बिहार में भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के संयोजक मनन कृष्ण ने मुझे बताया, “हमने मतदाताओं के बीच सकारात्मक समाचार प्रसारित करने के उद्देश्य से एक लाख से अधिक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किए हैं.”
बिहार में इस अक्टूबर अथवा नवंबर में विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है और यह नोवेल कोरोनवायरस महामारी के बीच भारत में होने वाला पहला मतदान होगा. भारतीय निर्वाचन आयोग ने कोविड-19 के मद्देनजर चुनावों के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं और खासतौर बिहार के लिए कुछ विशिष्ट सिफारिशें भी की हैं. आयोग ने खुले चुनाव अभियान पर प्रतिबंध लगाया है. नतीजतन, राजनीतिक दलों को मतदाताओं से जुड़ने के लिए डिजिटल ढांचा खड़ा करना पड़ा है और इस काम में बीजेपी, जो राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन का एक हिस्सा है, अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों और सहयोगियों से बहुत आगे है.
बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को समाप्त हो रहा है और चुनाव आयोग ने कहा है कि वह नई सरकार के गठन के लिए समय पर चुनाव आयोजित करेगा. हालांकि तारीखों की घोषणा अभी तक नहीं की गई है. कृष्ण के अनुसार, बीजेपी 2020 की शुरुआत से ही चुनावी मोड में है. “हमने फरवरी में तैयारी शुरू कर दी थी और अब ऐसा लग रहा है कि हमें वर्चुअल माध्यम पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ेगा. दरअसल बीजेपी ने 7 जून को आयोजित बिहार जन संवाद वर्चुअल रैली से दिल्ली से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की चुनावी सभा की शुरूआत की थी. समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मतदाताओं तक पहुंचने के लिए राज्य भर में लगभग दस हजार एलईडी स्क्रीन और पचास हजार से अधिक स्मार्ट टीवी लगाए गए थे. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दावा किया कि पूरे बिहार में लगभग चालीस लाख लोगों ने शाह की रैली देखी. कृष्ण ने मुझे बताया कि यह भाषण राज्य के सभी 72227 बूथों पर लाइव स्ट्रीम किया गया था.
कृष्ण के अनुसार, बीजेपी को अपने व्हाट्सएप नेटवर्क के जरिए दो करोड़ लोगों तक पहुंचने की उम्मीद है और यह राज्य के हर एक मतदान केंद्र को कवर करेगा. उन्होंने कहा, "हम बूथ स्तर तक घुसना चाहते थे और इसे हमने सफलतापूर्वक कर लिया है." उन्होंने आगे बताया कि "इन समूहों की सामग्री पूरी तरह से सकारात्मक होगी." उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें केंद्र और राज्य स्तर पर पार्टी नेतृत्व द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि इन्हें सकारात्मक रखा जाए. हमारी सरकार ने बहुत कुछ किया है जिस पर हम प्रकाश डालेंगे.” सत्तारूढ़ गठबंधन में जनता दल (युनाइटेड), जिसके प्रमुख मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, लोक जनशक्ति पार्टी और पांच निर्दलीय सदस्य हैं. कृष्ण ने दावा किया, “हम फेसबुक और ट्विटर पर जो कुछ भी डालते हैं उसे व्हाट्सएप से भेजेंगे.”
उधर कांग्रेस के बिहार आईटी सेल प्रमुख संजीव सिंह के अनुसार मुख्य विपक्षी गठबंधन के पास पूरे बिहार के लिए 3800 व्हाट्सएप समूह हैं. सिंह ने मुझे बताया कि उनका अगले दो महीनों में 10000 ग्रुप बनाने का लक्ष्य है. “बीजेपी के पास संसाधनों और धन की कोई कमी नहीं है. कांग्रेस पार्टी ऐसी नहीं है. यह पार्टी कार्यकर्ताओं के एक प्रतिबद्ध कैडर पर निर्भर है. हममें और उनमें यही अंतर है," उन्होंने कहा.
कृष्ण के अनुसार, बीजेपी का व्हाट्सएप नेटवर्क अनुशासित और रणनीतिक रूप से संरचित चुनावी उपकरण है. उन्होंने कहा कि यह नेटवर्क बहुस्तरीय है और इसे कुल 9500 आईटी टीम प्रमुखों द्वारा चलाया जाएगा. राज्य आईटी सेल की टीम के अंतर्गत 45 जिला टीमें हैं और 1099 मंडल टीमें हैं जो एक प्रशासनिक जिला बनाती हैं. मंडल की टीमें अपने क्षेत्रों में सभी तरह के संचार के लिए जिम्मेदार हैं. कृष्ण ने बताया कि इस संरचना के नीचे पार्टी की मूल इकाई है जिसे "शक्ति केंद्र" के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कहा कि 9500 शक्ति केंद्र हैं और उनमें से प्रत्येक में एक टीम प्रमुख है जो पंचायतों और वार्डों के लिए जिम्मेदार है. लग रहा है कि बीजेपी चुनावी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस व्यापक सूचना नेटवर्क पर निर्भर होगी.
