एनडीए से हटने के बाद अकाली दल अध्यक्ष का दावा, “सीएए और 370 पर बीजेपी का किया था विरोध”

01 अक्टूबर 2020
2009 में दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में सुखबीर सिंह बादल और नरेन्द्र मोदी.
शेखर यादव/ इंडिया टुडे ग्रुप/ गैटी इमेजिस
2009 में दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में सुखबीर सिंह बादल और नरेन्द्र मोदी.
शेखर यादव/ इंडिया टुडे ग्रुप/ गैटी इमेजिस

केंद्र सरकार द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानून पारित किए जाने के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से शिरोमणि अकाली दल बाहर हो गई है. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने 26 सितंबर को घोषणा की कि वह पंजाब और सिख मामलों में बीजेपी द्वारा निरंतर दिखाई जा रही संवेदनहीनता के चलते गठबंधन तोड़ रहे हैं. बादल ने एनडीए के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठाए और क्षेत्रीय साझेदारों को किनारे लगाए जाने की भी आलोचना की. मैंने 29 सितंबर को बादल से एनडीए गठबंधन से उनकी पार्टी के बाहर हो जाने और बीजेपी के साथ उनके संबंधों के बारे में बातचीत की. बातचीत में वह यह नहीं बता पाए कि बीजेपी की विवादास्पद, विचारहीन और अल्पसंख्यक विरोधी नीतियों के बावजूद वह गठबंधन में क्यों बने रहे. इस बातचीत में वह कई बार अपने पूर्व बयानों के विपरीत दावे करते नजर आए और ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बीजेपी के खिलाफ खुलकर सामने आने से बचना चाहते हैं.

जब मैंने उनसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के तहत प्राप्त विशेष अधिकार छीन लिए जाने के बारे में पूछा तो बादल ने इस फैसले का समर्थन करने की बात से इनकार किया. उनका यह दावा इसलिए विचित्र लगता है क्योंकि 6 अगस्त को लोक सभा में उन्होंने कहा था, “माननीय गृहमंत्री द्वारा अनुच्छेद 370 और 35ए को खत्म किए जाने के लिए लाए गए विधेयकों का समर्थन करता हूं.” अकाली दल ने पूर्व में कम से कम चार ऐसे प्रस्तावों का समर्थन किया है जो राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने के हिमायती थे. लेकिन लोक सभा में अकाली दल के अध्यक्ष ने बीजेपी के मुगलों के दौर में धर्मांतरण, कश्मीरी पंडितों की हालत और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद जैसे राजनीतक दावे का समर्थन किया था. बादल ने तो यह भी कहा था कि 370 को हटाने से अल्पसंख्यक समुदायों का सशक्तिकरण होगा. अपने लोक सभा के भाषण के अंत में उन्होंने कहा था, “मैं प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इस बोल्ड फैसले के लिए बधाई देता हूं”. लेकिन जब मैंने उनसे टेलीफोन पर बात की तो बादल ने दावा किया कि “हमने इस फैसले का संसद में कभी स्वागत नहीं किया. हमने बस चर्चा में भाग लिया था.”

पिछले महीने की शुरुआत में कैबिनेट ने नए केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की आधिकारिक भाषा हिंदी और डोगरा को बनाए जाने के विधेयक को मंजूरी दी. बादल ने पंजाबी को आधिकारिक भाषाओं में शामिल न करने का विरोध किया था. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को खत लिखा था. उस खत में उन्होंने लिखा था कि जम्मू और कश्मीर में पंजाबी को आधिकारिक भाषा न बनाने के फैसले को अल्पसंख्यक विरोधी फैसले की भांति देखा जाएगा और इसे निश्चित तौर पर जम्मू-कश्मीर प्रशासन का सिख विरोधी कदम समझा जाएगा. लेकिन इसके बावजूद उनकी सिख समर्थक पार्टी ने गठबंधन नहीं तोड़ा.

जब मैंने बादल से पूछा कि क्या वह इस बात को मानते हैं कि बीजेपी अल्पसंख्याक विरोधी या सिख विरोधी पार्टी है तो उनका जवाब था कि “मुझे नहीं लगता कि यह इस सवाल का जवाब देने का ठीक समय है.” एनडीए से बाहर हो जाने की घोषणा करते हुए बादल ने ट्वीट में कहा था कि बीजेपी सीखों के मामले में धार्मिक रूप से असंवेदनशील है. हमारी बातचीत में बादल ने कहा कि बीजेपी को अपने गठबंधन सहयोगियों के महत्व को समझना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी को गठबंधन सहयोगियों को साथ लेकर चलना नहीं आता.

लेकिन ऐसा लगता नहीं कि बादल अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता को लेकर गंभीर हैं क्योंकि बातचीत में नागरिकता संशोधन कानून जैसे विभाजनकारी मुद्दे पर बादल जवाब देने से बचते नजर आए. यह कानून संसद में पिछले साल पारित हुआ था, जिसके बाद देश भर में इसके खिलाफ बड़े आंदोलन हुए. इस कानून को मुसलमानों की नागरिकता को खतरे में डालने वाला बताया जा रहा है. शिरोमणि अकाली दल ने संसद में इस कानून का समर्थन किया था. मेरे साथ बादल की बातचीत में बादल ने कहा कि अकाली दल ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सिखों के लिए भारतीय नागरिकता की हमेशा पैरवी की है. “इन देशों में 78000 सिख हैं और मैंने संसद में कहा था कि बिल में मुसलमानों को भी शामिल किया जाना चाहिए.” इसके बावजूद बादल ने बिल को समर्थन देने के लिए मुसलमानों को शामिल होने की शर्त नहीं रखी.

जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.

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