कोरोना लॉकडाउन : उत्तर प्रदेश में दलितों पर बढ़ रहे ठाकुरों के अत्याचार, पुलिस और प्रशासन नहीं दे रहे साथ

11 जुलाई को सुनील की बहन सत्यवती, चाची, पत्नी और घर के बच्चे मंदिर जा रहे थे कि ठाकुर जाति के आकाश सिंह और उसके भाई विकास सिंह बहन को छेड़ने लगे. जब सत्यावती चिल्लाने लगी तो विकास और आकाश के पिता भगवान सिंह और छिदा सिंह भी वहां पहुंच गए और सत्यावती, चाची और सुनील की मां के साथ मारपीट करने लगे. फोटो : सुनील कुमार
18 August, 2020

कोरोना महामारी से निपटने के लिए लागू राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन में उत्तर प्रदेश के दलितों को दबंग जातियों, खासकर ठाकुरों, की हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है. इस दौरान शहरों में रोजगार खत्म हो गए हैं और लाखों लोग गांव तो लौट आए हैं लेकिन यहां इन्हें जातिवादी उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है.

12 जून को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट या आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर में थाना गगहा के तहत आने वाले पोखरी गांव में में दलितों की एक बस्ती पर 100 से ज्यादा ठाकुरों ने हमला कर दिया. हमले में बहुत लोगों को गंभीर चोटें आईं और पुलिस ने कई धाराओं में मुकदमा भी दर्ज किया लेकिन अब तक इस घटना के किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है.

पोखरी गांव के 24 साल के अतुल कुमार ने मुझे बताया कि 12 जून को गांव में देवी काली की पूजा थी जिसे अतुल के मोहल्ले के तीन लोग, रजनीकांत, छोटू और उनके पिता मुरारी, देखने गए थे. अतुल ने मुझे बताया, “कुछ देर बाद मुरारी वहां से लौट आए. मुरारी के वापस आ जाने के बाद छोटू और रजनीकांत को गांव के ठाकुर मां-बहन की गाली देने लगे और दोनों को वहां से खदेड़ दिया.” अतुल ने आगे बताया, “लेकिन अगले दिन 13 जून को करीब 8 बजे हमारे मोहल्ले के शैलेश को, जो पकड़ी मार्किट जा रहा था, ठाकुरों ने रास्ते में पकड़ लिया और उसके साथ मारपीट की.”

मार से घायल शैलेश घर पहुंचा ही था कि बुजुर्ग ठाकुरों ने घर आकर माफी मांग ली और और दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया जिसके वहां मौजूद सभी लोग अपने-अपने घर चले गए. इसके बाद करीब 10 बजे सौ की संख्या में ठाकुरों ने गांव पर हमला कर दिया और उन्होंने गांव में मौजूद सभी लोगों को मारा. अतुल ने बताया, “मेरी गर्भवती भाभी मनीषा देवी को भी मारा.” गांव की चंद्रकला, अंकिता, रजनीकांत, रामकिरत और अन्य लोगों को गंभीर चोटें लगीं. अतुल ने कहा, “चंद्रकला तो दो दिनों तक गोरखपुर मेडिकल अस्पताल में भर्ती रही.” अतुल ने बताया कि हमले में उसके हाथ की एक उंगली टूटी गई. “मेरी डॉक्टरी जांच 10 दिन बाद हुई लेकिन तब तक मेरी चोट ठीक हो गई थी.”

गांव पर हमला करने वाले ठाकुर भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे, अतुल ने बताया और कहा, “वे कह रहे थे ‘अबे चमार तुम्हारी यह हिम्मत कि तुम हमारे सामने बोलोगे.’ हम लोगों ने 29 नामजद और 71 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.”

अतुल और उसका भाई अभिषेक मुंबई में मजदूरी करते हैं. उसने बताया, “हम दोनों भाई 18 मई को अपने घर आए थे लेकिन ठकुरों के हमले से सहम से गए हैं. उन्होंने हमारे मोहल्ले की चार बाइकें तोड़ दीं और खूब तोड़फोड़ की. हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही.”

