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इसरो जासूसी मामले से संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष एक याचिका 1994 से 1996 तक हुई सीबीआई की जांच पर और सवाल उठाती है. इस साल 23 जुलाई को केरल के पूर्व पुलिस अधिकारी एस विजयन ने अदालत में याचिका दायर कर इसरो जासूसी मामले को फिर से शुरू करने और दोबारा जांच कराने का अनुरोध किया है. सीबीआई द्वारा 25 साल बाद मामले पर अपनी अंतिम रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. याचिका रिपोर्ट में "गंभीर तथ्यात्मक और कानूनी दोषों" की ओर ध्यान आकर्षित करती है "जिसके कारण अंततः आरोपी व्यक्तियों को बरी कर दिया गया." इस महीने की शुरुआत में विजयन ने अदालत के समक्ष दस्तावेज पेश किए, जिसमें 2004 और 2008 में तमिलनाडु में लगभग सौ एकड़ जमीन का लेन-देन दिखाया गया था, जो इस मामले के प्रमुख संदिग्धों में से एक पूर्व इसरो वैज्ञानिक नंबी नारायणन और अन्य के साथ सीबीआई अधिकारियों के बीच हुआ था.
याचिका में जिन पूर्व सीबीआई अधिकारियों के नाम हैं उनमें राजेंद्रनाथ कौल, केवी हरिवलसन और पीएम नायर शामिल हैं. 1994 और 1996 के बीच जब सीबीआई इसरो मामले की जांच कर रही थी कौल और नायर ने एजेंसी में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और हरिवलसन ने नारायणन और शशिकुमारन के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत एक अलग मामला दर्ज किया था- वह खुद इस मामले में शामिल इसरो वैज्ञानिक हैं. सीजेएम अदालत के समक्ष पेश किए गए भूमि दस्तावेजों के अनुसार, नारायणन और उनके बेटे शंकर कुमार इन सीबीआई अधिकारियों या उनके रिश्तेदारों के नाम पर विभिन्न भूमि लेनदेन के पावर ऑफ अटॉर्नी हैं. विजयन की नवीनतम याचिका में कहा गया है कि "जांच अधिकारी और उनके वरिष्ठ अधिकारियों को रिश्वत देकर" इसरो मामले को नांबी नारायणन ने नुकसान पहुंचाया था.
इसरो जासूसी मामला रॉकेट प्रौद्योगिकी के संदिग्ध हस्तांतरण और विदेशी नागरिकों को भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों के बारे में जानकारी पहुंचाने से संबंधित है. सीबीआई को दिए जाने से पहले इस मामले की जांच केरल पुलिस और इंटेलिजेंस ब्यूरो ने की थी. एजेंसी ने उन सभी सुरागों को खारिज कर दिया जो उस समय तक एकत्र किए गए थे और आईबी और केरल पुलिस पर एक विस्तृत साजिश रचने का आरोप लगाया था. नवंबर 2020 में कारवां की कवर स्टोरी में इस बारे में विस्तार से बताया गया है. सीबीआई के हस्तक्षेप के कारण मामले को प्रभावी ढंग से बंद कर दिया गया था और मामले के तथ्यों पर कोई सुनवाई नहीं हुई थी. इसके बजाय जांचकर्ता खुद जांच और लंबे समय तक चलने वाली न्यायिक कार्यवाही का शिकार बन गए.
2019 में पद्म भूषण प्राप्त करने वाले नारायणन विवाद का सबसे अधिक पहचाना जाने वाला चेहरा हैं, यहां तक कि हाल ही में उनके साथ हुए कथित उत्पीड़न को दर्शाने वाली एक फीचर फिल्म भी बनी है जिसमें आईबी और केरल पुलिस अधिकारियों पर पूछताछ के दौरान उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप लगाया और उनके करियर को लगे झटके के बारे में दिखाया गया है. 1995 में केरल उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की एक खंडपीठ, जिन्होंने पूछताछ के वीडियो टेप देखे थे, ने कहा कि उन्हें यातना के कोई संकेत नहीं मिले. 2005 में एक विभागीय जांच के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अधिकारियों को दोषमुक्त कर दिया. इसके बाद केरल उच्च न्यायालय और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट राज्य सरकारों ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने के खिलाफ फैसला सुनाया.
सितंबर 2018 में दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने हालांकि नारायणन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एक पूर्व न्यायाधीश डीके जैन की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति कर "गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ उचित कदम उठाने के तरीके और साधन खोजने" का निर्देश दिया. तीन सदस्यीय समिति में केंद्रीय गृह मंत्रालय में पूर्व अतिरिक्त सचिव डीके प्रसाद और केरल के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव वीएस सेंथिल शामिल थे. आयोग ने 25 मार्च 2021 को सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपी.
