लाल किला हिंसा से जुड़े सवालों से मुंह चुराती दिल्ली पुलिस

07 फ़रवरी 2023
2021 गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर प्रदर्शनकारी. तमाम इशारों के बावजूद कि उस दिन अराजकता हो सकती है, सुरक्षा एजेंसियां हिंसा नहीं रोक पाईं.
अमरजीत कुमार सिंह/सोपा इमेजिज/गेटी इमेजिज
2021 गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर प्रदर्शनकारी. तमाम इशारों के बावजूद कि उस दिन अराजकता हो सकती है, सुरक्षा एजेंसियां हिंसा नहीं रोक पाईं.
अमरजीत कुमार सिंह/सोपा इमेजिज/गेटी इमेजिज

2021 को गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर कृषि कानून विरोधी सैकड़ों आंदोलनकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच हुई झड़प और लाल किले की प्राचीर से निशान साहिब फहराने के बाद किसान आंदोलन पर कई तरह के आरोप लगे. एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक "आपराधिक साजिश" ने विरोध प्रदर्शनों को "हाईजैक" कर लिया था. दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया और एक किसान नेता को नोटिस जारी करते हुए हिंसा को "सबसे घटिया, राष्ट्र-विरोधी हरकत" भी बताया. मीडिया ने इसी कहानी को आगे बढ़ाया. टाइम्स नाउ ने बताया कि दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने हिंसा को "पूर्व नियोजित" करार दिया और खबर चलाई कि "विदेशी हाथ" की जांच की जा रही है. समाचार एजेंसी एएनआई ने एक कदम आगे बढ़ते हुए एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, “पाकिस्तान प्रायोजित तत्व और खालिस्तान से सहानुभूति रखने वाले किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हैं.”

दो साल बाद भी इनमें से कोई आरोप साबित नहीं हुआ है, जबकि कृषि कानूनों को वापिस लिए लंबा वक्त बीत चुका है. वास्तव में, जैसा कि हिंसा के बारे में दर्ज किए गए सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक की जांच से पता चलता है, दिल्ली पुलिस ने अभी भी उस दिन क्या हुआ, इसके बारे में प्रासंगिक सवालों का जवाब नहीं दिया है, जिसमें कई व्यक्तियों को लगी गोलियों के बारे में भी सवाल शामिल हैं.

2021 के गणतंत्र दिवस को याद करें, तो दो महीने हो गए थे जब दसियों हज़ार किसानों ने 2020 के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सरहादों पर बड़े पैमाने पर धरना देना शुरू किया था. सरकार और मुख्यधारा के मीडिया ने आंदोलन को बदनाम करने की भरसक कोशिशें की लेकिन तब तक विरोध प्रदर्शनों के लिए समर्थन बढ़ गया था. इस बीच, किसानों ने 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा की.

उस दिन अफरा-तफरी मच जाएगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता था. प्रदर्शनकारियों के एक धड़े ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वह उस रास्ते पर नहीं चलेगा जो किसान नेताओं ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर तय किया था. दिल्ली पुलिस के "सूत्रों" ने एक दिन पहले मीडिया को बताया था कि "खालिस्तानी संगठनों से जुड़े बुरे तत्वों" और अन्य लोगों द्वारा रैली के दौरान किसी "बड़ी साजिश" को अंजाम दिए जाने की संभावना थी. दरअसल, बाद में एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि गणतंत्र दिवस से 20 दिन पहले, दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा लाल किले पर "खालिस्तानी झंडा" फहराने की योजना पर चर्चा की थी. एसजेएफ संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित एक खालिस्तानी समूह है, जिसकी भारत में साफ तौर पर बहुत कम घुसपैठ है. रैली से पहले इन इशारों के बावजूद सुरक्षा एजेंसियां हिंसा को रोकने में कैसे नाकाम रहीं?

प्रशासन की इजाजत के बिना प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर धावा बोल दिया और सुरक्षा अधिकारियों से भिड़ गए, जिसमें एक सौ चालीस से ज्यादा घायल हो गए. एक प्रदर्शनकारी जुगराज सिंह, एक झंडे के खंभे पर चढ़ गया और राष्ट्रीय ध्वज के ठीक नीचे सिख झंडा, निशान साहिब फहराया आया. लाल किले पर हिंसक प्रदर्शनकारियों के दृश्य खबरों में छा गए, जिसने उस दिन देश भर में हुई शांतिपूर्ण कृषि-कानून विरोधी ट्रैक्टर रैलियों को बौना कर दिया.

प्रभजीत सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं.

Keywords: Farm Bills 2020 Farmers' Agitation Farmers' Protest Delhi Police
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