दिल्ली गोल्फ क्लब के 66 कर्मचारियों ने अवैध बर्खास्तगी के खिलाफ अदालत में डाली अर्जी

मई 2020 में दिल्ली गोल्फ क्लब ने 66 कर्मचारियों की सेवाओं को समाप्त कर दिया गया. कर्मचारियों ने अपनी नौकरी वापस पाने के लिए कई प्रयास किए हैं. उन्होंने कई अधिकारियों को उनकी बर्खास्तगी की अवैधताओं के बारे में लिखा है और नियमित रूप से क्लब के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. उत्कर्ष/कारवां
22 August, 2020

13 अगस्त को दिल्ली गोल्फ क्लब के करीब 35 पूर्व कर्मचारियों ने, जिनकी सेवा दो महीने पहले समाप्त कर गई थी, क्लब परिसर के बाहर आंदोलन किया और अपनी बहाली की मांग की. निकाले गए कुल 66 कर्मचारी हैं और ये मध्य दिल्ली में स्थित इस पॉश क्लब के खाद्य और पेय विभाग में कार्यरत थे. कर्मचारियों ने मुझे बताया कि उनमें से कई 30-40 वर्षों से क्लब में काम कर रहे थे लेकिन उन्हें केवल तीन दिन का नोटिस देकर काम से निकाल दिया गया. उन्होंने अपनी नौकरी वापस पाने के लिए कई प्रयास किए हैं. उन्होंने कई अधिकारियों को गैरकानूनी तरीके से सेवा समाप्त कर देने के बारे में लिखा और नियमित रूप से क्लब के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

क्लब की जनरल कमेटी ने 24 अप्रैल को खाद्य और पेय विभाग को बंद करने और अपने कर्मचारियों को बर्खास्त करने का फैसला किया था लेकिन कर्मचारियों 28 मई को इसकी सूचना दी गई. क्लब ने नोवेल कोरोनावायरस महामारी के कारण होने वाले राजस्व घाटे और कर्मचारियों को दिए जा रहे ऊंचे वेतन का हवाला देकर कर्मचारियों को बर्खास्त किया था. नौकरी से हटा दिए गए सीनियर वेटर इंतकाब अली ने मुझे बताया, "उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया था कि हमारा अनुबंध समाप्त हो जाएगा."

कर्मचारियों ने मुझे बताया कि उनका अनुबंध 31 मार्च को समाप्त हो गया था लेकिन क्लब का प्रबंधन उनके रोजगार के नियमों और शर्तों पर बातचीत कर हर तीन से पांच सालों में अनुबंधों को नवीनीकृत कर देता था. कर्मचारियों ने मुझे बताया कि इस वर्ष वार्ता के दौरान उन्होंने वित्तीय घाटे के प्रकाश में 2014 के बाद से प्राप्त लाभ को पेश करने की पेशकश की थी. इसके अलावा, दिल्ली गोल्फ क्लब कर्मचारी संघ के अध्यक्ष राम पाल ने मुझे बताया कि कर्मचारियों ने 31 मई तक क्लब में काम किया.

बर्खास्तगी के आदेश के बाद से, दिल्ली गोल्फ क्लब कर्मचारी संघ ने कई अधिकारियों को यह कहते हुए लिखा है कि क्लब के छंटनी प्रक्रिया में कई अवैधताएं देखी गईं हैं और ऐसा करते हुए औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 और आपदा प्रबंधन अधिनियम के कई प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है. कर्मचारियों ने केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार के श्रम आयुक्त और यहां तक कि दिल्ली उच्च न्यायालय में दो याचिकाएं दायर कीं. गोल्फ क्लब के अध्यक्ष आरएस बेदी ने आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि अब खाद्य और पेय विभाग को आउटसोर्स किया जा रहा है. जब मैं नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों से बात कर रही थी तो उन लोगों ने विश्वासघात और असहायता की भावना व्यक्त की. 53 वर्षीय जमील हुसेन ने कहा, "17 साल पहले जब मैं यहां नौकरी में लगा था तो मेरा वेतन 650 रुपए था. जिन लोगों के पास 8-10 लाख रुपए हैं, वे अभी भी वहां काम कर रहे हैं. वे अभी भी वहां क्यों हैं और हमें क्यों बाहर निकाल दिया गया? "

