1 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्रालय ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के उस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई जिसमें ट्रूडो ने भारत में जारी किसान आंदोलन को चिंताजनक स्थिति बताते हुए किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन के अधिकार का समर्थन किया था. मंत्रालय ने अपनी आपत्ति में कहा था, “ऐसी टिप्पणियां अनावश्यक हैं, खासकर तब जब यह एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों से संबंधित हैं.” उसी दिन ऑस्ट्रेलिया की एक सीनेटर जेनेट राइस ने वहां की संसद को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक फासीवादी संगठन बताया.
ऐसा कहने से पांच दिन पहले 29 नवंबर को भारत के संविधान दिवस के अवसर पर राइस ने एक राउंडटेबुल चर्चा में भाग लिया था जिसका विषय था : “क्या भारत फासीवादी राज्य बन रहा है?”
राउंडटेबल का आयोजन एमनेस्टी इंटरनेशनल और ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के संगठन हिंदूइज्म प्रोजेक्ट, हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स और इंडियन-अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने संयुक्त रूप से किया था.
ऑस्ट्रेलियाई ग्रीन पार्टी के न्यू साउथ वेल्स संसद के सदस्य डेविड शूब्रिज ने इस चर्चा को मॉडरेट किया था. (ऑस्ट्रेलिया में आठ स्तरीय संसद होती है.) शूब्रिज ने सत्र की शुरुआत यह पूछते हुए कि “क्या वे मूल्य जो एक उदार लोकतांत्रिक परंपरा वाले लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित हैं, भारत में उनकी मान्यता है?” फिर उन्होंने कहा, “भारत के मित्र होने के नाते ये ऐसे सवाल हैं जो मुझे लगता है कि पूछे जाने चाहिए.”
इस राउंडटेबुल में दो पैनल चर्चाएं हुईं जिनमें से एक का शीर्षक था : “अकादमी और नागरिक समाज का दृष्टिकोण”. इसमें शोधकर्ताओं और कार्यकर्ताओं ने अपनी बातें रखीं. दूसरे सत्र का शीर्षक था, “अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका” जिसमें ब्रिटेन और अमेरिका के नेताओं सहित अन्य लोगों ने अपनी बात रखी. इन चर्चाओं में पैनल के सदस्यों ने संघ परिवार और उससे संबद्ध संगठनों और भारतीय जनता पार्टी की सरकार की गतिविधियों पर चर्चा की और साथ ही भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आपत्ति के अधिकार के समक्ष मौजूदा चुनौतियों पर बात रखी.
अमेरिकी के शोध और मीडिया संस्थान पोलिस प्रोजेक्ट की कार्यकारी संपादक सुचित्रा विजयन ने पहले पैनल चर्चा में संघ परिवार के इतिहास के बारे में बताया. उन्होंने कहा, “संघ परिवार इटली के फासिस्ट और जर्मनी के नाजी संगठन की शैली पर बना है. यह समझना गलत होगा कि फासीवादी तरीके केवल तानाशाही या निरंकुश शासकों द्वारा अपनाए जाते हैं.” उन्होंने येल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और “हाउ फासिज्म वर्क्स” नामक किताब के लेखक जैसन स्टेनली के उद्धरण दिए जिसमें फासीवादी राजनीति में इस्तेमाल की जाने वालीं विभिन्न रणनीतियों के बारे में बताया गया है.
इन रणनीतियों में शामिल हैं, काल्पनिक अतीत की दुहाई देना, इतिहास का पुनः निर्माण, प्रोपगेंडा का इस्तेमाल करना, तर्कवाद के खिलाफ संस्कृति तैयार करना और उनके विचारों को चुनौती दे सकने में सक्षम विश्वविद्यालय और शैक्षिक प्रणाली पर हमले करना. इसके बाद आता है, हिंदू के पीड़ित होने की बात को बार-बार दोहराना, कानून और व्यवस्था को कमजोर करना और सार्वजनिक कल्याण और एकता को तोड़ना. इन तकनीकों के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप फासीवादी राजनीति एक धुंधले यथार्थ का सृजन करती है जिसमें कॉन्सप्रेसी थ्योरी, फेक न्यूज तेजी से तार्किक विमर्श का स्थान ले लेती हैं. विजयन ने कहा कि भारत में वहां के नेता इन नीतियों का निरंतर इस्तेमाल करते हैं. विजयन अमेरिका में रहती हैं और उनका कहना था कि एक भारतीय नागरिक होने के नाते, जो अपने घर को बर्बाद किए जाते देख रही है, वह चिंता के साथ अपनी बात रख रही हैं.
