केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की कार से कुचलकर हुई पत्रकार रमन कश्यप की मौत : चश्मदीद

3 अक्टूबर 2021 को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया गांव में प्रदर्शनकारियों ने एक कार को तोड़ दिया. यह कार उस काफिले में थी जिसने चार किसानों को कुचलकर मार डाला. सौजन्य : अनिल कुमार मौर्य

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3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में हुए नरसंहार के एक चश्मदीद गवाह ने कारवां को बताया कि उसने आशीष मिश्रा की कार को पत्रकार रमन कश्यप को कुचलते हुए देखा. समाचार चैनल द दस्तक 24 के बहराइच जिला प्रमुख पत्रकार अनिल कुमार मौर्य ने बताया कि वह कश्यप के साथ ही खड़े थे और एक दूसरे को अपना विजिटिंग कार्ड दे रहे थे कि त​भी एक काली एसयूवी में आशीष मिश्रा उर्फ मोनू भैय्या पीछे से किसानों की भीड़ को कुचलते हुए आ रहे थे, फिर गाड़ी बेकाबू हो गई और सड़क से खेतों में जा गिरी. घटना के बारे में बताते हुए अनिल ने यह भी कहा कि जब काली एसयूवी बेकाबू होकर खेतों में गिर गई, तो गुस्साए किसानों ने ड्राइवर को खींच लिया, एक अन्य किसान, जिसकी पहचान बाद में गुरविंदर सिंह के रूप में हुई, उसने आशीष को पकड़ लिया, जो गन्ने के खेतों से होकर भागाने की कोशिश कर रहा था. अनिल ने बताया कि तभी उन्होंने गोलियों की आवाज सुनी और गुरविंदर को गिरते हुए देखा और यहां तक ​​कि पुलिस ने भी आशीष को भागने में मदद की.

अनिल ने कहा, "जरूरी बात यह है कि रमन कश्यप को मोनू मिश्रा की कार ने कुचलकर मार डाला था." उनके अनुसार, "इस पूरे प्रकरण से पहले का माहौल इतना हल्का और सुरक्षित था, थके हुए किसान शांतिपूर्वक काले झंडे लहराकर घर लौट रहे थे." उन्होंने कहा कि वहां इकट्ठा हुए किसानों और यहां तक कि पत्रकारों तक को "हिंसा होने की थोड़ी भी उम्मीद नहीं थी."

जबकि राज्य पुलिस ने 4 अक्टूबर को घटना पर पहली सूचना दर्ज की, जिसमें आशीष और अन्य 15-20 अज्ञात व्यक्तियों के साथ आरोपी बताया गया. प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की आठ धाराओं के तहत दर्ज की गई है, जिसमें धारा 302, जो हत्या से संबंधित है, और धारा 304-ए, लापरवाही से हुई मौत से जुड़ी है. 7 अक्टूबर को पुलिस ने आशीष को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत नोटिस जारी किया और उसे 8 अक्टूबर को तिकुनिया पुलिस स्टेशन में पेश होने के लिए कहा. कानूनी जानकारों ने सवाल उठाया है कि हत्या के एक मामले में आरोपी को इस धारा के तहत गवाह के तौर पर कैसे तलब किया गया है. आशीष ने इस समन पर ध्यान नहीं दिया और पुलिस स्टेशन नहीं पहुंचा. इसके बाद पुलिस ने 8 अक्टूबर को भी ऐसा ही नोटिस जारी किया और आशीष को अगले दिन पेश होने को कहा. एनडीटीवी के मुताबिक, आशीष 9 अक्टूबर को कई पुलिस अधिकारियों के साथ तिकुनिया स्टेशन पर पूछताछ के लिए पहुंचे. कारवां ने लखीमपुर खीरी के पुलिस अधीक्षक विजय ढुल और अतिरिक्त एसपी अरुण कुमार से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने किसी भी कॉल या मैसेज का जवाब नहीं दिया.

अनिल ने मुझे बताया कि 3 अक्टूबर को वह लखीमपुर खीरी के बनवीरपुर गांव में आशीष के पिता और बीजेपी के नेता केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के घर पर एक कुश्ती कार्यक्रम को कवर करने के लिए गए थे. “मैं दोपहर करीब 12 बजे अजय मिश्रा टेनी के घर पहुंचा और करीब 1.30 बजे तक घर में आयोजित किए जा रहे दंगल में मौजूद था. मेरे साथ तीन-चार पत्रकार मित्र और भी थे.” अनिल ने कहा कि उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को दोपहर करीब 2.15 बजे हेलीपैड पर उतरना था. और मैं लगभग इसी समय मैदान पर पहुंच गया. किसान काले झंडे लिए सड़क के किनारे खड़े थे. हेलीपैड बनवीरपुर से करीब पांच से सात किलोमीटर दूर तिकुनिया गांव में है. मौर्य और आठ विधायकों का हेलीपैड पर उतरने और फिर बनवीरपुर जाने का कार्यक्रम था.

