एनडीए से हटने के बाद अकाली दल अध्यक्ष का दावा, “सीएए और 370 पर बीजेपी का किया था विरोध”

2009 में दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में सुखबीर सिंह बादल और नरेन्द्र मोदी. शेखर यादव/ इंडिया टुडे ग्रुप/ गैटी इमेजिस

केंद्र सरकार द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानून पारित किए जाने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से शिरोमणि अकाली दल बाहर हो गई है. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने 26 सितंबर को घोषणा की कि वह पंजाब और सिख मामलों में बीजेपी द्वारा निरंतर दिखाई जा रही संवेदनहीनता के चलते गठबंधन तोड़ रहे हैं. बादल ने एनडीए के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाए और क्षेत्रीय साझेदारों को किनारे लगाए जाने की भी आलोचना की. मैंने 29 सितंबर को बादल से एनडीए गठबंधन से उनकी पार्टी के बाहर हो जाने और बीजेपी के साथ उनके संबंधों के बारे में बातचीत की. बातचीत में वह यह नहीं बता पाए कि बीजेपी की विवादास्पद, विचारहीन और अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों के बावजूद वह गठबंधन में क्यों बने रहे. इस बातचीत में वह कई बार अपने पूर्व बयानों के विपरीत दावे करते नजर आए और ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बीजेपी के खिलाफ खुलकर सामने आने से बचना चाहते हैं.

जब मैंने उनसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त विशेष अधिकार छीन लिए जाने के बारे में पूछा तो बादल ने इस फैसले का समर्थन करने की बात से इनकार किया. उनका यह दावा इसलिए विचित्र लगता है क्योंकि 6 अगस्त को लोक सभा में उन्होंने कहा था, “माननीय गृहमंत्री द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म किए जाने के लिए लाए गए विधेयकों का समर्थन करता हूं.” अकाली दल ने पूर्व में कम से कम चार ऐसे प्रस्तावों का समर्थन किया है जो राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने के हिमायती थे. लेकिन लोक सभा में अकाली दल के अध्यक्ष ने बीजेपी के मुगलों के दौर में धर्मांतरण, कश्मीरी पंडितों की हालत और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जैसे राजनीतक दावे का समर्थन किया था. बादल ने तो यह भी कहा था कि 370 को हटाने से अल्पसंख्यक समुदायों का सशक्तिकरण होगा. अपने लोक सभा के भाषण के अंत में उन्होंने कहा था, “मैं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इस बोल्ड फैसले के लिए बधाई देता हूं”. लेकिन जब मैंने उनसे टेलीफोन पर बात की तो बादल ने दावा किया कि “हमने इस फैसले का संसद में कभी स्वागत नहीं किया. हमने बस चर्चा में भाग लिया था.”

पिछले महीने की शुरुआत में कैबिनेट ने नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की आधिकारिक भाषा हिंदी और डोगरा को बनाए जाने के विधेयक को मंजूरी दी. बादल ने पंजाबी को आधिकारिक भाषाओं में शामिल न करने का विरोध किया था. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को खत लिखा था. उस खत में उन्होंने लिखा था कि जम्मू और कश्मीर में पंजाबी को आधिकारिक भाषा न बनाने के फैसले को अल्पसंख्यक विरोधी फैसले की भांति देखा जाएगा और इसे निश्चित तौर पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन का सिख विरोधी कदम समझा जाएगा. लेकिन इसके बावजूद उनकी सिख समर्थक पार्टी ने गठबंधन नहीं तोड़ा.

जब मैंने बादल से पूछा कि क्या वह इस बात को मानते हैं कि बीजेपी अल्पसंख्याक विरोधी या सिख विरोधी पार्टी है तो उनका जवाब था कि “मुझे नहीं लगता कि यह इस सवाल का जवाब देने का ठीक समय है.” एनडीए से बाहर हो जाने की घोषणा करते हुए बादल ने ट्वीट में कहा था कि बीजेपी सीखों के मामले में धार्मिक रूप से असंवेदनशील है. हमारी बातचीत में बादल ने कहा कि बीजेपी को अपने गठबंधन सहयोगियों के महत्व को समझना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी को गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चलना नहीं आता.

