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भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के एशिया कप में पाकिस्तान को हराने के तुरंत बाद, 28 अगस्त को, सैकड़ों की तादाद में लोग गोल्डन माइल नामक लेस्टर शहर के बेलग्रेव उपनगर की एक सड़क पर जश्न मनाने के लिए इकट्ठा हुए. यह सड़क अपने भारतीय रेस्तरां और दुकानों के साथ-साथ भारत के बाहर सबसे बड़े दिवाली समारोह की मेजबानी के लिए भी जानी जाती है. मैच के बाद इस तरह की सभाएं हिंदू-बहुसंख्यक इस उपनगर में असामान्य नहीं है. जून 2017 में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में पाकिस्तान द्वारा भारत को हराने के बाद, दोनों टीमों के समर्थक गोल्डन माइल पर आपस भिड़ गए और पुलिस पर भी बोतलें फेंकीं. दो साल बाद जब भारत ने विश्व कप में पाकिस्तान को हराया, तो नतीजा शांतिपूर्ण था. लेस्टर मर्करी के अनुसार, "सीटी, कार के हॉर्न और जयकारे की आवाजें" ही सुनाई दे रही थीं.
हालांकि, इस बार करने के लिए बहुत कुछ था. पिछले कुछ महीनों से लेस्टर के दक्षिण एशियाई समुदायों के बीच तनाव बढ़ रहा था. लेस्टर में पली-बढ़ी और फिलहाल चैनल4 में होम अफेयर्स की संवाददाता दर्शना सोनी ने मुझे बताया कि शहर में हिंदू और मुसलमान अलग-अलग मोहल्लों में रहते और शायद ही कभी अंतर्जातीय विवाह करते, फिर भी वे "हमेशा अच्छी तरह से मिलते थे." उन्होंने कहा कि दमन और दीव के हाल के हिंदू आप्रवासियों का- जो केंद्र शासित प्रदेश के औपनिवेशिक इतिहास के कारण पुर्तगाली पासपोर्ट के हकदार हैं और ब्रेक्जिट से कुछ ही समय पहले बड़ी संख्या में लेस्टर चले आए थे- स्थानीय मुसलमानों के साथ अधिक टकराव था. 22 मई को एक मुस्लिम किशोर पर हिंदू पुरुषों के एक समूह ने कथित तौर पर हमला किया था. सोनी ने कहा कि घटना पर पुलिस की धीमी प्रतिक्रिया और इसे हेट क्राइम के रूप में मानने से शुरुआती इनकार ने स्थिति को और खराब कर दिया. "मुस्लिम पुरुषों का रवैया कुछ इस तरह था, 'पुलिस कुछ नहीं कर रही है. हमें अपनी हफाजत खुद करनी होगी.'" (लेस्टरशायर पुलिस के एक प्रवक्ता ने मुझे बताया कि इस घटना की जांच जारी है.) दो दशकों तक ब्रिटेन में दक्षिण एशियाई समुदायों को कवर करने वाले पत्रकार सनी हुंदल ने मुझे बताया कि कई हिंदू बेबुनियाद अफवाहों के बारे में शिकायत करते हैं कि "मुस्लिम गिरोह हमारे कर्मचारियों की पिटाई और हिंदू महिलाओं को शिकार बना रहे हैं."
मैच के बाद सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो में भारत समर्थकों को "पाकिस्तान मुर्दाबाद" और क्षेत्र में लड़ाई के नारे लगाते हुए दिखाया गया है. सोनी ने कहा, "हिंदू लड़कों के मस्जिद के पास से गुजरने, देर रात हॉर्न बजाने और लोगों को परेशान करने की खबरें थीं. कुछ लड़के कह रहे थे कि मुस्लिम लड़कों के समूह ने उनका सामना किया, उनकी कारों का पीछा किया, उन्हें गालियां दीं." नारेबाजी को रोकने की कोशिश करने वाले एक सिख व्यक्ति की पिटाई की गई, जो कि एक आपातकालीन कर्मचारी था.
लेस्टरशायर पुलिस ने घोषणा की कि वह "नस्लवादी और नफरती जुबान" को हेट क्राइम के रूप में देख रही है. अगले दो हफ्तों में, अफवाहों और हिंसा की छिटपुट घटनाओं के बीच, पुलिस ने स्थानीय धर्म समूहों के साथ बैठकें कीं और शांति की अपील करने में उनका साथ दिया. इसने आपातकालीन स्टॉप-एंड-सर्च उपायों की स्थापना की और 27 लोगों को विभिन्न कथित अपराधों के लिए गिरफ्तार किया, जैसे कि हथियार रखना, मौत की धमकी देना और हिंसक अव्यवस्था पैदा करना.
मामला 17 सितंबर को सामने आया. सोनी ने मुझे बताया कि दमन और दीव समुदाय के सदस्य, जिनका शांति की अपील करने वाले धार्मिक नेताओं के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं था, उन्होंने मुसलमानों के एक समूह द्वारा कथित रूप से एक हिंदू को चाकू मारने के विरोध में एक मार्च का आयोजन किया. मार्च गोल्डन माइल से शुरू हुआ लेकिन जल्द ही एक मुस्लिम इलाके में चला गया. जवाब में मुस्लिम निवासी लामबंद हो गए. पूरे सप्ताहांत में दोनों समुदायों के सदस्यों के बीच हाथापाई जारी रही. केवल महारानी के अंतिम संस्कार से पुलिस की पूरे दिन की गश्त को मजबूत करने के के बाद ही शांत हुई. 23 सितंबर को पुलिस ने घोषणा की कि गड़बड़ी शुरू होने के बाद से यह 158 अलग-अलग घटनाओं की जांच कर रही है. पुलिस प्रवक्ता ने मुझे 30 नवंबर को बताया कि उसने अब तक 73 गिरफ्तारियां की हैं.
लेस्टर के मेयर पीटर सोल्स्बी ने बीबीसी को बताया, "इसके लिए कोई साफ स्थानीय कारण नहीं है." उन्होंने बाहर के आंदोलनकारियों को दोषी ठहराया. "मैंने काफी सोशल-मीडिया सामग्री देखी है जो अब बहुत, बहुत, बहुत विकृत है और इसमें से कुछ पूरी तरह से झूठी हैं कि विभिन्न समुदायों के बीच क्या हो रहा था." सोनी ने कहा कि सोशल मीडिया ने तनाव फैलाने में "बड़े पैमाने पर" भूमिका निभाई है, जबकि कई निवासी नियमित रूप से दक्षिण एशियाई समाचार आउटलेट्स का उपयोग करते हैं, जिन्होंने उस सप्ताहांत की घटनाओं को बड़े पैमाने पर कवर किया और अक्सर एक सांप्रदायिक लेंस के माध्यम से उनके कवरेज को विकृत किया. लेस्टर में तनाव का उल्लेख करने वाले दो लाख ट्वीट्स के बीबीसी के विश्लेषण में पाया गया कि आधे से ज्यादा भारत में स्थित अकाउंटों से थे. भले ही झड़पों में दोनों समुदायों के सदस्य शामिल थे, इन अकाउंटों द्वारा उपयोग किए जाने वाले शीर्ष हैशटैग #Leicester, #HindusUnderAttack और #HindusUnderAttackinUK थे. इन हैशटैग का उपयोग करके साझा किए गए शीर्ष 30 लिंक में से 11 ऑपइंडिया वेबसाइट द्वारा प्रकाशित लेखों के थे.
क्रिकेट मैच से एक हफ्ते पहले ब्रिटेन में ऑनलाइन अभियान स्टॉप फंडिंग हेट के निदेशक रिचर्ड विल्सन ऑपइंडिया की बढ़ती पहुंच के बारे में चिंतित थे. उन्होंने मुझे बताया, "मैंने सुना है कि ऑपइंडिया की सामग्री ब्रिटेन और दुनिया भर के अन्य देशों में प्रसारित होती है और हम उन्हें जिस नैरेटिव को हवा देखते हैं, वह यूके के कुछ हिस्सों में जड़ें जमाने लगा है." उन्होंने मुझे बताया, "जिस तरह इंटरनेट काम करता है इसमें से कोई भी बात राष्ट्रीय सीमाओं के भीतर पूरी तरह से बंद नहीं होती हैं.”
विल्सन ने 2020 में पहली बार ऑपइंडिया खोला था जब किसी ने उन्हें एक लेख दिखाया था जिसका शीर्षक था "क्योंकि हलाल कानूनी है, गैर-मुस्लिमों को यह विज्ञापन देने का अधिकार है कि वे मुसलमानों को नौकरी पर नहीं रखते हैं." स्टॉप फंडिंग हेट का उद्देश्य विज्ञापनदाताओं से "नफरत और विभाजन फैलाने वाले प्रकाशनों" का बहिष्कार करवाना है और विल्सन की टीम ने ऐसी कई कंपनियों से संपर्क किया जिनके विज्ञापन गूगल ऐडसेंस के साथ-साथ खुद गूगल के जरिए वेबसाइट पर दिख रहे थे. उनमें से तीस से ज्यादा अपने विज्ञापनों को हटाने पर सहमत हुए लेकिन ऑपइंडिया के सीईओ राहुल रौशन ने जवाब दिया कि पाठकों से स्वैच्छिक योगदान, जो वेबसाइट के राजस्व का बड़ा हिस्सा है, में 700 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि विज्ञापन आय में कमी नहीं आई है. 2020-21 के वित्तीय विवरण के अनुसार, ऑपइंडिया की मूल कंपनी अध्यासी मीडिया एंड कंटेंट सर्विसेज ने उस साल क्राउडफंडिंग के जरिए 2.32 करोड़ रुपए जुटाए, जबकि विज्ञापन राजस्व से 42.5 लाख रुपए उसे मिले. विल्सन ने कहा, "भले ही उन्हें खुद यकीन हो न हो कि वे क्या कर रहे हैं लेकिन नफरत तो बिकती है. अर्थशास्त्र का एक मॉडल है जो बदकिस्मती से नफरत को लाभदायक बनाता है."
ऑपइंडिया अपने पाठकों को "भारत के मुख्यधारा के मीडिया द्वारा अक्सर उपेक्षित या दबा दिए गए दृष्टिकोण से रिपोर्ट और नैरेटिव" पेश करने का वादा करता है जो समकालीन भारत में वर्चस्व जमा चुका हो. इसकी तीखी एंटी पत्रकारिता न तो नई है और न ही अनोखी. उदारवादी और वामपंथी मीडिया संस्थानों को लुगेनप्रेस या झूठ बोलने वाली प्रेस बताने वाली दक्षिणपंथी भर्त्सना 19वीं शताब्दी और नाजियों के अधीन प्रमुखता में आई. यह एक ऐसा मॉडल है जिसने सोशल मीडिया के युग में दुनिया भर में पैठ जमाई है.
मीडियाविद कल्याणी चड्ढा और प्रशांत भट लिखते हैं कि, "जिस तरह दूरदर्शन ने हिंदू महाकाव्य रामायण के प्रसारण के जरिए 1980 के दशक में हिंदुत्व से संबंधित विचारधाराओं के उदय में योगदान दिया, बढ़ी हुई कनेक्टिविटी और नए वर्चुअल का संयोजन दक्षिणपंथी बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को विभिन्न प्रकार की वेबसाइटों और समाचार और कमेंट्री पोर्टलों में स्थापित करने में सक्षम बनाते हैं. मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद स्थापित हुए ऑपइंडिया उनकी सरकार के सूचना युद्धों में एक प्रमुख सिपाही के रूप में उभरा है और इसे सरकार द्वारा महत्वपूर्ण समर्थन के साथ पुरस्कृत किया गया है.
फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने ऑपइंडिया को "एक बहुत प्रभावी प्रचार आउटलेट" और "जितना कोई और मुख्यधारा का हो सकता है, उतना'' कहा. वेबसाइट न्यूजलॉन्ड्री के सीईओ अभिनंदन सेखरी ने इसकी तुलना ऑल्ट-राइट वेबसाइट ब्रेइटबार्ट से की जो ऐसा है यदि "ब्रेइटबार्ट बच्चों द्वारा चलाया जाए." उन्होंने कहा कि ब्रेइटबार्ट के उलट, जिसने अपनी वैधता खो दी, ऑपइंडिया का मंत्रियों द्वारा विज्ञापन और सिग्नल-बूस्टिंग के रूप में सरकारी संरक्षण प्राप्त करना जारी है. "अगर एक गधे को इतनी मेहनत से धक्का दिया गया होता, तो वह घोड़े में बदल जाता," उन्होंने कहा. “परन्तु वे गधे ही रह गए हैं.” फिर भी, ऑपइंडिया को नियमित रूप से एक महीने में 10 मिलियन से अधिक विजिट प्राप्त होती हैं. हालांकि किसी भी तरह से एनडीटीवी या हिंदुस्तान टाइम्स जैसे लेगेसी मीडिया घरानों की वेबसाइटों से इसकी तुलना नहीं की जा सकती है लेकिन अधिकांश अन्य ऑनलाइन समाचार आउटलेट्स की तुलना में यह कहीं बेहतर है.
सत्ता से उनकी निर्विवाद निकटता को देखते हुए, चड्ढा और भट तर्क देते हैं कि ऑपइंडिया "पेशेवर पत्रकारिता के तरीकों, सामग्री और ऐसी पत्रकारिता करने वालों की निरंतर आलोचना द्वारा देश के मीडिया परिदृश्य में अपनी तथाकथित 'वैकल्पिकता' को रेखांकित करना चाहता है." वे छह अलंकारिक रणनीतियों की पहचान करते हैं जो इसका विरोध करने वाले समाचार आउटलेट्स को बदनाम करने के लिए यह अपनाता है : "अपमानजनक लेबलिंग, आक्रामक मूल्यों और विचारधाराओं के साथ मुख्यधारा के मीडिया को जोड़ना, उनके कार्यों को असंगत या पाखंडी के रूप में परिभाषित करना, यह दावा करना कि मुख्यधारा के मीडिया के इरादे नेक नहीं, बार-बार आहत होना, और समाज के लिए हानिकारक नतीजे पैदा करना. इन रणनीतियों का एक परिणाम पत्रकारिता के मानदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए उन घटनाओं का एक संस्करण पेश करने का आग्रह रहा है जो इसकी विचारधारा के अनुरूप है. इन दो दृष्टिकोणों के संयोजन से ऑपइंडिया ने समाज के प्रमुख वर्गों को उत्पीड़ित के आख्यानों की कल्पना से अपने प्रभुत्व को अस्पष्ट करने में मदद की है. सरकार के आलोचकों पर लगातार हमला करके सरकार का बचाव किया है और घृणास्पद सामग्री को लगातार परोसकर, जिनका तथ्यों से कम ही लेना देना है, काफी अनुयायी बनाए हैं.
