नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज मामला: टूटे वादों के तीस साल

8 जनवरी 2022 को नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज विरोधी जन संघर्ष समिति की जारी मासिक बैठक. समिति की स्थापना 1993 में हुई थी. हर साल 22 और 23 मार्च को फायरिंग रेंज को रद्द किए जाने का सांकेतिक विरोध प्रदर्शन करने के लिए अधिसूचित गांव के हजारों आदिवासी जमा होते हैं. फोटो— मो. असग़र खान

झारखंड के सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) विधायक विनोद सिंह ने 20 दिसंबर 2021 को जारी विधानसभा सत्र में राज्य सरकार से पूछा था कि बिहार सरकार की अधिसूचना संख्या-1862, दिनांक-20.08.1999 के अनुसार, “नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज का उक्त क्षेत्र के ग्रामीण व्यापक विरोध कर रहे हैं? क्या यह एक ईको सेंसिटिव क्षेत्र है?”

सरकर ने प्रश्न में कही बात को स्वीकारा लेकिन विधायक द्वारा पूछे गए एक अन्य सवाल, कि “क्या सरकार 11 मई 2022 को समाप्त हो रही फायरिंग रेंज की समयावधि विस्तार पर रोक लगाने का विचार रखती है? अगर हां तो कब तक और अगर नहीं, तो क्यों?” के जवाब में सरकार ने बताया कि इस संबंध में विभाग को अब तक कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है.

झारखंड के गुमला और लातेहार जिले के आदिवासी गांवों के लोगों के लिए सरकार के इस जवाब का सीधा और स्पष्ट मतलब है कि सरकारी कागजों में उनका गांव फायरिंग रेंज के तौर पर अभी भी चिन्हित है.

इस फायरिंग रेंज के विरोध में बीते तीन दशक से यहां के ग्रामीण आंदोलनरत हैं. इन जिलों के ग्रामीणों के मुताबिक उनसे फायरिंग रेंज को रद्द किए जाने का वादा और भरोसा भाषणों में तो सभी नेताओं ने किया है लेकिन अपने वादों पर कभी अमल नहीं किया. उनके दावे की तस्दीक क्षेत्र के दर्जनों अखबार और पत्रिका में प्रकाशित खबरों से की जा सकती है.