारी किया था. यह बहुत ही असामान्य था और इससे पता चलता है कि मेटा को भारत की कितनी चिंता है.
मेटा का इस तरह जोरदार इनकार मेरे लिए हैरानी भरा था खासकर इसलिए क्योंकि देवेश ने मुझसे कहा था कि मेटा दस्तावेजों की प्रामाणिकता से इनकार नहीं करेगा. यह सिर्फ इनकार नहीं था. यह विसंगतियों के बारे में मेरी शुरुआती चिंताओं से जुड़ा इनकार था.
मैं शुरू में अनिश्चित थी लेकिन जल्द ही इस नतीजे पर पहुंची कि दस्तावेज नकली थे और देवेश से अपनी चिंता जाहिर की. मेरी चिंता यह थी कि उसे और द वायर को मूर्ख बनाया जा रहा था और जिस तरह से निधि राजदान के साथ छेड़छाड़ की गई थी, उसी तरह से छेड़छाड़ करने का स्रोत का अपना मकसद था. जब हम सामूहिक रूप से आश्वस्त हो गए थे कि दस्तावेज नकली थे- जब मैंने अन्य मेटा कर्मचारियों से बात की, यह द वायर की दूसरी रिपोर्ट आने के बाद की बात है, जो लोग भारत में थे उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें लगता है कि द वायर का इरादा नेक था लेकिन गुमराह कर गया. ऐसा लगता था कि किसी ऐसे व्यक्ति ने उनका शोषण किया था जिस पर वे भरोसा करते थे, यही हमारी धारणा थी.
शुरुआत में मैं देवेश से अपनी चिंताएं जाहिर करती थी कि उसे स्रोत गुमराह कर रहा है और ऐसा लगता जैसे वह इससे बहुत ही व्यक्तिगत रूप से प्रभावित होता. मैंने मान लिया कि यह स्रोत कोई करीबी दोस्त, कोई करीबी पारिवारिक साथी, कोई रोमांटिक साथी या उसी तरह का कोई व्यक्ति था और इसलिए उसे साफ तौर पर बहुत निजी यकीन था और हमारी इस धारणा से वह निजी तौर पर आहत होता. मुझे नहीं पता कि यह व्यक्ति अस्तित्व में था भी या नहीं. लेकिन यह उस समय मेरा नजरिया था. स्रोत को गुमराह करने के लिए संभावित प्रेरणाओं पर मेरी अटकलों के जवाब में उन्होंने मुझे खास तौर पर लिखा था, "यह एक बहुत बड़ी धारणा है जो आप हमारे स्रोत के बारे में कुछ भी जाने बिना बना रही हैं." उन्होंने यह भी लिखा, "सिर्फ इसलिए कि वे सार्वजनिक नहीं हुए हैं इसका मतलब यह नहीं है कि हमने उनकी पहचान सत्यापित नहीं की है और उनसे मुलाकात नहीं की है." मैंने यह कहते हुए जवाब दिया कि सिर्फ इसलिए कि उनके पास पहुंच थी, इसका मतलब यह नहीं है कि वे उसे वास्तविक दस्तावेज दे रहे हैं. इस पर उन्होंने लिखा, ''फिर से यह पूरी गुंजाइश न जानने पर आधारित धारणा है.''
मुझे ऐसा लगा कि किसी वजह से उन्हें इस व्यक्ति पर बेहद निजी यकीन था. इसलिए उन्होंने बताया कि वह जानते थे कि वे उन्हें झूठे दस्तावेज नहीं देंगे. लेकिन मैंने इस पर बहुत अधिक पढ़ा था. उदाहरण के लिए, यह हो सकता है कि उन्होंने प्रस्तुत किए जा रहे दस्तावेज़ों के वीडियो दिए हों, कि वह उन्हें वास्तविक मानने के लिए पर्याप्त रूप से आश्वस्त करने वाला समझें, जबकि उन्हें गढ़ा भी जा सकता है.