ऐतिहासिक दिल्ली गोल्फ क्लब राजधानी का कुलीन क्लब है. यह जाकिर हुसैन रोड पर 179 एकड़ भूमि पर फैला है. यह जमीन 1950 के दशक के आरंभ में केंद्र सरकार ने क्लब को लीज पर दी थी. भले ही जमीन की कीमत 65000 करोड़ रुपए से अधिक हो लेकिन उच्च न्यायालय दायर में कर्मचारियों की एक याचिका के अनुसार, क्लब प्रत्येक महीने केंद्र सरकार को केवल 16620 रुपए प्रति एकड़ टोकन लाइसेंस शुल्क का भुगतान करता है. शहरी विकास मंत्रालय ने अपने तीन अधिकारियों को क्लब की सामान्य समिति के सदस्यों के रूप में नामित किया है. क्लब आवेदन और सदस्यता शुल्क लेता है. इसके अलावा, सदस्यता के लिए चुने गए आवेदकों के लिए प्रवेश शुल्क 3.5 लाख रुपए से लेकर 15 लाख रुपए तक है.

कंपनी अधिनियम (2013) की धारा 8 के तहत क्लब पंजीकृत है. इसका अर्थ है कि यह क्लब एक कंपनी है और इसका उद्देश्य वाणिज्य, कला, विज्ञान, खेल, शिक्षा, अनुसंधान, सामाजिक कल्याण, धर्म, दान या पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है. धारा 8 के अनुसार पंजीकृत कंपनियां अपने मुनाफे का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जाना है जिसके लिए उनका प्रचार किया जाता है. क्लब आयकर अधिनियम, 1961 के 12 ए के तहत पंजीकृत है, जो इसे आयकर का भुगतान करने से भी छूट देता है.

31 मार्च 2019 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय में जमा किए कंपनी के दस्तावेजों के अनुसार, 5,165 सदस्यीय क्लब का घरेलू करोबार 2017-18 में 29.64 करोड़ रुपए से बढ़कर 33.39 करोड़ रुपए हो गया. क्लब का कुल राजस्व 4.5 करोड़ रुपए था और कुल आय 2018-2019 में लगभग 4.2 करोड़ रुपए थी. द हिंदू की नवंबर 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल इस क्लब ने करोड़ों की लागत वाली एक नई कंपनी बनाई. उस कंपनी की कीमत 9 करोड़ रुपए है.

क्लब ने 2018-2019 में 10.4 करोड़ रुपए का नुकसान दिखाया है. बेदी के अनुसार, क्लब का घाटा पांच साल से बढ़ता जा रहा था और नोवेल कोरोनवायरस के कारण बिल्कुल कमाई नहीं हो रही है. उन्होंने कहा कि उन्होंने कर्मचारियों से कहा था कि उन्हें अपने वेतन अनुबंध को संशोधित करना होगा और बातचीत करनी होगी. उन्होंने बताया कि "सिर्फ खाद्य और पेय पदार्थों के भुगतान के मामले में 5.5 से 6 करोड़ रुपए प्रति वर्ष के दायरे में आता हैं और फिर नुकसान भी है. मैंने उनसे निवेदन किया, 'यदि यह कारगर नहीं होता है, तो हमें इस विभाग को बंद करना होगा.'”

कर्मचारियों ने इस बात से इनकार किया कि उन्हें प्रबंधन की ओर से ऐसी कोई चेतावनी दी गई थी.

