12 सितंबर को पनवेल में निरामय हॉस्पिटल्स के मेडिकल निदेशक डॉ. अमित थडानी 16 घंटे तक ऑक्सीजन खोजते रहे. थडानी 55 बेड वाला अस्पताल चलाते हैं जो अब कोविड-19 अस्पताल है जहां मरीजों के लिए एक दिन में 70 ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है. थडानी ने ऑक्सीजन के 50 सिलेंडर मंगवाने के लिए कई ऑक्सीजन डीलरों को आर्डर दिए थे लेकिन उस दिन दोपहर तक उन्हें सिर्फ 20 मिल पाए थे. शाम होने तक वह अपने मरीजों के लिए दूसरे अस्पतालों की तलाश करने लगे. “दिन ढलने तक कई जगह फोन करने और अपने कर्मचारियों को पूरे शहर में दौड़ाने के बाद हम दैनिक ऑक्सीजन आवश्यकता को पूरा कर तो पाए लेकिन तब तक हम अपने दो सबसे गंभीर मरीजों को अन्य अस्पताल में स्थानांतरित कर चुके थे," थडानी ने बताया.
अगस्त के आखिर से ही कई तरह की चिकित्सा सुविधाएं, विशेष रूप से छोटे अस्पताल और नर्सिंग होम में ऑक्सीजन की भारी कमी है क्योंकि महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की जरूरत वाले कोविड-19 के मामलों की संख्या बढ़ गई है. ऑक्सीजन उत्पादकों ने मुझे बताया कि महामारी फैलने के बाद से मेडिकल ऑक्सीजन की मांग दोगुनी से अधिक हो गई है. ऑक्सीजन डीलरों ने कहा कि आपूर्ति श्रृंखला या सप्लाई चेन के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है जिससे ऑक्सीजन अस्पतालों तक नहीं पहुंच सकता है.
सितंबर के मध्य तक करीब तीन लाख कोविड-19 के सक्रिय रोगियों के साथ महाराष्ट्र भारत में शीर्ष स्थान पर था. उस समयावधि में यह संक्रमित लोगों की संख्या के अनुपात में मृत्यु दर में दूसरा नंबर का राज्य था. इस महामारी में यह ज्यादातर मौतें गंभीर सांस की परेशानी के बाद हुई हैं.
सितंबर के दूसरे सप्ताह तक थडानी के अस्पताल के 40 बेड भर चुके थे. इससे ज्यादा मरीजों को डॉक्टर भर्ती नहीं कर रहे थे क्योंकि वह इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं थे कि अगर उन्हें जरूरत हुई तो वह पर्याप्त ऑक्सीजन का इंतजाम कर पाएंगे. थडानी ने बताया, "मेरे तीस मरीजों को ऑक्सीजन की आवश्यकता है जिनमें से छह नॉन इवेसिव वेंटिलेशन पर हैं जिस स्थिति में लगातार उच्च प्रवाह में ऑक्सीजन की आवश्यकता रहती है." डॉक्टर ने ऑक्सीजन का इंतजाम करने के लिए हर दिन फोन पर बात करते हुए कम से कम 12 घंटे बिताए. उन्होंने कहा, "मुझे हर दिन विभिन्न विक्रेताओं और डीलरों को कॉल करते रहना पड़ता है क्योंकि एक विक्रेता 70 सिलेंडरों की आपूर्ति नहीं कर सकता.” महामारी फैलने से पहले अस्पताल को प्रति दिन दस से अधिक सिलेंडरों की आवश्यकता नहीं पड़ती थी. उन्होंने कहा, “लेकिन अब रोज इसके लिए मेहनत करनी पड़ती है. हर दिन मुझे लगता है कि मेरे पास सारे विकल्प खत्म हो गए हैं.”
