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28 नवंबर को दोपहर 3 बजे के करीब कीर्ति किसान यूनियन के सदस्य सतनाम सिंह हरियाणा के कुंडली इलाके पर बने एक मंच से बोल रहे थे, “लोग, खासकर बुजुर्ग लोग कुछ टीवी न्यूज चैनलों से दुखी हैं जो उल्टे-सीधे सवाल पूछ रहे हैं.” उनके आसपास नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की भीड़ थी. अपने भाषण में वह मीडिया में आंदोलन को गलत तरीके से प्रस्तुत किए जाने के कई उदाहरण दे रहे थे. उन्होंने वहां मौजूद नौजवानों से अपील की कि वे मीडिया पर अपनी नजर बनाए रखें और किसानों के मामले को ठीक तरीके से पेश करें.
इसके बाद कुछ नौजवान टीवी रिपोर्टरों वाले बैरिकेड के पास पहुंच गए. जैसे ही ये रिपोर्टर प्रदर्शनकारियों के पास आने लगे तो नौजवानों ने जी न्यूज और रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को वहीं रोक दिया. ये किसान “दिल्ली चलो” मार्च में यहां पहुंचे हैं. इस मार्च में पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा के 300 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं. इस आंदोलन के तहत देशभर के किसानों को 26 और 27 नवंबर को विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अनिश्चितकालीन आंदोलन करने के लिए दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया गया है लेकिन सुरक्षाबलों ने किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए दिल्ली की सीमाओं को सील कर दिया और उन पर आंसू गैस और पानी की बौछार की है.
26 नवंबर से ही हरियाणा और पंजाब के आंदोलनकारी किसान कुंडली सीमा पर डटे हुए हैं. वहां उपस्थित कई किसान उन पत्रकारों को वहां से चले जाने को कह रहे थे जिन्हें वे गोदी मीडिया मानते हैं. टेलीविजन न्यूज चैनल इस मार्च के खिलाफ एक गलत छवि पेश कर रहे हैं. रिपब्लिक टीवी ने तो यहां तक कहा है कि राजनीतिक दलों के नेता किसानों को प्रदर्शन करने के लिए भड़का और उकसा रहे हैं. सीएनएन-न्यूज18, एबीपी न्यूज जैसे चैनलों ने “किसानों को गुमराह करने वाले लोग कौन हैं” जैसे समाचार प्रसारित किए और वहीं टाइम्स नाउ ने बताया कि किसानों को राजनीतिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
यह भी देखा जा रहा है कि आंदोलनकारियों को खालिस्तानी कहकर बदनाम करने की कोशिश हो रही है और जब से आंदोलन शुरू हुआ है तभी से ट्विटर पर यह शब्द ट्रेंड कर रहा है. 29 नवंबर को पत्रकार बरखा दत्त ने आंदोलन में मौजूद कलाकार दीप सिद्धू का इंटरव्यू किया. उस इंटरव्यू में दत्त ने सिद्धू से उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले के बारे में सवाल पूछे. सिद्धू ने भिंडरांवाले को आतंकवादी कहने से इनकार किया तो मीडिया को आंदोलन के मुद्दों से ध्यान भटका कर डिबेट को दूसरी दिशा में ले जाने का मौका मिल गया.
मैं पिछले 10 दिनों से इस आंदोलन को कवर कर रहा हूं और मैंने खालिस्तान से जुड़ी बात या राजनीतिक से जुड़ी एक भी बात यहां नहीं पाई. किसान आंदोलन को लेकर जिस तरह का मीडिया कवरेज हो रहा है वह पिछले साल दिल्ली के शाहीन बाग में हुए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ मीडिया की रिपोर्टिंग जैसा है. 28 नवंबर को हरियाणा और पंजाब के किसानों ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि मुख्यधारा के टीवी चैनल उनके आंदोलन को गलत तरीके से दिखा रहे हैं. उन्होंने एनडीटीवी को इसका अपवाद बताया.
उस दिन मैंने देखा की भीड़ ने रिपब्लिक टीवी के कैमरामैन को घेर लिया है. घेरने वाले आंदोलनकारी हरियाणा के जींद जिले और पंजाब के पटियाला जिले के किसान थे जो इस बात से दुखी और गुस्सा थे कि उनके आंदोलन की गलत छवि पेश की जा रही है. वे लोग एक कैमरामैन से पूछ रहे थे कि वह बताएं कि जो इंटरव्यू उसने रिकॉर्ड किया है उसे टीवी में कब दिखाया. पटियाला के भगवानपुर गांव के नौजवान आंदोलनकारी अमरदीप सिंह उस कैमरामैन से पूछने लगे, “कहां किया लाइव दिखाओ? अपने फोन पर दिखाओ, नहीं तो तुझे यहां से जाने नहीं देंगे.”
