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26 जनवरी के बाद से पंजाब की कम से कम 14 पंचायतों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली सीमा पर जमे किसान आंदोलन में और भारी संख्या में शामिल होने के संबंध में प्रस्ताव पारित किए हैं. यह पंचायतें बरनाला, बठिंडा, मनसा, फरीदकोट, पटियाला और तरन तारन जिलों की हैं. गणतंत्र दिवस पर आंदोलनकारी किसानों की राजधानी में आयोजित ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद प्रस्ताव पारित किए गए थे. हिंसा की घटना के बाद एक ओर मुख्यधारा का मीडिया प्रदर्शनकारियों को बदनाम करने लगा तो वहीं दूसरी तरफ इंटरनेट बंद कर देने, सुरक्षा बल बढ़ा देने और बिजली-पानी की आपूर्ति ठप कर देने सहित प्रमुख धरना स्थलों से उन्हें जबरन खदेड़े जाने के संकेत दिखाई देने लगे. इसके बाद से ही पंजाब में पंचायतों ने आंदोलन जारी रखने के लिए अपनी कोशिशें बढ़ा दी हैं.
पंचायतों ने आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रत्येक परिवार से एक सदस्य को भेजने का निर्देश जारी किया है और ऐसा न करने पर जुर्माना लगाने की बात की है. ज्यादातर पंचायतों ने उन लोगों पर जुर्माना लगाने का फैसला किया है जो पंचायत के फैसले नहीं मानते हैं. फरीदकोट जिले के सिबियन गांव में पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि हर घर से एक सदस्य को एक हफ्ते के लिए दिल्ली बॉर्डर पर न भेजा पर अपनी खेती की जमीन के हिसाब से 500 रुपए प्रति एकड़ जुर्माना देना होगा. इसके साथ ही सामाजिक बहिष्कार भी होगा. इसके अलावा कुछ पंचायतों ने ग्रामीणों को विरोध प्रदर्शन के दौरान अनुशासन बनाए रखने को कहा है.
पंजाब की पंचायतें पहले भी इन कानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा चुकी हैं. द वायर के अनुसार, 3 अक्टूबर 2020 तक राज्य की एक दर्जन से ज्यादा ग्राम पंचायतों के एकमत से इन कृषि कानूनों का विरोध था. मैंने कई पंचायतों के सरपंचों से बात की, जिन्होंने 26 जनवरी के बाद इस तरह के प्रस्ताव पारित किए. उन्होंने इस बात से इनकार किया कि इस तरह के फैसले ग्रामीणों पर थोपे जाते हैं. उनके अनुसार, गांव वाले खुद ही आंदोलन में शामिल होने के लिए बेताब हैं.
पटियाला के काबुलपुर गांव के सरपंच लाख सिंह ने कहा कि हालांकि ग्राम पंचायत ने ऐसा प्रस्ताव पारित किया है, "आंदोलन में शामिल होने वालों की कतार बढ़ती ही जाए." मनसा के एक गांव के सरपंच रतनवीर सिंह ने कहा, "गांव का हर इंसान खुशी-खुशी सेवा करना चाहता है. पहले दिन से ही हमारे लोग (दिल्ली सीमा पर प्रदर्शन स्थल में) हैं.”
रतनवीर के अनुसार, कुछ लोग तो बस ट्रैक्टर रैली के लिए दिल्ली गए थे. उन्होंने कहा कि जब पंजाब वापस लौटते वक्त रास्ते में हुई हिंसा के बारे में उन्होंने सुना, तो अपने ट्रैक्टरों को वापस प्रदर्शन स्थलों की ओर मोड़ दिया. तरनतारन जिले के फाजिलपुर गांव के सरपंच मंगल सिंह ने मुझे बताया कि ऐसा ही एक प्रस्ताव उनके गांव में भी पारित किया गया है. उन्होंने कहा कि उनके गांव के लोग एक गुरुद्वारे में इकट्ठा हुए और उन्होंने खुद प्रस्ताव पारित किया. "उन्होंने मुझे बस लेटरहेड पर अपनी मुहर लगाने के लिए कहा."
अवतार सिंह बठिंडा के कराडवाला गांव के सरपंच हैं यहां इसी तरह का प्रस्ताव पारित हुआ है. इस तरह के कदम से कितने लोग लामबंद हो सकते हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए उन्होंने कहा कि उनके गांव में लगभग 3500 मतदाता हैं. अवतार बठिंडा में रामपुरा ब्लॉक के सरपंच संघ के प्रमुख भी हैं. उनके अनुसार, ब्लॉक की 30 पंचायतों ने इसी तरह के प्रस्ताव पारित किए हैं. उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में "ऐसे बिंदु भी हैं कि हर वार्ड से दस लोग एक हफ्ते के लिए दिल्ली जत्थे में शामिल होंगे और मना करने वालों को 2100 रुपए का जुर्माना देना होगा."