चड्ढा और भट लिखते हैं कि जो चीज इन कोशिशों को "खासतौर पर ताकतवर" बनाती है, वह है "कि इसके दर्शक पहले से ही कई आस्थाओं और विचारों को स्वीकार करते हैं जिनका यह समर्थन करता है." संक्षेप में, अपने पाठकों को समाचार के आधार पर अपनी राय बनाने की इजाजत देने के बजाए ऑपइंडिया अपने पाठकों की पहले से मौजूद राय के आधार पर समाचार तैयार करता है.
लेस्टर के मामले में, हिंदुओं के हमलावर और पीड़ित दोनों होने का विचार ऑपइंडिया के वास्तविकता के संस्करण के अनुरूप नहीं था. इसके बजाए, इसने लगातार अशांति को हिंदुओं के खिलाफ लक्षित हिंसा के रूप में चित्रित किया. एक लेख, जिसका श्रेय एक गुमनाम "अतिथि लेखक" को दिया जाता है - एक यहूदी कार्यकर्ता जिसकी पहचान "सुरक्षा चिंताओं के कारण" संरक्षित की गई थी - "लेस्टर की नस्लीय हिंसा" का वर्णन करते हुए यहां तक कहता है कि यह "हमला करने और भारत के विनाश का आह्वान करने के लिए नफरत की वृद्धि की है.” उसने भारत सरकार से इजराइल का अनुकरण करने और "इंडिक लोगों की सुरक्षा के लिए सभी आपातकालीन योजनाएं तैयार करने" का आग्रह किया, जिन्होंने कई देशों में आसन्न नरसंहार का सामना किया, भले ही यूरोपीय देशों ने "इंडिक-विरोधी सरकारें" चुनीं. उन्होंने एक गुमनाम "ब्रिटिश-पाकिस्तानी-मुस्लिम राजनीतिक कार्यकर्ता," एक "वृहत्तर भारत में विश्वास करने वाले" को भी उद्धृत किया, जिसने तर्क दिया कि, शांति के हित में "सभी लोग [पाकिस्तानी] जो निजी तौर पर पुनर्मिलन का समर्थन करते हैं, उन्हें अब बोलने की आवश्यकता है."
इन व्यक्तियों के काल्पनिक दावों के अलावा, ऑपइंडिया ने इनसाइट यूके जैसे संगठनों, जो ब्रिटिश हिंदुओं की वकालत करते हैं, और सारा एल गेट्स जैसे ऑस्ट्रेलिया में स्थित एक शोध विद्वान पर भरोसा कर हिंदुओं के खतरे में होने के नैरेटिव को तैयार करता है. गेट्स ने बिना किसी सबूत का हवाला दिए ऑपइंडिया को बताया कि हिंसा "धार्मिक सफाई के लिए एक सुनियोजित योजना थी. वे हिंदुओं का सफाया करना चाहते हैं.'' हिंदुओं पर "इस्लामी हमलों" के बारे में ऑपइंडिया के ज्यादातर लेख बिना किसी पुष्टि के इनसाइट यूके के ट्वीट को पुन: प्रस्तुत करते हैं. (ऐसा करने वाला वह अकेला नहीं था. फर्स्टपोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया और द प्रिंट जैसे कई मीडिया आउटलेटों ने केवल सोशल-मीडिया पोस्ट के आधार पर दावा किया था कि हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं.) सोनी ने इनसाइट यूके को "बहुत छोटा दक्षिणपंथी संगठन" बताया जिसने “बहुत सारे भड़काऊ लेख” प्रकाशित किए. सोनी ने बताया कि हालांकि अपनी रिपोर्टिंग के दौरान इनसाइट यूके के दावे कभी खरे नहीं उतरे. "अगर आप लेस्टर में किसी आम आदमी से बात करें, तो उसने शायद ही कभी इसके बारे में सुना होगा," उन्होंने कहा. हुंदल ने कहा कि ब्रिटिश हिंदू समूह भी इनसाइट यूके का उल्लेख नहीं कर रहे थे "क्योंकि वे यह भी नहीं जानते कि ये हैं लोग कौन." संगठन की वेबसाइट में किसी भी सदस्य के नाम का जिक्र नहीं है. इंटरव्यू करने के लिए मैंने ईमेल भेजा था जिसका कोई जवाब नहीं मिला.
22 सितंबर को ऑपइंडिया ने बताया कि इस्लामिक उग्रवाद के कट्टर आलोचक के रूप में उभरे एक थिंक टैंक, हेनरी जैक्सन सोसाइटी, की एक शोधकर्ता शार्लोट लिटलवुड ने दावा किया है कि "छह, और मुमकिन है कि नौ" हिंदू परिवारों ने हिंसा के कारण लेस्टर छोड़ दिया है. सोनी ने मुझे बताया कि दावा करने से पहले लिटिलवुड "लेस्टर गई तक नहीं". उसी दिन ऑपइंडिया की प्रधान संपादक नूपुर जे शर्मा ने ट्वीट किया कि कुछ अज्ञात हिंदू संगठनों ने उन्हें बताया कि "कई परिवार (कुछ कहते हैं 200) लेस्टर से विस्थापित हो गए हैं और वे वापस जाने को तैयार नहीं हैं क्योंकि वे इस्लामिक हिंसा से डरे हुए हैं." लेस्टरशायर पुलिस ने जवाब दिया कि उसे ऐसे किसी पलायन की जानकारी नहीं है. जब मैंने लिटिलवुड से शर्मा के ट्वीट के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि "इस तरह का कोई सबूत नहीं है." उन्होंने माना कि वह बस 23 सितंबर को लेस्टर गई थी, लेकिन अपने दावे पर कायम रही, उन्होंने कहा कि उन्होंने हमले के पीड़ितों द्वारा दर्ज की गई पुलिस रिपोर्टों को देखा था, जिसमें जिक्र किया गया था कि उन्हें अस्थायी रूप से स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया गया था.
नवंबर की शुरुआत में ऑपइंडिया ने थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें "लेस्टर हिंसा में तथाकथित हिंदुत्व अतिवाद या आरएसएस अतिवाद की किसी भी संभावित संलिप्तता से इनकार किया गया था." इसने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ कर दिया कि, हिंसा को मुसलमानों द्वारा हिंदुओं पर एकतरफा हमले के रूप में चित्रित करने के बजाए लिटिलवुड द्वारा लिखी गई रिपोर्ट ने झड़पों को "लेस्टर और उसके मुस्लिम इलाकों में दमन दीव के अपेक्षाकृत हालिया अप्रवासी हिंदू समुदाय के बीच एक विशेष सामुदायिक सामंजस्य/क्षेत्रीय मुद्दे" के रूप पेश किया था, और बताया था कि "हथियार रखने के लिए हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है."
ऑपइंडिया ने निश्चित रूप से अपने कवरेज के उपरोक्त अंतिम बिंदु को नजरअंदाज कर दिया था. हालांकि इसने 21 सितंबर को 21 वर्षीय एडम यूसुफ को चाकू ले जाने के लिए दोषी ठहराए जाने की खबर दी. उसने उसके नाम को सुर्खियों में रखा लेकिन 20 साल के अमोस नोरोन्हा का नाम पिछले दिन सजा पर उसकी रिपोर्ट के शीर्षक में नहीं था. यह ऑपइंडिया के एक पूर्व कर्मचारी द्वारा न्यूजलॉन्ड्री के साथ एक साक्षात्कार में वर्णित संपादकीय नीति के मुताबिक था : "अगर किसी घटना का आरोपी मुस्लिम समुदाय से है, तो आपको शीर्षक में उसका नाम उल्लेख करना होगा." वेबसाइट ने 18 अक्टूबर को 31 वर्षीय लुकमान पटेल और 27 वर्षीय अक्षय जिवा की सजा को कवर नहीं किया भले ही इसने अशांति पर लेख प्रकाशित करना जारी रखा हुआ था.
हुंदल ने कहा, "मुझे लगता है कि लेस्टर में जो कुछ हुआ वह लोगों के दो समूहों के बीच सामूहिक हिंसा थी, जिन्होंने कुछ इस तरह जताया जैसे उन्हें अपने धर्म की बहुत परवाह है.'' क्या लेस्टर हिंसा हिंदूफोबिया का उदाहरण थी? नहीं बिल्कुल नहीं. यह एक हास्यास्पद बयान है. उन्होंने कहा कि "हिंदूफोबिया के नैरेटिव का उपयोग उसी तरह किया जा रहा है जैसे पहले के सालों में इस्लामोफोबिया का उपयोग किया गया था और इसका उपयोग चरमपंथियों की किसी भी आलोचना को बंद करने के लिए किया गया है."
तथ्य-जांचकर्ता के रूप में अपनी स्व-घोषित स्थिति को ध्यान में रखते हुए ऑपइंडिया का अधिकांश कवरेज उस गलत सूचना पर केंद्रित था जो अशांति के दौरान मुसलमानों द्वारा फैलाई गई थी. व्यापार सलाहकार सचिन आर ने एक लेख में, ब्रिटिश फैक्ट-चेकर्स पर "भारतीय फैक्ट-चेकर्स से अलग नहीं होने" का आरोप लगाया था. जब हिंदू-विरोधी समाचारों की तथ्य-जांच की बात आती है, तो वे इसे अनदेखा कर देते हैं. लेकिन वे किसी भी मुस्लिम विरोधी खबर, असली या नकली, की तथ्य-जांच करते हैं. उन्होंने पाठकों को याद दिलाया कि "चयनात्मक तथ्य-जांच 'एक तरह से केवल फर्जी समाचार' ही है."
हो सकता है कि वह ऑपइंडिया का भी जिक्र कर रहे हो. इसके कवरेज ने हिंदुओं द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं को नजरअंदाज किया और इनसाइट यूके और अन्य द्वारा किए गए किसी भी दावे की किसी भी तरह की जांच नहीं की. उदाहरण के लिए, सुदर्शन न्यूज के दो पत्रकारों द्वारा किए गए दावे का कोई उल्लेख नहीं किया गया था कि मुस्लिम भीड़ द्वारा बच्चों सहित कई हिंदुओं को एक मंदिर में बंधक बना लिया गया था. इस खबर को पुलिस ने खारिज कर दिया था. पुलिस ने इस बात से भी इनकार किया कि स्ट्रीट टेस्ट नामक एक भारतीय रेस्तरां को मुसलमानों द्वारा लूटा गया था. जब बीबीसी ने नोट किया कि पुलिस ने लेस्टर छोड़ने वाले हिंदू परिवारों के बारे में लिटिलवुड के दावे को खारिज कर दिया है, तो शर्मा ने इस बात का जिक्र न करने के लिए उन्हें फटकार लगाई कि "लिटिलवुड अपनी जांच पर कायम है." लेस्टरशायर पुलिस की बात मानने से ऑपइंडिया का इनकार पुलिस के मुसलमानों द्वारा फैलाई गई गलत सूचनाओं को खारिज करने की अपनी स्वीकृति के विपरीत था. यह नरेन्द्र मोदी सरकार की आलोचनात्मक मीडिया कहानियों का खंडन करते हुए भारतीय अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत घटनाओं के संस्करण को बेझिझक स्वीकार करने के वेबसाइट के सामान्य आग्रह के उलट भी चला.
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4 अप्रैल 2019 को प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए प्रचार करते समय एबीपी न्यूज की रुबिका लियाकत और सुनील अवस्थी ने नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू लिया. चैनल उनकी सरकार के लिए एक चीयरलीडर रहा है और साक्षात्कार काफी सौहार्दपूर्ण था, लेकिन एक बिंदु पर मोदी ने अपना आपा खो दिया. लियाकत ने उनसे पूछा था कि क्या उन्होंने भारतीय वायु सेना के लिए राफेल जेट खरीदने में डसॉल्ट एविएशन के सौदे से व्यवसायी अनिल अंबानी को लाभ पहुंचाने में मदद की थी. "क्या आप सुप्रीम कोर्ट पर भी भरोसा नहीं करेंगे?" मोदी ने जवाब दिया. “क्या आप कैग पर भरोसा नहीं करेंगे? क्या आप फ्रांस सरकार की बात नहीं मानेंगे? क्या आप संसद में भारत सरकार के विस्तृत बयान को भी स्वीकार नहीं करेंगे?”
इससे पांच महीने पहले सौदे की जांच की मांग वाली याचिका को खारिज करने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला विवादास्पद रहा था. मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच, जिन्हें मोदी सरकार ने बाद में राज्यसभा के लिए नामित किया, ने सरकार को सीलबंद लिफाफे के तहत अपनी बात रखने की इजाजत दी थी. कारवां ने बताया था कि सरकार के हलफनामे में कुछ महत्वपूर्ण विवरण छुपाए गए हैं : जैसे कि भारतीय वार्ता दल के सदस्यों द्वारा दर्ज कराई गई आपत्तियां.
फरवरी 2019 में जारी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट ने स्वीकार किया था कि यह सौदा पिछली सरकार द्वारा की गई बातचीत की तुलना में सस्ता था लेकिन कई बातों की ओर इशारा भी किया : जैसे कि अनावश्यक खर्च, महत्वपूर्ण गारंटी और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के लिए प्रक्रियाओं की कमी और मूल्य वृद्धि की संभावना. इसके अलावा, कैग ने ऑफसेट समझौते की जांच नहीं की थी, जिससे अंबानी की रिलायंस डिफेंस को फायदा हुआ था. रिलायंस डिफेंस को समझौता के दो सप्ताह से भी कम समय पहले पंजीकृत किया गया था.
फ्रांसीसी सरकार का दावा है कि ऑफसेट साझेदार चुनने का निर्णय डसॉल्ट का था. सौदे पर बातचीत करने वाले पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने फ्रांसीसी वेबसाइट मीडियापार्ट को यह बताया था कि इसके लिए डसॉल्ट को मजबूर किया गया था क्योंकि मोदी सरकार ने रिलायंस डिफेंस को शामिल करने पर जोर दिया था. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में दिए गए विस्तृत बयान में अंबानी या रिलायंस डिफेंस को कैसे सूचीबद्ध किया गया था, का जिक्र नहीं था.