मैंने इस मामले के जांच अधिकारी नीतीश कुमार से फोन पर बात की लेकिन उन्होंने मेरे सवालों का जवाब फोन पर देने से इनकार कर दिया और मुझसे कहा कि यदि बात करनी है तो गोरखपुर में आकर उनसे मिलूं.

गोरखपुर जैसी दूसरी घटना अयोध्या जिले के समरधीर गांव की है. 17 जुलाई को इस गांव के ठाकुरों ने दलितों की बस्ती पर हमला बोल दिया. गांव के ब्रजलाल गौतम ने मुझे बताया, “हमारे मोहल्ले का एक छोटा बच्चा, जिसकी उम्र 10 साल की होगी, तालाब में मछली मारने गया था. वहीं पुलिया पर तीन ठाकुर लड़के शराब पी रहे थे. यह शाम 5 बजे के आसपास की घटना है. उनमें से एक लड़के ने एक ढेला इसके कांटे पर मार दिया. उस छोटे बच्चा ने अनजाने में गाली दे दी तो उसे तालाब में डुबोने लगे. उसी वक्त उसका बड़ा भाई प्रमोद वहां आ गया, तो वे लोग प्रमोद को भी मारने लगे. वहीं पर हमारे मोहल्ले के दो-तीन लड़के और आ गए और बीच-बचाव करने लगे कि ठाकुर उन्हें भी मारने लगे.”

ब्रजलाल ने आगे बताया, “हम लोग अगली सुबह 18 जुलाई को 9 बजे हैदरगंज थाने शिकायत करने गए, तो पुलिस वालों ने हमारा ही चलना यह कह कर काट दिया कि तुम लोग मास्क नहीं पहने हो.” ब्रजलाल ने दावा किया, “हमलोग चेहरे पर गमछा लपेटे थे. हम 10 लोग थे. सबका 500-500 रुपए का चालान काट दिया.”

गौतम ने बताया कि अगले दिन 20 जुलाई को 40-50 ठाकुर दलितों को मारने आए. उन्होंने बताया, “वे लोग तमंचा, कुल्हाड़ी, लाठी-डंडे, फावड़ा, टेंगरी लिए हुए थे. उन्होंने जिसे पाया उसे मारा. गांव के मनीष, रमेश, दिनेश, संतरजी, उषा और प्रमोद को गंभीर चोट आई. उषा की पीठ पर फावड़ा लगा है. संतरजी का सिर फटा है. फिलहाल दोनों फैजाबाद अस्पताल में भर्ती हैं.” गौतम ने आगे बताया, “हमारे चाचा रामजन्म के घर के सामने लगा नल तोड़ दिया, घरों की छत पर सीमेंट की चादरें थीं, वे तोड़ दीं. हमने एफआईआर दर्ज की है पर अभी कोई कार्रवाई नहीं हुई है.”

हमले की वजह के बारे में ब्रजलाल ने बताया, “हम 20 लोगों ने 10 दिनों तक ठाकुरों के खेतों में धान रोपाई की थी. एक आदमी की मजदूरी एक दिन की 8 किलो गेहूं होती है लेकिन अब उन्होंने देने से मना कर दिया. शिकायत करने गए तो हमारे 10 लोगों का धारा 151 में चलान काट दिया जिसका थाने में 500-500 रुपए जमा कराया है. पुलिस ने कोई सुनवाई नहीं की और ठाकुर हमें धमकी दे रहे हैं कि अभी गांव में प्रादेशिक सशस्त्र बल या पीएसी तैनात है लेकिन जैसे ही वह हटेगी फिर हमें मारेंगे.”

मैंने हैदरगंज थाना प्रभारी कन्हैया यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि दोनों पक्षों ने झगड़ा किया था इसलिए दोनों पर केस दर्ज कर लिया गया है. यादव ने बताया, “दोनों पक्षों के लोगों का धारा 151 में चालान भी किया है और आगे कार्रवाई कर रहे हैं.”