उस समय, द वायर ने यह भी दावा किया था कि उन्होंने कई स्रोतों से बात की, जो सभी उन्हें एक ही कहानी बता रहे थे, और यह मेरे लिए बहुत ही असामान्य था. इसका मतलब किसी तरह की बड़ी साजिश होगी, जिसका द वायर शायद शिकार हो गया था. मुझे उस समय देवेश की विश्वसनीयता पर शक नहीं हो रहा था.
मेरी धारणा यह थी कि अगर प्राथमिक स्रोत कोई वास्तविक व्यक्ति था, तो उन्होंने पहले ही बाहर निकलने की तैयारी कर ली होगी और अन्य दस्तावेज उपलब्ध करा लिए होंगे और बहुत जल्द पकड़े जाने की उम्मीद कर रहे होंगे, या उन्होंने अपना विनम्र इस्तीफा दे दिया होगा. मूल रूप से कंपनी के भीतर बहुत सारे व्हिसिल ब्लोइंग दस्तावेजीकरण के लिए यही होता है. मैं मेटा के लिए अपना नाम गुमनाम रखते हुए आगे नहीं बढ़ पाती, यह इतना साफ होता, क्योंकि मैंने उन चीजों का दस्तावेजीकरण किया था, जिन पर केवल मैंने व्यक्तिगत रूप से काम किया था.
फ्रांसेस [हाउगेन, एक पूर्व मेटा कर्मचारी, जिन्होंने ऐसे खुलासे किए, जिसने गलत सूचना, घृणास्पद भाषण और हिंसक उग्रवाद को बनाए रखने में प्रौद्योगिकी समूह की भूमिका का खुलासा किया] अपनी पहचान छिपा नहीं सकते थे, क्योंकि वे इस बात की तलाश करते कि इन विशिष्ट रिपोर्टों और दस्तावेजों तक कौन पहुंचा और उन किन समय अवधियों में, और पाते कि केवल एक ही व्यक्ति है जिसने ऐसा किया है. और इसलिए, हम आगे आने से पहले कंपनी को छोड़ना चुनते हैं. यह मेरी ओर से कोई विकल्प नहीं था क्योंकि मुझे निकाल दिया गया था. मेरे लिए यह विश्वास करना असंभव नहीं था कि किसी ने निकलने का अधिक नाटकीय रास्ता चुना होगा. यह एक संभावना थी जो मेरे साथ भी हो सकती थी.
जब तक स्वतंत्र विशेषज्ञों की गवाही के जाली होने का पता चला, तब मैंने वास्तव में देवेश को संदेश भेजा था - ऐसी अटकलें थीं कि उन्होंने ही ऐसा किया था - मैंने लिखा, "मुझे यकीन है कि आप भारी दबाव में हैं. बस यह जानना चाहती थी कि आप ठीक हैं या नहीं." उन्होंने बेपरवाही से जो कुछ भी किया, मेरा मतलब है ... मैं बड़ी तस्वीर को देखने की बहुत कोशिश करती हूं, और कोशिश करती हूं कि फैसला न सुनाने लगूं, अनुमान न लगाने लगूं.
मुझे लगता है कि समाज को किसी स्तर पर भरोसे पर काम करना होगा. आपको विश्वास करना होगा कि आपके सहकर्मी वह काम कर रहे हैं जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि वे कर रहे हैं. हो सकता है कि कोई उन पर नजर रखे, लेकिन फिर आपको उस व्यक्ति पर भरोसा करना होगा. और आप उस व्यक्ति पर किसी की नजर रख सकते हैं, लेकिन तब आपको उस दूसरे व्यक्ति पर भरोसा करना होगा. चौकीदार की चौकीदारी कौन करेगा? किसी बिंदु पर, भरोसा होना चाहिए.