लेकिन ऐसा लगता नहीं कि बादल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता को लेकर गंभीर हैं क्योंकि बातचीत में नागरिकता संशोधन कानून जैसे विभाजनकारी मुद्दे पर बादल जवाब देने से बचते नजर आए. यह कानून संसद में पिछले साल पारित हुआ था, जिसके बाद देश भर में इसके खिलाफ बड़े आंदोलन हुए. इस कानून को मुसलमानों की नागरिकता को खतरे में डालने वाला बताया जा रहा है. शिरोमणि अकाली दल ने संसद में इस कानून का समर्थन किया था. मेरे साथ बादल की बातचीत में बादल ने कहा कि अकाली दल ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सिखों के लिए भारतीय नागरिकता की हमेशा पैरवी की है. “इन देशों में 78000 सिख हैं और मैंने संसद में कहा था कि बिल में मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए.” इसके बावजूद बादल ने बिल को समर्थन देने के लिए मुसलमानों को शामिल होने की शर्त नहीं रखी.

जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उनसे लगता है कि बीजेपी से शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन तोड़ लेना सत्तारूढ़ पार्टी के बहुसंख्यकवादी विचारधारा से कम ही लेना-देना है बल्कि उसकी प्रमुख चिंता राजनीतिक है. मेरे साथ और अन्य मीडिया के साथ बातचीत में बादल ने दो मामलों में बीजेपी की खुलकर आलोचना की. उन्होंने बीजेपी की आलोचना एनडीए के क्षेत्रीय साझेदारों को विश्वास में न लेने और कृषि कानून बिलों को पारित कराने के लिए की. जब मैंने उनसे अनुच्छेद 370, सीएए और नोटबंदी के निर्णय पर बीजेपी का विरोध न करने के बारे में सवाल पूछा तो बादल ने कहा, “यही तो मैं कह रहा हूं की 370 और सीएए पर सहयोगियों से कभी परामर्श नहीं किया गया.”

कृषि सुधार कानूनों के मामले में भी शिरोमणि अकाली दल की स्थिति स्पष्ट नहीं है. जून में जब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार इन कानूनों को पहली बार अध्यादेश के रूप में लाई थी तो बादल ने इस पर कोई स्पष्ट रुख अख्तियार नहीं किया था. केंद्रीय सरकार की मंत्री शिरोमणि अकाली दल की सदस्य हरसिमरत कौर बादल ने बिलों के विरोध में सितंबर में मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया. कौर बादल की पत्नी हैं. जब अध्यादेश के रूप में इन कानूनों को लाया गया था तो कौर ने इनका समर्थन किया था. शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने जोर दिया कि उन्होंने और उनकी पत्नी ने इन कानूनों का हमेशा विरोध किया है. उन्होंने कहा हमने इस कानून का मंत्रिमंडल में विरोध किया था. उन्होंने कहा, “हरसिमरत ने प्रधानमंत्री को इन कानूनों का विरोध करते हुए आधिकारिक नोट सौंपा था. पिछले चार महीनों से हम सरकार और किसानों के बीच विश्वास बहाली की कोशिश कर रहे थे.”

बादल के अनुसार केंद्र सरकार ने शिरोमणि अकाली दल को आश्वासन दिया था कि वह इन कानूनों में उनकी पार्टी की मांगों को शामिल करेगी. उन्होंने बताया की उन वादों को पूरा न करने के चलते पार्टी ने गठबंधन तोड़ दिया. बादल ने दावा किया कि कृषि कानूनों पर उनकी पार्टी के भीतर लंबे समय से एनडीए से बाहर निकलने के बारे में बातचीत चल रही थी. “यह पंजाब की रोटी का सवाल है.”