फिर भी मोदी ने अपना अभियान जारी रखा. "आप बहुत पक्षपाती हैं," उन्होंने कहा. मैं सीधे तौर पर एबीपी पर आरोप लगा रहा हूं. यहां एक झूठ है जो कहीं भी सिद्ध नहीं हुआ है. जिन लोगों ने यह झूठ फैलाया है, उनसे सवाल पूछने की आपकी हिम्मत नहीं है.'' वह विपक्षी कांग्रेस के गांधी परिवार का जिक्र कर रहे थे. "पिछले दस दिनों में एक ऑनलाइन पत्रिका ने सबूत के साथ इस परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं." उन्होंने वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा इस विषय पर आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर नहीं करने के लिए एबीपी न्यूज को फटकार लगाई. अवस्थी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह गांधी परिवार से आरोपों के बारे में पूछेंगे और लियाकत ने राफेल सौदे पर उनके द्वारा की गई कई टेलीविजन बहसों के बारे में बात करने की कोशिश की लेकिन मोदी ने उन्हें काट दिया और पूछा, ''सवाल यह है कि जब उन्होंने आरोप लगाए तो क्या किसी ने उनसे जवाबी सवाल किया? क्या किसी ने उनसे पूछा कि उन्हें यह सब कहां से मिला?”
मोदी जिस "ऑनलाइन पत्रिका" का जिक्र कर रहे थे, वह ऑपइंडिया थी जिसने 12 मार्च को शर्मा का एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें राहुल गांधी पर दो बिचौलियों के जरिए हथियारों के सौदागर संजय भंडारी के साथ संबंध होने का आरोप लगाया गया था, जिसने कथित रूप से डसॉल्ट के ऑफसेट भागीदार के रूप में इसकी पैरवी की थी. शर्मा ने लिखा कि यह लिंक उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों का उपयोग करके स्थापित किया है. साथ ही ये अफवाहें भी थीं कि गांधी ने डसॉल्ट के प्रतिद्वंद्वी यूरोफाइटर के साथ चर्चा की थी- जिसका इशारा जेटली ने संसद में बहस के दौरान किया था- यह बताता है कि कांग्रेस अध्यक्ष का सरकार से सवाल पूछना क्यों "शुद्ध कल्पना पर आधारित है, जिसका कोई आधार नहीं है."
ऑपइंडिया ने मीडिया से मोदी की अपेक्षाओं को पूरा किया था. और इसने सरकार को राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट या कैग के तौलने से बहुत पहले क्लीन चिट दे दी थी. जैसे ही इस सौदे पर सवाल उठने लगे इसने सरकार के साथ कदमताल किया और लगातार विपक्ष और पत्रकारों पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और इस विषय पर प्रकाशित 200 से अधिक लेखों में भ्रष्टाचार के पिछले मामलों को दोहराया.
मार्च 2019 में इंटरनेशनल फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क ने मान्यता के लिए ऑपइंडिया के आवेदन को खारिज कर दिया. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जर्नलिज्म एंड न्यू मीडिया की डीन कंचन कौर, जिन्होंने आईएफसीएन के लिए आवेदन का मूल्यांकन किया था, ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा कि वेबसाइट ने गैर-पक्षपातपूर्ण होने का दावा किया है लेकिन "उनके काम पर एक सरसरी नजर कहीं और ही इशारा करती है.” उन्होंने कहा कि ऑपइंडिया ने अक्सर सरकार के इनकार को बतौर सबूत इस्तेमाल करके और उन प्रकाशनों के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करके उन दावों का खंडन किया जिनकी तथ्य-जांच वह कर रहा था.
ऑपइंडिया के नियमित पाठकों के लिए यह कोई नई जानकारी नहीं थी. प्रतीक सिन्हा ने मुझसे कहा, "ऑपइंडिया के बहुत सारे फैक्ट चेक हैं कि वे एक छोटी सी चीज लेंगे और उसका पूरा फैक्ट-चेक करेंगे. पुलिस या प्रतिष्ठान जो कुछ भी कहते हैं, वे उसे सही मान कर चलते हैं, ताकि अपने आप में उनके लिए एक तथ्य की जांच जरूरी बन जाए- अगर पुलिस ने यह कहा है, तो बाकी सब गलत हैं." उन्होंने कहा कि “अगर कोई तथ्य-जांचकर्ता इस आधार से शुरू करे तो कार्यप्रणाली का कोई सवाल ही नहीं है. आप तथ्य-जांच का उपयोग प्रचार प्रसार के अवसर के रूप में कर रहे हैं."
ऑपइंडिया की सामग्री ने लंबे समय से यह स्पष्ट कर दिया है कि इसका नेतृत्व चाहे जो भी दावा करे, यह मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक प्रचार आउटलेट है. मीडिया विद्वान कल्याणी चड्ढा ने मुझे बताया, "ठीक है, आप दक्षिणपंथी हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपको तथ्यात्मक नहीं होना चाहिए." अधिकांश समाचार संगठनों का किसी न किसी प्रकार का संपादकीय रुख होता है और यह जरूरी है कि वे अपने सीमित संसाधनों का उपयोग करके जिन खबरों को कवर करते हैं, वे इस नीति को मानेंगे लेकिन ऑपइंडिया के लेखों में "कोई दूसरा नजरिया बिल्कुल नहीं है. यह पूरी तरह से एकतरफा है."
ऑपइंडिया की हिंदी टीम के पूर्व सदस्य विभव देव शुक्ला ने मुझे बताया कि "इसे एक बार पढ़ने वाला दसवीं क्लास का बच्चा भी जानता है कि ऑपइंडिया से कैसी खबरें निकलेंगी. बच्चे को पता चल जाएगा कि यहां उद्धव ठाकरे के पक्ष में कोई खबर नहीं आ सकती. खबरें सिर्फ एकनाथ शिंदे की तरफदारी में होंगी. यह राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के आधिकारिक बिंदुओं के बारे में कभी नहीं बोलेगा. उन्होंने ओपइंडिया की सामग्री में व्यापक पैटर्न को “ऑरेंज बिफोर ऑल” (भगवा से आगे कुछ नहीं) बताया.
हिंदी टीम के एक अन्य पूर्व सदस्य सचिन दीक्षित ने कहा कि वेबसाइट को "अब दक्षिणपंथी भी नहीं कहा जाना चाहिए. इसे पीएम-विंग कहा जाना चाहिए.” दक्षिणपंथी अभी भी एक दक्षिणपंथी सरकार की आलोचना कर सकते हैं अगर वह उनके सिद्धांतों पर खरा नहीं उतरती है. उन्होंने कहा, लेकिन "पीएम-विंग" पोर्टल "भले ही मोदीजी देश को बेच दें कुछ नहीं बोलेगा. वह कहेगा, 'देश बहुत बड़ा था. यह अच्छा है कि यह छोटा हो गया है. इसे चलाना आसान होगा.'' उन्होंने कहा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में एनडीटीवी गांधी परिवार के प्रति नरम हुआ करता था, ''लेकिन मोटे तौर पर स्थिति आज जैसी खराब नहीं थी. हलात इतने बेशर्म कभी नहीं थे.”
2015 की शुरुआत में अपना पहला ऑपइंडिया लेख लिखने से कुछ समय पहले नूपुर शर्मा ने कई ट्वीट्स में कहा कि वह बीजेपी की सदस्य थीं. इस समय उनके द्वारा प्रकाशित एक ब्लॉग पोस्ट, जिसे दक्षिणपंथी वेबसाइट स्वराज्य ने भी चलाया, पूर्वाग्रह की घोषणा के साथ शुरू हुआ : "कट्टर बीजेपी समर्थक और सदस्य. श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति अटूट निष्ठा. राष्ट्रवादी.'' यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने कब और क्यों पार्टी छोड़ दी लेकिन नवंबर 2020 में उन्होंने ट्वीट किया कि वह सदस्य नहीं हैं.
अपने लेखों में बीजेपी का बचाव और प्रशंसा करने के अलावा ऑपइंडिया ने अक्सर पार्टी में प्रमुख हस्तियों को जगह दी है. मार्च 2020 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने वेबसाइट के लिए एक विशेष लेख लिखा जिसमें उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से बताया. उस साल स्वतंत्रता दिवस पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी- जिन्होंने राहुल रौशन के संस्मरण संघी हू नेवर वेंट टू ए शाखा की प्रस्तावना भी लिखी थी- ने महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार के प्रयासों के बारे में लिखा. बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने चार लेखों का योगदान दिया है. अन्य योगदानकर्ताओं में उज्ज्वल वीरेंद्र दीपक शामिल हैं, जो छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के विशेष कार्य अधिकारी हैं; श्वेता शालिनी, बीजेपी की प्रवक्ता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सलाहकार हैं; और धवल पटेल, बीजेपी के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के सोशल-मीडिया प्रभारी हैं.
जनवरी 2019 में ऑपइंडिया की मूल कंपनी, अध्यासी मीडिया एंड कंटेंट सर्विसेज, को कौट कॉन्सेप्ट्स द्वारा अधिग्रहित किया गया था. कौट के निदेशकों में से एक दिल्ली स्थित व्यवसायी अशोक कुमार गुप्ता भी अध्यासी के निदेशक बने. न्यूजलॉन्ड्री के एक लेख में कहा गया है कि गुप्ता के सोशल-मीडिया प्रोफाइल में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बीजेपी के कार्यक्रमों में भाग लेने की उनकी तस्वीरों की भरमार थी. गुप्ता, जिन्होंने उस लेख के लिए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, का अप्रैल 2021 में निधन हो गया. कौट कॉन्सेप्ट के युगस्मिता इनोवेशन में भी शेयर हैं जिनके निदेशकों में धवल पटेल और आशीष चंदोरकर शामिल हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने 2021 में विश्व व्यापार संगठन के लिए भारत के स्थायी मिशन और टीएफआई मीडिया में, जो दक्षिणपंथी पोर्टल द फ्रस्ट्रेटेड इंडियन प्रकाशित करता है, काउंसलर के रूप में नियुक्त किया था.
चुनाव आयोग में दायर बीजेपी के हलफनामों से संकेत मिलता है कि उसने 2019 से आम चुनावों और विधानसभा चुनावों के में विज्ञापन और सोशल-मीडिया सेवाओं के लिए अध्यासी मीडिया को 25 लाख रुपए से अधिक का भुगतान किया है. (एक हलफनामे में कंपनी का नाम "अध्यासी" बताया गया है. जबकि एक अन्य ने "अभयसी मीडिया" का जिक्र है.) कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ पंजीकृत कोई भी कंपनी नहीं है जिसकी वर्तनी इस तरह की हो, यह सुझाव देती है कि यह टाइप में हुई गलती थी. वित्तीय विवरण में बीजेपी और सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन का जिक्र इसकी सूची में किया गया है, हालांकि दोनों के लिए बकाया शून्य था.
2019 के आम चुनावों से छह महीने पहले बीजेपी ने कथित तौर पर फेसबुक इंडिया से ऑपइंडिया के फेसबुक पेज को मोनेटाइज करने के लिए कहा था जिससे पेज को विज्ञापन राजस्व प्राप्त करने की अनुमति मिल पाई. उस साल अगस्त में शर्मा को नेशनल डिफेंस कॉलेज में "फर्जी समाचार, पेड न्यूज और सोशल मीडिया" के बारे में एक पैनल में बोलने के लिए बुलाया गया.
मोदी सरकार द्वारा वेबसाइट को प्रदान की गई वैधता मार्च 2021 में स्पष्ट हो गई जब द कारवां ने इस बारे में विवरण प्रकाशित किया कि कैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने कोविड-19 महामारी के दौरान मीडिया कवरेज के प्रबंधन के लिए रणनीति तैयार की. मंत्रियों द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 जून 2020 को प्रमुख पत्रकारों के साथ एक परामर्श के दौरान, सुरक्षा विश्लेषक नितिन गोखले-जिन्होंने नेशनल डिफेंस कॉलेज में शर्मा के पैनल की अध्यक्षता की थी- ने प्रस्ताव दिया कि पत्रकारों को रंग-कोडित किया जाना चाहिए, उनके समर्थकों के साथ सरकार को सफेद रंग में, विरोधियों को काले रंग में और तटस्थ को हरे रंग में दर्शाया गया है. रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया है, "हमें अनुकूल पत्रकारों का समर्थन और प्रचार करना चाहिए." गोखले ने कभी ऐसा कहने से इनकार किया है.
शर्मा, जो लगभग निश्चित रूप से सफेद रंग में कोडित होंगी, ने अगले दिन एक बैठक में भाग लिया, जिसकी अध्यक्षता स्मृति ईरानी ने की थी. उन्होंने कहा, "हमें सरकार के काम को अधिक प्रभावी ढंग से बढ़ावा देना चाहिए. ऑपइंडिया जैसे ऑनलाइन पोर्टल्स को बढ़ावा दिया जाना चाहिए." मेल टुडे के पूर्व प्रबंध संपादक अभिजीत मजुमदार ने शर्मा के दो कट्टर विरोधियों की निंदा की: ऑल्ट न्यूज और विकिपीडिया, जिन्होंने कुछ महीने पहले ऑपइंडिया को लिंक की अनुमति देना बंद करने का फैसला किया था. “ऑपइंडिया की मदद करें और ऑपइंडिया के ट्वीट्स को रीट्वीट करें,” उन्होंने कहा. रिपोर्ट की सिफारिशों में "ऑनलाइन पोर्टल्स (जैसे ऑपइंडिया) को बढ़ावा देने और समर्थन करने की आवश्यकता पर ध्यान दिया गया क्योंकि अधिकांश अन्य ऑनलाइन पोर्टल सरकार की आलोचना करते हैं." उस साल सितंबर में फेसबुक इंडिया के अधिकारियों के साथ एक बैठक में, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति के बीजेपी सदस्यों ने आईएफसीएन के साथ अपनी साझेदारी के लिए मंच की आलोचना की.
ऑपइंडिया की महामारी की कवरेज ने सरकार द्वारा उसमें रखे गए भरोसे सही ठहराया है. 2021 की गर्मियों में विनाशकारी दूसरी लहर के दौरान के इसने विपक्षी दलों के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों की आलोचना की, जबकि बीजेपी शासित राज्यों की ओर आंखें मूंद लीं. उदाहरण के लिए, एक लेख में राजस्थान की कांग्रेस सरकार के यह मानने से इनकार पर रिपोर्ट की गई थी कि 300 से अधिक स्वास्थ्य कर्मियों की मृत्यु कोविड-19 से हुई थी, इस तरह उन्हें मुआवजे से वंचित किया गया था, लेकिन ऑपइंडिया ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ सरकार राज्य के शिक्षकों के साथ ऐसा ही कर रही थी. द हिंदू की एक रिपोर्ट के आधार पर एक अन्य लेख में दिल्ली सरकार पर लगभग 5000 कोविड-19 मौतों को दर्ज नहीं करने का आरोप लगाया गया था लेकिन उत्तर प्रदेश में गंगा में सैकड़ों लाशें तैरती पाई जाने के बावजूद इसने आदित्यनाथ के इस दावे को बिना किसी सवाल के मान लिया कि उनकी सरकार मौतों का आंकड़ा कर करके नहीं दिखा रही है. इसने "विपक्ष और उनके अनुकूल मीडिया, जो महामारी की आड़ में राजनीति रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं," को फटकार लगाई.
