13 अगस्त को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने कारवां के पत्रकारों पर रिपोर्टिंग के दौरान 11 अगस्त को हुए हमले के संबंध में बैठक का आयोजन किया. इस बैठक में प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति रॉय, जानेमाने अधिवक्ता प्रशांत भूषण, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आनंद सहाय और कारवां के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल ने अपनी बात रखी. बैठक में प्रभजीत सिंह और शाहिद तांत्रे ने अपनी आपबीती सुनाई और महिला पत्रकार ने एक वक्तव्य साझा किया जिसे वहां पढ़कर सुनाया गया. नीचे पेश है उनके वक्तव्य का असंशोधित पाठ :
सबसे पहले तो मैं अपने साथी शाहिद और प्रभजीत को, उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई मुस्लिम विरोधी हिंसा की खबरों को लोगों के सामने लाने के अनवरत साहस और प्रतिबद्धता के लिए, शुभकामना देती हूं. मैं कहना चाहती हूं कि कारवां का हिस्सा होकर मैं बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं और हमेशा करती रहूंगी.
11 अगस्त को जो मेरे साथ हुआ वह मेरे लिए एक भयानक सदमा है लेकिन मैं उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुसलमानों, खासकर शन्नो और उनके परिवार की हिम्मत से आप सभी को परिचित करवाना चाहती हूं. उस दिन हम उनकी ही रिपोर्टिंग कर रहे थे.
उन्होंने हमें बताया कि किस तरह भजनपुरा पुलिस स्टेशन में पुलिस ने उनके साथ छेड़छाड़ की. उन्होंने स्थानीय लोगों, पुलिस और मीडिया के बारे में अपने कटु अनुभव भी हमें बताए. बहुत कुछ सहते हुए जैसी हिम्मत उन्होंने दिखाई, वह प्रेरणा देती है. शन्नो और उनकी बेटी मेरे लिए प्रेरणा हैं.
जब मैं उनसे बात कर रही थी तो शन्नो की जवान बेटी थकी-थकी सी लग रही थीं लेकिन जब हमने उनसे पूछा कि क्या वह ऑन रिकॉर्ड बात करना चाहेंगी, तो उन्होंने बेखौफ होकर बात की. अपनी चमकती आंखों और हल्की मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, “मैं सच बोलने से नहीं डरती.” इस वाक्य से बड़ी हिम्मत और कहां से मिल सकती है?
उत्तरी घोंडा में रहने वाली बहुत सारी औरतें मेरी मदद के लिए बाहर आईं थीं और बड़ी हिम्मत के साथ हमलावर हिंदू भीड़ को पीछे हटने को ललकार रहीं थीं.
मैं उन सभी पत्रकारों से अपील करना चाहती हूं, जो तेजी से फासीवादी दिशा पकड़ रही इस सरकार से नहीं डरते, कि वे उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुसलमानों पर और रिपोर्ट करें और उनके साहस का दस्तावेजीकरण करें.
मैं अपने सभी संपादकों और साथियों को धन्यवाद देती हूं कि उन्होंने मुझे सपोर्ट किया और हिम्मत बांधी. मीडिया के अंधकार के युग में मैंने असली पत्रकारिता क्या होती है, इनसे जाना है.
शन्नो आंखों में आंसू लिए बार-बार एक शब्द दोहरती थीं : “इंसाफ”. वह शब्द अब तक मेरे कानों में गूंज रहा है. बतौर मीडिया हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए और इंसाफ की लड़ाई लड़ रहीं औरतों के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करनी चाहिए. यह घटना मुझे ऐसी कहानियों को रिपोर्ट करने से रोक नहीं सकती और मैं बेखौफ ऐसा करती रहूंगी. एक बार फिर मैं अपने दोस्तों, सहकर्मियों, संपादकों और उन सभी का शुक्रिया करती हूं जो हमारे साथ खड़े हैं.