31 अक्टूबर 1992 की घटनाओं ने जसविंदर सिंह के जीवन की दिशा बदल दी. तब वह पंजाब के अमृतसर जिले में बारहवीं कक्षा के छात्र थे. जसविंदर ने मुझे बताया कि उनके माता-पिता, दादा-दादी और उनके अस्सी साल के स्वतंत्रता सेनानी नाना सुलखान सिंह उस दिन घर पर ही थे कि शाम करीब पांच बजे सिरहाली थाने की पुलिस ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी और कहा कि थाना प्रभारी सुरिंदरपाल सिंह ने पिता सुखदेव सिंह संधू को बुलाया है. सुखदेव एक सरकारी स्कूल में उपप्रधानाचार्य थे. जसविंदर ने मुझे बताया, “चूंकि मेरे दादा उजागर सिंह खुद एक सेवानिवृत्त पुलिस इंस्पेक्टर थे इसलिए उन्होंने पुलिस से पूछा कि पिता को क्यों बुलाया है. पुलिस वालों ने जवाब दिया कि नियमित पूछताछ के लिए बुलाया गया है. मेरे नाना सुलखान सिंह ने आगे आकर अपना परिचय दिया. पुलिस मेरे पिता और नाना को सबके सामने उठा ले गई.”
जसविंदर ने मुझे बताया कि परिवार को बाद में पता चला कि सुलखान और सुखदेव को प्रताड़ित किया गया और उनकी हत्या कर दी गई. "हमने उन्हें फिर कभी नहीं देखा," उन्होंने कहा. उनकी मां सुखवंत कौर ने यही बात बताई. मामले में परिवार के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने मुझे बताया कि सुलखान और सुखदेव के शव परिवार को नहीं सौंपे गए, बल्कि एक नहर में फेंक दिए गए. वेरका ने बताया कि ऐसे हजारों मामले हैं जिनमें युवकों को उठाकर मार डाला गया और उनके शव गायब कर दिए गए. इन मामलों में मृत्यु प्रमाण पत्र भी जारी नहीं किए गए.”
1980 और 1990 के दशक में पंजाब में आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए गए. इसमें हजारों लोगों के लापता होने की घटनाएं हुईं. 2008 में पंजाब डॉक्यूमेंटेशन एंड एडवोकेसी प्रोजेक्ट नामक एक नागरिक-समाज संगठन ने गायब हुए लोगों का दस्तावेजीकरण करना शुरू किया और एक रिपोर्ट तैयार की. रिपोर्ट के आधार पर पीडीएपी और 9 व्यक्तियों ने नवंबर 2019 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में कहा गया है कि पंजाब में गायब कर दिए जाने, न्यायेतर हत्याओं और दाह संस्कार के 6733 मामले पाए गए हैं. याचिका के अनुसार यह भारत की किसी भी अदालत के समक्ष गुमशुदगी के संबंध में अब तक दायर सबसे बड़ी याचिका है.
19 अप्रैल 2021 को चंडीगढ़ पुलिस ने ब्रिटेन के वकील और पीडीएपी के प्रमुख सतनाम सिंह बैंस के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. मैंने मई की अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सतनाम के खिलाफ दायर की गई प्राथमिकी उसकी संस्था और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दबाव की कार्रवाई दिखाई पड़ती है.
याचिकाकर्ताओं द्वारा एकत्र किए गए डेटा से पता चलता है कि पंजाब पुलिस और सुरक्षा बल जबरन गायब कर दिए जाने और न्यायेतर हत्याओं के लिए जिम्मेदार हैं. याचिका के अनुसार नगर पालिकाओं और पुलिस रिकॉर्ड से पता चलता है कि पुलिस ने "लावारिस" और "अनपचती" बता कर गुप्त रूप से कई पीड़ितों का अवैध अंतिम संस्कार किया और शवों को उनके परिजनों को नहीं सौंपा. याचिकाकर्ताओं ने इन मामलों की स्वतंत्र जांच, दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और पीड़ित परिवारों के लिए उचित मुआवजे की मांग की है.
कमेंट