मैंने बादल से पूछा कि क्या उनको लगता है कि 1996 में बीजेपी के साथ गठबंधन बनाना उनकी भूल थी तो उन्होंने कहा जब यह गठबंधन बना था तो उस समय कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. “हम लोग कांग्रेस पार्टी से लड़ने के लिए साथ आए थे.” उन्होंने कहा कि बीजेपी के साथ गठबंधन बनाना वक्त की मांग थी क्योंकि पंजाब ने बहुत बुरा वक्त देखा था और शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी की एकता प्रदेश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का प्रतीक थी.

मैंने उन्हें बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष और विधायक हरबंस लाल खन्ना के कुख्यात कामों की याद दिलाई. खन्ना ने सिखों के चौथे गुरु रामदास का अपमान किया था और सिखों के विरुद्ध 1984 में भड़काऊ नारे लगाए थे. उस साल अप्रैल में खन्ना की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बादल ने इस बात की जानकारी न होने का दावा किया. उन्होंने कहा, “1984 में मैं बहुत छोटा था और मुझे नहीं पता कि उस वक्त क्या हुआ था इसलिए मुझे इतनी पुरानी बात याद नहीं.”

बादल ने उस वक्त के बारे में बात की जब दोनों पार्टियां साथ आईं थीं. बादल ने कहा, “अगर हम उस वक्त को ध्यान में रखें तो हम पाएंगे कि देश में बीजेपी के पास बस दो ही सांसद थे और अब वह एनडीए की प्रमुख पार्टी है.” हाल में शिरोमणि अकाली दल के लोक सभा में दो सांसद हैं. “व्यवहारिक रुप से एनडीए का अस्तित्व ही नहीं है. आप जानते हैं कि सहयोगी दलों के साथ वहां कैसा व्यवहार किया जाता है. वैसा व्यवहार नहीं जैसा सहयोगी दलों के साथ किया जाना चाहिए. एनडीए की एक मीटिंग भी नहीं हुई. सिर्फ नाम के लिए एनडीए है.”

बादल ने मुझसे कहा कि केंद्र के साथ अब उनका कोई संबंध नहीं है इसलिए वह पंजाब पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करेंगे. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने 94 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उसे केवल 15 सीटों पर जीत मिली थी. बादल ने भविष्य के लिए कोई योजना के बारे में चर्चा नहीं की. जब मैंने उनसे पूछा क्या शिरोमणि अकाली दल नया गठबंधन बनाएगी, खास तौर पर दलित वोटरों को ध्यान में रखकर जो कि पंजाब में 30 फीसदी हैं, तो बादल का जवाब था, “यह कहना अभी जल्दबाजी होगी क्योंकि हम अभी-अभी गठबंधन से अलग हुए हैं इसलिए हमें थोड़ा वक्त दीजिए.”

मैंने बादल से पूछा क्या उन्हें लगता है कि बीजेपी के साथ उनके गठबंधन के कारण शिरोमणि अकाली दल को पंजाब विरोधी और सिख विरोधी पार्टी के रूप में देखा जाने लगा है तो उन्होंने कहा, “शिरोमणि अकाली दल हमेशा से ही एक सिख पार्टी रही है और उसे समुदाय का समर्थन मिलता रहा है.” उन्होंने आगे कहा, “आप पिछले चुनाव परिणामों को ही देख लीजिए जिसमें शिरोमणि अकाली दल को 31 फीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 37 फीसदी. केवल 6 फीसदी का अंतर था. आम आदमी पार्टी को 21 फीसदी वोट मिले थे. इसलिए आप सीटों पर न जाएं, उस आबादी को देखें जिन्होंने हमें वोट दिया है.

लेकिन आंकड़े शिरोमणि अकाली दल के पक्ष में जाते नहीं दिखते. 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 31 फीसदी, कांग्रेस को 38.5 फीसदी और आप पार्टी को 25 फीसदी वोट मिले थे. 2019 के आम निर्वाचन में कांग्रेस को 41 फीसदी वोट मिले थे जबकि शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ 28 फीसदी वोटों से संतुष्ट होना पड़ा था.