वेबसाइट ने उन आरोपों को भी गलत बताया कि हरिद्वार में कुंभ मेला, जिसमें 91 लाख तीर्थयात्रियों ने भाग लिया और उत्तराखंड में कोविड-19 मामलों में लगभग 2000 प्रतिशत की वृद्धि की, एक सुपर-स्प्रेडर घटना थी. एक लेख में कहा गया है, "यह ध्यान रखना जरूरी है कि उत्तराखंड सरकार के तहत कुंभ मेला सख्त नियमों और विनियमों के साथ हो रहा है. कुंभ में शामिल होने के लिए 72 घंटे तक की कोविड-19 नेगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट लाना अनिवार्य है." बाद में यह सामने आया कि कुंभ मेले के दौरान जारी किए गए कम से कम एक लाख नेगेटिव जांच रिपोर्ट जाली थी.
हमेशा की तरह ऑपइंडिया ने आलोचकों की आलोचना करने में काफी ऊर्जा खपाया. एक नियमित लेखक अभिषेक बनर्जी ने लिखा, "जब से महामारी शुरू हुई है, हमें ऐसे लोगों से निपटना पड़ा है, जो किसी भी चीज के विशेषज्ञ नहीं हैं, लेकिन हर चीज पर उंगली उठाते हैं. उनका काम कुंठित सवाल पूछना और जनता की भलाई की नकली चिंता करना है. हां, भारत का कोविड प्रबंधन बिल्कुल सही नहीं था. लेकिन, मुझे दिखाओ कि हमसे बेहतर किसने किया.”
3.
कई मायनों में ऑपइंडिया की कहानी उसके उन प्रमुखों की ही है जिन्होंने इसका अलग-अलग समय में नेतृत्व किया : राहुल राज और गौरव शुरुआती सालों में और आज नूपुर शर्मा और रौशन. उन चारों ने स्वतंत्र रूप से काफी ऑनलाइन फॉलोइंग बनाई, जिसे बाद में उन्होंने ऑपइंडिया को स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया.
ऑपइंडिया को दिसंबर 2014 में कुणाल कमल जिन्हें वेबसाइट पर "एक शिक्षाविद" के रूप में वर्णित किया गया है और उनके दोस्तों ने लॉन्च किया था. संपादकीय डेस्क से पहला लेख एक मिशन के दावे के साथ-साथ मीडिया के बदलते परिदृश्य पर एक टिप्पणी के रूप में है. इसने घोषणा की कि डिजिटल मीडिया "पुराने मिथकों और पारंपरिक मीडिया की पकड़ को तोड़ रहा है और यह स्वाभाविक है कि प्रवेश बाधा कम होने के कारण कई खिलाड़ी आगे बढ़ेंगे." कौन से खिलाड़ी बने रहे, यह न केवल वित्त द्वारा निर्धारित किया जाएगा, बल्कि इससे भी तय होगा कि "वैकल्पिक आवाजों के प्रतिनिधित्व की कमी से पैदा हुए शून्य" को कौन भरेगा.
राज और गौरव जनवरी 2015 में टीम में शामिल हुए और कमल ने बैकसीट ले ली और फिर कभी अपने नाम से एक भी लेख प्रकाशित नहीं किया. पटना में जन्मे राज ने एक सैनिक स्कूल में पढ़ाई की थी लेकिन महसूस किया कि सेना में शामिल होने के लिए उनके पास अनुशासन नहीं है. इसके बजाए, वह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में शामिल हो गए. 2010 में उन्होंने भाक साला नामक एक फेसबुक पेज बनाया जहां उन्होंने अन्य सामग्री के साथ-साथ चुटकुले और ताजा तरीन मसाला पोस्ट किया. दो साल के भीतर पेज को 60000 से अधिक लाइक्स मिल गए और राज सोशल मीडिया पर एक छोटी-मोटी हस्ती से हो गए. लगभग इसी समय, उन्होंने बाद में स्वराज्य को बताया, वह इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन के प्रति आसक्त हो गए थे और नवजात आम आदमी पार्टी का समर्थन करना चाहते थे. हालांकि, "समय के साथ मैं समझ गया कि यह ऐसी चीज नहीं थी जिससे मैं जुड़ना चाहता था और बीजेपी समर्थक पोस्ट लिखना शुरू किया."
इस बीच, गौरव ने ट्विटर पर अपनी मौजूदगी बना ली थी, जहां उन्होंने @bboyblunder हैंडल का इस्तेमाल किया. नाम न छापने की शर्त पर एक पत्रकार ने मुझे बताया कि उन्हें याद है कि गौरव "ट्विटर पर टुच्ची मंडली के हिस्सा थे—जैसे, आप कोई घटिया बात लिखते और लोग और बुरे जवाब देते थे." राज के विपरीत, उन्होंने कहा, गौरव मोदी के सत्ता में आने से पहले अराजनीतिक लगते थे, "सामान्य ट्विटर बकवास" में रुचि दिखाते हुए. 2015 के अंत तक, गोवा स्थित इस चार्टर्ड अकाउंटेंट के 30000 से अधिक फौलोवर्स थे. इस पत्रकार ने कहा कि राज और गौरव अक्सर उन लोगों के साथ बातचीत करते थे जो उनकी राजनीति को साझा नहीं करते थे और गौरव के साथ चर्चा को याद किया कि उन्हें क्यों लगा कि उदार मीडिया मोदी को कवर नहीं करती.
दूसरों के विपरीत रौशन के पास ऑपइंडिया में शामिल होने से पहले मीडिया और उद्यमिता का अनुभव था. वह बिहार में पले-बढ़े, दिल्ली में भारतीय जनसंचार संस्थान में अध्ययन किया और भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद में शामिल होने से पहले हिंदी समाचार चैनल सहारा समय के लिए एक एंकर के रूप में काम किया. वहां, उन्होंने वेबसाइट क्रिकस्टॉक शुरू की, एक वर्चुअल स्टॉक एक्सचेंज जहां आप अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों के साथ-साथ दो अन्य कंपनियों में शेयरों का व्यापार कर सकते थे. हालांकि, उनकी प्रसिद्धि का दावा व्यंग्यात्मक वेबसाइट फेकिंग न्यूज होगी, जिसे उन्होंने 2008 में स्थापित किया और पांच साल बाद नेटवर्क18 को बेच दिया.
शर्मा, कोलकाता में पली-बढ़ीं, जहां उनका परिवार एक कैफेटेरिया और एक चिकित्सा कंपनी चलाता है. वह दोनों कंपनियों में निदेशक के रूप में सूचीबद्ध हैं और पुणे में सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन का अध्ययन किया है. एक विदाई पैम्फलेट में, उनके जूनियर्स ने उनकी "बुद्धिमत्ता" और "व्यंग्य" की सराहना की, उन्हें "खुली मिजाज" के रूप में वर्णित किया - ट्विटर पर दक्षिणपंथी हलकों में उनकी सराहना होती. उनके साथ पढ़ने वालों में से एक, आदित्य कितरू ने मुझे बताया कि बड़े पैमाने पर गैर-राजनीतिक परिसर में पढ़ने के बावजूद, वह राजनीतिक रूप से जागरूक थीं.
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने पहले साल के दौरान शर्मा ने खुद को ट्विटर पर एक मोदी समर्थक के रूप में स्थापित किया, जल्द ही 20000 से अधिक फौलोवर्स हो गए. 2017 में, मिंट ने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके पिता के जुड़ाव और 2010 में पुणे में जर्मन बेकरी में बम विस्फोट के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा पर उनकी चिंताओं के कारण उन्हें बीजेपी में खींचा गया था. मोदी के लिए उनके समर्थन के बावजूद, उन्होंने कहा कि दक्षिणपंथ को "जिस दिन लगेगा कि बीजेपी उसे दिए जनादेश का अनादर कर रही है, वह बीजेपी को नीचे लाने में संकोच नहीं करेगा.
9 अगस्त 2019 को प्रकाशित एक ट्विटर थ्रेड में, राज ने लिखा कि, जब वह ओपइंडिया में शामिल हुए, "मैं मीडिया द्वारा फैलाए गए झूठ और प्रचार के खिलाफ लिखना चाहता था" और वामपंथियों के "पाखंड का पर्दाफाश" करना चाहता था. “बाद में जब ऑपइंडिया बीजेपी का अंध मुखपत्र बन गया, तो मैंने खुद को दूर कर लिया. लोकप्रियता मेरी प्राथमिकता नहीं थी.
राज को हमेशा पार्टी लाइन पर नहीं चलने के लिए सोशल मीडिया पर आलोचना का सामना करना पड़ा था. जब उन्होंने मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में आदित्यनाथ की नियुक्ति की आलोचना की थी, तो उन्हें "पाखंडी", "बकवास" और "हिंदू विरोधी उर्दू प्रेमी" कहा गया था. अपने ट्विटर थ्रेड से पहले के हफ्तों में, उन्होंने बीजेपी और उसके समर्थकों की कई आलोचनाएं की थीं. उन्होंने अभिनेत्री कंगना रनौत की उदार बॉलीबुड सितारों पर की गई एक टिप्प्णी पर उन्हें "बहुत ही औसत दर्जे" का इंसान कहा था. उन्होंने बीजेपी द्वारा कई विपक्षी राजनेताओं को शामिल करने का विरोध किया था - जैसे कि अटानासियो मोनसेरेट, जिन पर 16 साल की एक लड़की के साथ बलात्कार का आरोप लगा था. उन्होंने बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ बलात्कार के आरोप को कवर नहीं करने के लिए दक्षिणपंथी संगठनों की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का श्रेय अक्सर मोदी को जाता है, लेकिन सभी विफलताओं के लिए उनके वित्त मंत्रियों, नौकरशाहों और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नरों को जिम्मेदार ठहराया जाता है. उन्होंने मोदी सरकार के मुखर आलोचक रहे पत्रकार रवीश कुमार को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार जीतने पर बधाई दी. उन्होंने हैरानी जताई कि दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री उस समय की आर्थिक उथल-पुथल पर चर्चा क्यों नहीं कर रहे थे.
उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, “यह देखकर असहज होता है कि कैसे बीजेपी समर्थकों ने कांग्रेस के अनुयायियों जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया है. वे आलोचना में अंधे हो रहे हैं. चाटुकारिता और चयनात्मक चुप्पी विचारधारा से आगे निकल गई है.” फिर भी, उन्होंने कहा कि बीजेपी "भारत के लिए सबसे कम खराब विकल्प" है. मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने के अपने फैसले की घोषणा के बाद, उन्होंने ट्वीट किया था, "बीजेपी कितना भी रायता फैलाती है, लेकिन आखिरी में दिल जीत लेती है."
"जो लोग कह रहे हैं कि मैं पक्ष बदलता हूं, सच यह है कि मैं हमेशा एक उदार आरडब्ल्यू के रूप में खड़ा रहा हूं, जबकि आप में से अधिकांश बदल गए हैं," उन्होंने अपने ट्विटर थ्रेड में लिखा है. ''खान-पान, पहनावे पर मोरल पुलिसिंग के खिलाफ लिखने वाले सोशल मीडिया पर चौबीसों घंटे नैतिक उपदेशक बन गए हैं. खुद को नास्तिक बताने वाले लोग धार्मिक कारणों से लोगों को गालियां दे रहे हैं. जो लोग आर्थिक विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में चाहते थे, वे उन लोगों को ट्रोल करते हैं जो अर्थव्यवस्था पर चिंता दिखाते हैं. यहां कौन बदल गया है?” जब मैंने उनसे इंटरव्यू के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया, 'मैं खुद को इससे दूर रखूंगा.'
2015 में, राज ने वेलेंटाइन डे मनाने वाले जोड़ों को धमकाने के लिए हिंदू महासभा की आलोचना की. उन्होंने लिखा कि उन्हें कॉमेडी मंडली ऑल इंडिया बकचोद द्वारा निर्मित विवादास्पद सेलिब्रिटी रोस्ट वीडियो पसंद आया, भले ही इसके कुछ हिस्सों ने उन्हें असहज कर दिया हो. गौरव ने अरुण जेटली पर "कर आतंकवाद" करने और बजट में वेतनभोगी वर्ग के लिए "लगभग कुछ भी नहीं" शामिल करने का आरोप लगाया और लिखा कि मोदी की एक बाहरी व्यक्ति होने की छवि जो सत्ता के गलियारों से भ्रष्टाचार को हटा देगी, बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के भगोड़े कारोबारी ललित मोदी को सहारा देते पाए जाने के बाद "टूट" गई थी .
उस साल बाद में, राज ने बीफ खाने के आरोप में भीड़ द्वारा मोहम्मद अखलाक की "बर्बर हत्या" पर अपना गुस्सा भी व्यक्त किया. उन्होंने लिखा, "मैं एक ऐसे उद्देश्य में विश्वास करता था जो एक नए भारत, जीवन के प्रति एक नए दृष्टिकोण का वादा करता है. कुछ जगहों पर अनुचित कार्यों और अन्य जगहों पर निष्क्रियता देखने के बाद, मेरा विश्वास उस से धीरे-धीरे कम हो रहा है जिस पर मैं कभी विश्वास करता था."
अक्टूबर 2016 में चीजें बदलने लगीं, जब ऑपइंडिया को स्वराज्य ने अधिग्रहित कर लिया जिसका स्वामित्व और संचालन कोवई मीडिया कर रहा था जिसके निवेशकों में इंफोसिस के पूर्व अधिकारी एमआर नारायण मूर्ति और टीवी मोहनदास पई शामिल थे. दो साल पहले, कोवई ने स्वराज्य को पुनर्जीवित किया था, जिसे 1956 में स्वतंत्र पार्टी के नेता सी राजगोपालाचारी द्वारा स्थापित किया गया था लेकिन 1980 में बंद कर दिया गया था. रौशन को, जो हाल ही में कोवई में मुख्य रणनीति अधिकारी के रूप में शामिल हुए थे, ऑपइंडिया में संचालन का नेतृत्व करने के लिए कहा गया था. अगले साल, उन्होंने शर्मा को संपादक के बनने का न्योता किया. उस वक्त तक शर्मा की ट्विटर लोकप्रियता विस्फोट हो गई थी. नवंबर 2017 तक उनके 90 हजार फौलोवर्स थे. बाद में उन्होंने ट्वीट किया, "ऑपइंडिया में शामिल होने के बाद, मैं पत्रकारिता में दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम करना चाहती थी. राहुल रौशन ने मुझसे बात की और मुझे बताया कि मैं सहज रूप से प्रशिक्षित पत्रकारों की तुलना में ज्यादा बेहतर कर रही हूं." स्वराज्य के पूर्व उप-संपादक मोहम्मद जीशान, जो अब एक स्तंभकार और लेखक हैं, ने मुझे बताया कि दक्षिणपंथी मीडिया पारिस्थितिकी तंत्र "मुझे लगता है, उन लोगों को प्रभारी बनाने की कोशिश कर रहा था जो पेशेवर पत्रकार नहीं थे, लेकिन जो ट्विटर और सोशल मीडिया पर लोकप्रिय थे."