ब्रजलाल गौतम

तीसरी घटना जौनपुर जिले के भुआखुर्द गांव की है. यहां भी दलितों की बस्ती पर 40 से ज्यादा ठाकुरों ने हमला किया था. कई लोगों को गंभीर चोटें आईं. इस गांव के मंगरूराम ने मुझे फोन पर बताया, “हमला 19 जुलाई को सुबह हुआ था. हमारे दो बच्चे, गोलू और राहुल, बागीचे में भैंस चरा रहे थे. जब दोनों बागीचे में आम पर ढेला मार रहे थे तो वहां से गुजर रहे दो ठाकुर लड़कों के बगल में एक ढेला जा गिरा. इस पर वे जाति सूचक गालियां देने लगें. हमारे लड़के भी उन्हें गाली देने लगे. ठाकुरों के लड़कों ने फोन कर वहां करीब दस और लड़कों को बुला लिया. ये सब लाठी-डंडे और हॉकी ले कर पहुंचे और गोलू और राहुल दोनों को बहुत मारा. इस बारे में जैसे ही हमारे लड़कों को पता चला, वे भी चार-पांच लोगों के साथ वहां पहुंच गए और गोलू और राहुल को छुड़ाने लगे. ठाकुरों ने उन्हें भी मारा.” मंगरूराम ने बताया कि जब बच्चे घर आ गए तो करीब 12 बजे उन लोगों ने 112 नंबर पर फोन कर पुलिस बुला ली क्योंकि उसी समय 40 से ज्यादा ठाकुरों ने लाठी-डंडे, हॉकी, रॉड लेकर मोहल्ले पर हमला कर दिया था. उन्होंने कहा, “मुझे हाथ में चोट आई. उन्होंने मार-पीट पुलिस के सामने की. गांव की मीनाक्षी, शिल्पी, संदीप, राहुल, मूलचंद, गोलू और प्रदीप सहित कई लोग घायल हुए हैं.” मंगरूराम ने आगे बताया, “हम लोगों ने 15 लोगों को नामजद किया है और 25 अज्ञात लोगों के नाम रिपोर्ट लिखाई है. जिसमें पुलिस ने 9 ही लोगों का नाम डाला है.” उन्होंने बताया, “अभी भी हम लोगों को धमकियां मिल रही हैं. ठाकुर लोग कहते हैं, ‘इनको देख लेंगे. अब रात में हमला होगा क्योंकि दिन में ये वीडियो बना लेते हैं.’ हमारे चारों ओर ठाकुरों के गांव हैं. उन गांव के लोग भी इनके साथ आ जाते है. इसलिए इन सबका भय बना रहता है.”

जब मैंने इस बारे में सिकरारा थाने के प्रभारी अरुण मिश्रा से बात की तो उन्होंने बताया कि “हमने आज सुबह ही चार्ज लिया है पर उन 9 लोगों की गिरफ्तारी हो गई है जिन्होंने दलितों पर हमला किया था.”

इसी तरह आगरा के दहगवां गांव में भी ठाकुर जाति के लोगों ने दलित जाति के लोगों को मारा-पीटा और औरतों के साथ छेड़छाड़ की. गांव के सुनील कुमार ने मुझे बताया कि 11 जुलाई को करीब 9.30 बजे जब उनकी बहन सत्यवती, चाची, पत्नी और घर के बच्चे मंदिर जा रहे थे तब ठाकुर जाति के आकाश सिंह और उसके भाई विकास सिंह ने बहन को पकड़ लिया उसके साथ छेड़खानी करने लगे. जब सत्यावती चिल्लाने लगी तो विकास और आकाश के पिता भगवान सिंह और छिदा सिंह भी आ गए. इन सब लोगों ने सत्यावती, चाची और सुनील की मां को मारा. जब यह सब हो रहा था तो बीच-बचाव के लिए सुनील के चाचा वहां पहुंचे लेकिन ठाकुरों ने उन्हें भी पीटा.