बेदी ने पुष्टि की कि सामान्य समिति ने 24 अप्रैल को खाद्य और पेय विभाग को बंद करने का निर्णय लिया गया था लेकिन एक महीने के लिए समाप्ति आदेश जारी नहीं किया गया. "स्थिति बेहतर हो इस उम्मीद में हमने इसे लागू नहीं किया. हमने कहा कि शायद इससे कर्मचारियों के साथ जारी बातचीत किसी बिंदु पर पहुंचेगी और इसे बंद नहीं करना पड़ेगा." 25 मई को जनरल बॉडी की अगली बैठक आयोजित की गई थी जिसमें कर्मचारियों की जिद्द के कारण खाद्य और पेय विभाग को बंद करने के अपने निर्णय को दोहराया.

लेकिन मई में प्रबंधन को भेजे गए दो पत्र, जिनमें से एक को याचिका में संलग्न किया गया था, अलग बात बताते हैं. क्लब के संकटों पर ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों ने क्लब से प्राप्त होने वाली कुछ सुविधाओं को छोड़ने की पेशकश की थी. 13 मई को लिखे पत्र में, क्लब के अध्यक्ष संजीव तलवार को संबोधित करते हुए कर्मचारियों ने लिखा कि उनके मकान-किराए के भत्ते को पांच वर्षों के लिए मूल वेतन के 20 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत किया जाए. उन्होंने कहा कि उनका सकल वेतन - जो 2014 में तय किया गया था - 2025 तक जैसा का तैसा रखा जाए.

25 मई को लिखे दूसरे पत्र को क्लब के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनिल कुमार रतन को संबोधित किया गया था, जो कर्मचारियों द्वारा क्लब के कप्तान बेदी और रोहित सब्बरवाल के साथ मुलाकात के संदर्भ में था. पत्र में उपरोक्त के साथ कुछेक नई सुविधाओं की सूची थी जिन्हें कर्मचारी छोड़ने के लिए तैयार थे, मसलन छुट्टी-यात्रा रियायत(एलटीसी), होली बोनस, अवकाश नकदीकरण. पत्र में आगे कहा गया था कि उनके चिकित्सा भत्ते में पांच साल के लिए कटौती की जा सकती है. हालांकि, कर्मचारियों ने अनुरोध किया है कि जिन कर्मचारियों का वेतन कम है, उन्हें पांच प्रतिशत वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाए.

निकाले गए कर्मचारियों रवि पांडे ने मुझे बताया कि कर्मचारी अपनी नौकरियों को बनाए रखने के लिए वेतन कटौती पर बातचीत करने के लिए तैयार थे लेकिन "वे हमसे बात करने के लिए तैयार नहीं थे. उनका इरादा हमें नौकरी से निकालने का था."

28 मई को कर्मचारियों को पता चला कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है. कुछ ने मुझे बताया कि उन्हें यह भी आदेश नहीं मिला कि उनकी सेवाओं को समाप्त किया जा रहा है और सेवानिवृत्ति की राशि को उनके खातों में स्थानांतरित कर दिया गया. सेवानिवृत कर्मचारियों में से एक अली ने बताया कि वह 19 सालों से क्लब में काम कर रहे हैं और 2007 में क्लब के स्थायी कर्मचारी हो गए थे. "मैंने अपनी ड्यूटी पूरी की और घर आया," उन्होंने 28 मई की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा. “मुझे फोन पर मेसेज आया कि कुछ राशि क्लब द्वारा मेरे बैंक खाते में जमा कर दी गई है. दो दिनों के भीतर उन्होंने हमें सभी जिम्मेदारियों से हटा दिया और उसके बाद हमें क्लब में प्रवेश नहीं करने दिया. ”

अली ने मुझे बताया कि प्रबंधन ने कर्मचारियों के साथ सेवानिवृत्ति मुआवजे पर चर्चा नहीं की. उन्होंने कहा, "हममें से किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि उन्होंने हमारे बैंक खातों में जमा की गई राशि की गणना कैसे की है. हम सभी ने नियमित रूप से काम किया और अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूरा किया है," अली ने कहा. "यह बिना किसी बजह के ​किया गया है."

