लॉकडाउन की वजह से सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल घर लौटने को मजबूर श्रमिक

28 मार्च 2020
देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद अपने गावं लौट रहे हैं प्रवासी मजदूर.
दानिश सिद्दीकी/रॉयटर्स
देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद अपने गावं लौट रहे हैं प्रवासी मजदूर.
दानिश सिद्दीकी/रॉयटर्स

25 मार्च की शाम 6 बजे नारू लाल बरगोट और उनके आठ अन्य दिहाड़ी मजदूर साथी मुंबई के उपनगर बोरीवली से महाराष्ट्र के पालघर के पास जंगली इलाके से गुजर रहे थे. उन्होंने उस दिन सुबह 8 बजे पैदल चलना शुरू किया था और अब तक वह 90 किलोमीटर चल चुके थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च की रात भारत में कोविड​​-19 के प्रकोप को रोकने के लिए 21 दिन की राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की घोषणा के बाद बरगोट और उनके साथियों के जैसे कई अन्य श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों को मुंबई से बाहर जाना पड़ा. इससे एक प्रकार की भगदड़ और चिंता फैलने लगी. केंद्र सरकार से किसी भी प्रशासनिक सहायता के बिना श्रमिकों ने शहर छोड़ना शुरू कर दिया.

लॉकडाउन के मद्देनजर बस और ट्रेन सेवाएं रोक दी गई थी. ऐसे में बरगोट जैसे भारत भर के हजारों श्रमिकों के पास अपने शहरी आवासों से अपने गांवों और शहरों तक जाने के लिए पैदल चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. बरगोट के लिए यात्रा बेहद कठिन होगी क्योंकि उन्हें बोरीवली से 700 किलोमीटर दूर राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के लोहागढ़ गांव जाना है. वह पिछले 15 वर्षों से मुंबई में काम कर रहे हैं. बरगोट ने कहा कि वह एक स्थानीय ठेकेदार के पास संगमर्मर और टाइल्स की फिटिंग करने का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें दिन भर खाने के लिए भोजन नहीं मिला और वह सिर्फ पानी पी कर ही अपना सफर तय कर रहे हैं. बरगोट और उनके साथ चल रहे बाकी लोगों को पुलिस ने मुंबई की मीरा रोड पर एक बार रोका और उन्हें वापस जाने के लिए कहा. जब उन्होंने पुलिस से कहा कि उनके पास खाने और पीने के लिए कुछ भी नहीं है तो पुलिस ने उनकी अनदेखी की और उन्हें बोरीवली लौटने के लिए कह दिया. हताश होकर वे वापस लौट आए और फिर उन मार्गों से आगे सफर तय किया जहां पुलिस तैनात नहीं थी. बाद में जब पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ने लगी तो समूह के लोग अलग-अलग होने लगे और समूह के रूप में आगे बढ़ने के बजाय सभी ने थोड़े अंतराल पर एक के पीछे एक चलना शुरू कर दिया.

जब मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने कब तक चलते रहने की योजना बनाई है तो बरगोट ने बताया, "हम रात में भी चलते रहेंगे क्या पता अगर हमें रुकने के लिए कहीं जगह मिल जाए तो हम रुक जाएंगे.” फिर उन्होंने कहा, “मोदीजी को हमने राम-राम बोल दिया. उन्होंने हमें समय नहीं दिया. 21 मार्च को उन्होंने कहा कि रविवार को कोई भी बाहर न निकले और फिर कल उन्होंने 20 दिन और जोड़े दिए." उन्होंने आगे कहा, “हम क्या खाएंगे, हम क्या करेंगे, क्या हम कमाएंगे? हम दैनिक मजदूरी कर अपना पेट भरते हैं. हमारे पास कोई स्थायी नौकरी नहीं है जिससे हमें मासिक वेतन मिले." बरगोट ने मुझे बताया कि उनके चार बच्चे हैं जो उनका इंतजार कर रहे हैं और वह यह नहीं जानते कि अब उन्हें कैसे खिलाएंगे.

23 मार्च को श्रम और रोजगार मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी कर कहा कि ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में सरकार के साथ समन्वय को बढ़ाते हुए सभी निजी और सार्वजनिक संस्थाएं अपने कर्मचारियों विशेष रूप से आकस्मिक या संविदाकर्मियों को नौकरी से न निकालें और न ही उनकी उनकी मजदूरी कम करें. यह निर्देश किसी भी दंडात्मक उपायों के बिना एक सलाहकार की प्रकृति में जारी किया गया था. इस निर्देश के सिर्फ सहलाकर प्रकृति में होने के कारण दोनों लघु-इकाइयों के साथ-साथ प्रमुख उद्योगों के नियोक्ताओं ने संविदात्मक और आकस्मिक श्रमिकों को नौकरी से निकलना शुरू कर दिया है. 

ऐसे मजदूर 21 दिन की लॉकडाउन अवधि समाप्त होने के बाद भी न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा और सुनिश्चित नौकरी की संभावनाओं के साथ संघर्ष करते रहेंगे.

कौशल श्रॉफ स्वतंत्र पत्रकार हैं एवं कारवां के स्‍टाफ राइटर रहे हैं.

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