मुझे लगता है कि बहुत सारे संगठनों ने ऐसे मामलों को निपटाया है, जिनमें पत्रकारों या योगदानकर्ताओं ने जाली दस्तावेज़ या गढ़े हुए स्रोत, या अकादमिक दुनिया के संबंध में जाली वैज्ञानिक पेपर पेश किए हैं. मेरे लिए, एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो रिपोर्टर नहीं है, और विशेष रूप से इन मुद्दों से परिचित नहीं है, मुझे नहीं पता कि विभिन्न समाचार संगठनों की नीतियां क्या हैं, लेकिन मुझे पता है कि वे हैं. मुझे यकीन है कि वे समाचार संगठनों के बीच भी अलग—अलग हैं.
मुझे यकीन है कि द वायर जैसे छोटे समाचार संगठन में यह बहुत अलग है, जहां, संभवतः, सभी लोग एक-दूसरे को जानते हैं, या कम से कम एक-दूसरे के बारे में सुना है. टाइम्स समूह के उलट, जो इतना बड़ा है, आप कह सकते हैं कि बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने कभी एक दूसरे के बारे में नहीं सुना है. एक छोटे से आउटलेट में, अधिक विश्वास हो सकता है, क्योंकि आप एक दूसरे को जानते हैं. आप एक दूसरे को परिवार की तरह मानते हैं. जैसे जब मेटा अभी शुरू हो रहा था, मार्क जुकरबर्ग ने नियमित सवाल-जवाब सत्र किया, जहां वह मेटा कर्मचारियों के साथ कंपनी के लिए अपने विजन के बारे में, वे आगे क्या करने की योजना बना रहे थे और कंपनी जो भी बदलाव कर रही थी, इस पर खुलकर बात करते. जैसे-जैसे कंपनी का विस्तार हुआ, यह अव्यावहारिक हो गया, क्योंकि यह अक्सर प्रेस में लीक हो जाता था.
मेरा व्यक्तिगत रूप से यह मानना था कि द वायर को अलग तरीके से काम करना चाहिए था, क्योंकि शुरू में सवाल उठाए जाने के बाद, रिपोर्टर ने जो कहा, उसे आगे देखना चाहिए था, और जांच करनी चाहिए थी. जो उसने किया हो सकता है- मुझे ठीक से नहीं पता कि क्या हुआ. यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि वास्तव में क्या हुआ था, और यह माना जा रहा है कि रिपोर्टर ने वास्तव में दस्तावेज़ों को अनिवार्य रूप से गढ़ा था.
हो सकता है कि फर्जीवाड़ा बाद में हुआ हो. उदाहरण के लिए, यह संभव है कि देवेश ने ईमेल के अंत में केवल इसलिए जालसाजी की हो क्योंकि उसे स्रोत का बचाव करने की निजी जरूरत महसूस हुई. यह भी संभव है कि उसने शुरू से ही जाली चीजें बनाई हों. यह संभव है कि पहले कोई स्रोत न हो. मैंने सुना है कि कई स्रोत थे. मैंने सुना है कि सूत्रों से मिलने वाले कई लोग थे. मैंने यह भी सुना है कि देवेश स्रोत से मिलने वाले एकमात्र व्यक्ति थे. तो, मैं पूरी तरह से निश्चित नहीं हूं.
मुझे नहीं लगता कि एक संगठन के रूप में द वायर की इसमें मिलीभगत थी, क्योंकि उनका व्यवहार उस धारणा के अनुरूप नहीं था. उदाहरण के लिए, द वायर ने अन्य लोगों को सत्यापित करने के लिए विशेषज्ञों की पहचान जारी की. अगर आप जानते हैं कि ये जाली थे, तो यह संभावना नहीं है कि आप ऐसा करेंगे—आप उनकी सुरक्षा को लेकर कोई बहाना बनाएंगे और कहेंगे, "हम आपको यह नहीं बता सकते कि यह कौन है," या ऐसा ही कुछ.
मुझे यह भी आश्चर्य है कि अगर मेटा के भीतर कोई व्यक्ति किसी स्तर पर शामिल था, चाहे वह वर्तमान कर्मचारी हो या पहले का, सिर्फ इस अर्थ में कि आंतरिक मेटा जानकारी पेश की गई थी, मुझे व्यक्तिगत रूप से नहीं लगता कि देवेश जाली हो सकता था - लेकिन यह कहना कठिन है. मेरे जैसे लोगों के माध्यम से मेटा के बहुत सारे दस्तावेज़ सामने आ रहे हैं.