तीन दिन के नोटिस पीरियड पर कर्मचारियों को बर्खास्त करना, कई कानूनी विसंगतियों में से एक था, जिन्हें कर्मचारी संघ ने उच्च न्यायालय में दाखिल अपनी याचिकाओं में इंगित किया था. कर्मचारियों की समाप्ति का मुद्दा उद्योग विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25 के दायरे में आता है. कर्मचारी संघ ने अपनी एक याचिका में लिखा है कि क्लब ने उद्योग विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 25 एन का उल्लंघन किया है, जिसमें कहा गया है कि काम करने वालों की तब तक छंटनी नहीं की जा सकती, जब तक कि उन्हें छंटनी के कारणों के बारे में बताते हुए लिखित में तीन महीने का नोटिस नहीं दिया जाता.

कर्मचारी संघ का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील सुनीता भारद्वाज ने कहा कि खाद्य और पेय विभाग को बंद करने से पहले क्लब सरकार से अपेक्षित अनुमति लेने में विफल रहा. अधिनियम की धारा 25 एफएफए के अनुसार, एक नियोक्ता जो एक उपक्रम को बंद करने का इरादा रखता है, उसे उचित सरकारी प्राधिकरण को एक नोटिस देना होगा, जिसमें बंद करने से कम से कम 60 दिन पहले बंद करने के कारण बताए गए हों. भारद्वाज ने मुझे बताया, "उन्होंने इस समय ऐसा नहीं दिया." याचिका के अनुसार, कर्मचारियों को बर्खास्त करने से सिर्फ पांच दिन पहले 26 मई को अपने खाद्य और पेय विभाग को बंद करने और कर्मचारियों की छंटनी करने की अनुमति के लिए क्लब ने श्रम सचिव-सह-आयुक्त पीके गुप्ता को एक पत्र भेजा था. "आप इस तरह से स्थायी कर्मचारियों को बाहर नहीं निकाल सकते," भारद्वाज ने कहा. "कानूनी स्थिति यह है कि यदि आपको सरकार से सेवानिवृत्ति की अनुमति नहीं मिली है, तो कर्मचारी ड्यूटी रह सकते हैं."

कर्मचारियों के संघ ने इसके अध्यादेश के बारे में संयुक्त श्रम आयुक्त के कार्यालयों में भी कई शिकायतें दर्ज कीं. कार्यालय के दक्षिणी दिल्ली जिला डिवीजन में सुलह अधिकारी वीके राव ने 23 जून को उसी के संबंध में एक सुलह सुनवाई की. राव ने कहा कि क्लब को कुछ प्रश्न भेजे गए थे जिनका वह जवाब देने में असफल रहा. इन सवालों में एक यह भी है कि क्या खाद्य और पेय विभाग को फिर से खोलने पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एच और 25 पी के तहत दुबारा नौकरी पर रखा जाएगा. अधिनियम की धारा 25 एच में कहा गया है कि छंटनी की कवायद के बाद, यदि "नियोक्ता अपने किसी भी व्यक्ति को नियोजित करने का प्रस्ताव रखता है ... तो पुन: रोजगार के लिए खुद को पेश करने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारी को अन्य व्यक्तियों पर वरीयता होगी." राव ने उत्तरदाताओं को इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा.

लेकिन क्लब के प्रतिनिधि 25 जून और 2 जुलाई को आयोजित होने वाली अगली सुनवाई के लिए श्रम अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहे. राव ने क्लब को एक और नोटिस भेजा, जिसमें कहा गया था कि अगर नियोक्ता सुनवाई के लिए उपस्थित नहीं होता है, तो यह माना जाएगा कि क्लब ने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लिया है. कर्मचारियों ने अपनी याचिका में उल्लेख किया कि नई दिल्ली जिले के संयुक्त श्रम आयुक्त गुरमुख सिंह ने शिकायत को दक्षिणी दिल्ली से नई दिल्ली जिले में स्थानांतरित कर दिया और नियोक्ता को व्यक्तिगत रूप से प्रकट नहीं होने दिया. यह आरोप लगाया गया कि सिंह ने "अवैध रूप से अभियोजन कार्यवाही को अभियोग कार्यवाही में परिवर्तित करने की कोशिश की, उनकी आपस में मिलीभगत है और वह षड्यंत्र में नियोक्ता के साथ है."

