2021 को गणतंत्र दिवस के दिन लाल किले पर कृषि कानून विरोधी सैकड़ों आंदोलनकारियों और सुरक्षा अधिकारियों के बीच हुई झड़प और लाल किले की प्राचीर से निशान साहिब फहराने के बाद किसान आंदोलन पर कई तरह के आरोप लगे. एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एक "आपराधिक साजिश" ने विरोध प्रदर्शनों को "हाईजैक" कर लिया था. दिल्ली पुलिस ने कथित तौर पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया और एक किसान नेता को नोटिस जारी करते हुए हिंसा को "सबसे घटिया, राष्ट्र-विरोधी हरकत" भी बताया. मीडिया ने इसी कहानी को आगे बढ़ाया. टाइम्स नाउ ने बताया कि दिल्ली पुलिस के सूत्रों ने हिंसा को "पूर्व नियोजित" करार दिया और खबर चलाई कि "विदेशी हाथ" की जांच की जा रही है. समाचार एजेंसी एएनआई ने एक कदम आगे बढ़ते हुए एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था, “पाकिस्तान प्रायोजित तत्व और खालिस्तान से सहानुभूति रखने वाले किसान आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हैं.”
दो साल बाद भी इनमें से कोई आरोप साबित नहीं हुआ है, जबकि कृषि कानूनों को वापिस लिए लंबा वक्त बीत चुका है. वास्तव में, जैसा कि हिंसा के बारे में दर्ज किए गए सबसे सनसनीखेज मामलों में से एक की जांच से पता चलता है, दिल्ली पुलिस ने अभी भी उस दिन क्या हुआ, इसके बारे में प्रासंगिक सवालों का जवाब नहीं दिया है, जिसमें कई व्यक्तियों को लगी गोलियों के बारे में भी सवाल शामिल हैं.
2021 के गणतंत्र दिवस को याद करें, तो दो महीने हो गए थे जब दसियों हज़ार किसानों ने 2020 के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सरहादों पर बड़े पैमाने पर धरना देना शुरू किया था. सरकार और मुख्यधारा के मीडिया ने आंदोलन को बदनाम करने की भरसक कोशिशें की लेकिन तब तक विरोध प्रदर्शनों के लिए समर्थन बढ़ गया था. इस बीच, किसानों ने 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने की घोषणा की.
उस दिन अफरा-तफरी मच जाएगी, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता था. प्रदर्शनकारियों के एक धड़े ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वह उस रास्ते पर नहीं चलेगा जो किसान नेताओं ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर तय किया था. दिल्ली पुलिस के "सूत्रों" ने एक दिन पहले मीडिया को बताया था कि "खालिस्तानी संगठनों से जुड़े बुरे तत्वों" और अन्य लोगों द्वारा रैली के दौरान किसी "बड़ी साजिश" को अंजाम दिए जाने की संभावना थी. दरअसल, बाद में एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि गणतंत्र दिवस से 20 दिन पहले, दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों ने प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस द्वारा लाल किले पर "खालिस्तानी झंडा" फहराने की योजना पर चर्चा की थी. एसजेएफ संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित एक खालिस्तानी समूह है, जिसकी भारत में साफ तौर पर बहुत कम घुसपैठ है. रैली से पहले इन इशारों के बावजूद सुरक्षा एजेंसियां हिंसा को रोकने में कैसे नाकाम रहीं?
प्रशासन की इजाजत के बिना प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर धावा बोल दिया और सुरक्षा अधिकारियों से भिड़ गए, जिसमें एक सौ चालीस से ज्यादा घायल हो गए. एक प्रदर्शनकारी जुगराज सिंह, एक झंडे के खंभे पर चढ़ गया और राष्ट्रीय ध्वज के ठीक नीचे सिख झंडा, निशान साहिब फहराया आया. लाल किले पर हिंसक प्रदर्शनकारियों के दृश्य खबरों में छा गए, जिसने उस दिन देश भर में हुई शांतिपूर्ण कृषि-कानून विरोधी ट्रैक्टर रैलियों को बौना कर दिया.
हिंसा के सिलसिले में लगभग एक सौ साठ लोगों को गिरफ्तार किया गया और 54 मामले दर्ज हुए. इन मामलों में से एक, 2021 की प्रथम-सूचना रिपोर्ट संख्या 96 के अनुकूल मई 2021 में तीन हजार पेजों से ज्यादा की एक चार्जशीट दाखिल की गई. चार्जशीट के एक भाग में, "षड्यंत्र," के जांच अधिकारी, पंकज अरोड़ा ने लिखा है कि प्रदर्शनकारी लाल किले को "फतह करना/हथियाना" चाहते थे और इसे किसानों का एक विरोध स्थल बनाना चाहते थे. अरोड़ा ने इस साजिश के एक संकेतक के रूप में रैली से पहले पंजाब और हरियाणा में ट्रैक्टरों की बिक्री में हुई बढ़ोतरी का हवाला दिया.