यहां तक कि जिन विसंगतियों का मैं पहले उल्लेख कर रही थी, उन्हें देखने के लिए आंतरिक मेटा ज्ञान वाले किसी व्यक्ति की आवश्यकता थी. हालांकि, इसका एक अच्छा हिस्सा संभवतः फ्रांसेस और मेरे द्वारा दिए गए दस्तावेजों से सुलभ हो सकता था. उदाहरण के लिए, संभवतः यही वह संदर्भ था जिससे शोशाना ने अपनी चिंताएं व्यक्त कीं. लेकिन मुझे लगता है कि यह एक ऐसी चीज है जिसके लिए एक टेक रिपोर्टर की आवश्यकता हो सकती है - जिसका पूर्णकालिक काम इन मुद्दों पर रिपोर्ट करना है, और संभावित रूप से इन कंपनियों के कामकाज से परिचित होना है. अगर आपके पास किसी क्षेत्र के लिए समर्पित कोई व्यक्ति है, तो निश्चित रूप से उस व्यक्ति के पास उस क्षेत्र का विशेषज्ञ बनने का अवसर होगा.
मुझे लगता है कि पश्चिमी संस्थानों की तुलना में बहुत सारे भारतीय संस्थान सामान्य रूप से तकनीक रिपोर्टिंग में बहुत कम कोशिश करते हैं. इस साल मई और जून में जब मैंने विनोद सोनकर से जुड़े अप्रमाणिक नेटवर्क के बारे में अपने खुलासों पर कई पत्रकारों के साथ काम किया, ऐसा लगता था कि कई या ज्यादातर पत्रकार तकनीक-सुलभ नहीं थे. इसका मतलब यह था कि उनमें से कइयों को जिप फाइल खोलने में तकनीकी कठिनाइयां आ रही थीं- मुझे लगता है कि मुझसे लगभग छह पत्रकारों ने इस बारे में पूछा था.
दूसरे उदाहरण के लिए, भारतीय प्रेस से मेरी पहला सामना लगभग दो साल पहले हुआ था जब मेरा विदाई मेमो लीक हो गया था. मेरे मेमो में मैंने "बैड एक्टर्स" वाक्यांश का उपयोग किया था, जो एक तकनीकी सुरक्षा-उद्योग का शब्द है, जो उन बुरे इरादों वाले लोगों का जिक्र करता है जो सिस्टम में हेरफेर करने की कोशिश कर रहे हैं. इस "बैड एक्टर्स" वाक्यांश के आधार पर, मेरे मेमो के बारे में मिरर नाउ की एक रिपोर्ट के वीडियो क्लिप के नीचे पोस्ट किया गया सारांश, आत्मविश्वास से दावा करता है कि "भारत में, बॉलीवुड सितारों के एक राजनीतिक रूप से परिष्कृत नेटवर्क ... का इस्तेमाल दिल्ली के चुनावों को प्रभावित करने के लिए किया गया था," भले ही मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा था. (शुरुआत में मैंने सोचा था कि जिस न्यूज चैनल ने यह गलती की है वह टाइम्स नाउ है- मिरर नाउ का सहयोगी चैनल- क्योंकि जिस वेबसाइट पर यह क्लिप अपलोड की गई है वह TimesNowNews.com है.)
ये नाटकीय उदाहरण हैं. ऐसे कई छोटे मामले भी हैं, जिनमें, मुझे लगता है, बहुत सारे भारतीय रिपोर्टर, स्पष्ट रूप से, उनके द्वारा किए गए दावों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए तैयार रहते हैं या गलत अनुमान लगाते हैं. मैं लोगों को तथ्यों के बारे में सही होने को लेकर बहुत समय खपाती हूं, कभी-कभी मैसेजिंग में ये पन्ने भर का हो जाता है. लेकिन ईमानदारी से कहूं तो, भारत में, मैं सबसे नाटकीय मुद्दों को छोड़कर कोई भी सुधार करते-करते थक गई हूं.