कर्मचारियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में से एक में, श्रम कानूनों के विभिन्न प्रावधानों के उल्लंघन के लिए क्लब के खिलाफ मुकदमा चलाने में दिल्ली सरकार की विफलता को इंगित किया. इसमें लिखा है कि दिल्ली सरकार के प्राधिकारियों- गुप्ता, गुरमुख सिंह, विशेष श्रम आयुक्त केएस मीणा और अतिरिक्त श्रम आयुक्त राजेन्द्र धर यूनियनों की शिकायत को महानगरीय मजिस्ट्रेट के पास भेजने में विफल रहे हैं जो औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत अपेक्षित प्रक्रिया है. कर्मचारी संघ ने कहा कि दक्षिण दिल्ली जिले के संयुक्त श्रम आयुक्त के कार्यालय ने शिकायत राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को भेज दी थी, जिसने कोई कार्रवाई नहीं की.

कर्मचारी संघ के अनुसार, हाई-प्रोफाइल क्लब ने महामारी के आलोक में केंद्र सरकार द्वारा जारी कई सलाहों की अवहेलना की. इसमें श्रम और रोजगार मंत्रालय के 20 मार्च के दिशानिर्देश भी शामिल है, जिसमें सार्वजनिक और निजी प्रतिष्ठानों से अनुबंधित कर्मचारियों को बर्खास्त नहीं करने या उनकी अनुपस्थिति के कारण उनके वेतन में कटौती नहीं करने के लिए कहा गया था. 1 जून को गृह मंत्रालय को लिखे एक पत्र में, कर्मचारी संघ ने लिखा था कि जिस क्लब में शहरी मामलों के मंत्रालय से निदेशक नामित होते हैं - उसने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की अप्रैल और मई  महीने की तनख्वाह देने से इनकार कर दिया था. पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने नोवेल कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए देश भर में तालाबंदी के दौरान आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया था, जिसमें वेतन में कटौती और सेवाओं को समाप्त करने पर रोक लगाना शामिल था.

इसने अपनी याचिकाओं में दो और आरोप लगाए. राव को दी एक अन्य शिकायत में, कर्मचारी संघ ने आरोप लगाया कि क्लब के पास बिक्री के लिए भोजन बनाने और संसोधित करने का लाइसेंस नहीं है, जो कि नियोक्ता अधिनियम, 1948 के अनुसार बीस या अधिक श्रमिकों वाले नियोक्ता के लिए अनिवार्य है. कर्मचारी यूनियन ने आगे अदालत को बताया कि उन्हें जुलाई 2017 से अपना कर्मचारी भविष्य निधि नहीं दिया गया था. क्लब ने भुगतान पर चूक से इनकार किया और अदालत को बताया कि "ईपीएफओ प्रणाली में तकनीकी गड़बड़ी के कारण कर्मचारियों के खाते में ईपीएफ नहीं दिख रहा था.” ईपीएफओ के केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त राहुल मेहरा ने अदालत को बताया कि अगर क्लब दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ आवश्यक कार्यवाही की जाएगी.