पनवेल से 170 किलोमीटर से अधिक दूरी पर नासिक में सुदर्शन अस्पताल के निदेशक डॉ. संजय धुर्जद भी इसी तरह की परेशानियों से गुजरे. उन्होंने अपने मरीजों के लिए ऑक्सीजन का इंतजाम करने के लिए घंटों फोन लगाए. "एक दिन मेरी टीम ऑक्सीजन सिलेंडरों की तलाश में 24 घंटे से अधिक समय तक शहर में घूमती रही. वे जहां कहीं ऑक्सीजन सिलेंडर ढूंढने में लगे थे." देर रात उनके कर्मचारियों को एक टेंपो मिला जिसमें दस ऑक्सीजन सिलेंडर थे लेकिन वहां कोई भी ड्राइवर या केयरटेकर नहीं था. धुर्जद ने आगे बताया किऑक्सीजन न मिलने से निराश मेरे साथी सिलेंडरों को अस्पताल ले गए. अगले दिन वे उस स्थान पर वापस आ गए जहां उन्हें टेंपो मिला था ताकि वह उसके मालिक को ढूंढकर ऑक्सीजन का भुगतान कर सकें. "मुझे पता है कि यह कैसे लगता है लेकिन यह अब जीवन और मृत्यु की बात है. उस रात ऑक्सीजन पाने के लिए हम यही कर सके."
उन्होंने कहा कि उन्होंने जिला कलेक्टर, नगर निगम के आयुक्त, स्थानीय विधायक, प्रतिनिधि सांसद और स्वास्थ्य विभाग और राज्य के खाद्य एवं औषधि प्रशासन के अधिकारियों के साथ इस मुद्दे को उठाया.
उन्होंने आश्वासन दिया कि सितंबर के अंत तक आपूर्ति श्रृंखला बहाल कर दी जाएगी. "लेकिन तब तक यही तनावपूर्ण चक्र जारी है," धुर्जद ने कहा.
अस्पताल में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति का तरीका उसके आकार और स्थान पर निर्भर करता है. आईनॉक्स एयर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, लिंडे इंडिया लिमिटेड, प्रैक्सेयर और विनायक एयर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड जैसे बड़े मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादक मुख्य रूप से तरल ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं. वे इस तरल ऑक्सीजन की आपूर्ति सीधे बड़े सरकारी और कॉरपोरेट अस्पतालों में करते हैं जहां ऑक्सीजन टैंक होते हैं. कंप्रेशर्स तरल ऑक्सीजन को संपीड़ित या कंप्रैस्ड गैस में बदल देते हैं जिसे अस्पतालों में पाइपलाइनों के माध्यम से परिचालित किया जाता है.
बड़े निर्माता उन डीलरों को भी ऑक्सीजन की आपूर्ति करते हैं जो ऑक्सीजन गैस को कंप्रैस कर सिलेंडर में भर कर छोटे अस्पतालों और नर्सिंग होम तक पहुंचाते हैं. ऐसे डीलर भारत में टियर -2 और टियर -3 शहरों में अधिकांश अस्पतालों की आपूर्ति करते हैं. छोटे पैमाने के निर्माता भी अस्पतालों और डीलरों को सीधे सिलेंडर में ऑक्सीजन की आपूर्ति करते हैं. डीलर और अस्पताल अक्सर रिफिलिंग स्टेशनों पर खाली सिलेंडरों को रिफिल करते हैं.
महाराष्ट्र में ऑक्सीजन का संकट बड़ा है लेकिन देश भर के अस्पताल भी इस कमी से जूझ रहे हैं. 30 अगस्त को असम के स्वास्थ्य मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने एक प्रेस वार्ता में माना था कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी है जबकि कोरोना खतरनाक रूप से फैल रहा है. 13 सितंबर को जम्मू के स्थानीय समाचार घरानों ने इस क्षेत्र के सरकारी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी की सूचना दी. 14 सितंबर को पंजाब सरकार ने पड़ोसी राज्यों में इस डर से तरल ऑक्सीजन की आपूर्ति में मदद करने के लिए कदम उठाया कि उनके अस्पतालों में महीने के अंत तक ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी. इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने 15 सितंबर को एक संवाददाता सम्मेलन में सवालों का जवाब देते हुए कहा, "राष्ट्रीय स्तर पर मेडिकल ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है.”