दूसरी ओर कांग्रेस का दृष्टिकोण अलग है. सिंह ने कांग्रेस के डिजिटल मोबिलाइजेशन पर विस्तार से बताया और कहा, “हमने अपना खुद का सॉफ्टवेयर और एक ऐप भी विकसित किया है. यह एक लिंक बनाता है जिसे व्हाट्सएप के जरिए साझा किया जा सकता है.” उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के दस से पंद्रह हजार लोगों से जुड़ना है.
अपनी डिजिटल रणनीति के बारे में जदयू बहुत गंभीर नहीं थी. पार्टी के मीडिया सेल के अध्यक्ष अमरदीप ने मुझे बताया कि "जदयू मीडिया सेल का गठन तीन साल पहले हुआ था जब हमने अपनी सोशल मीडिया आउटरीच शुरू की थी." उन्होंने कहा कि उन्होंने जिलों, पंचायतों, शहरी वार्डों और पोलिंग बूथों के लिए अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं. इसके अलावा, महिलाओं, छात्रों, दलितों, अल्पसंख्यकों, किसानों, वगैरह-वगैरह के लिए पार्टी के 30 अलग-अलग सेल, राज्य स्तर से लेकर बूथ स्तर तक सभी के अपने-अपने व्हाट्सएप ग्रुप हैं. अमरदीप ने नंबर और विवरण देने से इनकार कर दिया.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के अलावा, बीजेपी वर्चुअल रैलियों के आयोजन में बहुत सक्रिय है. कृष्ण ने कहा कि पार्टी का लक्ष्य है कि चुनाव से पहले कम से कम एक बार राज्य के 243 निर्वाचन क्षेत्रों में से हर एक में वर्चुअल रैली करने का है. वहीं, सिंह ने कहा कि राहुल गांधी द्वारा संबोधित की जाने वाली दो मेगा रैलियों के साथ कांग्रेस का लक्ष्य चुनाव के दिन तक 100 आभासी रैलियां आयोजित करना है. उधर, सत्तारूढ़ जदयू ने 7 सितंबर को अपनी पहली वर्चुअल चुनावी रैली की. उस रैली को निश्चय संवाद नाम दिया गया था और नीतीश कुमार और अन्य जदयू नेताओं ने पार्टी उस रैली को संबोधित किया था. इस पार्टी ने एक अलग वेबसाइट बनाई है और कुमार की रैली को पटना स्थित पार्टी मुख्यालय से लाइव स्ट्रीम किया गया था. अमरदीप ने मुझे बताया कि पार्टी के पास "30 लाख लोगों, पार्टी कार्यकर्ताओं और जदयू समर्थकों का एक डेटाबेस है और हम उन्हें अपनी रैलियों के लिंक भेज रहे थे." द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनके भाषण के डिजिटल रिसेप्शन के आधार पर कहें तो कुमार की रैली विफल कही जाएगी. रैली लगभग तीन घंटे लंबी थी और कुमार ने लालू-राबड़ी के कार्यकाल के कथित अधर्म की तुलना अपने कार्यकाल से करने में काफी समय खर्च किया.
इस बीच 7 सितंबर को कांग्रेस ने अपने फेसबुक पेज पर अपनी खुद की वर्चुअल रैली- बिहार क्रांति महासम्मेलन- की शुरूआत की जिसमें पार्टी की बिहार इकाई के नेता, राज्य अध्यक्ष मदन मोहन झा और राज बब्बर भी शामिल थे. “अन्य दलों के विपरीत हमने तीन स्थानों से वर्चुअल रैली को जोड़ने की योजना बनाई : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मुख्यालय, जहां से राष्ट्रीय स्तर के नेता बात करेंगे, बिहार राज्य कांग्रेस कार्यालय जहां से राज्य-स्तरीय नेता शामिल होंगे और जिला-स्तर जहां निर्वाचन क्षेत्रों से नेता शामिल होंगे”, आईटी सेल प्रमुख सिंह ने समझाया. मिसाल के तौर पर, पूर्वी चंपारण की मधुबन सीट से कांग्रेस के टिकट के दावेदार शाश्वत गौतम निर्वाचन क्षेत्र से रैली में शामिल हुए.
बीजेपी इस बीच अपनी वर्चुअल बैठकों के लिए जूम और सिस्को वीबेक्स सहित कई प्रकार के प्लेटफार्मों का उपयोग कर रही है. उन्होंने कहा, “हमारी विधानसभा वर्चुअल रैलियों को बीजेपी जिला फेसबुक पेज पर प्रसारित किया जाता है. हमारे नेता अपने सत्यापित पेज से फेसबुक लाइव करते हैं और हमारे कार्यकर्ता जूम के जरिए जुड़ते हैं. हम पत्रकारों के साथ लिंक साझा करते हैं.”
