मीडिया से नाराज कुंडली में डटे किसान, बोले गोदी मीडिया उनके आंदोलन को कर रहा बदनाम

30 नवंबर 2020
कारवां के लिए प्रभजीत सिंह
कारवां के लिए प्रभजीत सिंह

28 नवंबर को दोपहर 3 बजे के करीब कीर्ति किसान यूनियन के सदस्य सतनाम सिंह हरियाणा के कुंडली इलाके पर बने एक मंच से बोल रहे थे, “लोग, खासकर बुजुर्ग लोग कुछ टीवी न्यूज चैनलों से दुखी हैं जो उल्टे-सीधे सवाल पूछ रहे हैं.” उनके आसपास नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की भीड़ थी. अपने भाषण में वह मीडिया में आंदोलन को गलत तरीके से प्रस्तुत किए जाने के कई उदाहरण दे रहे थे. उन्होंने वहां मौजूद नौजवानों से अपील की कि वे मीडिया पर अपनी नजर बनाए रखें और किसानों के मामले को ठीक तरीके से पेश करें.

इसके बाद कुछ नौजवान टीवी रिपोर्टरों वाले बैरिकेड के पास पहुंच गए. जैसे ही ये रिपोर्टर प्रदर्शनकारियों के पास आने लगे तो नौजवानों ने जी न्यूज और रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को वहीं रोक दिया. ये किसान “दिल्ली चलो” मार्च में यहां पहुंचे हैं. इस मार्च में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा के 300 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं. इस आंदोलन के तहत देशभर के किसानों को 26 और 27 नवंबर को विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अनिश्चितकालीन आंदोलन करने के लिए दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया गया है लेकिन सुरक्षाबलों ने किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए दिल्ली की सीमाओं को सील कर दिया और उन पर आंसू गैस और पानी की बौछार की है.

26 नवंबर से ही हरियाणा और पंजाब के आंदोलनकारी किसान कुंडली सीमा पर डटे हुए हैं. वहां उपस्थित कई किसान उन पत्रकारों को वहां से चले जाने को कह रहे थे जिन्हें वे गोदी मीडिया मानते हैं. टेलीविजन न्यूज चैनल इस मार्च के खिलाफ एक गलत छवि पेश कर रहे हैं. रिपब्लिक टीवी ने तो यहां तक कहा है कि राजनीतिक दलों के नेता किसानों को प्रदर्शन करने के लिए भड़का और उकसा रहे हैं. सीएनएन-न्यूज18, एबीपी न्यूज जैसे चैनलों ने “किसानों को गुमराह करने वाले लोग कौन हैं” जैसे समाचार प्रसारित किए और वहीं टाइम्स नाउ ने बताया कि किसानों को राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.

यह भी देखा जा रहा है कि आंदोलनकारियों को खालिस्तानी कहकर बदनाम करने की कोशिश हो रही है और जब से आंदोलन शुरू हुआ है तभी से ट्विटर पर यह शब्द ट्रेंड कर रहा है. 29 नवंबर को पत्रकार बरखा दत्त ने आंदोलन में मौजूद कलाकार दीप सिद्धू का इंटरव्यू किया. उस इंटरव्यू में दत्त ने सिद्धू से उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले के बारे में सवाल पूछे. सिद्धू ने भिंडरांवाले को आतंकवादी कहने से इनकार किया तो मीडिया को आंदोलन के मुद्दों से ध्यान भटका कर डिबेट को दूसरी दिशा में ले जाने का मौका मिल गया.

मैं पिछले 10 दिनों से इस आंदोलन को कवर कर रहा हूं और मैंने खालिस्तान से जुड़ी बात या राजनीतिक से जुड़ी एक भी बात यहां नहीं पाई. किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह का मीडिया कवरेज हो रहा है वह पिछले साल दिल्ली के शाहीन बाग में हुए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मीडिया की रिपोर्टिंग जैसा है. 28 नवंबर को हरियाणा और पंजाब के किसानों ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि मुख्यधारा के टीवी चैनल उनके आंदोलन को गलत तरीके से दिखा रहे हैं. उन्होंने एनडीटीवी को इसका अपवाद बताया.

प्रभजीत सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Keywords: Farm Bills 2020 Farmers' Protest
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