जैसे ही रौशन और शर्मा ने कार्यभार संभाला, राज और गौरव के लेखों की आवृत्ति कम हो गई. ओपीनियन पीस के बजाए राजनीति पर अधिक ध्यान दिया गया और समाचार रिपोर्टों पर अधिक जोर दिया गया. हर दिन प्रकाशित होने वाली सामग्री की संख्या बढ़ती गई, साथ ही सांप्रदायिक सामग्री की मात्रा भी बढ़ती गई. एक डच थिंक टैंक, स्टिचिंग द लंदन स्टोरी द्वारा किए गए एक विश्लेषण में अप्रैल 2017 से शुरू होने वाले ऑपइंडिया के लेखों में मुसलमानों के बारे में एक तेज उछाल पाया गया. शोधकर्ताओं रितुम्ब्रा मनुवी और शिवम मौर्य ने प्रकाशन के पहले दो वर्षों को "इनक्यूबेशन पीरियड" कहा.” जिसमें ओपइंडिया ने बड़े पैमाने पर “राज्य सुरक्षा के मुद्दों” को कवर किया और “इस्लामी आतंकवाद को भारत के लिए संभावित खतरे के रूप में” बताया. हालांकि कोवई अधिग्रहण के बाद, “हमने ऑपइंडिया रिपोर्टिंग में हिंदुओं और मुसलमानों पर कवरेज के बीच बढ़ती ध्रुवीयता देखी. विशेष रूप से, हिंदुओं की 'सुरक्षा और भलाई' पर सवाल उठाने के लिए नैरेटिव काफी हद तक भू-राजनीतिक और महत्वपूर्ण दक्षिणपंथी रिपोर्टिंग से स्थानांतरित हो गई. उन्होंने 2017-18 को "हिंदूफोबिया काल" कहा, जिसमें "हिंदुओं को पीड़ित और मुसलमानों को हत्यारे, आतंकवादी और अन्यथा समस्याग्रस्त के रूप में पेश किया गया था."
प्रतीक सिन्हा ने ऑपइंडिया के कायापलट की तुलना इसके सहयोगी प्रकाशन द फ्रस्ट्रेटेड इंडियन से की. "वे सभी उदारवादी होने से शुरू करते हैं और फिर वे रास्ता बदल लेते हैं," उन्होंने मुझे बताया. यहां तक कि इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने भी 'ओह, हम राजनीतिक नहीं हैं, हम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं' के रूप में शुरू किया और फिर यह बीजेपी जैसी बन गई. यह तटस्थ दिखाई देना, फिर बाद में अपना रंग दिखाना, एक बहुत ही स्टेंडर्ड रणनीति है.
कोवई के वर्षों के दौरान से एक चीज जो ऑपइंडिया में नहीं बदली, वह थी इसके अधिकांश लेखों के लिए बाहरी योगदानकर्ताओं पर निर्भरता. इसके अधिकांश संपादकीय नेतृत्व की तरह, अधिकांश योगदानकर्ता पेशेवर पत्रकार नहीं थे, लेकिन उनके दक्षिणपंथी अकाउंट सोशल मीडिया पर सक्रिय थे.
आईआईएम कोझिकोड में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर कौसिक गंगोपाध्याय ने फरवरी 2017 और जून 2019 के बीच दस लेखों का योगदान दिया. उन्होंने मुझे बताया कि गौरव, जिनसे उन्होंने ट्विटर पर मुलाकात की और उन्हें "दिलचस्प किस्म का व्यक्ति" बताया, ने उन्हें ऑपइंडिया के लिए लिखने के लिए कहा था. "मुझे याद है, कई अन्य जगहों पर जहां मैं लेख भेजता था, वे विपरीत राय के लिए बहुत खुले नहीं हैं," उन्होंने कहा. "तो, मेरे पास उन्हें भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है."
भूख को कम करने में भारत कैसे "बहुत बुरा नहीं कर रहा है" के बारे में एक समाचार रिपोर्ट के अलावा, गंगोपाध्याय द्वारा प्रस्तुत अर्थशास्त्र से संबंधित एकमात्र लेख में प्रमुख तर्कवादियों की हत्याओं के लिए दोष देने का एक "लागत प्रभावी" तरीका निर्धारित करने की मांग की गई थी, जिसमें प्रमुख तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, एमएम कलबुर्गी और गौरी लंकेश भी शामिल थे. गंगोपाध्याय ने लिखा, "अगर धर्मनिरपेक्षतावादी ताकतें पुलिस और जांच को नियंत्रित करती हैं तो झूठे आरोप लगाने के लिए उन्हें दोष दें, और अगर हिंदुत्ववादी ताकतें पुलिस और जांच को नियंत्रित करती हैं तो अपने आलोचकों की हत्या करने के लिए हिंदुत्ववादी ताकतों को दोष दें." संभवतः, इसका मतलब यह था कि किसी को यह मान लेना चाहिए कि "धर्मनिरपेक्षतावादी ताकतें" दाभोलकर, कलबुर्गी और लंकेश की हत्याओं के लिए झूठे तरीके से हिंदुत्ववादी ताकतों को दोषी ठहरा रही थीं, जिन्हें कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के तहत मार दिया गया था, जबकि पानसरे, जिनकी मृत्यु देवेंद्र फडणवीस के सत्ता में आने के बाद हुई थी महाराष्ट्र में,एक हिंदुत्व समूह, सनातन संस्था द्वारा सुरक्षित रूप से हत्या की गई मानी जा सकती है, जिस पर जांचकर्ताओं- फडणवीस के कार्यकाल के दौरान महाराष्ट्र पुलिस सहित- को सभी चार हत्याओं को अंजाम देने का संदेह था. उनके अन्य लेखों में भारतीय "सामाजिक न्याय योद्धाओं" और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन के बीच तुलना और सबरीमाला आंदोलन के दौरान भारत को उदार कट्टरवाद से मुक्ति दिलाने के लिए जारी की गई पुनर्जागरण की एक अपील शामिल थी.
गंगोपाध्याय ने कहा, "किसी भी नई चीज की आमतौर पर बहुत आलोचना होती है क्योंकि प्रतिष्ठान इसे पसंद नहीं करते हैं." ऑपइंडिया को पक्षपाती मानना अनुचित होगा, क्योंकि "मैं किसी निष्पक्ष समाचार पत्र या संगठन को नहीं जानता." उन्होंने कहा कि, पहले के विपरीत, अब उनके पास कई विकल्प हैं और वह वर्तमान में प्रज्ञाता वेबसाइट के लिए लिखते हैं.
जीशान, जिन्होंने 2015 में ऑपइंडिया में एक लेख लिखा था, ने मुझे बताया कि उन्होंने स्वराज्य के लिए 20 साल की उम्र में लिखना शुरू किया था क्योंकि "वे मुझे प्रकाशित करने के इच्छुक थे." वह द डिप्लोमैट और हफ़िंगटन पोस्ट के लिए लिखने में सक्षम थे, लेकिन कहीं और नहीं जा सके. उनका मानना था कि उनके जैसे कई युवा लेखक बस एक ऐसे मंच की तलाश में थे जो उनके पास हो. "मुख्यधारा का मीडिया एक बहुत ही बंद गुट है," उन्होंने कहा. "वही लोग बार-बार प्रकाशित होते रहते हैं." स्वराज्य और अन्य दक्षिणपंथी प्रकाशनों ने, उन्होंने कहा, "मूल रूप से प्रतिभा के उस आधार का लाभ उठाया जो भारत में मौजूद थी."
स्पष्ट रूप से ऑपइंडिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ाता कि लेखक कौन है यदि उसका काम इस पोर्टल के राजनीतिक उद्देश्यों के अनुरूप हो. अप्रैल 2017 में इसने एक लेख प्रकाशित किया जिसके लेखक को केवल उसके ट्विटर हैंडल से पहचाना गया था. लेख इस बारे में था कि भारतीय बुद्धिजीवी "भारतीय मूल संस्कृति और हिंदू धर्म से नफरत क्यों करते हैं?" इसे 16000 से अधिक साझा किया गया था और लेखक की रौशन और अन्य दक्षिणपंथी इन्फ्लुएंसर्स ने सराहना की थी. नौ महीने बाद ऑपइंडिया ने लेख के निचले भाग में एक अपडेट पोस्ट किया और पाठकों को बताया कि उसे नहीं पता कि लेखक कौन था :
इस लेख के लेखक पर एक विशेष व्यक्ति द्वारा पहचान की और साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया गया था. लेखक पर आरोप लगाया गया था कि उसने ट्विटर पर किसी और की तस्वीर और सामग्री को अपने नाम से इस्तेमाल किया था. इन आरोपों के बाद लगता है कि लेखक ने अपना ट्विटर अकाउंट डिलीट कर दिया है. जब यह हमारे संज्ञान में लाया गया, तो हमने ईमेल के जरिए इस बारे में लेखक के विचार जानने के लिए संपर्क किया लेकिन लेखक ने हमसे संपर्क नहीं किया. हालांकि हम पहचान की चोरी के आरोपों की पुष्टि या खंडन करने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन लेखक की ओर से किसी भी संचार के अभाव में और अपने ट्विटर अकाउंट को हटा देने के चलते, हम नाम और पहचान को संपादित कर रहे हैं.
4.
विभव देव शुक्ला ने मुझसे कहा, "हर संगठन केवल राय पर आधारित खबरें देता है. अगर इस तरफ स्वराज्य और ऑपइंडिया है, तो उस तरफ द वायर, द क्विंट है. हर कोई अपनी राय मिलाता है और खबर देता है और हमारा काम भी यही था कि खबर निकल जाए लेकिन हम जो थोड़ा सा जोड़ सकते हैं, वह कौन सा मूल्यवर्धन है जो हमारे पाठक या दर्शक के बौद्धिक आहार को पूरा करे?
2020 के मध्य और 2021 की शुरुआत के बीच ऑपइंडिया में काम करने वाले शुक्ला विकास के समय वेबसाइट से जुड़े थे. 30 जुलाई 2018 को, शर्मा और रौशन ने स्वराज्य से स्वतंत्र ऑपइंडिया चलाने के लिए आध्यासी मीडिया एंड कंटेंट सर्विसेज का गठन किया. वे नए उद्यम में बराबर के भागीदार थे, जबकि शर्मा और रौशन की पत्नी शैली रावल ने निदेशक के रूप में काम किया. अशोक कुमार गुप्ता को सितंबर में एक अतिरिक्त निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया था और कौट कॉन्सेप्ट्स ने चार महीने बाद कंपनी का अधिग्रहण कर लिया. 30 नवंबर 2021 तक, यह आध्यासी के 80 प्रतिशत शेयरों का मालिक है. शर्मा और रौशन तीन-तीन प्रतिशत के मालिक हैं, जबकि ऑपइंडिया के संपादक रावल और निर्वा मेहता के पास क्रमश: 13 प्रतिशत और एक प्रतिशत का स्वामित्व है. नया उपक्रम सफल रहा. इसके 2019 के वार्षिक रिटर्न के अनुसार, आध्यासी को 10.4 लाख रुपए का कर-पश्चात लाभ हुआ था. मार्च 2021 में, इसने 64.3 लाख रुपए का लाभ दर्ज किया.
मनुवी और मौर्य द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, आध्यासी वर्षों ने ऑपइंडिया के कवरेज में एक नए चरण की शुरुआत की: बहिष्कार का दौर. 2019 में, "पहुंच और बेवसाइट को होने वाले राजस्व में वृद्धि" "मुस्लिमों का जिक्र करने वाले लेखों की मात्रा में काफी वृद्धि" के साथ हुई, जो छह सौ से अठारह सौ तक तीन गुना बढ़ गई. उन्होंने लिखा, " सामान्य रूप से आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ, ऑपइंडिया द्वारा गलत बयानी, नकली समाचार और एकमुश्त प्रचार भी इस अवधि के दौरान बढ़ा. ऑपइंडिया ने सक्रिय रूप से एक ऐसे नैरेटिव को बढ़ावा दिया जिसमें मुसलमान हिंदू और भारत पर हमलों के लिए जिम्मेदार हैं, साथ ही कानून प्रवर्तन की भूमिका के बारे में नकारात्मक बात करते हुए, उन्हें मुस्लिमों द्वारा किए जाने वाले अपराधों में निष्क्रिय खिलाड़ियों के रूप में चित्रित किया."
यहां तक कि उन्होंने अन्य मीडिया घरानों का हवाला देकर ऑपइंडिया के पक्षपातपूर्ण झुकाव को सही ठहराया, लेकिन शुक्ला ने मुझे बताया कि वे वेबसाइट द्वारा मुसलमानों के साथ किए जाने वाले बर्ताव को बर्दाश्त नहीं कर सकते. ऑपइंडिया के लिए, उन्होंने कहा, "भले ही कोई मुस्लिम एक पेंसिल चुराता है, और यहां तक कि अगर आरोप साबित नहीं हुआ है, तो भी वह एक अपराधी है. यह कानून, या नैतिकता, या लोकतंत्र के संदर्भ में सही नहीं है. लेकिन यही बात है. उनके पास एक निर्धारित पैटर्न है और वे आगे बढ़ने के लिए उसी पैटर्न का उपयोग करेंगे." यह सिर्फ विचारधारा का सवाल नहीं था, शुक्ला ने कहा. "इसे मोटे तौर पर कहें तो, ऑपइंडिया का उत्पाद केवल वही है जो बाजार की मांग है - लोग क्या साझा करते हैं, ऑपइंडिया से उनकी क्या अपेक्षाएं हैं."
सचिन दीक्षित ने मुझे बताया, "लोग उन तथ्यों को चुनते हैं जो वे उपयोग करना चाहते हैं, जो हमारे दर्शक और पाठक पढ़ना चाहते हैं. आप अपने पाठक के हिसाब से फोटो लगा रहे हैं, आप इस तरह से हेडलाइन बना रहे हैं जो आपके पाठक को वहां खींचे, हिट दे." उन्होंने कहा कि रिपोर्टों का चयन "वायरल होने की गुंजाइश के आधार पर" किया जाता है. उन्होंने क्लिक के इस खेल को "महामारी" कहा.
