19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सांसदों-विधायकों के खिलाफ 3000 से अधिक मामले लंबित, सुको ने कहा स्थिति चिंताजनक

इलस्ट्रेशन : शागनिक चक्रवर्ती
इलस्ट्रेशन : शागनिक चक्रवर्ती

24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में एमिकस क्यूरी अथवा न्याय मित्र विजय हंसारिया द्वारा पेश एक रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा और पूर्व विधायकों तथा संसदों के खिलाफ कम से कम 3211 मामले लंबित हैं. 2016 में दायर सांसदों के खिलाफ कानूनी मामलों की एक याचिका की सुनवाई के हिस्से के रूप में पेश हंसारिया की यह 14वीं रिपोर्ट है. हंसारिया वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. 24 अगस्त की रिपोर्ट में उन मामलों के बारे में बताया गया है जिनकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय कर रहे हैं. इनमें से कई मामले गंभीर अपराध के हैं और सालों से लटके पड़े हैं. सीबीआई के लंबित मामलों के बारे में सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 25 अगस्त को कहा है कि "हम इन मामलों की वर्तमान स्थिति से बहुत चिंतित हैं."

इससे पहले हंसारिया की 13वीं रिपोर्ट ने मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 321 के तहत वापस लिए गए मामलों की संख्या पर प्रकाश डाला था. इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को आदेश दिया था कि बिना हाई कोर्ट की अनुमति के किसी मौजूदा या पूर्व विधायक या सांसद के खिलाफ कोई भी मुकदमा वापस नहीं लिया जा सकता. अदालत ने उच्च न्यायालयों को 16 सितंबर 2020 से अब तक के ऐसे मामलों की जांच का आदेश दिया है. जांच के दायरे में लंबित और निपटाए जा चुके मामले भी आएंगे. सर्वोच्च अदालन ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजक की शक्ति के "दुरुपयोग" को नोट किया है.

अपने 25 अगस्त के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हंसारिया की 14वीं रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल ने 16 सितंबर 2020 के बाद भी सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग कर जघन्य अपराधों के मामले वापस लिए हैं." 14वीं रिपोर्ट में हंसारिया ने बताया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 में मुजफ्फरनगर में हुई सांप्रदायिक हिंसा के 510 मामलों में से 77 वापस ले लिए हैं. इन 510 मामलों में 6869 लोग आरोपी हैं. मुजफ्फरनगर हिंसा में कथित तौर पर 65 लोग मारे गए थे और 40000 लोग विस्थापित होना पड़ा था. रिपोर्ट के अनुसार सरकारी आदेश में मामलों को वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया गया है. इतना भर जिक्र है कि प्रशासन ने सोच-विचार कर मामले वापस लिए हैं. कई मामले आईपीसी की धारा 397 के तहत डकैती के अपराधों से संबंधित हैं जिनमें आजीवन कारावास तक का प्रावधान है." हंसारिया ने बताया है कि 175 मामले चार्जशीट दाखिल करने के बाद वापस लिए गए, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट जमा की गई थी और 170 मामलों को हटा लिया गया.

केरल में 16 सितंबर 2020 और 31 जुलाई 2021 के बीच धारा 321 के 36 मामले वापस लिए गए. धारा 321 के तहत मामलों को वापस लेने के लिए सात आवेदन या तो दायर किए गए हैं या अदालतों के समक्ष लंबित हैं. 10 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उल्लेख किया गया है कि धारा 321 के तहत प्रदित शक्ति "एक जिम्मेदारी है जिसका उपयोग सार्वजनिक हित में किया जाना है और इसका उपयोग बाहरी और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता.”

16 सितंबर 2020 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और अन्य केंद्रीय एजेंसियों के सामने लंबित पड़ी जांचों के बारे में अगली सुनवाई से पहले एक स्थिति रिपोर्ट दर्ज करेंगे.” लेकिन ईडी का डेटा और सीबीआई की स्थिति रिपोर्ट अगली तीन सुनवाई तक प्रस्तुत नहीं की गई. हंसारिया की सहायक वकील और सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड स्नेहा कलिता ने मेरे साथ हंसारिया की रिपोर्ट साझा की. हंसारिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीबीआई की विभिन्न अदालतों में 121 मामले लंबित हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 58 मामलों में आजीवन कारावास का प्रवधान है और एक मामले में मौत की सजा तक हो सकती है. हंसारिया की रिपोर्ट में कहा गया है, "45 मामलों में आरोप तय नहीं हुए हैं, हालांकि आरोप कई साल पहले लगाए गए थे."

जतिंदर कौर तुड़ वरिष्ठ पत्रकार हैं और पिछले दो दशकों से इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और डेक्कन क्रॉनिकल सहित विभिन्न राष्ट्रीय अखबारों में लिख रही हैं.

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