15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को रिपोर्ट को प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के रूप में मानने और मामले की जांच करने का निर्देश दिया. सीबीआई को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी. 1 मई को एजेंसी ने केरल पुलिस और आईबी के 18 पूर्व अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जिनमें विजयन, गुजरात पुलिस के पूर्व महानिदेशक आरबी श्रीकुमार, पूर्व पुलिस उप महानिरीक्षक सिबी मैथ्यू और पूर्व पुलिस कमिश्नर वीआर राजीवेन के भी नाम शामिल हैं.
विजयन 1994 में तिरुवनंतपुरम के सर्कल इंस्पेक्टर थे. उन्होंने अपने वरिष्ठ राजीवेन के निर्देश पर मालदीव की दो महिलाओं, मरियम रशीदा और फौजिया हसन पर वीजा से अधिक समय तक रहने के लिए मामला दर्ज किया था. यह नियमित जांच संदिग्ध जासूसी पर एक जांच में बदल गई जो व्यापारियों, वैज्ञानिकों और जासूसों के एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की ओर इशारा करती थी जो कथित तौर पर भारत की रॉकेट तकनीक की जानकारी दे रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल के आदेश में कहा गया है कि "निजी प्रतिवादी सभी मामलों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र होंगे." लेकिन विजयन की याचिका के अनुसार, जब मामले के प्रभारी सीबीआई अधिकारी सुनील सिंह रावत ने 30 जून को उनका बयान लिया तो पूछताछ उस वक्त अचानक रोक दी गई जब उन्होंने मामले के बारे में अधिक विस्तृत जानकारी देनी शुरू की.
नारायणन ने उन अधिकारियों की सूची में विजयन का नाम लिया है जिन्होंने कथित तौर पर उन्हें प्रताड़ित किया और मामले को गढ़ने की साजिश रची. विजयन ने रावत को बताया कि उन्हें 15 नवंबर 1994 को ईरानीमुत्तम सरकारी अस्पताल में चिकनपॉक्स के इलाज के लिए भर्ती कराया गया था. उसी दिन सिबी मैथ्यू के नेतृत्व में एक एसआईटी का गठन किया गया था, जो अपनी टीम के साथ मामले को देख रहे थे. नारायणन को 30 नवंबर को गिरफ्तार किया गया था.
नारायणन की गिरफ्तारी के दिन मैथ्यू ने मामले को सीबीआई को देने की सिफारिश की क्योंकि इस मामले में अंतरराष्ट्रीय लोग शामिल थे और यह तीन राज्यों और विदेशों में भी फैला हुआ था. “यह मानने का कारण है कि आईएएफ/सशस्त्र बलों (आर एंड डी विंग) के बारे में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जानकारियों की जासूसी अमित्र देशों के लिए की गई है. वरिष्ठ सैन्य कर्मियों की मिलीभगत की बहुत संभावना है,” मैथ्यू ने उस समय केरल पुलिस के महानिदेशक को लिखा था. "एक वरिष्ठ अधिकारी की संलिप्तता के बारे में जानकारी (पूरी तरह से प्रमाणित नहीं) है." मैथ्यू की अग्रिम जमानत अर्जी में कहा गया है कि "अगर याचिकाकर्ता की ओर से कोई साजिश या बुरा विश्वास होता, तो वह जांच को किसी अन्य एजेंसी को स्थानांतरित करने की सिफारिश नहीं करते."
नारायणन के बारे में ज्यादातर यही कहा गया है कि इस मामले के कारण इसरो में उनका करियर बहुत लंबा नहीं रह पाया था. विजयन ने नारायणन के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से संबंधित विभिन्न दस्तावेज जमा किए हैं. पूर्व वैज्ञानिक ने "व्यक्तिगत कारणों" का हवाला देते हुए अपनी गिरफ्तारी से हफ्तों पहले अपना सेवानिवृत्ति पत्र जमा किया था.
