25 दिसंबर की शाम दिल्ली हिंसा के लगभग दस पीड़ितों ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जो पिछले दिन उनके अधिवक्ता महमूद प्राचा के कार्यालय पर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के छापे के बाद हुई थी. इस साल फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली हिंसा में सामने आए हिंसा के कई मामलों में प्राचा बचाव पक्ष के वकील हैं. प्राचा के अनुसार, जिन मामलों को वह देख रहे हैं वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कैडर, दिल्ली पुलिस और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की फरवरी की हिंसा में मिलीभगत को दर्शाते हैं. प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीड़ितों ने बताया कि कैसे पुलिस उन पर अपने मामले वापस लेने या फिर अपना वकील बदलने और यह बयान देने के लिए दबाव बना रही थी कि प्राचा ने उनसे झूठी शिकायतें दर्ज कराई हैं. पीड़ितों और प्राचा के मुवक्किलों में से एक, साहिल परवेज ने कहा कि स्पेशल सेल का छापा, "सिर्फ हम पर दबाव बनाने के लिए था ताकि हम पीछे हट जाएं."
24 दिसंबर को दोपहर, करीब बीस से ज्यादा पुलिस अधिकारी दिल्ली के निजामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में स्थित प्राचा के कार्यालय में पहुंचे और अगले दिन लगभग 2.45 बजे वहां से गए. 25 दिसंबर को सुबह-सुबह मीडिया से इस छापे के बारे में बात करते हुए प्राचा ने कहा कि अधिकारियों ने उनका कंप्यूटर जब्त करना चाहा और उनसे हाथापाई भी की. "मैं उन्हें अपना कंप्यूटर नहीं देना चाहता था क्योंकि इसमें ढेर सारे वीडियो और अन्य सबूत हैं," उन्होंने कहा. प्राचा ने कहा कि पुलिस का यह छापा इन मामलों पर आगे कार्रवाई को रोकने की कोशिश थी.
प्राचा ने कहा कि उनके कई मुवक्किलों को सिर्फ इसलिए धमकाया गया क्योंकि वे उनका मामला देख रहे थे. उन्होंने प्रेस को बताया कि वह "ऐसे दर्जनों लोगों का उदाहरण दे सकते हैं, जिन्हें झूठा फंसाया गया है क्योंकि वे मेरे पास आए और पुलिस के खिलाफ, आरएसएस के सदस्यों के खिलाफ मामले दर्ज करने की कोशिश की." उनके मुताबिक, पुलिस ने उनके मुवक्किलों को धमकी दी कि "या तो इस मामले से प्राचा को हटाओ या हम तुम्हें मार देंगे, तुम्हें झूठे मामलों में फंसा देंगे." प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने वाले दंगा पीड़ितों ने पुलिस के खिलाफ इन आरोपों की तस्दीक की. यह सम्मेलन शाम 4 बजे आयोजित किया गया था, लेकिन इसमें मीडिया की मौजूदगी कम रही.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में जिस ने बात रखी उसने बारीकी से बताया कि कैसे पुलिस ने उन्हें थका दिया और दिल्ली हिंसा के बारे में उनकी शिकायतों की जांच करने से इनकार कर दिया. वक्ताओं में खुर्शीद सैफी और फिरोज अख्तर भी शामिल थे, जो फरवरी की हिंसा के दौरान पूर्वोत्तर दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके के बृजपुरी इलाके में फारूकिया मस्जिद पर हिंदू दंगाइयों और सुरक्षाकर्मियों के हमले से बच गए थे. 25 नवंबर को कारवां ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली पुलिस ने हमले के बारे में शिकायतों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए अभी क्या किया है. सैफी और अख्तर ने अपनी शिकायत में दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाए हैं और दंगाइयों को नामजद किया है. लेकिन सांप्रदायिक हमले में दर्ज एकमात्र एफआईआर में उनकी शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया गया.
कॉन्फ्रेंस में सैफी और अख्तर ने बताया कि पुलिस ने उन्हें एफआईआर को बदलने के लिए धमकाया ताकि प्राचा को गलत तरीके से फंसाया जा सके. सैफी ने कहा कि जब पुलिस उनकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया, तब वे प्राचा से मिले. उन्होंने कहा कि उन्होंने हथियारबंद भीड़ में शामिल तीन लोगों की पहचान नाम से की थी. "पुलिस ने मुझ पर दबाव डाला- 'जिन लोगों के नाम तुमने अपनी शिकायत में लिए हैं जानते हो वह कौन हैं?’ मैंने कहा हां. 'इन नामों को यहां से हटा दें तो क्या होगा?'’’ उन्होंने कहा. "वे चाहते थे कि मैं अपनी गवाही बदल दूं."