मैं व्यक्तिगत रूप से भारतीय तकनीकी कर्मचारियों को जानती हूं, जो भारत में थे और भारत में होने वाली घटनाओं के बारे में चिंतित थे. वे अपने नाम के साथ आगे नहीं आए लेकिन वे कंटेंट और दस्तावेज के साथ आगे आए. उन्होंने इसे भारतीय प्रेस के बजाए पश्चिमी प्रेस को देना चुना. उदाहरण बतौर उन्होंने मुझे व्यक्तिगत रूप से कहा कि उन्हें इस बात की चिंता थी कि भारतीय प्रेस में वे इसे किसको दे सकते हैं. चिंता इस बात की थी कि कहीं बड़े संस्थान इसके साथ उचित व्यवहार न करें या न्याय न करें. छोटे संस्थानों की इनमें दिलचस्पी होती, लेकिन दर्शकों की बेशक नहीं, और इसलिए उन्होंने इसे एक पश्चिमी संस्थान को देने का फैसला किया.
द वायर सागा पर विचार करने की कोशिश में, यह कहना मुश्किल है कि विश्वसनीयता किसी भी चीज से कैसे प्रभावित होती है. अक्सर भारतीय समाचार संस्थान ऐसी खबरें प्रकाशित करते हैं जो विश्वसनीय नहीं होती हैं लेकिन फिर भी उनके बड़ी संख्या में अनुयायी होते हैं जो उनकी रिपोर्टों को पढ़ते और देखते हैं. मैं लगातार कुख्यात मिरर नाउ मामले के बारे में बोलती हूं, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने बॉलीवुड को रंगे हाथों पकड़ा है. फिर भी मिरर नाउ भारत में एक लोकप्रिय अंग्रेजी चैनल है. इसे देखने वाले अभी भी अनगिनत लोग हैं. इसकी विश्वसनीयता स्पष्ट रूप से उनके लिए कम नहीं हुई है.
मुझे नहीं पता कि क्या द वायर हर कीमत पर अपनी विश्वसनीयता बचाना चाहता था. यदि ऐसा था तो वह यह आसान रास्ता चुन सकता था और हर चीज को नकार सकता था. खासकर जब उसका एक वफादार पाठक-आधार है और एक बिंदु पर, ऐसा लग रहा था कि पीछे हटना ही एकमात्र तरीका था जिससे इसके कई पाठक आश्वस्त होते कि रिपोर्ट अविश्वसनीय थी.
मुझे लगता है कि इसने कम से कम मुझे द वायर की पिछली रिपोर्टिंगों के बारे में ज्यादा संदेहास्पद बना दिया है, और मुझे लगता है कि द वायर के पास अपनी विश्वसनीयता बहाल करने के कुछ तरीके हैं. सामान्य तौर पर, भारतीय समाचार संस्थानों के साथ, मैं शुरू से ही खुले दिमाग से उनसे संपर्क करती हूं और मुझे लगता है कि अभी भी ऐसा ही होने वाला है, जिसमें मैं सीधे नतीजों पर नहीं पहुंचने की कोशिश करती हूं.
मैंने पहले भारतीय न्यूजरूम में तकनीकी विशेषज्ञता की संभावित कमी के बारे में बात की थी. द वायर ने जो कहा है, ऐसा इसलिए था क्योंकि वे इस संबंध में तकनीकी मामलों के लिए देवेश पर निर्भर थे, कि वे अनिवार्य रूप से उनके काम की दोबारा जांच नहीं कर सकते थे और इसलिए उनका अनुभव इस क्षेत्र में विशेषज्ञता की कमी का एक संभावित नतीजा हो सकता है. यह मामला हो सकता है कि द वायर जैसे छोटे समाचार संस्थानों में, एक रिपोर्टर के काम की जांच करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता वाले पर्याप्त संसाधन या पत्रकार नहीं हैं. यह एक लचर स्थिति है. भविष्य में मुझे लगता है कि मैं ऐसे संस्थानों पर थोड़ा कम भरोसा करूंगी जो अड़ियल हों. इस अर्थ में कि मैं यह नहीं मान रही हूं कि संस्थान और संस्थान में हर किसी की नीयत नेक हो, क्योंकि इस तरह की चीजें पहले भी हो चुकी हैं. यहां जो अलग है वह बस इतना है कि संस्थान बार-बार अड़ियल बना रहा, जो मुझे लगता है कि पहले के झांसों से अलग है.