बेदी ने इन आरोपों से भी इनकार किया. उन्होंने कहा कि क्लब ने कर्मचारियों का भुगतान करने के लिए दिल्ली दुकान और स्थापना अधिनियम, 1954 के तहत सभी प्रक्रियाओं का पालन किया. यह दावा करने से पहले कि उन्होंने कर्मचारियों को कुल 11 करोड़ का भुगतान किया था उन्होंने कहा, "एक्ट के अनुसार, एक महीने के नोटिस के बदले, हमने उन्हें एक महीने का अतिरिक्त वेतन दिया. हमने उन्हें अप्रैल और मई के महीने के लिए पूरा भुगतान किया. हमने कोई कानून नहीं बदला है.” भारद्वाज ने इसे विवादास्पद बताया. "दिल्ली दुकान और स्थापना अधिनियम की दलील का कोई फायदा नहीं है," उन्होंने कहा. "उक्त अधिनियम औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947, कारखाना अधिनियम, 1948 या अनुबंध श्रम (विनियमन और उन्मूलन अधिनियम, 1970) की प्रयोज्यता और आवश्यकताओं को खारिज नहीं कर सकता है."

कर्मचारी संघ ने कई अधिकारियों के पास अपनी शिकायतें की, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल, और दिल्ली सरकार का श्रम विभाग भी शामिल है. मैंने क्लब के खिलाफ आरोपों के बारे में शहरी विकास मंत्रालय से सामान्य समिति में सरकार द्वारा नामित अमित कटारिया, डी थारा और दुर्गाशंकर मिश्रा को ईमेल भेजा. यदि वे जवाब देते हैं तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

कर्मचारी संघ द्वारा दायर याचिकाएं प्रबंधन के इस तर्क का भी खंडन प्रदान करती हैं कि कर्मचारियों को इसलिए बर्खास्त करना पड़ा क्योंकि खाद्य और पेय विभाग को बंद करना पड़ा. संलग्न किए गए दस्तावेजों में एक निविदा सूचना है जिसमें क्लब ने अखबार के जरिए "क्लब के सभी विभागों के लिए समग्र भोजन और पेय सेवाएं चलाने" हेतु "रुचि रखने वालों को" 10 जून तक आवेदन करने को कहा है.

याचिका के अनुसार, प्रबंधन ने तब से हाउसकीपिंग, कैफेटेरिया और कैंटीन प्रबंधन सेवाएं प्रदाता वीकेएस सर्विसेज के साथ क्लब के अंदर एक फूड काउंटर खोलने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. पाल और भारद्वाज ने मुझे बताया कि क्लब ने अपने भोजन और पेय पदार्थों की सेवाएं चलाने के लिए लाइट बाइट फूड्स के साथ एक अनुबंध किया है. इसके अलावा, कई कर्मचारियों ने कहा कि लाइट बाइट ने उनसे क्लब में काम करने के लिए संपर्क किया है.

बोर्ड में नए ठेकेदारों को लेने के बारे में पूछे जाने पर, बेदी ने कहा कि यह कदम "कानूनी दायरे के भीतर उठाया गया है." उन्होंने कहा कि विभाग को "घाटे में चल रहे होने के बजाय लाभ कमाने वाली चीज" बनने के लिए आउटसोर्स किया जा रहा था. बेदी ने कहा कि क्लब इसके लिए किसी को भुगतान नहीं कर रहा है. "कोई इसे हमारे लिए चला रहा है और वह हमें कमीशन का एक निश्चित हिस्सा देगा," उन्होंने कहा. "हम पैसा कमा रहे हैं और हमारी देनदारी शून्य है." लेकिन भारद्वाज ने आरोप लगाया कि क्लब के पास खाद्य और पेय विभाग में एक ठेकेदार के रूप में वीकेएस या लाइट बाइट को संलग्न करने के लिए वैध लाइसेंस नहीं है.

कर्मचारियों के साथ अपनी बातचीत में, प्रबंधन ने अक्सर कहा कि विभाग के कर्मचारियों द्वारा सुझाई गई उच्च मजदूरी ने उनके अनुबंधों को नवीनीकृत करना अनिश्चित बना दिया था. बेदी ने मुझे यही बताया. "दुर्भाग्य से, क्लब ने 2014 में एक निश्चित वेतन समझौता किया था, जिसके कारण आज हम इन सभी समस्याओं का सामना कर रहे हैं," उन्होंने कहा. उनके अनुसार, 2014 के वेतन समझौते से वित्तीय संकट पैदा हो गया, जिसके कारण उनकी बर्खास्तगी हुई. "मुझे लगता है कि तत्कालीन प्रबंधन की ओर से आवेदन की कमी थी." लेकिन कर्मचारियों ने बताया कि प्रबंधन को अपनी विफलताओं की जिम्मेदारी लेने की जरूरत है.