सैफी के मुताबिक, पुलिस ने उनसे सीधे कहा कि अपना वकील बदल दो और "एक बयान दो कि मेरी शिकायत में जो भी तीन नाम लिखे गए हैं, वे झूठे हैं." उन्होंने कहा कि पुलिस वाले बार-बार उनकी दुकान पर आते हैं और उन्हें धमकी देते हैं: "नहीं बदला न, हम तुम्हें देखेंगे"; "हम तेरी दुकान बंद कर देंगे"; "प्राचा के खिलाफ एक झूठी गवाही दे और हम तुझको छोड़ देंगे या हम तुझको दंगों में फंसा देंगे"; "हम तुझको मार देंगे.''
अख्तर ने बताया कि उन्होंने हाल ही में अपना घर बदल दिया क्योंकि पुलिस उन्हें लगातार परेशान कर रही थी. उन्होंने कहा, "उन्होंने मेरी बीबी, मेरे बच्चों के साथ बुरा बर्ताव किया." अख्तर ने कहा कि जब पुलिस को पता चला कि प्राचा उनके वकील हैं, तो उनके परिवार पर बेतरतीब हमले किए गए, जिसमें एक बार ऐसा भी हुआ कि उनके बेटे को कुछ अनजान लोगों ने पीट दिया. अख्तर ने कहा कि एक बार "मैं स्कूटी पर था, मुझे नीचे गिरा दिया और उन्होंने मुझसे कहा, 'अपना मामला वापस ले लो."'
उन्होंने कहा कि एक बार उन्हें प्राचा को फंसाने के लिए एक पुलिस स्टेशन से फोन आया था, हालांकि उन्हें पुलिस स्टेशन का नाम याद नहीं था. अख्तर के मुताबिक, फोन करने वाले ने कहा, "अगर तुम केस लड़ रहे हैं, तो क्या हम तुम्हारा वकील बदल दें?" फोन करने वाले ने कहा, “हम तुमको एक वकील देंगे. आपने जो बयान दिए हैं क्या वह महमूदजी ने आपसे दिलवाए हैं? " अख्तर ने कहा कि उन्होंने जवाब दिया कि ये उनके अपने बयान थे. फोन करने वाले ने जवाब दिया, "कम से कम कुछ लाइनें महमूद भाई ने सुझाई होंगी?" अख्तर ने फिर कहा कि बयान उनके खुद के थे, ठीक तभी फोन करने वाले ने इस बात की तरफ इशारा किया कि अख्तर विकलांग हैं, उनके पास खुद का घर नहीं है और उनका निजी अस्पताल में इलाज हुआ. "अगर हम आपकी थोड़ी मदद कर दें, तो क्या आप अपनी एफआईआर में कुछ जोड़ देंगे?" फोन करने वाले ने पूछा.
एक अन्य पीड़ित और प्राचा के मुवक्किलों में से एक, मोहम्मद सलीम ने कहा कि उनके घर पर हिंसा के दौरान हमला हुआ था और तब से उन्हें पांच मामलों में फंसाया जा चुका है. सलीम के मुताबिक लगभग 15-20 लोग एक बार उनके घर आए और उन्हें अपनी शिकायत वापस लेने के लिए कहा. जब उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक पुलिस वाला आया और कहा, "तुम महमूद प्राचा के पास गए थे... शिकायत वापस ले लो और कहो कि उन्होंने हमसे शिकायत में झूठी बातें दर्ज कराईं." उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें इतना परेशान कर दिया और डरा दिया कि उन्हें अपने घर जाने से डर लगने लगा.
दंगा पीड़ित मोहम्मद मुमताज भी कॉन्फ्रेंस में शामिल थे. खजूरी खास के रहने वाले मुमताज का परिवार संजर चिकन कार्नर नाम से एक रेस्टोरेंट चलाता है. मुमताज उस वक्त वहीं थे जब सौ से ज्यादा लोगों की भीड़ ने उन पर पथराव करना शुरू कर दिया. कारवां ने सितंबर में दिल्ली पुलिस के आयुक्त को दी शिकायत में कहा था कि मुमताज ने उस रात बीजेपी विधायक मोहन सिंह बिष्ट को हिंदू दंगाइयों के बीच देखा था. कॉन्फ्रेंस में मुमताज ने कहा कि पुलिस ने उन्हें बताया था कि उनकी प्राथमिकी हमलावरों के नाम के साथ दर्ज नहीं होगी, भले ही उन्होंने हमलावरों की पहचान की हो. मुमताज ने बताया कि पुलिस ने उनसे कहा, "चाहो तो सामान्य एफआईआर दर्ज कर लें या फिर घर जाओ."