दीक्षित ने ओपइंडिया के इस्लामोफोबिया को इस व्यापार मॉडल के संदर्भ में रखने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि देश के दो बड़े दुश्मन हैं मुसलमान और ब्राह्मण. "एक अघोषित है और दूसरा घोषित है." जाति-आधारित आरक्षण के संवैधानिक प्रावधान को देखते हुए ब्राह्मण घोषित शत्रु हैं. "इसलिए, ऑपइंडिया पर ज्यादातर लोग अघोषित के बारे में सुनना चाहते हैं क्योंकि सारी राजनीति उन्हीं पर आधारित है." उन्होंने कहा कि इस्लामोफोबिया की बाजार की मांग के संतृप्त होने के साथ, ऑपइंडिया अन्य मुद्दों पर आगे बढ़ सकता है. वह वेबसाइट की जाति की कवरेज को दिलचस्पी से देख रहे थे. उन्होंने कहा, अगर यह "घोषित शत्रु के बारे में लिखना" शुरू करता है, तो "यह मोदीजी की राजनीति को झटका देगा."
शुक्ला ने मुझे बताया कि ऑपइंडिया के पत्रकारों से आमतौर पर एक दिन में सात या आठ रिपोर्टों पर काम करने की उम्मीद की जाती है. उन्होंने कहा कि उन्होंने इसलिए छोड़ा क्योंकि वह इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए. एक पूर्व ऑपइंडिया संपादक ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, इस बात की पुष्टि की और बताया कि एक रिपोर्ट पर पैंतालीस मिनट से ज्यादा खर्च न करने के लिए कहा जाता था और इतना समय तथ्यों का पता लगाने के लिए पर्याप्त नहीं था. "मान लीजिए अमृता ने ट्विटर पर लिखा है कि लव जिहाद का मामला हुआ है," उन्होंने मुझे बताया. “तो मुझे अमृता पर भरोसा क्यों करना चाहिए? मैं क्यों करूं? इसलिए मैं सबसे पहले थाने को फोन करूंगा. लेकिन संबंधित पुलिस स्टेशन को फोन करने और पता करने में समय लगेगा. इसके बजाए, उन्होंने जोड़ा, उन्हें बताया जाएगा "कि इस व्यक्ति ने ट्वीट किया है, उस व्यक्ति ने ट्वीट किया है, यह उस मंच पर दिखाई दिया है, इस मंच पर, इसलिए आप बस एक हाइपरलिंक दें और इसे लिखें." जब मैंने उनसे पूछा कि ऑपइंडिया गुमनाम स्रोतों को कैसे संभालता है, तो उन्होंने कहा, “उनके पास क्या स्रोत होगा? यदि आप इस ऑनलाइन स्थान पर काम कर रहे हैं, तो आप फील्ड रिपोर्टिंग कभी नहीं करते हैं, तो आप स्रोत कैसे बनाएंगे?”
पूर्व संपादक ने ऑपइंडिया में एक खास दिन का वर्णन किया. वेबसाइट के कर्मचारी शिफ्ट में काम करते हैं, उन्होंने कहा. उन विषयों पर प्रकाशित हिस्से के लिंक जो कवर करने लायक हो सकते हैं, मैसेजिंग प्लेटफॉर्म स्लैक पर साझा किए जाते हैं. कर्मचारी चुनता है कि क्या लिखना है और लिंक के आधार पर एक लेख तैयार करता है, जिसे वे फिर से स्लैक पर साझा करते हैं. पत्रकारों और संपादकों दोनों से लिखने की अपेक्षा की जाती है; पूर्व संपादक ने शायद ही कोई संपादन किया हो. उन्होंने कहा कि ऑपइंडिया में काम करते समय उन्होंने कोई मूल रिपोर्टिंग नहीं देखी.
पूर्व संपादक ने कहा, "कट-कॉपी-पेस्ट पत्रकारिता" के इस मॉडल ने पेशे में उनकी रुचि को खत्म कर दिया था. "मुझे जो आभास हुआ वह था, उनमें से कोई भी पत्रकार नहीं है." उन्होंने ऑपइंडिया पर "एजेंडा-थोपने" का आरोप लगाया और शर्मा और राणा अय्यूब के बीच तुलना की, जो मोदी की एक प्रमुख आलोचक हैं. उन्होंने कहा, "आप जानते हैं वे राजनीतिक कार्यकर्ता हैं वे पत्रकार नहीं हैं."
पूर्व संपादक ने अफसोस जताया कि मीडिया में वाम-दक्षिण विभाजन का मतलब है कि पत्रकारों को नौकरी खोजने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. “क्या कारवां मुझे नियुक्त करेगा? वे कहेंगे कि मैंने ऑपइंडिया में काम किया है. हम जैसे लोगों के लिए यह एक दुखद स्थिति है.”
फरवरी 2020 में, पूर्वोत्तर दिल्ली तीन दिनों की सांप्रदायिक हिंसा से हिल गई थी. हिंदू भीड़ ने मुस्लिम निवासियों और संपत्तियों को निशाना बनाया था. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मारे गए 53 लोगों में से 40 मुस्लिम थे. ऑपइंडिया, जिसने पिछले तीन महीनों में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ देशव्यापी विरोध को "खिलाफत 2.0" के रूप में संदर्भित किया था, अपने पाठकों को चेतावनी देते हुए कहा कि "डायरेक्ट एक्शन डे आने वाला है."
लेस्टर की तर्ज पर वेबसाइट ने हिंसा भड़काने के लिए मुसलमानों को दोषी ठहराया. शर्मा ने बाद में एक भाषण में दावा किया कि भले ही हिंदुओं की तुलना में कई मुस्लिम मारे गए थे लेकिन ऐसा नहीं था कि हिंसा में मुसलमानों को निशाना बनाया गया था बल्कि इसलिए था कि एमके गांधी के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद हिंदुओं को इतना नपुंसक नहीं बनाया जा सका था कि वे हिंसा का जवाब हिंसा से न दे सकें. "यह शायद गांधी पर सावरकर की जीत है," उन्होंने कहा.
ऑपइंडिया द्वारा हिंसा के अपने कवरेज को संकलित करने वाली एक रिपोर्ट में पाठकों से आग्रह किया गया था कि "वे जो कुछ भी ऑपइंडिया या स्थानीय वीएचपी/आरएसएस इकाइयों को दे सकते हैं, दान करें." शर्मा ने विश्व हिंदू परिषद और इसकी युवा शाखा बजरंग दल, जो मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाओं के लिए जिम्मेदार रहा है, के लिए कहा कि यह "राज्य (जो कई मौकों पर विफल रहा है) के बाद हिंदुओं के लिए रक्षा की पहली पंक्ति है." एक ट्विटर थ्रेड में उन्होंने लोगों से यह महसूस करने का आग्रह किया कि वे एक अंतर सभ्यता युद्ध के दौर में जी रहे हैं. "और मैं इसे पूरी जिम्मेदारी के साथ कहती हूं कि अगर हमें सभ्यता के इस युद्ध को जीतना है, तो बजरंग दल और वीएचपी को पुनर्जीवित करना ही होगा." इस साल जनवरी के एक ट्वीट में उन्होंने मोदी से आग्रह किया किया कि "उन्होंने (मोदी विरोधियों ने) आपको 20 साल तक 'फासीवादी' कहा है. यह उन्हें इस बात का स्वाद देने का समय है कि वास्तव में फासीवाद कैसा होता है.” भारतीय राजनीति में हिंदू राष्ट्रवाद के प्रभुत्व के बावजूद नूपुर ने अक्सर ही खुद को "स्वयं के अंत का दस्तावेजीकरण" करने वाला बताया है. इस साल की शुरुआत में आरएसएस ने उन्हें "हिंदुओं के खिलाफ उत्पीड़न का दस्तावेजीकरण" करने के लिए पुरस्कार दिया.
दिल्ली हिंसा के ऑपइंडिया के कवरेज ने मोदी सरकार द्वारा सीएए विरोधी उन प्रदर्शनकारियों की खिलाफत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिन्हें सरकार और पुलिस ने दंगों को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार ठहराया था. 29 मई को गृहमंत्री अमित शाह ने एनजीओ कॉल फॉर जस्टिस द्वारा संकलित एक तथ्यान्वेषी रिपोर्ट को मान्यता दी जिसमें विरोध और हिंसा को षड़यंत्र बताया गया था. रिपोर्ट में "खिलाफत 2.0" सहित ऑपइंडिया के कई लेखों का हवाला दिया गया है.
इन लेखों में जनअधिकार कार्यकर्ता उमर खालिद द्वारा 17 सितंबर को अमरावती में दिए गए भाषण के बारे में एक लेख शामिल था, "जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि दंगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की यात्रा के दौरान होंगे." न तो रिपोर्ट और न ही ऑपइंडिया के लेख ने इस बात पर गौर करने की जहमत उठाई कि खालिद ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि ट्रम्प की यात्रा के दौरान वे जिस विरोध प्रदर्शन का आह्वान कर रहे थे वह अहिंसक होगी. उन्होंने कहा था, “हम हिंसा का जवाब हिंसा से नहीं देंगे. हम नफरत का जवाब नफरत से नहीं देंगे. अगर वे नफरत फैलाते हैं तो हम उसका जवाब प्यार से देंगे. अगर वे हमें लाठियों से पीटेंगे, तो हम तिरंगा पकड़े रहेंगे. अगर वे गोलियां चलाएंगे, तो हम संविधान को थामेंगे.”
खालिद, जिन्होंने कुख्यात गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोप लगाए जाने के बाद दो साल से अधिक समय जेल में बिताया है, सौ से अधिक ऑपइंडिया लेखों का विषय रहे हैं. अगस्त 2018 में खालिद के हत्या के प्रयास से बचने के बाद, वेबसाइट ने एक लेख चलाया, जिसका शीर्षक दैनिक भास्कर पत्रकार के असत्यापित दावे पर आधारित था, जिसने कहा था कि यह घटना वास्तव में दो अन्य लोगों के बीच हाथापाई थी और खालिद तब आया जब गोली मारने वाला मौके से जा चुका था. पत्रकार ने बाद में ट्वीट किया कि खालिद हाथापाई में शामिल हो सकता है. ऑपइंडिया ने स्पष्टीकरण को नोट किया लेकिन अपनी रिपोर्ट वापस नहीं ली. बाद के एक लेख में इसने अपने हमलावरों में से एक को "कट्टरपंथी इस्लामवादी और दंगा-आरोपी उमर खालिद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के पास कथित तौर पर हवा में गोली चलाने" के रूप में वर्णित किया.
सांप्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के बारे में ऑपइंडिया का कवरेज लगभग अनन्य रूप से मरने वाले 13 हिंदुओं पर केंद्रित था. विशेष रूप से इंटेलिजेंस ब्यूरो के कर्मचारी अंकित शर्मा पर, जिनके बारे में इसने तीस से अधिक लेख प्रकाशित किए हैं. किसी भी मुस्लिम पीड़ित की प्रोफाइल नहीं बनाई गई. जब कथित रूप से हिंदुओं द्वारा किए गए अपराधों की बात आई, तो उन्होंने मुख्य रूप से आरोपों में सुराख तलाशने की कोशिश की. एनडीटीवी द्वारा अपने तीन पत्रकारों पर हिंदू भीड़ द्वारा हमला किए जाने के बारे में एक लेख प्रकाशित करने के बाद ऑपइंडिया ने पत्रकारों की एक तस्वीर को दिखाया जिसमें एक पत्रकार ने अपने फॉलोवर्स को आश्वस्त करने के लिए ट्विटर पर साझा किया था कि वे सुरक्षित और अच्छे मूड में हैं. लेख में दावा किया गया था कि पत्रकारों में "चोट के कोई निशान" नहीं थे. हालांकि दो पत्रकारों को पीठ, पेट और पैरों में चोटें आई थीं, जबकि तीसरा, जिसके तीन दांत टूटे थे, तस्वीर में अपना मुंह ढके हुए था.
25 फरवरी को द वायर ने एक मस्जिद में तोड़फोड़ और आगजनी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की और पत्रकार राणा अय्यूब सहित कई लोगों ने इस घटना का एक वीडियो साझा किया. ऑपइंडिया ने तत्काल खंडन प्रकाशित किया और दावा किया कि वीडियो की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया जा रहा है. इसमें कहा गया है कि "राणा अय्यूब और अन्य द्वारा साझा किया गया वीडियो वास्तव में बिहार के समस्तीपुर का था, जहां दो साल पहले सांप्रदायिक तनाव भड़क गया था." यह सामने आया कि द वायर ने गलती से उल्लेख किया था कि मस्जिद अशोक नगर के बजाय अशोक विहार में स्थित थी- एक त्रुटि जिसे प्रकाशन के चार घंटे के भीतर ठीक कर लिया गया था. ऑपइंडिया ने द वायर के सुधार को स्वीकार किया, साथ ही रिपोर्ट की कि गोकुलपुरी में एक और मस्जिद पर हमला किया गया था. हालांकि इसने वीडियो के अप्रामाणिक होने की अपनी अटकलों को वापस नहीं लिया और नोट किया कि चूंकि गोकुलपुरी के उपद्रवियों की पहचान नहीं की गई थी इसलिए "इसमें शामिल व्यक्तियों के राजनीतिक जुड़ाव का अभी तक कोई सबूत नहीं है."
दो दिन बाद इसने चांद बाग में एक शिव मंदिर पर एक कथित हमले पर एक जमीनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें अज्ञात "स्थानीय लोगों" का हवाला दिया गया था कि "मुस्लिम भीड़ ने मंदिर की छत पर चढ़कर शिव मंदिर पर कब्जा कर लिया. मंदिर पर जबरन कब्जा करने के अलावा इस्लामवादी गुंडों ने आसपास के हिंदू घरों पर भी कब्जा कर लिया. भीड़ ने कथित तौर पर मंदिर में तोड़फोड़ की, जिसके बाद वे शिव मंदिर की छत पर चढ़ गए और वहां से हिंदुओं पर पथराव शुरू कर दिया.” मंदिर वास्तव में पड़ोस के मूंगा नगर में स्थित था. इस लेख में एक अज्ञात चश्मदीद के हवाले से कहा गया है कि, "मुस्लिम भीड़ के हमले ने इमारत को इतना कमजोर और जर्जर बना दिया था कि यह अब कभी भी गिर सकती है."