क्लब के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, रतन ने 28 मई को अली को एक पत्र लिखा, जिसमें छंटनी का उल्लेख किया गया था. इसमें, उन्होंने कहा कि क्लब कुछ कर्मचारियों को प्रति माह लगभग 60000 से 100000 रुपए का भुगतान कर रहा है. विभाग की निरंतरता व्यवहार्य नहीं है क्योंकि "मौजूदा लागत रुझानों में लागत (लगभग) 17.40 करोड़ रुपए होगी जबकि क्लब में हमारी एफएंडबी सेवाओं से राजस्व प्राप्ति 12.12 करोड़ रुपए है." हालांकि कुछ कर्मचारी जो दशकों से क्लब में काम करते हैं, उनकी मजदूरी ज्यादा है, अली, जो एक वरिष्ठ वेटर हैं और जिन्होंने 2007 के बाद से हर वेतन बढ़ोतरी प्राप्त की थी, ने कहा कि क्लब ने उन्हें केवल 31000 रुपए प्रति माह वेतन देता था.

अली ने बताया, "खाद्य और पेय विभाग प्रबंधन द्वारा चलाया जाता है. सभी नीतियां और दिन-प्रतिदिन के कामकाज प्रबंधन द्वारा तय किए जाते हैं. हम केवल खाना बनाते और परोसते हैं. यदि वे कहते हैं कि क्लब घाटे में चल रहा है, तो इसके लिए हमें को सजा दी जाए? हमने वह फैसले नहीं लिए हैं.”

याचिका के अनुसार, खाद्य और पेय विभाग के अध्यक्ष केएस जौहर और क्लब की सामान्य समिति के एक सदस्य ने यह भी सुझाव दिया कि प्रबंधन की विफलताओं के कारण छंटनी हुई थी. याचिका में संलग्न एक ईमेल में, जौहर ने लिखा कि अन्य सदस्यों की सलाह के बिना खाद्य और पेय विभाग में वरिष्ठ पदों पर दो नियुक्तियां की गईं. उन्होंने लिखा, "उनके काम का एफएंडबी से कोई लेना-देना नहीं था, इसलिए सदस्यों पर 50 लाख रुपए का बोझ पड़ गया."

इसके अलावा, संलग्न दस्तावेज के अनुसार, जौहर ने लिखा कि उन्हें विभाग को बंद करने की योजना के बारे में सूचित नहीं किया गया था. 24 अप्रैल की सामान्य समिति की बैठक के दौरान- जिसमें विभाग को बंद करने का निर्णय लिया गया था- खाद्य और पेय विभाग को आउटसोर्स करने पर इसे एजेंडे पर सूचीबद्ध किए बिना और बिना पूर्व सूचना के चर्चा की गई थी, जोहर ने लिखा. संलग्न दस्तावेज़ के अनुसार, उन्होंने लिखा कि जब ड्राफ्ट मिनट आए, तो उन्होंने विभाग को बंद करने और अपने कर्मचारियों की छंटनी का निर्णय देखा और अपनी असहमति दर्ज कराई. उन्होंने उल्लेख किया कि वह अपने पद से इस्तीफा दे रहे थे. बेदी ने इसका खंडन किया और कहा कि बैठक में बहुमत ने विभाग को बंद करने पर सहमति व्यक्त की. उन्होंने आगे कहा कि जौहर कमेटी द्वारा लिए गए निर्णय से सहमत थे.

