जारी कोरोना महामारी के बीच भारत के कई हिस्से बाढ़ की चपेट में हैं. इस साल बाढ़ में उत्तर प्रदेश के 16 जिलों- बाराबंकी, अयोध्या, कुशीनगर, गोरखपुर, बहराइच, लखीमपुर खीरी, आजमगढ़, मऊ, गोंडा, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, सीतापुर और बलरामपुर- के 777 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से मिली जानकारी के अनुसार बाढ़ में उपरोक्त जिलों के 282 गांवों में पानी पूरी तरह भर गया है. 4 अगस्त के एक अन्य ट्वीट में सीएम ऑफिस ने कहा था कि घाघरा, राप्ती, गण्डक, तुर्तीपार और अन्य कई नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही हैं.
इन इलाकों में हर साल बाढ़ आती है लेकिन इस बार बाढ़ की स्थिति बेहद नाजुक बनी हुई है. जिन क्षेत्रों में बाढ़ आई है वे पूर्वांचल के ऐसे इलाके हैं जहां के ज्यादातर लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं. इस बार कोरोना महामारी के बाद लागू लॉकडाउन के कारण अधिकांश लोग अपने घरों पर हैं और वे बाढ़ में फंस गए हैं. जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तब गांव में गेहूं कटाई का सीजन था और बाहर से आए बहुत से लोगों को इसमें काम मिल गया था. बाद में कुछ दिनों के लिए मनरेगा के तहत भी काम उपलब्ध था. साथ ही, धान रोपाई का काम भी लोगों को मिल रहा था लेकिन बाढ़ से पूरा जन-जीवन ध्वस्त हो गया है.
मऊ जिले के मिश्रोली गांव के रहने वाले 28 साल के किसान चंद्रमणि यादव ने मुझे बताया, “मेरे गांव के ही पास घाघरा नदी पर बंदा टूटा गया है जिससे हमारे जिले की लगभग 15 ग्राम सभाएं प्रभावित हुई हैं. हमारे गांव के आस-पास के लोग बाजार करने देवरिया जिले के माइल बाजार नावों से जाते हैं लेकिन 4 अगस्त को 15 लोग बाजार से अपने घर मुसाडोही के लिए चले लेकिन गांव पहुंचने से पहले ही नाव पलट गई और दो महिलाएं की और तीन बच्चे डूब कर मर गए.” नाव पर सवार 9 लोगों को बचा लिया गया. एक महिला उस समय लापता हो गई थी जिसकी लाश एक दिन बाद मिली.
यादव ने बताया कि गांव के लोग खौफ में जी रहे हैं. “हमारी सारी फसल बर्बाद हो गई है. ज्यादातर लोग अपने रिश्तेदारों के यहां जा चुके हैं. लोग अपने जानवरों को बेचने पर मजबूर हो गए हैं क्योंकि जानवरों के लिए चारे की कोई व्यवस्था नहीं है. हर रोज किसी न किसी गांव में लोगों के घर गिरने की बात आती है. जब पानी वापस जाएगा तब कई बीमारियां फैलेंगी. तब और भी समस्या बढ़ जाएगी और लोगों के पास ना काम है और ना ही पैसा.”
देवरिया जिले के नया नगर के 35 साल के राजेश निषाद ने बताया कि बाढ़ में जिंदगी पूरी तरह बर्बाद हो गई है. उन्होंने बताया, “हमारे यहां कई गांव बाढ़ से पूरी तरह प्रभावित हैं. इन गांवों में ज्यादातर लोग किसानी करते हैं और गाय-भैंसें पालते हैं. अब उनको खिलाने के लिए चारा भी नहीं है.” राजेश ने बताया कि सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है और लोग स्वयं एक दूसरे की मदद कर रहे है. उन्होंने कहा, “अभी इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य चैकअप के लिए डॉक्टरों की जरूरत है पर कोई डॉक्टर आस-पास नहीं है.”
अंबेडकर नगर के 26 वर्षीय शुभम यादव ने बताया कि इन इलाकों में हर साल बाढ़ आती है और नदी के किनारे के ही नहीं बल्कि 10 किलोमीटर तक का क्षेत्र प्रभावित होता है और नहरे, बरसाती नदियां भी उफान मारने लगती हैं. शुभम ने बताया, “बाढ़ में हमारा पूरा तीन बीघा धान डूब गया. इस बार बाढ़ पिछले साल के मुकाबले ज्यादा खतरनाक है. अभी-अभी मेरे गांव में दो मकान गिरे हैं और यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है. इस बार हम लोग दोहरी मार झेल रहे हैं, पहले ही करोना ने हम लोगों की हालत खराब कर दी थी और अब बाढ़ ने.” शुभम ने कहा, “जानवरों को चारा नहीं मिल पा रहा है इसलिए हम उन्हें बेचने को मजबूर हैं.