वहां मौजूद सभी पैनल सदस्यों ने 2014 में मोदी के आने के बाद से ही सीमांत समुदायों के प्रति किए गए व्यवहार का उल्लेख किया. हिंदूज फॉर ह्यूमन राइट्स के सह संस्थापक और पैनल चर्चा के सदस्य राजू राजागोपालन ने कहा, “मुझे लगता है कि मोदी सरकार ने धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को शत्रु की तरह दिखाने के अपने प्रयास तीव्र कर दिए हैं और भारत तेजी से एक विशिष्ट हिंदू राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है. कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज की सह निदेशक अंजलि अरोनडेकर ने दलित, बहुजन, मुस्लिम और ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति दक्षिणपंथी हिंदुओं के दुर्व्यवहार का उल्लेख किया. उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा, “मेरे जैसे बहुत से बुद्धिजीवियों के सामने सवाल है कि क्या भारत एक फासीवादी राज्य है? इस वक्त यह रिटोरिकल सवाल जैसा लगता है.”
अंजलि ने कहा कि बहुजन और समलैंगिक समाज की होने के चलते वह मानती हैं कि प्रत्येक बात के लिए मोदी और आरएसएस को दोष नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा, “आज भारत में जो हो रहा है वह एक निरंतर होने वाली बात है. मैं एक नीची मानी जाने वाली जाति से हूं और आप किसी भी नीची जाति के व्यक्ति और मुस्लिम से बात करके देखिए, वे ऐसी कई कहानियां आपको सुनाएंगे. जब मैं बड़ी हो रही थी, तब हम कांग्रेस को प्रगति विरोधी पार्टी कहते थे.”
पैनल के सदस्य एक्टिविस्ट और लेखक पीटर फ्रेडरिच ने अन्य देशों में आरएसएस की घुसपैठ के बारे में बात की. फ्रेडरिच ने ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी और हिंदू स्वयंसेवक संघ की भूमिका पर बताया कि मोदी द्वारा दोबारा चुनाव जीतने के बाद से ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी और हिंदू स्वयंसेवक संघ मोदी की जनसंहार वाली छवि को धोने में लगे हुए हैं. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस साल नवंबर में भारत में ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर या उच्चायुक्त बैरी ओ-फेरल ने आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत से नागपुर में आरएसएस के मुख्यालय जाकर मुलाकात की थी. फ्रेडरिच ने कहा कि यह निश्चित रूप से गलत दिशा में जाने का संकेत है.
ऑस्ट्रेलिया की मीडिया संस्था क्रीकी के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह दावा किया है कि उच्चायुक्त की मोहन भागवत से मुलाकात पद की भूमिका के अनुरूप है जिसमें विभिन्न तरह के सामाजिक और राजनीतिक समूहों से मुलाकात होती है. 1 दिसंबर को राइस ने संसद में ओ-फेरल और भागवत के बीच मुलाकात पर बात की. उन्होंने कहा कि वह मीटिंग एक कलंक है और ओ-फेरल को इस्तीफा देना चाहिए. अपने भाषण में राइस ने आरएसएस को एक फासीवादी संगठन बताया जो जनता के मानव अधिकारों की धज्जियां उड़ाता है. उन्होंने कहा, “नए साल में भी अपनी इस चर्चा को संसद में जारी रखूंगी क्योंकि यह मामला मानव अधिकार और लोकतंत्र को मिटाए जाने से जुड़ा है और इसे जनता के ध्यान में लाया जाना चाहिए और इस बारे में राष्ट्रीय संसद में चर्चा की जानी चाहिए.”
दूसरे पैनल में एक अन्य देश के आंतरिक मामले में टिप्पणी करने के विषय पर चर्चा की गई. यूरोपियन सांसद के सदस्य रहे ब्रिटेन के राजनीतिज्ञ शफ्फाक मोहम्मद ने कहा, “जो लोग मोदी सरकार से सवाल पूछते हैं उनसे कहा जाता है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. उन्होंने कहा कि मानव अधिकार और नागरिक स्वतंत्रता की बातें सबसे पहले होनी चाहिए. हमें कहना चाहिए कि हां अगर भारत कुछ अच्छा करता है तो हम उसकी तारीफ करेंगे लेकिन यदि वहां ऐसे मामले होते हैं तो भारत के एक सच्चे दोस्त होने के नाते हम उसे चुनौती देंगे और हम सवाल पूछेंगे. यह बहुत जरूरी है कि यह बताया जाए कि बीजेपी और आरएसएस भारत नहीं है.”
जनवरी 2020 में मोहम्मद ने यूरोपियन यूनियन की संसद में एक प्रस्ताव पेश किया था जो नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के बारे में था. वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में पैदा हुए थे और चार साल की उम्र में ब्रिटेन आ गए थे लेकिन भारतीय मीडिया में उनके पाकिस्तानी होने की बात को ज्यादा तवज्जो दी गई.
