6 फरवरी को पंजाब के संयुक्त किसान मोर्चा के छह नेताओं द्वारा की गई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्हें भारतीय किसान यूनियन (अराजनीतिक) के राकेश टिकैत द्वारा दिए दो हालिया बयानों से जुड़े सवालों का सामना करना पड़ा. एसकेएम, बीजेपी द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले मुख्य किसान संगठनों का एक संयुक्त मंच है. बीकेयू (अ) भी बाकी संगठनों के साथ आंदोलन में शामिल है. उत्तर प्रदेश के रहने वाले टिकैत ने कहा था कि उनका गृह राज्य और उत्तराखंड, 8 फरवरी को एसकेएम द्वारा आहूत राष्ट्रव्यापी चक्का जाम या नाकाबंदी में भाग नहीं लेंगे. उन्होंने आगे कहा, "हमने सरकार को कानूनों को निरस्त करने के लिए 2 अक्टूबर तक का समय दिया है." एसकेएम के नेतृत्व को शामिल किए बिना अकेले ही टिकैत द्वारा सभी निर्णय लिए जाना यह साफ तौर से दर्शाता है कि 26 जनवरी को रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से सामूहिक रूप से चलने वाले आंदोलन में शक्ति केंद्र किस तरह से बदला है.
28 जनवरी के बाद से ही टिकैत को आंदोलन के एकमात्र नेता के रूप में दिखाया जा रहा है. इसके अलावा भी एसकेएम के नेतृत्व के लिए पिछले दो हफ्तों में चुनौतियां और बढ़ी हैं. इसमें गणतंत्र दिवस की रैली के बाद के दुष्परिणामों को झेलना भी शामिल है जिसमें हिंसा होने के अलावा 120 लोगों को गिरफ्तार किया गया और पंजाब से कई प्रदर्शनकारी लापता हो गए. एसकेएम को अभी इसे लेकर भी आत्मनिरीक्षण और जांच करनी है कि उनके किन निर्णयों के कारण 26 जनवरी को हुई रैली ने हिंसक रूप लिया था.
रैली के बाद सप्ताह भर से दिल्ली की तीन सीमाओं सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन को समाप्त करने का भारी दबाव बनने लगा.
टिकैत का संघ लगभग सात सप्ताह से गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन कर रहा था. 28 जनवरी को धरना स्थल पर बड़ी मात्रा में सुरक्षा बल जमा होने लगे और स्थानीय प्रशासन ने किसान नेताओं को बॉर्डर खाली करने का निर्देश दे दिया. लेकिन उसी समय टिकैत ने लाइव टेलीविजन पर एक भावुक भाषण दिया, जिससे हजारों लोग उनके समर्थन में बॉर्डर पर इकट्टा होने लगे और उन्होंने आंदोलन को आगे जारी रखा. कुछ समय पहले तक बीजेपी से संबद्ध रखने वाले टिकैत इसके बाद से आंदोलन का चेहरा बनकर उभरे हैं. फिर भी, वह और अन्य किसान नेता संयुक्त रूप से आंदोलन को आगे बढ़ा रहा हैं.
पंजाब के किसान नेताओं द्वारा 6 फरवरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस सिंघू बॉर्डर पर आयोजित की गई थी. एसकेएम के बत्तीस सदस्य सहित राज्य से लगभग 40 अन्य संघों के सदस्य उसमें शामिल हुए. बैठक के दौरान क्रांति किसान यूनियन के नेता दर्शन पाल ने टिकैत के चक्का जाम के बयान पर सवालों का जवाब दिया. पाल ने बड़ी तेजी से एसकेएम सदस्यों के बीच किसी भी प्रकार के टकराव को खारिज करते हुए कहा कि सभी फैसले सामूहिक रूप से लिए गए हैं. लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि टिकैत ने बयान से पहले कोई परामर्श नहीं किया था. पाल ने कहा, "यह अच्छा रहता अगर यह संयुक्त रूप से किया जाता, मुझे ऐसा लगता है कि ऐसे निर्णयों की जल्दबाजी में घोषणा नहीं करनी चाहिए." एक एसकेएम नेता ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि समूह में पंजाब के कुछ सदस्यों ने टिकैत के फैसले पर अपनी चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने कहा, "अब देखना यह है कि क्या टिकैत 18 फरवरी को किए जाने वाले देशव्यापी रेल रोको अभियान में साथ आएंगे या नहीं.