दस्तावेजों में तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले में कई एकड़ भूमि के ऋणभार प्रमाण पत्र शामिल हैं. एक ऋणभार प्रमाणपत्र भूमि की खरीद के दौरान हस्ताक्षरित एक कानूनी दस्तावेज होता है जो यह दर्शाता है कि यह किसी भी कानूनी या मौद्रिक दायित्व से मुक्त है. सभी दस्तावेज तिरुनेलवेली में नांगुनेरी उप-पंजीयक कार्यालय में पंजीकृत हैं. याचिका के अनुसार भूमि लेन-देन के दस्तावेज नारायणन या उनके बेटे एन शंकर कुमार को जमीन पर पावर ऑफ अटॉर्नी के रूप में दिखाते हैं. जमीन मामले से जुड़े या इसमें शामिल अधिकारियों या उनके रिश्तेदारों के नाम पर खरीदी गई थी. याचिका के मुताबिक यह सभी लेन-देन 2004 और 2008 में हुए थे. विजयन के अनुसार, जमीन के कागजों में जिनका नाम है वह वह किसी "नौकरशाह, राजनेता या न्याय प्रशासन के किसी अधिकारी के बेनामी हो सकता है जिसने इसरो जासूसी मामले में नंबी नारायण को अनुकूल आदेश प्राप्त करने में मदद की."
एक खरीद विलेख जुलाई 2004 में केरल पुलिस के दक्षिण क्षेत्र के पूर्व महानिदेशक और केरल के मुख्यमंत्री के पुलिस सलाहकार रमन श्रीवास्तव की पत्नी अंजलि श्रीवास्तव के नाम पर 5.25 एकड़ भूमि का लेन-देन दर्शाता है. नारायणन अंजलि के पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर थे. 1 जनवरी 2008 का एक अन्य दस्तावेज अंजलि के नाम पर नारायणन द्वारा निष्पादित 6.13 एकड़ भूमि की बिक्री को दर्शाता है.
रमन श्रीवास्तव इसरो जासूसी मामले में सबसे विवादास्पद नामों में से एक था. उन्होंने मामले की जांच के लिए गठित एसआईटी (मैथ्यू की अध्यक्षता में) के सदस्यों को पीछे छोड़ दिया. एक संदिग्ध पर आईबी की रिपोर्ट के अनुसार, श्रीवास्तव "आवश्यक सुरक्षा" और "दस्तावेजों के परिवहन" के प्रभारी थे. जबकि श्रीवास्तव को इस मामले में कभी गिरफ्तार नहीं किया गया था उनकी कथित संलिप्तता की खबरों का राज्य के चुनावी माहौल पर काफी प्रभाव पड़ा था. विजयन की याचिका में सीबीआई से उन परिस्थितियों की जांच करने का अनुरोध किया गया है जिनके कारण कार्यों का पंजीकरण हुआबक्योंकि श्रीवास्तव पर "इसरो मामले में शामिल होने का आरोप लगाया गया था."
याचिका के अनुसार, बेनामी भूमि दस्तावेज नारायणन और दिवंगत राजेंद्रनाथ कौल, जो सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक थे, के बीच भूमि के लेन-देन को दर्शाता है. याचिका के अनुसार, जब इसरो विवाद चल रहा था, तब कौल चेन्नई के प्रभारी पुलिस उप महानिरीक्षक थे. सीबीआई केरल इकाई उस समय चेन्नई के अधीन काम करती थी. 2008 में 10.39 एकड़ भूमि के एक दस्तावेज में “राजेंद्रनाथ कौल का पावर ऑफ अटॉर्नी धारक श्री नंबी नारायणन को बताया गया था.'' (2004 में कुल 24.27 एकड़ कौल के नाम पर खरीदी गई थी और इसमें से 15.73 एकड़ को 2008 में बेचा गया था- यह सब नारायणन और शंकर कुमार के साथ पावर ऑफ अटॉर्नी धारकों के रूप में किया गया था.) अपनी नवीनतम याचिका में, विजयन ने कहा है संपत्ति के लिए भूमि रिकॉर्ड मौजूद है जो अप्रैल 1995 से पहले का है. याचिका में दावा किया गया है कि 14 मई 1995 को भूमि हस्तांतरण दस्तावेज कौल के लाभ के लिए नारायणन की "बेनामी" द्वारा निष्पादित किया गया था. सीबीआई उस दौरान आरोपियों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत दर्ज इसरो मामले और एक अन्य मामले की जांच कर रही थी. विजयन का तर्क है कि 1995 के भूमि दस्तावेजों के माध्यम से "रिश्वत" "बहुत घातक थी और केवल इसी कारण से इसरो का मामला एक क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने के साथ समाप्त हो गया ... समय से पहले गहन जांच के बिना."