कुछ पंचायतों ने अपने प्रस्तावों में जोड़े हैं कि उनके ग्रामीणों की भागीदारी के कारण कोई अप्रिय घटना न घटे. कराडवाला पंचायत के प्रस्ताव में लिखा गया है, "कोई भी व्यक्ति जो शराब या किसी अन्य नशीले पदार्थ का सेवन करेगा या गुंडागर्दी करेगा उसे ग्राम सभा में अपमानित होने के अलावा 5100 रुपए का जुर्माना देना होगा. कोई भी व्यक्ति अपनी सुरक्षा और कामों के लिए स्वयं ही जिम्मेदार होगा.” मानसा जिले के किशनगढ़ फरवाही गांव के सरपंच चरणजीत सिंह ने कहा कि गांव में एक धर्मशाला में हुई सभा में प्रस्ताव पारित किया गया कि जो लोग नहीं मानेंगे उन पर 2000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा और इनके खिलाफ जाने वालों पर 4000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा.
कुछ प्रस्तावों में उल्लेख किया गया है कि विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के कारण किसी भी प्रतिकूल घटना के मामले में पंचायतें जिम्मेदारी लेंगी. पटियाला के हसनपुर जट्टन गांव की सरपंच हरदीप कौर ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि अपनी भागीदारी के कारण किसी भी नुकसान के लिए भुगतान करेगा. कौर ने कहा कि लोग बारी-बारी से आंदोलन में भाग ले रहे हैं. इसमें कहा गया है कि केवल 18 साल से ऊपर के लोग ही भाग ले सकते हैं. मनसा में डेलुआना गांव के सरपंच जसविंदर सिंह द्वारा पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि प्रदर्शन में ग्रामीणों के ट्रैक्टरों को हुए किसी भी तरह के नुक्सार का मुआवजा गांव मिलकर देगा. इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि ग्रामीण अपने ट्रैक्टरों को उन परिवारों के साथ साझा करेंगे जिनके ट्रैक्टर आन्दोलन में दिल्ली गए हैं.
गणतंत्र दिवस की हिंसा के बाद से पंजाब के कई लोगों के लापता होने की खबर है. 2 फरवरी को मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने घोषणा की कि उनमें से 70 दिल्ली की जेलों में बंद थे. 14 का पता चल गया और पांच का अभी भी पता नहीं चला है. गुमशुदा व्यक्तियों के बारे में शिकायत के लिए एक हेल्पलाइन नंबर 112 शुरू किया गया है. ट्रैक्टर रैली के बाद कुल मिलाकर 120 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
पंजाब में वकील किसानों को कानूनी सहायता प्रदान करते रहे हैं. चंडीगढ़ के मानवाधिकार वकील और कार्यकर्ता हाकम सिंह ने मुझे 2 फरवरी को बताया कि वह इस उद्देश्य के लिए लगभग 200 अधिवक्ताओं के साथ तालमेल कर रहे हैं. हाकम ने कहा, ''कल ही हमने (जरूरत के सामान की) 100 किट तिहाड़ (बंद किसानों के लिए) भेजी थी और उनके परिवारों के साथ फोन-इंटरनेट के जरिए मुलाकात की भी व्यवस्था की. “हमने दिल्ली की छह अलग-अलग अदालतों में 15 वकीलों को तैनात किया है. सुप्रीम कोर्ट और पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में ऐसे मामले उठाने और तालमेल करने के लिए प्रत्येक जगह 15 लोगों की टीम बनाई है. गाजीपुर, सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर तीन टीमें हैं, तिहाड़ जेल में दस वकील हैं और बाकी लापता और हिरासत में लिए गए लोगों की सूची बनाने के लिए हैं.” पंजाब मानवाधिकार संगठन ने भी 26 जनवरी के बाद विरोध प्रदर्शन में गिरफ्तार लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता की पेशकश की है.
हाकम ने मुझे बताया कि वरिष्ठ मानवाधिकार वकील और कार्यकर्ता-अधिवक्ता नवकिरण सिंह, सिमरनजीत कौर गिल, सरबजीत सिंह वेरका, अजयपाल मंडेर और आरएस बैंस कानूनी सहायता से संबंधित मार्गदर्शन कर रहे हैं. नविकरण के अनुसार, इस प्रयास में सैकड़ों वकीलों ने स्वेच्छा से भाग लिया. उन्होंने कहा, “मानवाधिकार वकील होने के नाते हम राज्य के अत्याचार से अच्छी तरह से वाकिफ हैं."
व्यक्तिगत स्तर पर भी आंदोलन का समर्थन अटूट प्रतीत होता है. मोहाली के एसएएस नगर के विभिन्न स्थानों पर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का समर्थन करने के लिए बैनर थामे लोगों के समूह देखे जा सकते हैं. 1 फरवरी को मैंने ट्रैफिक सिग्नल के करीब ऐसे बैनरों के साथ 10-12 लोगों के एक समूह को देखा. उनमें 9वीं कक्षा का एक छात्र नूर भी था जिसके झंडे पर लिखा था, "किसान नहीं तो खाना नहीं." समूह में बाकी उसके दोस्त, चचेरे भाई और जहां वह रहता है वहां के बुजुर्ग थे. नूर ने कहा कि वे लंगर सेवा जैसे सभी सामुदायिक सेवाओं में योगदान करते हैं. नूर ने मुझे बताया कि शाम को खेलने के बजाय वह कुछ दिनों से झंडा पकड़ कर विरोध कर रहा है. जब मैंने उससे पूछा कि वह विरोध क्यों कर रहा है, तो उसने कहा, "किसान भूखे मर जांगे, होर गरिब हो जांगे."