सरकार को कानून वापस लेने के लिए 2 अक्टूबर तक का समय देने की टिकैत की दूसरी टिप्पणी किसान आंदोलन के रूप को संभावित रूप से अलग आकार दे सकती है. 26 नवंबर 2020 के बाद से ही हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले हुए हैं, जिससे हर बीतते दिन के साथ सरकार पर कानूनों को निरस्त करने का दबाव बढ़ रहा है. 2 अक्टूबर की समयसीमा देने का मतलब है कि और सात महीनों तक दबाव बनाए रखा जाएगा. इसके अलावा, इसका मतलब यह भी होगा कि आंदोलन करने वाले किसान जिनमें से कई पंजाब और हरियाणा से हैं, उन्हें आंदोलन में शामिल होने के लिए अपनी खेती से समझौता करना पड़ सकता है क्योंकि अप्रैल में गेहूं की कटाई का समय है और जून में धान की बुवाई करनी होती है. बैठक में किरती किसान यूनियन के दातार सिंह ने कहा कि टिकैत के कहने का मतलब है कि आंदोलन अक्तूबर तक जारी रह सकता है. बाद में भारतीय किसान यूनियन (चढूनी) के प्रमुख गुरनाम सिंह चढूनी ने स्पष्ट रूप से कहा कि एसकेएम ने अक्टूबर तक की कोई समय सीमा नहीं रखी है.
28 जनवरी से पहले टिकैत सिंघू बॉर्डर पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले एसकेएम के नेताओं में ही शामिल थे. वह अक्सर सिंघू और टिकरी आंदोलन स्थलों पर भी जाते थे. लेकिन टिकैत अपने भाषण के बाद से इन दो जगहों पर एक भी बार नहीं गए.
वहीं दूसरी ओर भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के बलबीर सिंह राजेवाल और यहां तक कि नवंबर से टिकरी बॉर्डर पर डेरा जमाए बैठे भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्रराहां) के जोगिंदर सिंह उग्रराहां गाजीपुर बॉर्डर पर भी गए थे. आजतक के पत्रकार प्रभु चावला ने भी इस महीने अपने लोकप्रिय कार्यक्रम "सीधी बात" में टिकैत का साक्षात्कार लिया.
मैंने 10 फरवरी को दिल्ली और उत्तर प्रदेश के गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत के क्षेत्र का दौरा किया. टिकरी और सिंघू बॉर्डर के आंदोलन स्थलों पर, जहां मैं नियमित रूप से जाता रहा हूं, भीड़ गाजीपुर के मुकाबले चार गुना अधिक दिखाई पड़ती है. गाजीपुर में जाट और यादव समुदाय के लोगों द्वारा लगाए बैनरों में टिकैत और अन्य स्थानीय नेताओं को प्रमुखता से दिखाया गया है. आंदोलन स्थल पर हर दूसरे टेंट में हुक्का के साथ-साथ टिकैत और उत्तर भारत में किसानों के आदर्श माने जाने वाले उनके दिवंगत पिता, महेंद्र सिंह टिकैत की तस्वीरें लगी हैं. सिंघू और टिकरी आंदोलन स्थलों पर इस तरह किसी नेता विशेष की पहुंच नहीं है. यह देखा जाना बाकी है कि क्या यह सिर्फ एक नेता विशेष के रूप में टिकैत की ओर इस तरह ज्यादा ध्यान दिया जाना एक अस्थायी परिघटना है.
26 जनवरी की हिंसा वास्तव में आंदोलन और यहां तक कि किसान नेतृत्व के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ रही है. यह कुछ हद तक नेतृत्व की विफलता को भी दर्शाता है. किसान नेतृत्व और दिल्ली पुलिस की रैली से दो दिन पहले राजधानी के बाहरी इलाकों में रैली करने को लेकर सहमति बन गई थी. लेकिन रैली से एक दिन पहले आंदोलन में शामिल एक मुख्य संघ, किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने घोषणा की कि उनके लोग दिल्ली पुलिस द्वारा निर्धारित रैली मार्ग का पालन नहीं करेंगे. 25 जनवरी को द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट में पंढेर के हवाले से कहा, “हम दिल्ली पुलिस से मिले और अपना फैसला बताया. उम्मीद है कि वे इस पर विचार करेंगे."
योगेंद्र यादव उन एसकेएम नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने 2 जनवरी को घोषणा की थी कि किसान गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में प्रवेश करेंगे. हालांकि, वह स्वयं रैली में शामिल नहीं हुए. और उन्होंने उस दोपहर फेसबुक पर प्रदर्शनकारियों को हिंसा न करने, राजधानी में शांति बनाए रखने और निर्धारित रूट पर ही रैली करने की सलाह देते हुए एक वीडियो पोस्ट किया. उन्होंने वीडियो में यह भी कहा कि उन्हें मिली जानकारी के अनुसार रैली में कोई लाठीचार्ज नहीं हुआ था गोली चलने का तो सवाल ही नहीं उठता.
लेकिन उस दिन हुई हिंसा को लेकर सामने आने वाली रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा बलों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया था और उन पर गोली चलाने के भी आरोप लगाए गए हैं.