महाराष्ट्र और देश के कई हिस्सों में मामलों में तेजी से हुई वृद्धि ने अस्पतालों को केवल उन रोगियों को दाखिल करने पर मजबूर किया जिनमें ऑक्सीजन परिपूर्णता गंभीर स्तर पर थी. कोविड-19 अस्पताल चलाने वाले महाराष्ट्र के थडानी और अन्य डॉक्टरों ने मुझे बताया कि जुलाई तक उनके दस प्रतिशत से भी कम रोगियों को ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता थी. अब 90 प्रतिशत से अधिक रोगियों को ऑक्सीजन चिकित्सा की आवश्यकता होती है. नासिक में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रमुख डॉ. समीर चंद्रत्रे ने आशंका जताई कि अगर राज्य सरकार ने ऑक्सीजन उत्पादन में वृद्धि करने और आपूर्ति श्रृंखला को कारगर बनाने के लिए तत्काल कदम नहीं उठाए, तो महीने के अंत तक अस्पताल में पूरी तरह से ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी. उन्होंने कहा, "नासिक में पहले ही मामले विस्फोटक रूप से बढ़ चुके हैं. मुझे नहीं पता कि अगले कुछ हफ्तों में हमारे शहर में क्या होगा."
महाराष्ट्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 12 सितंबर को राज्य भर के अस्पतालों में प्रतिदिन 809.22 टन ऑक्सीजन की मांग थी जबकि निर्माता और रिफिलर्स प्रति दिन केवल 765.85 टन की आपूर्ति कर पाए. राज्य भर के कोविड-19 अस्पतालों में सीमित शेष स्टॉक 389.16 टन था जो एक दिन की आवश्यकता से भी कम था.
मेडिकल ऑक्सीजन उद्योग के प्रतिनिधियों ने बताया है कि इस काम को कई चीजों ने प्रभावित किया है. कई पुरानी बाधाएं हैं जिन्हें दूर करना महामारी ने और मुश्किल कर दिया है. इन समस्याओं में सबसे पहली समस्या मार्च में महामारी के तेजी से फैलने के बाद अचानक ऑक्सीजन की मांग का बढ़ना है. एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के सेल्स हेड ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि, "मुझे लगता है कि अब मांग दोगुनी से अधिक हो गई है. जबकि महामारी फैलने से पहले भारत में एक औसत दिन में मेडिकल ऑक्सीजन का बाजार 900 से 1000 टन था. यह अब कम से कम 2500 टन प्रति दिन है."
दीपक बहेती औरंगाबाद के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई करते हैं. जिला प्रशासन ने उन्हें ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया है ताकि आपूर्ति श्रृंखला की महत्वपूर्ण शाखाओं को, जैसे कि बुनियादी ढांचा और परिवहन, मजबूत किया जा सके. उन्होंने बताया कि आंशिक रूप से तरल ऑक्सीजन पर कई निजी कंपनियों का एकाधिकार होना भारत में ऑक्सीजन आपूर्ति श्रृंखला के कमजोर होने का कारण है. “जब तक तरल ऑक्सीजन के आपूर्तिकर्ता मांग को पूरा करने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाते हैं तब तक हम उत्पादन को बढ़ाने के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं. यह नियंत्रण में होने वाले कई सारे उत्पादनों में से एक है.” हालांकि, बहुराष्ट्रीय कंपनी के सेल्स हेड के अनुसार, भारत के पास उत्पादन क्षमता है.
उन्होंने बताया, “हमारे पास प्रति दिन 8000 टन ऑक्सीजन का उत्पादन करने की क्षमता है. अकेले हमारी कंपनी अब लगभग 1000 टन का उत्पादन कर रही है.” उन्होंने आपूर्ति श्रृंखला की दूसरी और संभवतः बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हुए कहा, “सभी रोगियों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए न केवल बड़े शहरों में बल्कि छोटे शहरों और गांवों में भी कुछ हद तक बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता होती है. हमें अस्पतालों में टैंकर, सिलेंडर, ऑक्सीजन पाइपलाइन की जरूरत है और इस ऑक्सीजन को सभी शहरों तक ले जाने के लिए हमारे पास पर्याप्त आधारभूत संरचना नहीं है.”