न्यूजलॉन्ड्री के पत्रकारों ने बाद में मंदिर का दौरा किया और इसके कार्यवाहक से बात की, जिन्होंने स्पष्ट किया कि कोई भी मंदिर की छत पर नहीं चढ़ा था या जबरन कब्जा नहीं किया था. निश्चित रूप से मंदिर गिरने के कगार पर नहीं था. "दंगों के दौरान, बाहर के कुछ लोगों ने मंदिर के सामने कुछ पत्थर फेंके लेकिन एक मुस्लिम लड़के ने इशारा किया कि यहां एक मंदिर है और उन्हें कुछ भी न करने के लिए कहा," पड़ोस के एक हिंदू निवासी ने उन्हें बताया. "फिर वे यहां से चले गए." एक अन्य निवासी ने पुष्टि की कि हिंदू और मुसलमान दोनों एक-दूसरे पर पत्थर फेंक रहे थे और मंदिर को निशाना नहीं बनाया गया था.
ऑपइंडिया ने एक तत्काल प्रत्युत्तर प्रकाशित किया, जिसमें न्यूजलॉन्ड्री के कर्मचारियों को "बुद्धि स्तर वाले प्रचारकों का एक समूह कहा गया जो लंगूरों को शर्मिंदा कर दे."
मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को दैत्य के रूप में पेश करना भी ऑपइंडिया की कवरेज की एक नियमित विशेषता थी. "मुझे नहीं लगता कि पंजाब के किसानों के खिलाफ पानी की बौछार का इस्तेमाल किया जाना चाहिए," राहुल रौशन ने 27 नवंबर 2020 को ट्वीट किया. "पानी कीमती है, और यह सर्दी भी है. आंसू गैस बेहतर विकल्प है. पराली जलाने के चलते उन्हें धुएं से ज्यादा दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए.”
रौशन का इस तरह के भड़काऊ ट्वीट्स का इतिहास रहा है. अक्टूबर 2016 में भोपाल में आठ विचाराधीन कैदियों की गैर-न्यायिक हत्या के बाद, उन्होंने ट्वीट किया कि “सिमी जैसे लोगों को पहली बार में ही मार दिया जाना चाहिए. गिरफ्तार करने और जेल में डालने की जरूरत नहीं है. जुलाई 2019 में, झारखंड में तबरेज अंसारी की मॉब लिंचिंग के विरोध में हिंसक कार्रवाई के बाद, उन्होंने पुलिस से आग्रह किया कि "गिरफ्तारी और लाठीचार्ज को भूल जाओ, यह अपराधियों को गोली मारने का समय है." उन्होंने दावा किया कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी चाहते थे कि "पाकिस्तानी/बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति दी जाए." रौशन ने इंटरव्यू के लिए मेरे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया. "आपकी समय सीमा की मुझे रत्ती भर परवाह नहीं," उन्होंने एक ईमेल में लिखा था. “कारवां के किसी व्यक्ति पर बर्बाद करने के लिए मेरा समय बहुत कीमती है. और अगर आप लोगों में कोई नैतिकता है तो इसे मेरी प्रतिक्रिया के रूप में प्रकाशित करें.''
26 जनवरी 2021 को जब किसानों ने ट्रैक्टर रैली के लिए दिल्ली में प्रवेश किया और पुलिस से भिड़ गए तो रौशन ने इसे "राज्य के खिलाफ एक खुला युद्ध" कहा और लिखा कि "अब्राहमिक विश्वासों से प्रभावित किसी भी समुदाय के साथ एकता होना असंभव है.” उनके ट्वीट्स ने विरोध प्रदर्शनों के बारे में ऑपइंडिया के प्रमुख नैरेटिव के दो पहलुओं को उजागर किया. वेबसाइट ने प्रदर्शनकारियों की तुलना अलगाववादियों से करने और उन्हें हिंदू विरोधी के रूप में चित्रित करने की मांग की.
जब प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर एक सिख धार्मिक प्रतीक निशान साहिब को उठाया, तो ऑपइंडिया ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि यह एक खालिस्तानी झंडा था. लेख ने सावधानी से सीधे तौर पर दावा नहीं किया, बस इसे "कई" सोशल-मीडिया उपयोगकर्ताओं के हवाले से बताया गया था और पंजाब में एक अदनी सी उपस्थिति के साथ एक प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस के एक अमेरिकी-आधारित सदस्य द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के साथ इसकी तुलना की गई थी जिसमें खालिस्तानी झंडा फहराने पर इनाम की बात की गई थी. हालांकि तस्वीर के कैप्शन में लिखा है, "सिख फॉर जस्टिस की मांग पर प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराया." जब कई समाचार संस्थानों ने इस दावे को खारिज किया तो इसने दो और लेख प्रकाशित किए जिसमें यह तर्क दिया गया कि निशान साहिब केवल त्रिकोणीय भगवा झंडों को संदर्भित करता है (ऐसा नहीं है) और दिल्ली पुलिस का एक वीडियो जिसमें एक प्रदर्शनकारी राष्ट्रीय ध्वज को गिराने और उसकी जगह पर निशान साहिब लगाने (यह नहीं था) की मांग कर रहा है. जिससे यह साबित हुआ कि तिरंगे का अपमान किया गया था.
2 फरवरी को, संगीतकार रेहाना ने विरोध के जवाब में दिल्ली में इंटरनेट बंद होने के बारे में सीएनएन की एक रिपोर्ट साझा करते हुए ट्वीट किया, "हम इस बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं?" दो दिन बाद, द प्रिंट ने गुमनाम सूत्रों के हवाले से बताया कि एक कनाडाई जनसंपर्क फर्म ने ट्वीट के लिए उसे कथित तौर पर 2.5 मिलियन डॉलर का भुगतान किया था. ऑपइंडिया, जिसने गुमनाम स्रोतों पर भरोसा करने के लिए अक्सर अन्य प्रकाशनों की आलोचना की है, ने द प्रिंट की रिपोर्ट से जुड़ा एक लेख प्रकाशित किया. जब रेहाना की उस महीने बाद में एक फोटो शूट के लिए टॉपलेस पोज देते हुए गणेश का हार पहनने के लिए आलोचना की गई, तो शर्मा ने लिखा कि संगीतकार ने, "या तो जानबूझकर, या भुगतान की एक और किश्त के कारण". उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन “वास्तव में कृषि कानूनों के बारे में कभी नहीं था. यह वास्तव में किसानों के बारे में कभी नहीं था. यह हिंदुओं को उनकी जगह दिखाने के बारे में था और हर बार जब हिंदू विरोध करते हैं, तो उनके हमले और भी आक्रामक होते जा रहे हैं. अब असली सवाल यह है कि क्या हिंदू इसके लिए तैयार हैं?”
6 जून को ऑपइंडिया ने पूरी तरह से एक ट्वीट के आधार पर रिपोर्ट की थी- जिसे बाद में हटा दिया गया था- कि "टिकरी बॉर्डर पर किसान विरोध स्थल से छेड़छाड़ और बलात्कार का एक और मामला सामने आया है." शिकायतकर्ता ने कारवां को बताया कि लेख में यौन उत्पीड़न के उसके आरोपों को हमले के रूप में "गलत तरीके से" दिखाया गया था. ऑपइंडिया और न्यूज18, जिसने उसके आरोपों को रिपोर्ट किया था, ने “इन झूठी कहानियों को लिखने और बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे शब्दों के उपयोग के साथ पूरे मामले को सनसनीखेज बनाने से पहले कभी मुझसे परामर्श नहीं किया,” उन्होंने कहा. "इस तरह के शब्द शारीरिक हमले को बढ़ावा देते हैं, जो कभी नहीं हुआ." उन्होंने कहा कि ऑपइंडिया का "एकमात्र उद्देश्य आंदोलन को बदनाम करना है और मेरे या विरोध करने वाली महिलाओं के साथ उनकी सहानुभूति पूरी तरह से नकली है."
5.
जिस सांप्रदायिक विद्रूपता का ऑपइंडिया अपने लोकप्रिय इंस्टाग्राम पेजों पर विशेष रूप से प्रसार करता है वह खतरनाक है. अप्रैल 2020 से सक्रिय इसके अंग्रेजी पेज के एक लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं, जबकि अगले महीने शुरू हुआ हिंदी पेज अस्सी हजार के करीब पहुंच रहा है. जबकि इसके कई पोस्ट हिंदू दक्षिणपंथ के बारे में ऑपइंडिया के लेखों या सामान्य चर्चा बिंदुओं को बढ़ावा देते हैं. इस साल दीवाली पर, इसने "हैलोवीन के प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरों" को उजागर करने वाली छवियों की एक श्रृंखला पोस्ट की- जो उन कई उत्तेजक वीडियो और कैप्शन की तुलना में फीका है जो यह साझा करता है, और अक्सर किसी स्रोत का उल्लेख किए बिना ही.
एक वीडियो में रिहायशी इलाके में लोगों को तेलुगु में झगड़ते हुए दिखाया गया है. कैप्शन में लिखा है, “एक तेलुगु ईसाई परिवार को अपने घर के बाहर रंगोली बना रहे एक हिंदू परिवार को गाली और धमकी देते हुए पकड़ा गया. अगर आप सटीक जगह जानते हैं, तो कृपया टिप्पणी कर बताएं." इस्तेमाल किए गए हैशटैग में से एक #hindustargetted है. वीडियो के लिए किसी स्रोत का उल्लेख नहीं किया गया है और ऑपइंडिया के पास इस घटना पर एक भी रिपोर्ट नहीं है. कुछ टिप्पणीकारों ने अपार्टमेंट परिसर की पहचान करने का दावा किया.
कल्याणी चड्ढा ने मुझसे कहा, देश भर से नफरत के समूह के रूप में ऑपइंडिया की सफलता, "ऐसे लोगों की सेवा करने पर निर्भर करती है जिनके पहले से ही ये विश्वास, विचार हैं. वे एक निश्चित पाठकों से बात कर रहे हैं, और यह आवश्यक नहीं है कि पाठक बैठकर ऑपइंडिया की सामग्री की पुष्टि कर रहे हों, क्योंकि यह एक तरह से उनकी अपनी प्रवृत्ति को दिखाता है. राहुल पांडेय उन लोगों में से नहीं थे. 10 मई 2020 को कोविड-19 महामारी के जवाब में घोषित देशव्यापी तालाबंदी के दौरान, संसद टीवी के रिपोर्टर को एक ऑपइंडिया का फॉवर्डड लेख मिला, जिसमें बताया गया था कि बिहार के गोपालगंज जिले में एक नाबालिग हिंदू लड़के की एक नवनिर्मित मस्जिद को पवित्र करने के लिए मुसलमानों द्वारा 28 मार्च को बलि दे दी गई और उसके परिवार को डर के मारे गांव और राज्य से भागने के लिए मजबूर किया गया.
"यह वास्तव में नाटकीय शीर्षक था, और यह स्पष्ट था कि वे किसी प्रकार का प्रचार प्रसार करने की कोशिश कर रहे थे," पांडे ने मुझे बताया. घटना उनके गांव से करीब पांच किलोमीटर दूर हुई थी. वह स्थानीय पुलिस के पास पहुंचे और जाकर पता लगाने का फैसला किया कि क्या हुआ था. उन्हें बताया गया कि बच्चा नदी में नहाने के दौरान डूब गया था. उन्होंने कहा, "ग्रामीणों ने रिकॉर्ड पर बयान दिया कि उन्हें इस तरह की खबरों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. सबसे हैरानी की बात ये थी कि उस गांव में कोई मस्जिद नहीं है.”
ऑपइंडिया ने अगले कुछ दिनों में इस घटना के बारे में सात लेख प्रकाशित किए. इस खबर को सुदर्शन न्यूज और खबरतक वेबसाइट ने भी उठाया था. पांडे ने कहा कि उत्तर प्रदेश में सीमा पार के बीजेपी नेताओं ने मित्रवत समाचार आउटलेट्स के साथ समाचार साझा करके इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने की मांग की थी और यह कि पुलिस अफवाहों पर सांप्रदायिक टकराव को रोकने के तरीके के बारे में "नींद ले" रही थी. जब देश भर के पत्रकारों ने पूछताछ शुरू की कि क्या हुआ था, पांडे ने सभी को सूचित करने के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया.
ऑल्ट न्यूज की संपादक प्रियंका झा लॉकडाउन में अहमदाबाद में समय बिता रही थीं. जब उन्होंने पहली बार ऑपइंडिया के लेख के बारे में सुना, तो उन्होंने गोपालगंज के संपर्कों से संपर्क किया और अंततः पांडे के व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल हो गईं. "उस कहानी पर काम करना वाकई मुश्किल था क्योंकि हम यह नहीं कह सकते कि बच्चा डूब गया," उन्होंने मुझे बताया. "वास्तव में, हम उस रिपोर्ट को ट्रैक करते समय अटकते रहे क्योंकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट हमारे हाथ लगना, विशेषज्ञों से बात करना, वगैरह-वगैरह बहुत मुश्किल था." ऑल्ट न्यूज को ज़रूरी जानकारी जुटाने में एक हफ़्ता लग गया. "जिसने अपने बच्चे को खोया हो वह किस हालत में होगा जहां वह कुछ कह पाए या किसी पर दोष डाले," उन्होंने कहा. “हमें उन खाली जगहों को भरना है. ऑपइंडिया ने अभी अपने लेख में उल्लेख किया है कि पिता ने अमुक-अमुक बातें कही हैं और उन्होंने उन्हें सीधे प्रकाशित किया है.” भले ही उस घटना को हुए छह सप्ताह बीत चुके हों जब ऑपइंडिया ने लेख प्रकाशित किया था, उस समय इसकी हिंदी वेबसाइट के संपादक अजीत भारती ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि उनके लेख के आने से पहले उन्होंने प्रथम सूचना रिपोर्ट तक नहीं देखी थी.
17 मई को बिहार पुलिस के महानिदेशक ने यह स्पष्ट करने के लिए फेसबुक पर एक लाइव वीडियो पोस्ट किया कि लड़के की मौत के पीछे कोई सांप्रदायिक मकसद नहीं था. पुलिस ने ऑपइंडिया के खिलाफ अश्लीलता और धार्मिक आक्रोश भड़काने के आरोप में प्राथमिकी भी दर्ज की थी. ऑपइंडिया ने कभी भी लेखों को वापस नहीं लिया. इसके बजाए, लड़के के पिता ने उनके रिपोर्टर को जो बताया था, उसकी एक संपादित रिकॉर्डिंग जारी की, ताकि इसके पाठक "सुन सकें और अपने लिए न्याय कर सकें." यह शायद ही पर्याप्त था- जैसा कि झा ने नोट किया था, ऐसा लगता है कि ऑपइंडिया ने जमीन से किसी अन्य सबूत के साथ पिता के संस्करण की पुष्टि नहीं की है. इसने यह भी दावा किया कि "केवल राजेश ही नहीं, बल्कि कई ग्रामीणों ने भी बताया है कि रोहित को मुसलमानों ने मार डाला," लेकिन उन रिकॉर्डिंग को जारी करने की जहमत नहीं उठाई. इसने अंततः लेखों में एक "अपडेट" जोड़ा, पाठकों को पुलिस के निष्कर्षों के बारे में सूचित किया और यह जोड़ा कि "पिता ने भी आरोपों को खारिज कर दिया है."
