दक्षिण बिहार के नवादा जिले के खनवां गांव की 45 वर्षीय साधना देवी के लिए 31 जनवरी 2016 का दिन खुशियों भरा था. असल में उस दिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चर्चित रेडियो शो मन की बात में उनका जिक्र किया था. साधना ने जनवरी में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख गांव में सोलर या सौर चरखा केंद्र खोलने पर मोदी की प्रशंसा की थी और आभार व्यक्त किया था. उन्होंने पत्र में बताया कि कैसे उन्हें एक चरखा दिया गया है और उसके चलते उन्हें आर्थक तौर पर लाभ पहुंचा है और वह अपने पति के चिकित्सा उपचार का खर्च उठा पाने में सक्षम हो पाई हैं. लेकिन अब पांच साल बाद सोलर चरखा केंद्र बंद हो गया है. नतीजतन साधना एक बार फिर से गरीबी के चक्र में घिर गई हैं.
खनवां में सौर चरखा केंद्र लखनऊ स्थित एक गैर सरकारी संगठन द्वारा संचालित है जिसे भारतीय हरित खादी ग्रामोदय संस्थान या बीएचकेजीएस कहा जाता है. मिशन सोलर चरखा के तहत खनवां पंचायत में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जनवरी 2016 के पहले सप्ताह में केंद्र का उद्घाटन किया गया. प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा अपनी वेबसाइट और अन्य प्रेस विज्ञप्तियों के अनुसार, मिशन एक "उद्यम संचालित योजना" है जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष रोजगार उत्पन्न करना है, खासकर युवाओं और महिलाओं के लिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में सतत और समावेशी विकास हो संभव हो सके और शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन को रोका जा सके. मिशन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के मंत्रालय के अंतर्गत आता है.
मिशन में "व्यक्तिगत या प्रवर्तक एजेंसी" के माध्यम से देश भर में "सौर चरखा समूहों" की परिकल्पना की गई थी. इसका मकसद 8 से 10 किलोमीटर के दायरे में "एक फोकल गांव और आसपास के अन्य गांवों" में एक क्लस्टर को विकसित करना था. इसके अलावा इस तरह के क्लस्टर में 200 से 2042 लाभार्थी (स्पिनर, बुनकर, टांके और अन्य कुशल कारीगर) होने थे. पायलट परियोजना की स्पष्ट सफलता के आधार पर 17 सितंबर 2019 को मंत्रालय ने 550 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 50 और सौर चरखा समूहों की स्थापना को मंजूरी दी.
हालांकि, खनवां पंचायत की एक दर्जन से अधिक महिलाओं, कुछ दर्जन से अधिक कार्यकर्ता और पंचायत प्रमुख के अनुसार उक्त केंद्र मई 2019 से बंद पड़ा हुआ है. लोगों का कहना है कि महिलाओं को जो चरखे दिए गए थे वे अब बंद पड़े हैं और उनसे कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है. उनकी पासबुक ने इस दावे की पुष्टि भी कर दी है. इनमें से अधिकांश में अंतिम प्रविष्टि मई 2019 की है. इसके अलावा सभी महिलाओं ने कहा कि उन्हें केंद्र बंद होने से पहले महीनों तक भुगतान नहीं किया गया. उन्होंने यह भी बताया कि जब से चरखे को ऋण पर दिया गया था तब से इलाहाबाद बैंक की खनवां शाखा महिलाओं पर दबाव डाल रही थी कि वे ऋण चुकाएं और न चुकाने की दशा में उन्हें ऋण अदायगी के लिए नोटिस भेजा जाएगा. महिलाओं ने कहा कि अब वे ऋण का भुगतान करने के लिए अन्य स्रोतों से कमाए पैसों का इस्तेमाल करती हैं. इनमें से कुछ ने तो यह आरोप भी लगाया कि बैंक ने कई दफा उन्हें बिना बताए खातों से पैसे काट लिए. लोगों की परेशानियों में कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने और ज्यादा इजाफा किया है और उनकी वित्तीय स्थिति को पहले से और ज्यादा खराब कर दिया है.
साधना ने बताया कि चरखा केंद्र को बंद हुए तकरीबन डेढ़ साल हो गए हैं. उन्होंने कहा कि जब केंद्र में काम हो रहा था तब लोग थोड़ा पैसा बना लेते थे. आर्थिक रूप से भी बहुत राहत मिल रही थी लेकिन अब हमारी स्थिति वैसी ही है जैसे चरखा केंद्र खुलने से पहले थी. बीएचकेजीएस के संस्थापक विजय पांडे ने स्वीकार किया है कि "खनवां में जिस तरह से परियोजना शुरू हुई थी उसमें कुछ कमियां थीं. कुछ गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दे, जिसकी वजह से यह केंद्र उस सफलता को हासिल नहीं कर सका जिसकी उम्मीद थी." इसके साथ ही पांडे लोगों के सभी आरोपों का खंडन करते हुए दावा करते हैं कि कोविड-19 के कारण केंद्र को फरवरी 2020 में बंद कर दिया गया. इसके पीछे वह सभी कर्मचारियों के घर चले जाने को बताते हैं. उनका कहना है कि केंद्र दिवाली के बाद फिर से खुलेंगे. 14 नवंबर को दीपावली भी बीत गई लेकिन 18 नवंबर तक भी केंद्र दोबारा शुरू नहीं हो सके.
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