नासिक के एक छोटे ऑक्सीजन निर्माता और आपूर्तिकर्ता ने सहमति व्यक्त की कि बुनियादी ढांचे की कमी सबसे बड़ी बाधा है. कंपनी के निदेशक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “वास्तव में मेरे लिए समस्या ऑक्सीजन नहीं है बल्कि सिलेंडर की कमी है. जब मैं अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन का उत्पादन करता हूं, तो मैं ऑक्सीजन के बजाय सिलेंडर के रूप में अधिक स्टील वितरित करता हूं और इसलिए उन सिलेंडर पर निवेश मुझे उत्पादन बढ़ाने के लिए करना है.” उनके अनुसार, सिलेंडर बनाने का काम उस तेजी से नहीं हुआ है जितनी तेजी से मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन का काम किया जा रहा है.
ऑक्सीजन सिलेंडर को रिसायकल किया जा सकता है और अस्पताल अक्सर उन्हें रिफिल कराते रहते हैं. लेकिन ऑक्सीजन की दैनिक मांग बढ़ने के साथ-साथ अस्पतालों को रिफिल करने के लिए अतिरिक्त सिलिंडर की जरूरत है. नासिक में छोटे निर्माता सिलेंडर में निवेश करने से हिचक रहें है क्योंकि महामारी खत्म होने के बाद इन सिलेंडरों की संख्या अधिक हो जाएगी. उन्होंने कहा, “मुझे इन सिलेंडरों को खरीदकर एक बड़ा निवेश करने से पहले व्यावहारिक रूप से सोचना होगा क्योंकि तीन से चार महीने बाद जब महामारी कम हो जाएगी तब इन निवेशों पर मुझे वापस क्या मिलेगा?”
छोटे पैमाने के डीलरों और रिफिलर्स ने कहा कि केवल बहुराष्ट्रीय कंपनियां ही इस समय ऑक्सीजन की आपूर्ति को सुव्यवस्थित करने के लिए बड़े निवेश कर सकती हैं. नागपुर गैसेस नामक एक छोटे डीलरशिप के निदेशक अमीन धामनी ने कहा, “हम पहले से ही अपनी पूरी क्षमता से काम कर रहे हैं और सभी मांगों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें केवल तरल-ऑक्सीजन निर्माताओं से पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही है.” उन्होंने आगे कहा, “नागपुर में अब 35 से अधिक कोविड-19 अस्पताल हैं. अगर भविष्य में इस तरह के पांच और अस्पताल आते हैं, तो उन्हें चलाने के लिए कोई ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होगी.” अस्पताल में बेड खोजने में विफल रहने के बाद मरीजों ने धामनी जैसे डीलरों से भी सीधे ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने के लिए संपर्क किया है. कुछ ने वेंटिलेटर के लिए भी कहा है. धामनी ने कहा, “आज कम से कम पांच लोगों ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके घर पर एक पूरा वेंटिलेशन स्थापित कर सकता हूं क्योंकि नागपुर के तमाम अस्पतालों ने उन्हें भर्ती नहीं किया.”
सेल्स हेड ने कहा कि जब तरल ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ा तो निर्माता इसे डीलरों को पहुंचाने में सक्षम नहीं है क्योंकि डीलरों के पास पर्याप्त मात्रा में इसे गैस में बदलने के लिए कंप्रेसर नहीं है. थडानी जैसे डॉक्टरों ने ऑक्सीजन सिलेंडर के बैकअप के रूप में अपने कंप्रेरस खरीदने का फैसला किया. थडानी ने कहा, “हमने खुद इस तरह की दो मशीनें किराए पर ली हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी के कारण इसकी कीमत हमें अलग से चुकानी पड़ी.”
ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाली कंपनी के निदेशक ने एक अन्य कारक की ओर इशारा किया जो स्थानीय डीलरों के लिए नुकसानदेह था कि अधिकांश अग्रणी निर्माताओं का बड़े अस्पतालों के साथ अनुबंध है जहां उन्होंने तरल-ऑक्सीजन टैंक स्थापित किए हैं. उन्होंने कहा, “वे अस्पतालों के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को डीलरों की तुलना में प्राथमिकता देते हैं. हमारे लिए उनके प्रति प्रतिबद्धता है ही नहीं, परिणामस्वरूप, डीलरों को उन अस्पतालों को आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही है जिनके साथ उनका अनुबंध है.” ऑक्सीजन की आपूर्ति में तीसरी समस्या का कारण राज्यों की प्रतिक्रिया है. देशव्यापी लॉकडाउन और विभिन्न राज्य स्तरीय लॉकडाउन के कारण उत्पादन क्षमता में साल की शुरूआत में ही कमी आ गई थी.
लॉकडाउन में ढील दी गई है लेकिन सामान्य ऑक्सीजन आपूर्ति मार्गों को बहाल नहीं किया गया क्योंकि प्रत्येक राज्य ने अपनी सीमाओं के भीतर जितनी संभव हो उतनी ऑक्सीजन जमा करने की कोशिश की है. सेल्स हेड ने बताया, “महाराष्ट्र जैसे राज्य हमारे टैंकरों को गुजरात के अस्पतालों में पहुंचाने के लिए राज्य की सीमा को पार करने नहीं देते.” राज्य सरकारों के अंतरराज्यीय ऑक्सीजन परिवहन को बाधित करने वाली रिपोर्ट आने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने 11 सितंबर को एक बयान जारी कर सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि राज्यों के बीच मेडिकल ऑक्सीजन की आवाजाही पर कोई रोक न हो.
ऑक्सीजन सिलेंडर की लागत में बढ़ोतरी वह चौथी समस्या है जिसे पूरे महाराष्ट्र के डॉक्टरों ने उठाया है. आईएमए के नासिक शाखा के अध्यक्ष चंद्रात्रे ने दावा किया कि एक बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर, जिसकी क्षमता लगभग सात हजार लीटर या लगभग सात टन है, की कीमत 150 रुपए प्रति सिलेंडर थी और अब इसकी कीमत 500 रुपए है. थडानी ने कहा कि उन्होंने उसी सिलेंडर के लिए 400 रुपए से 650 रुपके के बीच भुगतान किया.
यह मूल्य वृद्धि तब भी हुई थी जब राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने इनहेल्ड मेडिकल ऑक्सीजन की कीमत तय की, जिसे एक आवश्यक दवा और पदार्थ माना जाता है, जो 17.49 रुपए प्रति घन मीटर यानी 1000 लीटर है. जिसका मतलब 7000 लीटर के लिए लगभग 122 रुपए का भुगतान करना होगा. 18 सितंबर को एनपीपीए ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के दवा नियंत्रकों को मेडिकल ऑक्सीजन की “कमी, कालाबाजारी और जमाखोरी” की खबरों के बारे में पत्र लिखा था. अपने पत्र में एनपीपीए ने राज्यों को “स्थिति पर एक सख्त निगरानी रखने” का निर्देश दिया और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स अधिनियमों के साथ-साथ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कार्रवाई कर कालाबाजारी और जमाखोरी रोकने का निर्देश दिया.
पुणे जिला परिषद के सीईओ आयुष प्रसाद के अनुसार, “ऑक्सीजन को आवश्यक वस्तु की तरह नियंत्रित किया जाता है लेकिन अब बहुत सारे ओवरहेड शुल्क हैं जिनसे कीमत बढ़ रही है.” प्रसाद मरीजों को ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करने वाली समिति के अध्यक्ष भी हैं. बहेती ने बताया कि यदि सरकार बड़े उत्पादकों की दरों को बेहतर तरीके से व्यवस्थित करे तो उनसे नीचे के डीलर और आपूर्तिकर्ता अतिरिक्त बुनियादी ढांचा में निवेश का खर्च वहन कर पाएंगे और इस प्रकार अस्पतालों, डॉक्टरों और मरीजों को बेचे जाने वाले सिलेंडरों की कीमते कम हो जाएंगी.