यहां तक कि मानव संसाधन के मामले में भी बीजेपी और अन्य दलों में बहुत अंतर दिखाई देता है. सिंह के अनुसार, कांग्रेस के पटना के “वॉर रूम” में 40 लोग काम कर रहे हैं. ये लोग सोशल मीडिया के लिए क्रिएटिव और वीडियो डिजाइन कर रहे हैं, शोध और विश्लेषण कर रहे हैं. ये टीमें दैनिक रुझानों के लिए सोशल मीडिया को स्कैन करती हैं और फिर प्रिंट और टेलीविजन मीडिया के माध्यम से उन मुद्दों की तलाश करती हैं जो मतदाताओं से संबंधित होते हैं. एक टीम ट्विटर पर काम करती है और दूसरी फेसबुक के लिए कंटेंट तैयार करती है. उन्होंने कहा कि इन टीमों द्वारा बनाई गई सभी सामग्री व्हाट्सएप पर भी प्रसारित की जाती है. भारतीय युवा कांग्रेस की बिहार इकाई के प्रमुख गुंजन पटेल ने दावा किया कि पार्टी बिहार में बाढ़ और बेरोजगारी जैसे दो मुद्दों पर फोकस कर रही है, जो कुमार की सरकार पर उठा रहे सवालों के ट्विटर रुझान पर आधारित हैं. सिंह ने कहा, “बिहार में ट्विटर की पहुंच कम है. यहां लोग ट्विटर का इस्तेमाल उतना नहीं करते जितना फेसबुक और व्हाट्सएप का करते हैं.
उधर कृष्ण के अनुसार, बीजेपी के पास "सोशल मीडिया वॉर रूम" में 200 लोग हैं. अमरदीप ने विशिष्ट विवरण देने से इनकार कर दिया और मुझे बताया कि कुल मिलाकर, पार्टी ने अपने मीडिया सेल के लिए 1500 लोगों को जुटाया था. उन्होंने सोशल मीडिया की पहुंच के मामले में बीजेपी मिल रहे लाभ की बात नहीं मानी और कहा, “हमारी सरकार ने पिछले 15 वर्षों में जो काम किया है उस पर टिक कर चुनाव लड़ा जाएगा. सोशल मीडिया केवल संदेश की पहुंच को बढ़ा सकता है.”
लेकिन पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी चुनाव मैदान में दलों की डिजिटल आउटरीच क्षमता के बारे में कहीं अधिक चौकस हैं. “बिहार में मौजूदा कोविड-19 स्थिति के कारण वर्चुअल रैलियां और सोशल मीडिया चुनाव प्रचार की एक प्रमुख विशेषता होने जा रही हैं. डिजिटल प्रचार महंगा हो जाएगा और संभावना है कि पैसे वाले राजनीतिक दलों को फायदा होगा जबकि क्षेत्रीय और स्थानीय दलों को नुकसान हो.” उन्होंने मुझसे कहा, “पिछले साल लोक सभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने कथित तौर पर गूगल, फेसबुक और संबंधित प्लेटफार्मों पर राजनीतिक विज्ञापनों पर 27 करोड़ रुपए खर्च किया था और कांग्रेस ने 5.6 करोड़ रुपए. ये तो मोटे-मोटे आंकड़े हैं वास्तविक आंकड़ा बहुत ज्यादा हो सकता है.”
मैंने इस बार के चुनाव प्रचार की अभूतपूर्व प्रकृति को देखते दलों के बीच प्रचार के अवसरों की बराबरी को सुनिश्चित करन के लिए भारतीय निर्वाचन आयोग की की भूमिका के बारे में बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी एचआर श्रीनिवास से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरे फोन कॉलों या संदेशों का जवाब नहीं दिया. जब मैंने कुरैशी से वही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि “डिजिटल प्रचार पूरी तरह से राजनीतिक प्रचार के पारंपरिक साधनों की जगह नहीं ले सकता. बिहार में इंटरनेट की पहुंच 37 प्रतिशत है जबकि स्मार्टफोन का उपयोग केवल 30 प्रतिशत फोन उपभोक्ता करते हैं इसलिए डिजिटल चुनाव प्रचार की अपनी सीमाएं होंगी.” उन्होंने कहा, "सत्ताधारी गठबंधन के पास विपक्ष की तुलना में अधिक संसाधन होना लाजमी है और इसलिए जब सोशल मीडिया के जरिए मतदाताओं को आकर्षित करने की बात आती है तो उसे इसका लाभ मिलता है."