याचिका में एक चौंकाने वाला आरोप भी लगाया गया है, जो इस मामले में अतीत के साथ-साथ वर्तमान जांच के लिए भारी प्रभाव डाल सकता है. केवी हरिवलसन सीबीआई में पूर्व पुलिस अधीक्षक हैं. 5 दिसंबर 1994 को सीबीआई ने नारायणन, शशिकुमारन और अन्य संदिग्धों के खिलाफ एक अलग मामला दर्ज किया था. मामले में सीबीआई अदालत के एक आदेश (दिनांक 30 दिसंबर 1996) के अनुसार, हरिवलसन, जो उस समय सीबीआई की कोचीन शाखा में थे, ने प्राथमिकी दर्ज की थी और मामले की जांच की थी. श्यामला देवी के नाम पर 9.27 एकड़ भूमि की बिक्री के लिए 18 जनवरी 2008 को एक ऋणभार प्रमाण पत्र नारायणन को निष्पादकों में से एक के रूप में दर्शाता है. याचिका में कहा गया है कि श्यामला देवी "श्री के.वी. हरिवालसन की बड़ी बहन हैं." याचिका के अनुसार, पिछले रिकॉर्ड 29.42 एकड़ भूमि के लिए बिक्री दस्तावेज को दर्शाता है जिसे 7 मई 1996 को "श्री नंबी नारायणन के बेनामी" द्वारा श्यामला देवी के नाम पर निष्पादित किया गया था. याचिका इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करती है कि हरिवलसन ने 21 जून 1996 को एक महीने में भ्रष्टाचार के मामले में छह में से पांच आरोपियों को आरोप मुक्त करने का अनुरोध करते हुए एक रिपोर्ट दायर की थी.
दस्तावेजों में 23 जुलाई 2004 का दस एकड़ की जमीन का एक दस्तावेज शामिल है, जिसके दावेदार का नाम एनएम शशिधरन नायर है. दस्तावेज को अन्य लोगों के बीच नारायणन द्वारा निष्पादित किया गया था. याचिका में आरोप लगाया गया है कि "ऐसा संदेह है कि उक्त एनएम शशिधरन नायर पी मधुसूदनन नायर के बेनमी हैं."
पूर्व उप महानिरीक्षक पीएम नायर सीबीआई में पर्यवेक्षी अधिकारी थे जिन्होंने इसरो मामले की कमान संभाली थी. पिछले साल रिपोर्टिंग के दौरान, उन्होंने मुझसे इस बारे में बात की थी कि सीबीआई ने मामले में किस तरह काम किया था. उनके अनुसार, कोर टीम में चार जांचकर्ता शामिल थे और जब भी किसी अन्य राज्य में किसी लीड की जांच की जाती थी, तो वे स्वयं वहां जाने के बजाय उस राज्य में सीबीआई अधिकारियों को बुलाते थे. सीबीआई के एक अधिकारी, जो जांच का हिस्सा थे और नाम नहीं बताना चाहते थे, ने मुझे बताया कि उन्हें नहीं लगता कि इसरो मामले में सीबीआई द्वारा कोई “ठोस जांच” की गई है. सीबीआई द्वारा जांच अपने हाथ में लेने के दो महीने के भीतर उनकी टीम को अचानक जांच छोड़ने के लिए कहा गया था. नायर ने मुझे बताया कि इस बीच "केरल पुलिस जांच दल और आईबी द्वारा दिए गए सभी तथाकथित सबूत मनगढ़ंत थे."
शशिधरन नायर के नाम पर 8.88 एकड़ भूमि के लिए 8 फरवरी 2008 को ऋणभार का एक अन्य प्रमाण पत्र भी नारायणन को पॉवर ऑफ अटॉर्नी के रूप में दर्शाता है.
आरोपियों को अभी तक जैन आयोग की रिपोर्ट के बारे में पता नहीं है. तिरुवनंतपुरम जिला न्यायालय ने 15 जुलाई को अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई से सीलबंद लिफाफे में आयोग की रिपोर्ट पेश करने को कहा. रशीदा और हसन ने मैथ्यू और केके जोशुआ की अग्रिम जमानत याचिका को चुनौती देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है. हालांकि कोर्ट ने दोनों अधिकारियों को जमानत दे दी है. रशीदा ने अपनी याचिका में विजयन पर यौन उत्पीड़न और आईबी अधिकारियों पर प्रताड़ना का आरोप लगाया है. विजयन की अग्रिम जमानत अदालत में लंबित है.
याचिका में कहा गया है कि डीके जैन आयोग ने आरोपी अधिकारियों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया था. विजयन की याचिका में कहा गया है, "दुर्भाग्य से याचिकाकर्ता सहित इसरो मामले में काम में हुई चूक के आरोपों के तहत किसी भी पुलिस अधिकारी को तलब नहीं किया गया था और न ही केरल पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों की झूठी पुष्टि करने वाले दस्तावेज/रिकॉर्ड पेश करने का कोई अवसर दिया गया था." भूमि के दस्तावेज मामले की जांच करने वाले सीबीआई अधिकारियों पर फिर से ध्यान दिलाते हैं.
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