सुनील ने मुझे बताया, “मैं और मेरे भाई नोएडा की एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं. जैसे ही हमें घटना का पता चला हम वहां से चल दिए और शाम तक गांव आ गए. अगले दिन 12 जुलाई को हम इनका इलाज कराने आगरा ले गए लेकिन सरकारी अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया. किसी तरह एक प्राइवेट अस्पताल में इनका इलाज शुरू हुआ.” सुनील ने बताया कि उन्होंने मामले की तहरीर 12 को जुलाई को दी लेकिन “उस दिन हमारी कोई रिपोर्ट नहीं दर्ज हुई. अगले दिन 13 जुलाई को हमारी रिपोर्ट दर्ज हुई.”

सुनील ने बताया कि शिकायत की खबर लगते ही, उसी रात 11 बजे के आस-पास ठाकुरों ने उनकी झोपड़ियों में आग लगा दी लेकिन पुलिस ने कार्रवाई नहीं की. “20 जुलाई को भारतीय महिला सुरक्षा संघ की अध्यक्ष प्रियंका वरुण ने आईजी के कार्यालय को घेराव किया तब जा कर उन लोगों की गिरफ्तारी हुई”, सुनील ने बताया और जोड़ा, “कल हमें सूचना मिली थी कि ठाकुर बड़ी पंचायत करने वाले हैं. यह सूचना पुलिस को भी मिली तो गांव में भारी संख्या में पुलिस आ गई जिसकी वजह से पंचायत टल गई.” मैंने प्रियंका वरुण से फोन पर बात की. उन्होंने बताया कि पूरे प्रदेश में दलितों के साथ अत्यचार हो रहा है. उन्होंने कहा, “यह सरकार मनुवाद को बढ़ावा दे रही है. इस सरकार में ऊंची जाति के लोग अपनी मनमानी कर रहे हैं और वे कानून की परवाह नहीं करते.”

प्रदेश में दलितों पर ठाकुरों की हिंसा का विस्तार श्मशान तक हो गया है. आगरा जिले के ही रायभा गांव की एक घटना में ठाकुरों ने नट समाज की एक महिला की अर्थी को गांव के श्मशान में जलाने नहीं दिया. 20 जुलाई को लंबी बीमारी के बाद राहुल सिंह की पत्नी पूजा सिंह की मौत हो गई थी. 21 जुलाई को पूजा के परिवार के लोग उसकी अर्थी लेकर पास के श्मशान घाट गए. जब पूजा का छह साल का बड़ा बेटा चिता में आग लगाने वाला था, तभी वहां नगला पुराना गांव के 80 ठाकुर आ गए और उन्होंने चिता जलाने नहीं दी. वहां मौजूद पूजा के जेठ सौदान सिंह ने मुझे फोन पर बताया, “हम लोग 1976 में इस गांव में आए थे. इस गांव के लोगों ने हमें बसाया था. पिछले बीस सालों में हमारा कोई व्यक्ति बीमारी से नहीं मरा.” उन्होंने कहा, “जब मेरा भतीजा चिता में आग देने लगा उसी समय वहां करीब 80 ठाकुर आ गए और उन्होंने आग देने से रोक दिया. उन लोगों ने कहा कि वह श्मशान घाट उनका है और उस पर कोई छोटी जाति का व्यक्ति नहीं जल सकता.”

वहां मौजूद लोगों ने पुलिस को बुलाया लेकिन ठाकुरों ने पुलिस की भी नहीं सुनी और अर्थी को चिता से नीचे उतारना पड़ा. सौदान ने कहा, “हम लोगों ने अर्थी को गांव से चार किलोमीटर दूर नगला लालदास में अपनी जाति के श्मशान घाट ले जाकर जलाया.” उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने भी इस घटना पर ट्वीट कर घटना को “अति शर्मनाक, अति निंदनीय” बताया है. सौदान सिंह ने मुझसे कहा, “हमने किसी के खिलाफ कोई भी तहरीर नहीं दी क्योंकि हम सभी लोग दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं और हमें यहीं रहना है.”