काले झंडे इस लिए दिखाए जा रहे थे ​क्योंकि कुछ दिन पहले जिले के पलिया कस्बे में एक अन्य कार्यक्रम में किसानों ने विरोध स्वरूप टेनी को काले झंडे दिखाए. काले झंडों से आहत टेनी ने धमकी भरा भाषण दिया: "सुधार जाओ, नहीं तो हम आपको सुधार देंगे, दो मिनट लगेगा बस." इसके विरोध में किसानों ने 3 अक्टूबर को हेलीपैड पर उतरने पर उन्हें काले झंडे दिखाने का फैसला किया. अनिल ने कहा कि "किसान हंगामा करने नहीं आए थे, वे इस मूड में नहीं थे." अनिल ने बताया कि भीड़ ने करीब एक घंटे तक इंतजार किया लेकिन मंत्री नहीं आए. “दोपहर के 3 बज रहे थे, उनके आने का समय बीत चुका था. हमें बताया गया था कि मौर्य के हेलीकॉप्टर को डायवर्ट कर दिया गया. इसके बाद प्रदर्शनकारी किसान धरना स्थल से लौटने लगे.

अनिल ने कहा कि इस समय वहां कम से कम चार कारें आईं- एक सफेद कार और तीन काली एसयूवी. “पहली सफेद कार आसानी से गुजर गई. दरअसल, किसान खुद ही सड़कों पर शांति से खड़े होकर कारों को रास्ता दे रहे थे.” पत्रकार ने बताया कि टेनी का एक और बेटा सफेद रंग की कार में था, जिसे शांतिपूर्वक रास्ता दिया गया. "लेकिन काली एसयूवी पीछे से आई और जिसकी किसी ने भी कल्पना न की होगी, किसानों को कुचलती चली गई." पिछले कुछ दिनों में घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए हैं, जिसमें किसान शांतिपूर्ण विरोध स्थल से लौटते हुए और दो तेज रफ्तार काली एसयूवी भीड़ को कुचलते हुए दिखाई दे रही हैं.

अनिल ने मुझे बताया कि जब पहली कार गुजरी, उस समय वह कश्यप से बात कर रहे थे और अपना विजिटिंग कार्ड उन्हें दे रहे थे. अनिल ने कहा कि कुछ ही सेकंड में एक काली एसयूवी आई और कश्यप सहित कई को टक्कर मारते हुए गुजरती गई. “उस भगदड़ में कश्यप का कार्ड मुझसे खो गया. फिर मैं भी अपनी जान बचाने के लिए भागा, क्योंकि मुझे कई जगहों पर लाठियों से मारा गया था.” उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों को कुचलने के बाद, तेजी से जा रही काली एसयूवी में से दो बेकाबू हो गईं और सड़क के किनारे गन्ने के खेतों में जा गिरीं. "उसके बाद में जो हुआ वह सभी को पता है."

अनिल ने मुझे बताया कि जब कारें खेतों में जा रही थीं तो गुस्साए किसानों ने उनमें से एक कार के ड्राइवर को खींच लिया. उन्होंने कहा कि बहराइच जिले के नानपारा अनुमंडल के रहने वाले 19 साल के गुरविंदर नाम के किसान ने मोनू को पकड़ लिया. मोनू गन्ने के खेतों में भागने की कोशिश कर रहा था. अनिल ने कहा कि तभी उसने गोलियों की आवाज सुनी और गुरविंदर को गिरते देखा. “सरदार जी जो हमारे नानपारा के थे, कसके पकड़े थे मोनू मिश्रा को. फिर गोली चली और सरदार जी मर गए." अनिल ने कहा कि मोनू जब खेतों में भागने की कोशिश कर रहा था तो कई प्रदर्शनकारियों ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ने की कोशिश की "लेकिन पुलिस और प्रशासन ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया."

अनिल ने मुझे बताया कि वह घायल हो गया था लेकिन वह आधी रात तक कश्यप को ढूंढता रहा लेकिन प्रशासन ने उन्हें उस जगह पर वापस जाने से रोक दिया था. उनके साथ बहराइच का एक अन्य पत्रकार भी था और वह उस रात लगभग 3 बजे घर लौट आए. जैसे ही उन्होंने कश्यप के बारे में बात की, अनिल ने मुझे बताया कि कश्यप लखीमपुर खीरी के निघासन विधानसभा क्षेत्र को कवर करते थे. "मैं उसे बचा नहीं सका. एक पल वह था और अगले ही पल चला गया. मैं अपने दोस्त को अपने पत्रकार साथी को बचा नहीं पाया." अनिल ने कहा कि सभी ने गोलियों की आवाज सुनी और “पुलिस इससे साफ इनकार कर रही है. यह बहुत दर्दनाक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि पत्रकारों को बेरहमी से मारा जा रहा है जबकि बीजेपी हत्याओं के लिए जिम्मेदार लोगों को बचा रही है.”

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जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.