कुशीनगर के मोमाखास गांव के राकेश कुमार का गांव गण्डक नदी के पास है. उनके गांव वालों को बंदा टूटने का डर हमेशा रहता है. कुमार ने बताया कि इन बंदों पर पिछले 15 सालों से कोई काम ही नहीं हुआ है. उन्होंने बताया, “अब इनकी हालत बहुत खराब हो गई है. इस बार नदी भी पूरी उफान पर है. हमारे गांव में नरायनपुर, परवापट्टी, परोई गांव में पूरी तरह पानी भर गया है. इन गांव में बहुत गरीब लोग रहते हैं. लोगों तक राशन नहीं पहुंचा है. बहुत से लोग तिरपाल के नीचे रह रहे हैं और बहुत सारे लोग अपने रिश्तेदारों के यहां चले गए हैं.”
कुशीनगर के ही भुवाल और अरविंद भारती ने भी बताया कि अब तक बाढ़ पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला है. भुवाल का दो बीघा धान बाढ़ में बह गया है और उन्हें डर है कि यदि गन्ने में पानी लग गया तो वह भी सड़ जाएगा. उन्होंने कहा, “हमारे पास अभी अपने जानवरों को खिलाने की कोई व्यवस्था नहीं है. बांस के पत्ते या फिर गन्ने के ऊपर की पत्ती खिला रहे हैं.”
इस बारे में जानने के लिए मैंने राज्य सरकार के पशुपालन विभाग और राहत कार्य आयुक्त के कार्यालयों को ईमेल किया था लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक कोई जवाब नहीं मिला. उनका जवाब मिलते ही रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
कुशीनगर के हमटबंद गांव के सुरेंद्र कुमार ने दावा किया कि बाढ़ की समस्या हर साल रहती है लेकिन फिर भी अधिकारी बाढ़ आने पर ही हरकत में आते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले 20 सालों से बंदे पर कोई काम नहीं किया गया है. “अब वे 100-200 बोरे मिट्टी डालेंगे भी तो बहाव इतना तेज हो गया है कि कटान को रोक पाना मुश्किल होगा.” उन्होंने बताया कि उनके आस-पास के 20 गांव पूरी तरह प्रभावित हैं और बाढ़ की वजह से चार किलोमीटर तक की पूरी फसल बर्बाद हो गई है. उन्होंने कहा, “यहां लोग तिरपाल लगा कर बंदे पर अपने जानवरों के साथ गुजारा कर रहे हैं. अधिकतर लोगों को अपने जानवरों के लिए चारे की समस्या है.” उन्होंने बताया कि पिछले साल की बाढ़ में उनके गांव में 30 घर गिरे थे लेकिन सरकार से कोई मदद नहीं मिली थी. कुमार ने बताया कि इस बार भी कई घर गिर चुके हैं और गांवों का आपस में संपर्क भी टूट गया है. साथ ही, बिजली ना होने से लोग अपना मोबाइल फोन भी चार्ज नहीं कर पा रहे हैं.
बाढ़ और संबंधित परेशानियों के बारे में आजमगढ़ जिले के सहनुपुर गांव के अरुण पटेल ने बताया कि घाघरा नदी से निकलने वाली छोटी सरयू नदी के दोनों ओर बने बंदे की हालत बहुत खराब है. उन्होंने बताया कि उन्हें याद नहीं कि इन बंदों पर पिछली बार कब काम हुआ था. पटेल ने कहा, “घाघरा नदी के किनारे बसे हमारे 30 से 40 गांवों में हर साल बाढ़ आती है लेकिन किसी सरकार ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. उन्होंने कहा, “हमारे यहां के कुछ बच्चे नदी में मछली मारने गए थे तो उन्होंने बंदे को टूटते देखा और गांव फोन किया. उसके बाद गांव के 300 लोगों ने वहां पहुंच कर कटान को रोका. फिर आगे पांच किलोमीटर तक करीब 17 बंदों की टूटने जैसी स्थिति थी जिनकी मरम्मत कर उन्हें सही किया गया. अगर वे उस समय टूट गए होते तो गांव में हजारों लोगों की जान चली जाती.”
पटेल ने बताया कि गांव में राहत कार्य के लिए नावों की जरूरत है लेकिन नाव नहीं चल रही हैं. उन्होंने कहा, “यहां तीस हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हैं लेकिन मेरे अनुमान में सिर्फ 450 लोगों को ही राशन किट मिले हैं.” पटेल ने आगे कहा, “बाढ़ पहली बार नहीं आई है लेकिन सरकार कभी ठोस काम नहीं करती.”