कॉन्फ्रेंस में, मुमताज ने कहा कि जब उन्हें पता चला कि प्राचा 'बिना फीस लिए' गरीबों के केस लड़ रहे हैं तो मैंने उनसे मुलाकात की. "मेरे चाचा, महबूब आलम साहब, उन्हें एक झूठे मामले में फंसाया गया और मंडोली जेल में बंद कर दिया गया," उन्होंने कहा. “उन्हें बहुत यातना दी गई थी. ... उनसे कहा गया था, अपना केस वापस ले लो नहीं तो तुम्हें और तकलीफ देंगे. तुम्हारे परिवार को बंद कर देंगे.'' मुमताज ने कहा कि उन पर भी सीधे तौर पर दबाव डाला गया था. '‘वे हमें अपना मामला वापस लेने के लिए कहते हैं,” मुमताज ने विधायक बिष्ट के सहयोगियों का जिक्र करते हुए कहा. और कहते हैं कि महबूब प्राचा ने तुमसे झूठा मुकदमा दायर करवाया है. “तुमको पैसा चाहिए, हम देने को तैयार हैं.''
एक किशोर, वसीम, कॉन्फ्रेंस में मौजूद सबसे कम उम्र का मुवक्किल था. उस पर हुए हमले का वीडियो वायरल हो गया था. वीडियो में कुछ पुलिस वाले जमीन पर पड़े पांच घायल लोगों की पिटाई करते हुए उन्हें राष्ट्रगान गाने का हुक्म दे रहे थे. वसीम ने कहा, "पुलिस वाले हमें कहते हैं कि अपना मामला वापस ले लो नहीं तो उठा लेंगे. पुलिसवाले हम पर दबाव डालते रहते हैं. कल जो हुआ-वह हमारे लिए लड़ रहे हैं, हम उनके साथ खड़े हैं. पुलिस वाले यही कहते हैं कि जिस आदमी के पीछे तुम जा रहे हो... वह भी फंसेगा और तुम भी और तुमको गोली मार देंगे.'''
परवेज ने कहा कि हिंसा के दौरान उनके पिता की मौत हुई और केस दर्ज कराने को लेकर उन्हें धमकी मिल रही थी. "एक-दो बार वे पुलिस की वर्दी में आए," उन्होंने कहा. "वे कहते हैं मामले वापस ले लो. ... तुम खुद इसमें फंस जाओगे. अपने परिवार के बारे में सोचो.'' नरसंहार के दौरान उत्तर घोंडा के रहने वाले मोहम्मद नासिर खान की आंख में गोली लगने से बड़ा घाव हो गया था. "मुझे पुलिस ने कई बार धमकाया," उन्होंने कहा. लगभग दस अन्य मुवक्किलों की तरह, खान भी प्राचा के दफ्तर में छापा पड़ने की खबर सुनने बाद उनके दफ्तर के बाहर पहुंचे.
छापेमारी के बाद, दिल्ली की पुलिस स्पेशल सेल ने इसके बारे में एक प्रेस नोट जारी किया. इसमें कहा गया है कि टीम जाली नोटरी स्टैंप के इस्तेमाल और बेल प्रक्रिया के लिए जाली सबूतों से जुड़े एक मामले की जांच कर रही थी. प्रेस नोट में कहा गया था कि जाली नोटरी स्टैंप का मामला एक दूसरे वकील जावेद अली से जुड़ा पाया गया और "झूठे/मनगढ़ंत सबूत गढ़ना... और एक मनगढ़ंत/जाली शिकायत से जुड़ा मामला प्रचा से संबंधित था. प्रेस नोट में जिक्र किया गया है कि अदालत ने दो वकीलों के लिए दो सर्च वारंट जारी किए थे, जो जांच अधिकारी को "इन भड़काऊ दस्तावेजों की तलाश करने, जहां भी वह मिल सकें चाहे फिर कंप्यूटर हो या कार्यालय/परिसर ... और, अगर ऐसे दस्तावेज मिल जाते हैं, तो उन्हें न्यायालय के समक्ष पेश करने का,'' अधिकार देते हैं.