उदाहरण के लिए, आइए एक ऐसे मामले पर विचार करें जहां एक स्रोत इंटरव्यू का विरोध करता है, या दिखावा करता है कि उन्होंने कभी इंटरव्यू नहीं दिया. प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ, ऐसे मामलों की कल्पना करना संभावित रूप से संभव है जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ यह निर्धारित नहीं कर सकते कि यह ऑडियो ट्रैक संपादित किया गया है या नहीं और आपके संपादक को अनिवार्य रूप से अपने रिपोर्टर या यह कहने वाले व्यक्ति पर भरोसा करने के बीच एक पक्ष लेना होगा. मैंने जो सुना है, उससे मुझे नहीं लगता कि द वायर ने इस मामले में पर्याप्त दोहरी जांच की है. लेकिन ऐसे मामलों की कल्पना करना भी उतना ही मुमकिन है जिनमें दोहरी जांच पर्याप्त नहीं होगी.
व्हिसल ब्लोइंग के संबंध में, मुझे लगता है कि यह भविष्य में संभावित व्हिसल ब्लोइंग को कठिन बनाता है. मुझे लगता है कि समाचार संस्थान और ज्यादा सबूत और दस्तावेज मांगेंगे. मेरे मामले में मैं द गार्डियन को बड़ी संख्या में दस्तावेज सौंपे थे, जैसे कि मुझे उम्मीद थी कि दस्तावेजीकरण की मात्रा इस मामले को मजबूत बनाएगी कि व्यक्तिगत रूप से उन सभी को जाली बनाना मेरे लिए कल्पना से बाहर है. मुझे लगता है कि एक व्यक्ति पांच दस्तावेजों को जाली बना सकता है लेकिन 2000 जाली दस्तावेज बनाना बेतुका है! साथ ही कोई साजिश या कोई नेटवर्क हो सकता था. जब मैं आपके और कंसोर्टियम के पास आई, तो मुझे लगता है कि पहले से ही यह धारणा थी कि मैं द गार्डियन के साथ आगे आई थी और उन्होंने मेरे दस्तावेजों का सत्यापन किया था. बेशक, सत्यापन को लेकर मुझसे ज्यादा मांग नहीं की गई, पहला तो, मेरे शुरुआती दस्तावेजों की मात्रा के कारण, और बाद में क्योंकि इसमें द गार्डियन की विश्वसनीयता जुड़ी हुई थी.
लेकिन बाकी व्हिसल ब्लोअरों के लिए, जो तकनीकी कंपनियों के भीतर बहुत अधिक विशिष्ट शायद कुछ दस्तावेजों, दो या तीन दस्तावेजों के साथ आगे आते हैं, सवाल यह है कि क्या यह साबित करना हमेशा मुमकिन होगा कि आपका दस्तावेज वास्तविक है? अक्सर, पुष्टि करने वाले स्रोतों के साथ दोबारा जांच करना हमेशा मुमकिन नहीं हो सकता है क्योंकि जांच में समय लगता है और इसमें अतिरिक्त संसाधन लगते हैं. लेख लिखने में अधिक समय लगता है और कम लेख प्रकाशित होते हैं. मुझे लगता है कि द वायर के साथ यह गाथा टेक रिपोर्टिंग के लिए बाधाओं को प्रभावी ढंग से बढ़ाती है.
(2 दिसंबर 2022 को कारवां अंग्रेजी में प्रकाशित इस रिपोर्ट का अनुवाद पारिजात ने किया है. मूल अंग्रेजी में पड़ने के लिए यहां क्लिक करें.)