उस दिन रिपब्लिक टीवी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का एक सनसनीखेज दावा प्रसारित किया था जिसमें खट्टर ने कहा था कि उन्हें किसान आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों के शामिल होने की “रिपोर्ट” प्राप्त हुई है. जिंद के आंदोलनकारी संदीप ने कहा, “तुम हमें खालिस्तानी बताते हो. रात भर तुम्हारा तमाशा देखते रहे हम. सुबह 4 बजे तक. हद हो गई.” एक साथी पत्रकार होने के नाते मैंने तनाव करने कम करने की कोशिश की और वहां मौजूद लोगों से कहा कि वह कैमरामैन अपने संपादक के आदेशों का पालन कर रहा होगा. संदीप ने मुझसे कहा, “हम मीडिया का सम्मान करते हैं लेकिन ये लोग क्यों नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं.” संदीप के आसपास मौजूद लोगों ने उनसे सहमति जताई. फिर संदीप ने कहा, “यह रिपब्लिक वाले तो पिटेंगे एक दिन.” भीड़ में से किसी ने कहा, “जी न्यूज वाले कौन से कम हैं? ये लोग हमें आतंकवादी और नक्सली बताते हैं.”
जी न्यूज ने हाल में एक टिप्पणी का उल्लेख करते हुए रिपोर्ट की थी जिसमें इंदिरा गांधी की मौत का उल्लेख था और उसने दावा किया कि आंदोलन में खालिस्तानी तत्व मौजूद हैं. उसने अपनी स्क्रीन में हैशटैग चलाया, “आंदोलन में खालिस्तानी.” जब मेरी गर्दन पर लटके कैमरे को देख कर एक आंदोलनकारी ने मुझसे पूछने लगा कि मैं किस संस्थान से हूं, तो मौका पा कर वह महिला पत्रकार अपने कैमरामैन के साथ वहां से चली गई.
कुछ घंटे बाद मैंने चार नौजवानों को एक बड़े पोस्टर के साथ देखा जो वे टीवी चैनल के लोगों को दिखा रहे थे. उस पोस्टर पर लिखा था, “हम किसान हैं, आतंकी नहीं”, “किसान : जो दुनिया का पेट भरता है”, “काले कानून वापस लो.”
ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोआर्डिनेशन कमेटी के इंद्रजीत सिंह ने मुझसे कहा, “हम यहां किसानों का गुस्सा देख सकते हैं.” आंदोलन में खालिस्तानियों के होने की बात प्रसारित करने वाले मीडिया का संदर्भ देते हुए इंद्रजीत ने कहा, “जो लोग इस मामले से पूरी तरह से वाकिफ हैं, उन्हें इसे ठीक से दिखाना चाहिए. लेकिन गांव के सीधे-साधे लोग ऐसे विवादास्पद सवालों को ठीक से नहीं समझ पाते.” हिंदुस्तान टाइम्स चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार गुरप्रीत सिंह निब्बर ने मुझे बताया, “चैनल वाले एक साधारण किसान को जो सीधा-साधा जीवन जीता है, दबाव में रहता है, जिस पर भारी कर्ज है उसे खालिस्तानी कैसे बता सकते हैं? ऐसी कोई संपादकीय लाइन नहीं हो सकती.”
चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार देवी देविंदर कौर ने मुझे बताया कि उन्हें यह देख कर बहुत दुख हुआ कि एक ने ट्विटर में लिखा है कि इन किसानों पर पानी की बौछार नहीं करनी चाहिए बल्कि इन पर आंसू गैस दागना चाहिए क्योंकि ये लोग दिल्ली में धुआं भेजते हैं. वह शायद ऑपइंडिया के संस्थापक राहुल रोशन के ट्वीट का जिक्र कर रही थीं. ऑपइंडिया एक दक्षिणपंथी वेबसाइट है जो फेक खबर या गलत खबर फैलाने के लिए बदनाम है.
शाम करीब 4-4.30 पर एक बूढ़े किसान, जो तकरीबन 60 साल के होंगे, एक टीवी रिपोर्टर से पूछ रहे थे, “अपने चारों तरफ फैले धुएं को देखो. आप लोग मोदी से जाकर इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं करते जिसने हम पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है.” वह किसान भवाना के बिजली संयंत्र से निकलते काले धुएं को दिखाकर ऐसा बोल रहे थे. उनका संदर्भ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए नए अध्यादेश की ओर था जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए एक स्थायी आयोग बनाने की बात है और कहा गया है कि उल्लंघनकर्ता को पांच साल तक की सजा या एक करोड़ रुपए का जुर्माना या दोनों हो सकता है.
इससे पहले आधी रात को जब मैं पेट्रोल पंप के पास ट्रैक्टर ट्रॉली पर सोते किसानों की फोटो ले रहा था तब भी मुझे मीडिया के प्रति किसानों के गुस्से का एहसास हुआ था. तब एक किसान ने मुझसे कहा था, “सही-सही खबर दिया करो. सही-सही लिखियो, भाईजी.”
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