प्राचा के मुताबिक, उनके और एक अन्य वकील खिलाफ मामला हास्यास्पद है. उन्होंने कहा, "गलत नोटरी को पकड़ना पुलिस की जिम्मेदारी है. मुझे नहीं लगता कि 90 प्रतिशत वकील यह जांचते हैं कि सार्वजनिक नोटरी की पहचान क्या है ... और वकील खुद जाते भी नहीं, मुवक्किल ही लेकर आते हैं." अन्य आरोपों का जिक्र करते हुए प्राचा ने कहा कि पुलिस शिकायत करने वालों यह कहने के लिए दबाव डाल रही है और ''धमका'' रही है कि वह कहे कि उन्होंने कभी शिकायत दर्ज नहीं की. "एक आदमी जिसकी दुकान लूट ली गई थी, जिसके वीडियो सबूत मौजूद हैं, कह रहा है कि उसने कभी शिकायत दर्ज नहीं की," उन्होंने दावा किया. प्राचा ने बताया कि यह भी अजीब था कि प्राथमिकी दर्ज होने के चार महीने बाद छापा मारा गया. "कोर्ट अभी छुट्टी पर है," उन्होंने कहा. “उन्होंने आज का ही दिन क्यों चुना? ये सारी चीजें इसलिए हैं ताकि हम अदालत का दरवाजा न खटखटाएं.''
प्राचा ने बताया कि 15 घंटे की छापेमारी के दौरान क्या-क्या हुआ. "मैंने उनसे कहा, “आप मेरे कंप्यूटर देख सकते हैं, मेरी फाइलें देख सकते हैं," उन्होंने कहा. लेकिन जब पुलिस ने कंप्यूटर लेने के लिए कहा, तो प्राचा ने कहा कि उन्होंने इनकार कर दिया क्योंकि अदालत ने उनके कंप्यूटर को जब्त करने का आदेश नहीं दिया था. उन्होंने कहा कि उन्होंने पुलिस से कहा, "मैं क्लाइंट-अटॉर्नी रिलेशन से बंधा हूं, मैं आपको कुछ नहीं दे सकता." इसके अलावा, प्राचा ने कहा, "उन्होंने मेरे कंप्यूटर में पेन ड्राइव डाला."
प्राचा के ख्याल से, छापा इसलिए पड़ा था क्योंकि उनके पास दिल्ली हिंसा के मामलों से जुड़े सबूत थे. प्राचा ने बीजेपी नेता कपिल मिश्रा का उदाहरण दिया, जिन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में मुस्लिम विरोधी हिंसा फैलने के कुछ घंटे पहले जाफराबाद में एक भड़काऊ भाषण दिया था. लेकिन कई शिकायतकर्ताओं के मुताबिक, प्राचा जिनके वकील हैं और जैसा कि इस साल जून में कारवां ने अपनी रिपोर्ट में बताया था, मिश्रा ने हिंसा में भाग लिया था. प्राचा ने कहा, "कपिल मिश्रा ने न सिर्फ भड़काऊ भाषण दिया, बल्कि हथियारबंद भीड़ के साथ मिलकर लोगों पर हमला किया. हमने ऐसे मामले दर्ज किए हैं.” उन्होंने कहा, "उनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि मेरे मुवक्किलों
के दायर मामलों में आरएसएस के लोगों को गिरफ्तार किया गया है." उदाहरण के लिए, द क्विंट ने बताया कि परवेज की दर्ज शिकायत पर आरएसएस के 16 सदस्यों को आरोपपत्र सौंपा गया है.
छापे के बाद, 25 दिसंबर को प्राचा ने दिल्ली जिला अदालत में खोज और जब्ती की प्रक्रिया के वीडियो फुटेज की एक प्रति और दो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करने के लिए दो आवेदन दिए, जिन पर उन्होंने उन्हें धमकी देने का आरोप लगाया था. प्राचा ने कहा कि पुलिस को जब्त की गई फाइलों के साथ सर्च वारंट को पूरा कर तुरंत अदालत के पास वापस जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, जिसके चलते उन्होंने वीडियो फुटेज के लिए आवेदन दायर किया. अदालत ने पुलिस को वीडियो फुटेज के लिए उनके आवेदन का जवाब दाखिल करने और संबंधित मामले में 5 जनवरी तक स्थिति रिपोर्ट दर्ज करने का आदेश दिया है.
प्राचा ने दिल्ली हिंसा के उन पीड़ितों के लिए, जिन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखी, इंसाफ पाने का एक छोटा सा मौका दिया. "सोशल मीडिया से,मुझे पता चला कि एक मसीहा के साथ ऐसा कुछ हो रहा है," नसीर ने प्राचा का जिक्र करते हुए कहा. "मुझे यह देखकर बहुत दुख हुआ." परवेज ने कहा, “वे चाहते हैं कि हम उनका साथ छोड़ दें. लेकिन इंशाल्लाह, ऐसा कभी नहीं होगा. हमारी जान लागी हुई है, इंसाफ के लिए.”