गोपालगंज पर झा के लेख के सह-लेखक प्रतीक सिन्हा ने मुझे बताया कि, 2017 में, जब से ऑल्ट न्यूज की स्थापना हुई है ऑपइंडिया की रिपोर्टों का भंडाफोड़ कर रहे हैं और नतीजतन, ऑनलाइन बहस कर रहे हैं. "ऑपइंडिया उस समय तक पहले से ही जहरीला हो गया था," उन्होंने कहा, "लेकिन, नूपुर के आगमन के साथ वह अगल ही स्तर पर पहुंच गया है."
ऑपइंडिया ने इस साल ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के बारे में 100 से अधिक लेख प्रकाशित किए हैं, जिन्हें बीजेपी प्रवक्ता नूपुर शर्मा द्वारा पैगंबर मुहम्मद के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणियों का खुलासा करने के बाद गिरफ्तार किया गया था.
मैंने सिन्हा से पूछा कि कैसे ऑपइंडिया के खिलाफ बोलने वाले लोगों को अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जाता है. उन्होंने कहा कि ट्रोलिंग सिर्फ इसलिए नहीं होती कि किसी ने ऑपइंडिया के खिलाफ लिखा है; यह तब होता है जब शर्मा या रौशन किसी पर ऑनलाइन हमला करते हैं. "ट्रोल्स को दिशा-निर्देशों की जरूरत होती है- वह दिशा प्रभावशाली लोगों द्वारा दी जाती है," उन्होंने कहा. “तो, तजिंदर बग्गा से लेकर कपिल मिश्रा तक, कई लोग ऑपइंडिया का बचाव करने के लिए सामने आएंगे.” दक्षिणपंथी प्रभावशाली लोगों की भारी संख्या के कारण, ऑपइंडिया को अब ट्रोल आर्मी की जरूरत नहीं है.
इस रिपोर्ट के दौरान, मुझे शर्मा की सोशल-मीडिया रणनीति का एक छोटा सा स्वाद मिला. मैंने ऐसे कई लोगों से संपर्क किया था जिनके सार्वजनिक सोशल-मीडिया प्रोफाइल में उल्लेख था कि वे ऑपइंडिया में काम करते थे. उनमें से एक नीत्या मोहता थीं, जो एक पूर्व इंटर्न थीं. लिंक्डइन पर उन्हें संदेश भेजने के कुछ दिनों बाद, जुलाई में, उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि वह बात करने को तैयार हैं. कुछ दिनों बाद, उन्होंने मुझसे ऑन द रिकॉर्ड बात की.
नीत्या ने मुझे बताया कि उन्होंने इंटर्नशिप के लिए ऑपइंडिया को ईमेल किया था. "यह मेरे लिए अंधेरे में तीर चलाने जैसा था. मुझे इसके हो जाने की कोई उम्मीद नहीं थी." इंटरव्यू में एक बिंदु पर, मैंने उनसे पूछा कि क्या उनके परिवार में कोई मीडिया में था. उन्होंने कहा नहीं. मैंने उनसे पूछा कि क्या वह ऑपइंडिया की एक कर्मचारी झंकार मोहता को जानती हैं. उन्होंने इससे भी इनकार किया. मेरे आग्रह करने के बाद, उन्होंने कहा, "ठीक है, तो मैं उन्हें जानती हूं. लेकिन वह ऑपइंडिया में उतनी नहीं थी जितनी मैं तब थी जब मैं वहां इंटर्नशिप कर रही थी.”
झंकार, नीत्या की मां, शर्मा की बहन हैं. जब मैंने पूछा कि झंकार को कैसे काम पर रखा गया, तो नीत्या ने कहा, "मुझे लगता है कि यह फिर से उसके लिए सौभाग्य की बात थी." जब मैंने नीत्या से संपर्क किया था, तो मुझे नहीं पता था कि वह शर्मा की भतीजी है-बातचीत के दौरान, उसने यह नहीं कहा कि वह शर्मा की रिश्तेतार हैं. हमारी बातचीत सुखद रही. मैंने उन्हें समय देने के लिए धन्यवाद दिया, जबकि उन्होंने इंटरव्यू करने के लिए मेरा धन्यवाद दिया.
हमारी बातचीत के कुछ दिन बाद शर्मा ने ट्वीट किया, “कारवां, वामपंथियों का चिथड़ा, ऑपइंडिया के खिलाफ खुरपेंच कर रहा है. मुझे कैसे पता? वे मेरी कार्यशैली, मेरी भागीदारी, मेरी नेतृत्व शैली, मैं रिपोर्टों पर किस तरह चर्चा करती हूं, मेरी विचारधारा, क्या मैं वास्तव में अपने लिखे पर विश्वास करती हूं, आदि के बारे में पूछताछ करने के लिए पिछले इंटर्नों को फोन कर रहा है.'' उनके कॉलेज के बैचमेट आदित्य कितरू, जो सोशल मीडिया पर जब मैंने उनसे संपर्क किया तो उनके बारे में मुझसे बात करके खुश लग रहे थे, उन्होंने पोस्ट किया कि रिपोर्ट एक हिट जॉब लगती है.
शर्मा ने कई ट्वीट किए. उन्होंने नीत्या के साथ मेरी बातचीत को एक अलग रंग दिया. उन्होंने रिपोर्टिंग प्रक्रिया को गोपनीयता के आक्रमण और डॉकिंग के प्रयास के रूप में चित्रित किया. एक अन्य ट्वीट में उन्होंने मुझे टैग करते हुए कहा, “आपने मेरी भतीजी से बात की. मेरे कॉलेज के दोस्तों से बात की.” उन्होंने यह उल्लेख नहीं किया कि उनकी भतीजी वह इंटर्न थी जिसके बारे में उसने पहले ट्वीट किया था.
"वास्तव में, वे प्रकाशित करते हैं या नहीं यह अप्रासंगिक है," उन्होंने लिखा. “वे मेरे साथ इंटर्न करने वाली एक किशोर के संपर्क में थे. उन लोगों के साथ जो मुझे 15 साल पहले जानते थे. उन्होंने लाइन का उल्लंघन किया और इसे पत्रकारिता कहा. नीत्या ने अपनी इंटर्नशिप के दौरान मई 2020 को प्रकाशित एक लेख में लिखा था कि उनकी पहचान "एक 18 वर्षीय युवा वयस्क" के रूप में है. अगर ऐसा माना जाए तो हमारी बातचीत के वक्त नीत्या की उम्र कम से कम बीस साल थी.
कई लोगों ने शर्मा के ट्वीट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उनके साक्षात्कारों के विवरण से भी ऐसा प्रतीत होता है कि यह कोई शोध पत्रकार है. उन्होंने इन प्रतिक्रियाओं के स्क्रीनशॉट साझा किए- और जुबैर ने ऐसे ही एक ट्वीट को लाइक किया- और लिखा, "याद रखें, बच्चों. उनके बारे में व्यक्तिगत विवरण प्राप्त करना ठीक है. उनके परिवार के सदस्यों, पिछले सहयोगियों, कॉलेज के दोस्तों से संपर्क करना ठीक है, पिछले व्यक्तिगत विवरणों को ढूंढना और उन्हें एसएम पर दिखाना ठीक है.'' कारवां में किसी ने भी सोशल मीडिया पर उनके बारे में ऐसी कोई जानकारी नहीं पाई या साझा नहीं की.
इसके बाद शर्मा धमकी देती दिखाई दी. उनके एक ट्वीट की प्रतिक्रिया में उल्लेख किया गया है कि मैं "एक प्रोटॉनमेल अकाउंट का उपयोग ट्रैकिंग से बचने और अपनी गोपनीयता बनाए रखने के लिए कर रही थी, लेकिन दूसरों को परेशान कर रही थी. कैसी विडंबना है." शर्मा ने जवाब दिया, "क्या यह काफी है?" एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, "मैं आपको दिखाऊंगी कि यह खेल कैसे खेला जाता है." (उन्होंने पहले ही मार्च 2020 में "खेल कैसे खेला जाता है" का एक प्रदर्शन कर दिया था, जब उन्होंने एक विकिपीडिया संपादक की डॉकिंग को प्रोत्साहित किया, जिसका काम दिल्ली हिंसा के बारे में एक लेख पर था, जिसे वह पसंद नहीं करती थी, फिर ऑपइंडिया के एक लेख में दूसरों द्वारा प्रकट की गई जानकारी को इकट्ठा कर इसमें जोड़ दिया. जब द कारवां ने उनसे इस बारे में पूछा था, तो उन्होंने इसे "सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी को सत्यापित करने की यात्रा" के रूप में वर्णित किया था.)
जब मैंने एक इंटरव्यू के लिए उससे संपर्क किया, तो उन्होंने मुझे बताया कि वह "नेकनीयत से शामिल होने के लिए तैयार थी," बशर्ते मैं समझाऊं कि मैंने "उन निजी नागरिकों की गोपनीयता भंग करने का फैसला क्यों किया जो किसी भी तरह से मुझसे या मेरी कंपनी से जुड़े हुए नहीं हैं.” मैंने उत्तर दिया कि मैंने "संगठन, इसके अतीत और वर्तमान, और इसके सबसे सार्वजनिक चेहरों को बेहतर ढंग से समझने के लिए सत्तर से अधिक लोगों को साक्षात्कार अनुरोध भेजे थे. जिन लोगों ने मुझसे बात की, उन्होंने स्वेच्छा से और इस समझ के साथ बात की कि यह कारवां में प्रकाशित होने वाले एक लेख के लिए है. इसमें कोई छल-कपट शामिल नहीं था. वह मुझसे फोन पर बात करने को राजी हो गईं.
इससे पहले कि मैं अपना पहला प्रश्न पूरा कर पाती, हमारी बातचीत के दौरान, उन्होंने मुझे रोका, एक बार फिर शिकायत करने के लिए कि मैं उनके अतीत के लोगों की खबर ले रही हूं. मैंने फिर से समझाने की कोशिश की कि यह मानक पत्रकारिता प्रक्रिया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. आखिरकार, उन्होंने कारवां के पिछले कवरेज के बारे में मुझसे सवाल पूछने पर जोर देकर इंटरव्यू को खराब करने की कोशिश की. चूंकि, उनके उलट, मैं प्रकाशन की प्रधान संपादक नहीं थी, इसलिए मैंने उनसे कारवां के बारे में पूछे गए उनके सवालों को मेरे सीनियरों से पूछने के लिए कहा. शर्मा जिद पर अड़ी रही. "अगर आप किसी की प्रोफाइलिंग कर रही हैं," उन्होंने जोर देकर कहा, "आप उन्हें जागरूक करती हैं कि आप उनकी प्रोफाइल कर रही हैं, उनसे सवाल पूछें और फिर तथ्यों को सत्यापित करने के लिए आगे बढ़ें." मैंने अंत में उनसे कहा कि मैं ईमेल पर प्रश्न भेजूंगी. उन्होंने ट्विटर पर हमारी बातचीत की एक रिकॉर्डिंग पोस्ट की- इसे तजिंदर बग्गा और कपिल मिश्रा ने रीट्वीट किया- लेकिन मेरी प्रश्नावली का जवाब नहीं दिया.
हालांकि किसी की प्रोफाइलिंग के बारे में खुद ऑपइंडिया बार-बार न केवल शर्मा द्वारा मुझे समझाए गए मनमाने मानक पर खरा उतरने में विफल रहा है, बल्कि अपने लेखों के विषयों को प्रतिक्रिया देने का अधिकार देने का मूल शिष्टाचार भी नहीं रखता. सिन्हा और अभिनंदन सेखरी दोनों ने मुझे बताया कि उनके बारे में लिखे गए किसी भी लेख पर टिप्पणी करने के लिए उनसे कभी संपर्क नहीं किया गया. इतिहासकार सोहेल हाशमी को 31 मई 2021 को प्रोफाइल किया गया था, जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेंट्रल विस्टा परियोजना के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी थी. "उन्होंने याचिका के बारे में मुझसे कभी बात नहीं की," उन्होंने मुझे बताया. "रिपोर्टिंग चुनिंदा एकतरफा है."
पत्रकार समृद्धि सकुनिया को ऑपइंडिया द्वारा 16 नवंबर 2021 को प्रोफाइल किया गया था, उसके तुरंत बाद त्रिपुरा पुलिस ने क्षेत्र में सांप्रदायिक गड़बड़ी पर रिपोर्टिंग करने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था. उन्होंने कहा कि उन्हें जवाब देने का मौका ही नहीं दिया गया. "यह सब बकवास है. यह अनुचित था और वास्तव में प्रचार जैसा महसूस हुआ.”
राणा अय्यूब ऑपइंडिया के पसंदीदा शिकारों में से एक हैं- 400 से अधिक ऑपइंडिया लेख हैं जो उनका जिक्र करते हैं. "मुझे लगता है कि उनके पास एक रिपोर्टर है जो सिर्फ मेरे इंस्टाग्राम और ट्विटर की जांच करता है." जब मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कभी टिप्पणी के लिए संपर्क किया गया था, तो उन्होंने जवाब दिया, "उन्होंने कभी मुझसे संपर्क नहीं किया, कभी नहीं. अगर उन्होंने किया तो मैं ऐसे लोगों को कैसे जवाब दूंगी?" उन्होंने एक व्यक्ति की एक घटना को याद किया जिसने ट्वीट किया था कि उसने अपने पिता को जर्मनी में शराब के नशे में धुत होकर वेश्याओं पर मंडराते देखा था. यह मिसटेकन आइडेंटिटि का मामला था, और उस आदमी ने जल्द ही माफी मांग ली लेकिन ऑपइंडिया ने इस पर एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें उनके पिछले काम के बारे में कुछ आरोप लगाए गए. "तो यह तो उनका स्तर है," उन्होंने कहा. "यही वे हैं."
मैंने उनसे पूछा कि क्या उन्हें वेबसाइट के बारे में कुछ और कहना है. "नॉट रियली. ऑपइंडिया खुद बोलता है."
(अनुवाद : पारिजात)