मामले के संक्षिप्त तथ्यों को सूचीबद्ध करते हुए, अरोड़ा ने लिखा कि कैसे प्रदर्शनकारी "दंगाइयों की गतिविधियों में शामिल थे." उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने लाल किले की सुरक्षा कर रहे पुलिसकर्मियों पर हमला किया, उनसे दंगा विरोधी उपकरण सहित दूसरे सामान लूट लिए और सरकारी संपत्ति में तोड़फोड़ की. जिस एफआईआर की बुनियाद पर चार्जशीट दायर की गई थी वह एक पुलिस निरीक्षक की शिकायत पर आधारित थी. इसमें, निरीक्षक ने प्रदर्शनकारियों को पिस्तौल और तलवार सहित हथियारों से पुलिसकर्मियों पर हमला करने का जिक्र किया है. शिकायत में कहा गया है कि जिसके जवाब में, पुलिस ने "उचित बल" का इस्तेमाल किया. चार्जशीट में विस्तार से नहीं बताया गया है कि यह उचित बल क्या था.
चार्जशीट में कहा गया है कि लाल किले पर कई लोग बंदूक की गोली से भी घायल हुए हैं. उनमें से एक जसप्रीत थे, जिनकी शिनाख्त नहीं हो पाई थी. जसप्रीत का जिक्र करने वाले खंड में, अरोड़ा ने कहा कि उनके मामले की जांच पूरी होने के बाद एक पूरक आरोप पत्र दायर किया जाएगा. हालांकि, तब से केवल एक और चार्जशीट जून 2021 में दायर की गई है. चार्जशीट में जसप्रीत या बंदूक की गोली से हुए घाव का जिक्र किए बिना इस बात पर जोर दिया गया है कि प्रदर्शनकारियों ने कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए नियमों को तोड़ा था.
19 साल के हिम्मत सिंह के मेडिको-लीगल सर्टिफिकेट में कहा गया है कि अन्य चोटों के बीच उनकी "पीठ के बीच में दाहिनी ओर एक घाव खुलता हुआ दिखा" था, लेकिन चोटों को गंभीर के बजाए "साधारण" के रूप में वर्गीकृत किया गया. एमएलसी को देखने के बाद सर्जरी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्यारा लाल गर्ग, जो चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय में चिकित्सा विज्ञान संकाय के डीन थे, ने कहा कि यह साफ था कि घाव बंदूक की गोली का था क्योंकि चिकित्सा अधिकारी ने "रोगी के ब्योरे में ये लिखा है और पीठ पर बंदूक की गोली की शिकायत दर्ज की है.''
आकाशप्रीत सिंह को भी गोली लगी है. आकाशप्रीत के वकील तेजप्रताप सिंह ने मुझे बताया कि "गोलियां किसकी थी" इस पहलू पर चार्जशीट खामोश है.
पुलिस ने उन 16 लोगों पर भारतीय दंड संहिता के तहत कई गंभीर अपराधों में आरोप लगाए। उन पर हत्या और दंगा करने का प्रयास, घातक हथियार रखने से संबंधित धाराएं और साथ ही शस्त्र अधिनियम, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान रोकथाम अधिनियम, महामारी रोग अधिनियम और अन्य धाराओं में मामले दर्ज किए गए. सभी 16 को फरवरी और मार्च में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन चार्जशीट दाखिल होने तक उनमें से 13 जमानत पर बाहर थे.
अभियुक्तों के अलावा, चार्जशीट में सात लोगों को नामजद किया गया था जिनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया था. इनमें निशान साहिब फहराने वाले जुगराज सिंह भी थे, जिनकी गिरफ्तारी के लिए दिल्ली पुलिस ने एक लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया था.
20 जुलाई को उन्हें अग्रिम जमानत देने के एक आदेश में, न्यायाधीश कामिनी लाउ ने कहा कि जबकि जुगराज ने ही निशब साहिब फहराया था, जांच अधिकारी ने कहा था कि "रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है जो दर्शाती हो कि आवेदक/आरोपी किसी भी तरह की हिंसा या पुलिस अधिकारियों पर हमला करने के मामले में शामिल थे.” लाउ ने आदेश में यह भी लिखा है कि उन्होंने जांच अधिकारी से पूछा था कि "क्या अभियुक्तों की लाल किले पर मौजूदगी बहुत गंभीर अपराध है और गैर-जमानती है. जांच एजेंसी भी इस बारे में निश्चित नहीं है.” लाउ ने तीन और लोगों, जजबीर, गुरजंत और बूटा सिंह को जमानत देते हुए अपने जुलाई के आदेश में यही बात दोहराई थी. इन तीनों के खिलाफ भी गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे.
उस महीने, लाउ ने 2021 की प्राथमिकी संख्या 96 में नामजद दो और लोगों, सुरजीत सिंह और मेजर सिंह को अग्रिम जमानत दे दी. इन दोनों आदेशों में, लाउ ने कहा कि उन्होंने जांच अधिकारी से पूछा था कि क्या "सिखों और निहंगों का लाठी ले जाना प्रतिबंधित है, जिस पर वह बहुत आश्वस्त नहीं है."