पांचवी समस्या है मेडिकल ऑक्सीजन सप्लाई चेन में निवेश करने में टालमटोल. यह इसलिए है कि कोविड-19 से पहले तक आपूर्तिकर्ता अपने माल या ऑक्सीजन का बढ़ा हिस्सा उद्योग को भेज रहे थे लेकिन मार्च से महाराष्ट्र सरकार ने अधिकांश ऑक्सीजन अस्पतालों को भेजने का निर्देश दिया है. राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 11 सितंबर को कहा था कि राज्य 80 प्रतिशत ऑक्सीजन चिकित्सीय प्रयोग के लिए आरक्षित रखेगा.
प्रसाद के अनुसार, “लॉकडाउन की वजह से उद्योग धंधे बंद थे इसलिए अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति संभव हो सकी.” धामनी ने बताया कि इस बदलाव की कीमत उत्पादकों को, डीलरों को उठानी पड़ी है. हम एक कंपनी में 100 सिलेंडर भेज देते थे और अब हम अपने उन्हीं संसाधनों का इस्तेमाल एक अस्पताल में 10 सिलेंडर भेजने के लिए कर रहे हैं. इससे ढुलाई का खर्च बढ़ गया है.
विकास प्रतिहस्त ने बताया कि हमारे कारोबार को घाटा हुआ है क्योंकि हम उद्योगों में ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं. विकास तृप्ति गैसेस के सेल्स मैनेजर हैं जो मुंबई और नवी मुंबई इलाके में ऑक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति करती है. उन्होंने आगे कहा, “आज मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत है और हमारा ज्यादातर उत्पाद मेडिकल के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा है और इसके लिए हमें यातायात और बुनियादी ढांचे पर निवेश करना पड़ा है जिससे हमारी लागत बढ़ गई है.
प्रसाद ने माना कि महाराष्ट्र में ऑक्सीजन संसाधनों की कमी है लेकिन उन्होंने जोर दिया कि सरकार ने कई कदम उठाए हैं ताकि भविष्य में सप्लाई बाधित न हो सके. उन्होंने कहा, “ऑक्सीजन को मेडिकल इस्तेमाल के लिए निर्देशित करने के अलावा हम लोग लगातार भारत भर में उत्पादकों और डीलरों से संपर्क बनाए हुए हैं. हम लोगों ने सप्लाई चेन और मांग की पहचान कर ली है और हमारे आपूर्तिकर्ता ने सुनिश्चित किया है कि भविष्य में मांगे पूरी होती रहेंगी.
उन्होंने यह भी कहा कि ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी के बावजूद अस्पताल में भर्ती हर मरीज के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध है. एक भी बेड ऐसा नहीं है जिसके लिए ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं हो रही है. एक वक्त था जब हम संकट के काफी करीब थे लेकिन हम हर बार संकट से निपट पाए और अब तो स्थिति सुधर रही है. मैं पूरे महाराष्ट्र की स्थिति तो नहीं बता सकता लेकिन आपको आश्वासन दे सकता हूं कि कम से कम पुणे और आसपास के जिलों में कोई समस्या नहीं है.
प्रसाद के दावे के विपरीत, चंद्रात्रे ने कहा कि हम लोग अब और मरीजों को भर्ती नहीं सकते क्योंकि हम अपनी पूर्ण क्षमता पर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य में उनके साथी भर्ती मरीजों के उपचार में आ रही कठिनाइयों के बारे में बता रहे हैं. उन्होंने कहा, “अब लड़ाई ऑक्सीजन के लिए होगी और जब तक सरकार सप्लाई चेन को जारी रखने के लिए हस्तक्षेप नहीं करती तब तक मुझे नहीं पता कि हम कैसे काम चलाएंगे.”
अनुवाद : अंकिता