29 जनवरी को यूरोपियन यूनियन की संसद ने मार्च तक इस प्रस्ताव में मतदान को टाल दिया लेकिन फिर कोरोना महामारी के कारण इस पर मतदान नहीं हो सका. मोहम्मद ने जोर दिया कि इन मामलों को वैश्विक स्तर पर उठाना बहुत जरूरी है. उन्होंने कहा, “यूरोपियन यूनियन में मानव अधिकार की उप समिति है जिसके सदस्य सीएए-एनआरसी और पिछले साल अगस्त में कश्मीर में लगाए गए लॉकडाउन के प्रति चिंतित हैं. इस साल अगस्त में शूब्रिज ने भी न्यू साउथ वेल्स की संसद में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया था.
अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की डेमोक्रेटिक पार्टी की सदस्य मेरी न्यूमैन ने चर्चा में अपना वीडियो संदेश भेजा जिसमें उन्होंने वैश्विक स्तर पर बढ़ते राष्ट्रवाद के बारे में बात की. उन्होंने कहा, “अमेरिका में इस लहर के कमजोर होने से दूसरे मुल्कों में भी इसका असर होगा.” वह अमेरिकी चुनाव में ट्रंप के हारने और बाइडेन के जीतने के संदर्भ में यह बात कर रहीं थी.
इस राउंडटेबल से यह स्पष्ट हो गया है कि सीएए के पारित होने के बाद के भारत के घटनाक्रमों पर अंतर्राष्ट्रीय विमर्श बढ़ गया है. ह्यूमेनिज्म प्रोजेक्ट और कई अन्य एडवोकेसी समूह सीएए विरोधी आंदोलन के बाद बाहर के देशों में बने. इन समूहों के प्रतिनिधियों ने मुझे बताया कि वे लोग भारत में और बाहर हिंदुत्व से मुकाबला करने के लिए संगठित हो रहे हैं. ब्रिटेन में साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप के संस्थापक सदस्य अमृत विल्सन ने मुझे कहा, “जिस तरह ये संगठित हो रहे हैं वैसा पहले कभी नहीं हुआ.” नीदरलैंड में रहने वाली भारतीय नागरिक ऋतंभरा मनुवी ने बताया कि उन्होंने ह्यूमन राइट एडवोकेसी समूह लंडन स्टोरी फाउंडेशन में काम किया है जो सीएए विरोधी आंदोलन के बाद पंजीकृत हुआ था. मनुवी ने कहा कि उनका न्यास भारत आधारित विभिन्न संगठनों के डेटा पर आधारित रिपोर्टें तैयार कर यूरोपियन संसदीय समितियों को भेजता है क्योंकि ऐसा काम भारतीय संगठन नहीं कर सकते.
हालांकि ह्यूमेनिज्म प्रोजेक्ट ने पिछली बार भारत के घटनाक्रमों पर ऑस्ट्रेलिया की ग्रीन्स पार्टी से साथ काम किया है लेकिन इस प्रोजेक्ट के एक सदस्य मेराज खान ने किसी भी राजनीतिक संबद्धता से इनकार किया. उन्होंने कहा, “हमारा कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है. हमारा कोई एजेंडा नहीं है. हमें आर्थिक सहायता नहीं मिलती.”
खान ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के अधिकांश सदस्य कैरियर बनाने के लिए नहीं जुड़े हैं, वे स्वेच्छा से काम करते हैं. इस प्रोजेक्ट के बारे में खान ने बताया कि देशभक्ति का सबसे उच्चतम स्वरूप आपत्ति है. उन्होंने कहा, “एक सरकार को केवल स्वतंत्र प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जरिए जवाबदेही रखा जा सकता है और यह सब भारत में अवरुद्ध किया जा रहा है.”
इस प्रोजेक्ट के एक अन्य सदस्य दीपक जोशी ने कहा कि पश्चिमी सरकारों को भी जवाबदेही बनाना होगा. उन्होंने कहा, “इनमें से बहुत सारी सरकारें भारत को एक बड़े बाजार की तरह देखती हैं और वे भारत सरकार को नाराज करना नहीं चाहतीं.” जब मैंने उनसे पूछा कि अन्य आस्ट्रेलियाई पार्टियों का उनके इस काम के बारे में क्या कहना है तो जोशी ने कहा हम लोग उनसे बातचीत कर रहे हैं और हमें लगता है कि विभिन्न स्तरों में वे हमारा साथ देंगे. साउथ एशियन सॉलिडेरिटी ग्रुप की स्थापना 1980 में हुई थी और वह मोदी के आने के बाद से भारत में हिंदुत्व के खतरे के बारे में अभियान चला रहा है. विल्सन ने मुझे बताया कि ब्रिटेन में हिंदुत्व समूह की बड़ी लॉबी है. “मोदी चाहते हैं कि हिंदुओं का एक वैश्विक समुदाय हो जो हिंदुत्व का समर्थन करेंगे. मुझे लगता है कि अब लोगों को समझ में आ रहा है कि हिंदुत्व हिंदू धर्म नहीं बल्कि फासीवाद है.”