कर्मचारी संघ ने लगातार इस दावे पर भरोसा नहीं किया कि क्लब के पास उन्हें काम पर रखने का कोई रास्ता नहीं था. दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी याचिका के अनुसार, क्लब के शेयरधारकों और सदस्यों ने "उक्त क्लब के कर्मचारियों को वेतन/अन्य लाभों के खिलाफ किसी भी आकस्मिकता को पूरा करने के लिए" 66 करोड़ रुपए का एक फंड बनाया है. पिछले साल दुबारा डिजाइनिंग पर कई करोड़ खर्च किए जाने पर टिप्पणी करते हुए, पांडे ने कहा, "यदि क्लब घाटे में चल रहा है तो वे इतना खर्च कैसे कर रहे हैं?"

कर्मचारी संघ के अनुसार, क्लब में परोसे जाने वाले भोजन की भारी सब्सिडी की वजह से नुकसान होता है. अली ने मुझे बताया, "यह मुफ्त में खिलाने जैसा है. हम सभी स्वच्छता मानकों को बनाए हुए हैं और अनुभवी रसोइए इसे बना रहे हैं लेकिन ढाबे से भी कम शुल्क वसूल रहे हैं. वे बाजार दर पर कीमतें तय क्यों नहीं करते और फिर देखते हैं कि नुकसान होता है कि फायदा?" अली ने कहा कि क्लब में लगभग 10-10 रुपए में चाय और समोसा मिलता है. उन्होंने कहा, “एक थाली की कीमत 1400 रुपए होती है लेकिन जब कैप्टन पार्टी का आयोजन करते हैं तो उसे आधी दर पर दिया जाता है.” काम से हटाए गए कर्मचारियों के अनुसार, इस छूट को खाद्य और पेय विभाग के नुकसान के रूप में दिखाया गया है. अप्रैल 2019 में क्लब ने सदस्यों, पति/पत्नी और वरिष्ठ आश्रितों से कैप्टन डे (जिसमें एक भव्य रात्रिभोज भी शामिल था) के लिए 550 रुपए और प्रत्येक पेय के लिए 10 रुपए का शुल्क वसूला.

बेदी ने 66 करोड़ रुपए की किसी भी आकस्मिक निधि के होने से इनकार किया. मूल्य निर्धारण के बारे में एक सवाल के जवाब में, उन्होंने सुझाव दिया कि कर्मचारियों को अधिक वेतन देने के लिए सदस्यों को अधिक भुगतान करने के लिए नहीं कहा जा सकता. उन्होंने कहा, "यह सब्सिडी नहीं है. हमें मजदूरी का ध्यान रखना होता है. जब मजदूरी अधिक होती है तो आप अपने सदस्यों के लिए भोजन की कीमत में वृद्धि नहीं कर सकते. लागत 2.5 गुना नहीं बढ़ सकती. इसलिए क्लब को सदस्यों के लिए सस्ता होना होता है. वेतन की वजह से नुकसान होगा.”

अली और पांडे ने मुझे बताया कि नौकरी से निकाले गए ज्यादातर कर्मचारी उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के हैं और यहां किराए पर रहते हैं. अली ने कहा, ''मेरी बेटियां दसवीं और ग्यारहवीं में पढ़ती हैं.” अली ने बताया कि निकाले गए सभी कर्मचारी अपने-अपने परिवारों में एकमात्र कमाने वाले सदस्य हैं. "हम में से ज्यादातर के परिवार घर में हैं जो हमारे भेजे पैसों पर आश्रित हैं." पांडे ने कहा कि क्लब ने "हम सभी के परिवारों को सड़कों पर ला दिया है."

संघ के अध्यक्ष पाल ने मुझे बताया कि निकाले गए कर्मचारियों में से किसी की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह नई नौकरी खोज पाए. क्लब में बारमैन रहे पाल ने कहा कि उन्होंने 29 साल क्लब में नौकरी की थी. पाल ने कहा, "ऐसा लगता है कि इस साल होटल उद्योग में नई नौकरियां नहीं खुलेंगी. मैं 49 साल का हूं. अब इस उम्र में मुझे नौकरी कौन देगा?”