आंदोलनकारियों के एक समूह ने उस दिन लाल किले में राष्ट्रीय ध्वज के नीचे निशान साहिब फहराया था. मुख्यधारा के मीडिया ने इस घटना के आधार पर आंदोलन को अपमानित करना शुरू कर दिया और इसको राष्ट्रीय ध्वज के अपमान से जोड़कर पेश किया जाने लगा. उस दिन के बाद सिंघू बॉर्डर पर कई सौ ट्रैक्टरों ने आंदोलन की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति को उजागर करने के लिए तिरंगे के साथ ट्रैक्टर यात्रा निकाली.
उस दिन एसकेएम हिंसा की जिम्मेदारी न उठाते हुए सिर्फ अपना बचाव कर रहा था. उन्होंने अपने बयान में कहा कि "कुछ असामाजिक तत्त्वों द्वारा हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन में घुसपैठ कर अशांति फैलाई गई थी. हम ऐसे तत्त्वों से कोई संबंध नहीं है जिन्होंने हमारे अनुशासन का उल्लंघन किया है." अगले दिन उन्होंने लाल किले पर झंडा फहराने को किसी साजिश का हिस्सा बताया. एसकेएम ने अपने बयान में केएमएससी द्वारा रैली के मार्ग का पालन न करना भी एक साजिश करार दिया. फिर भी दिल्ली पुलिस ने उग्रराहां, टिकैत, पाल और राजेवाल सहित 37 किसान नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.
एसकेएम ने रैली के दौरान पुलिस द्वारा निर्धारित मार्ग का पालन न करने के लिए आजाद किसान समिति दोआबा के हरपाल सिंह संघ और भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के सुरजीत फूल को निलंबित कर दिया. संघ के अनुसार फूल, चढूनी और उनकी यूनियन के किसानों ने लाल किले में जाने की योजना बनाई थी. संघ ने 30 जनवरी को मुझे बताया कि वह रैली के मार्ग को लेकर दिल्ली पुलिस के साथ बातचीत करने वाले दल में शामिल नहीं थे.
उन्होंने कहा, "मुझे बस हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था, लेकिन बाद में मुझे एहसास हुआ कि मैंने दिल्ली पुलिस द्वारा तय की गई शर्तों पर हस्ताक्षर किए हैं." संघ ने मुझे बताया कि उन्होंने एसकेएम को अपने निलंबन को लेकर एक पत्र लिखा था. उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि सात अन्य नेताओं ने भी अपने कैडर के साथ लाल किले तक जाने वाली आउटर रिंग रोड पर रैली की थी. जिसमें अखिल भारतीय किसान सभा के बलदेव सिंह निहालगढ़ और निज्जर सिंह पुनावाल, बीकेयू (दोआबा) के मंजीत राय और चढूनी शामिल थे.
हिंसा के बाद के परिणामों को लेकर किसान नेतृत्व की प्रतिक्रिया भी अपर्याप्त दिखाई पड़ी. यहां तक कि 11 फरवरी तक एसकेएम नेतृत्व ने 26 जनवरी की घटना के बाद हिरासत में लिए गए एक भी व्यक्ति की जमानत कराने को लेकर कोई घोषणा नहीं की थी. हालांकि, इसने लापता व्यक्तियों का पता लगाने के लिए एक समिति बनाई है. इस महीने की शुरुआत में कारवां ने रैली के दौरान उत्तर प्रदेश के 25 वर्षीय किसान नवप्रीत सिंह की मौत पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि उनके दादा हरदीप सिंह डिबडिबा ने बताया कि गाजीपुर में उनसे पूछा गया था कि नवप्रीत के पार्थिव शरीर का अब क्या करना है. डिबडिबा ने बताया, “मैंने कहा यह पार्थिव शरीर अब किसान आंदोलन से जुड़ा हुआ है." जिन नेताओं के बुलावे पर नवप्रीत दिल्ली आए थे, उन्हें इस बारे में फैसला करना चाहिए. उन्हें यह देख कर निराशा हुई कि कोई भी नेता उनके पोते की शहादत की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे नहीं आया.
एसकेएम के पंजाब नेतृत्व ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आयोजित होने वाली महापंचायतों की तरह ही पंजाब में भी छोटी सभाएं करनी शुरू कर दी हैं. पंजाब में इस तरह की पहली सभा 11 फरवरी को लुधियाना में आयोजित हुई थी. जिसमें हजारों लोग शामिल हुए थे. भीड़ को संबोधित करते हुए उग्रराहां ने कहा, "किसी आंदोलन को कई तरह के उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है. सरकार हम पर हमला करती रहेगी लेकिन हमें हमलों का सामना करना होगा."