इसके अलावा, जांच अधिकारी अरोड़ा ने चार्जशीट के एक खंड में हर आरोपी के खिलाफ सबूतों को सूचीबद्ध किया. 16 में से पांच अभियुक्तों के लिए, उन्होंने किसी सबूत का जिक्र नहीं किया जिससे पता चलता हो कि वे खुद उस दिन हिंसा में शामिल थे. ये पांच आरोपी थे आकाशप्रीत, धर्मिंदर सिंह हरमन, धर्मिंदर सिंह, हरप्रीत सिंह और हरजीत सिंह.
हर उप-शीर्षक के तहत, अरोड़ा ने लिखा कि आरोपी से पूछताछ की गई और उसने "अपना जुर्म कबूल किया" कि वह "दंगाई भीड़" में शामिल हो गया था. इस तरह का बयान अदालत में सबूत के तौर पर मंजूर नहीं किया जाता है. अरोड़ा ने फोटो, वीडियो या कॉल रिकॉर्ड के बारे में लिखा, जो उस दिन लाल किले पर उनकी मौजूदगी साबित करता है. अरोड़ा ने कहा कि यह जानने के बावजूद कि सभा हिंसा में बदल गई है, किसी गैरकानूनी जमावड़े का सदस्य बने रहना, "मौजूदा आरोपी को गैर-कानूनी जमावड़े के किसी अन्य सदस्य द्वारा किए गए गैर-कानूनी अपराधों के लिए खुद ही जिम्मेदार ठहराता है."
हरमन ने हिंसा में शामिल होने से इनकार किया. "मैं अपना राष्ट्रीय ध्वज लेकर चल रहा था और मैंने वहां एक सेल्फी भी खिंचवाई," उन्होंने मुझे बताया. उन्होंने फेसबुक पर जो सेल्फी अपलोड की थी, उसे चार्जशीट में बतौर सबूत पेश किया गया है. हरमन ने कहा कि 2 फरवरी की रात करीब बीस पुलिसवाले सादे कपड़ों में दिल्ली के उनके घर में उन्हें गिरफ्तार करने आए. "उन्होंने मुझे अपने साथ चलने को कहा और जब मैंने कारण पूछा, तो उन्होंने मुझे गाली देना शुरू कर दिया और मेरा फोन छीन लिया." हरमन को गिरफ्तार कर लिया गया. पचास दिन बाद जाकर 22 मार्च को उन्हें जमानत मिली थी.
सभी आरोपियों के खिलाफ सबूत अलग-अलग नजर आ रहे हैं. उनमें से कुछ के लिए, पुलिस ने ऐसे वीडियो दर्ज किए जो उन्हें अधिकारियों पर हमला करते हुए दिखाते हैं. मरहूम अभिनेता दीप सिद्धू, लोगों को आधिकारिक रास्ते से हटने और लाल किले तक पहुंचने के लिए उकसाने के आरोपियों में से एक थे. एक इंटरव्यू में सिख उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले को आतंकवादी कहने से इनकार करने के बाद सिद्धू किसानों के आंदोलन में एक विवादास्पद शख्सियत बन गए. इसके बाद, 2019 के लोकसभा चुनावों की अगुवाई के दौरान बीजेपी सांसद सनी देओल के साथ जुड़ी उनकी तस्वीरें वायरल हुईं.
अरोड़ा ने लिखा कि एक अन्य मुख्य आरोपी, इकबाल सिंह खालिस्तान का "कट्टर" समर्थक था. इकबाल ने भड़काऊ भाषण दिया था और हिरासत में रहने के दौरान निशान साहिब को फहराने के लिए एसएफजे से नकद इनाम मिलने की बात कही थी. चार्जशीट में 50 लाख रुपए पाने के बारे में अपनी बेटी की एक रिश्तेदार के साथ बातचीत की रिकॉर्डिंग का जिक्र किया गया है. अरोड़ा ने आगे लिखा कि एक अन्य आरोपी जबरंग सिंह को "विदेशी फंडिंग" मिल रही थी.
चार्जशीट में अरोड़ा ने जिन पहलुओं का जिक्र किया है, उनकी आगे जांच की जानी थी. लेकिन जांच की क्या स्थिति है इसकी कोई जानकारी नहीं है. हिंसा के बारे में दिल्ली पुलिस के आयुक्त और अपराध शाखा को ईमेल किए गए सवालों का जवाब हमें नहीं मिला.
आकाशप्रीत के वकील तेजप्रताप ने मुझे बताया कि पुलिस ने चार्जशीट में दर्ज सीसीटीवी फुटेज अभी तक उन्हें मुहैया नहीं कराया है. 1 अगस्त 2022 को अरोड़ा ने मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को बताया कि मामले के नए जांच अधिकारी सतीश राणा हैं. 7 नवंबर को सीएमएम ने पुलिस से 18 जनवरी 2023 को जांच की स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा. लेकिन जांच अधिकारी उस दिन सुनवाई से गैर हाजिर रहे. इसके बाद कोर्ट ने उन्हें नोटिस जारी कर 4 मार्च 2023 को स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा है.