लॉकडाउन में उत्तर प्रदेश में जातीय हिंसा क्यों बढ़ रही है जब मैंने यह सवाल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार से पूछा. उन्होंने कहा, “दलितों पर जब भी हिंसा होती है उसे हम कई अलग-अलग रूप में देखते हैं. एक हिंसा परंपरागत होती है. जैसे, ‘तुम मेरे सामने बैठे कैसे? खड़े कैसे हो गए?’ छुआछूत की बात हो गई. ये हिंसा के परंपरागत रूप हैं. यह इन जातियों की मनोस्थिति है, जो परिवर्तित नहीं हुई है. यह हिंसा हमको दिखाई पड़ती है. दूसरी लोकतांत्रिक प्रणाली में होने वाली हिंसा है. अपने उस पार्टी को क्यों वोट डाला, इस पार्टी क्यों नहीं डाला. वे लोग वोट देने से रोकने का प्रयास करते हैं. ये पंचायत से लेकर लोक सभा चुनाव तक में होता है. तीसरा, जब दलित अपने अधिकारों को लेकर लड़ते हैं, तब उन पर हिंसा बढ़ती है. ऐसे में उनके पास विकल्प होता है कि वे जातीय अत्याचार सहते रहें और कोई विरोध न करें क्योंकि अगर वे संवैधानिक अधिकारों की मांग करते हैं, तो उन पर अत्याचार बढ़ जाता है. किसी ने न्यूनतम मजदूरी मांग ली, किसी ने अच्छा घर बना लिया, तो लोगों को उनसे दिक्कत होती है. जब दलित अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ता है, तो उस पर हमले और तेज हो जाते हैं.”

कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश का दलित अपने अधिकारों के लिए हमेशा लड़ा है और इसलिए वहां अत्यचार भी अधिक होते हैं. उन्होंने कहा, “वह दलितों के संघर्षों की भूमि है. दलितों के अत्याचार को समझना है, तो उत्तर प्रदेश की जमीन का पैटर्न समझना होगा. जमीन किसके पास है? जमींदार कौन हैं? ज्यादातर ठाकुर जमींदार हैं. ऐसा पूर्व से मध्य तक है.”

कुमार ने कहा, “हमारे संविधान में जिस सामाजिक न्याय की बात है उसे सरकार भूल गई है. आंबेडकर कहते थे, ‘अगर बहुसंख्यक जनता किसी कानून को नहीं मानती तो हम उस कानून को लागू नहीं करा सकते. यही उत्तर प्रदेश में हो रहा है. वहां नौकरशाही भ्रष्ट ही नहीं जातिवादी भी है. इस बात को देखना चाहिए कि सचिव से लेकर डीएम और थाना प्रभारी तक किन जाति के लोगों का आधिपत्य है. इस संरचना को देख कर अपराध करने वालों को लगता है कि उनके साथ कुछ नहीं होगा. प्रशासन का ऐसा रवैया उनको ऐसे अपराध करने के लिए प्रेरित करता है.”

प्रदेश में दलितों के खिलाफ बढ़ रहे अपराधों के बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट पूर्व न्यायाधीश रविंद्र सिंह ने मुझे बताया कि एससी-एसटी वर्गों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए जरूरी है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत उनकी शिकायतों पर तुरंत एक्शन लिया जाए लेकिन “दुर्भाग्य की बात है वर्तमान सरकार और इसके शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की सोच दलित विरोधी है. उसी सोच के अधिकारियों को एसपी, डीएम, एसएचओ बनाया गया है. उनको लगता है अगर दलितों के खिलाफ कोई अन्याय होता है, तो कोई खास बात नहीं है.”

सिंह ने बताया कि उन्हें ऐसा लगता है कि वर्तमान सरकार जातिगत संघर्षो की ओर बढ़ रही है. उन्होंने कहा, “जैसे-जैसे यह बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे लग रहा है कि समाज में एक भयानक स्थिति पैदा होगी. भारत जब स्वतंत्रत हुआ तब सोचा था कि जाति, धर्म के नाम हिंसा नहीं होगी पर जैसे-जैसे स्वतंत्रता के साल बढ़ते जा रहे है वैसे-वैसे ये हिंसाएं भी बढ़ती जा रही हैं.” उन्होंने कहा, “सरकार ने इन घटनाओं पर ध्यान नहीं दिया, तो बड़ी उथल-पुथल जरूर होगी.”