अगले यूपी चुनाव में कितना कारगर होगा 8 क्षेत्रीय दलों का भागीदारी मोर्चा?

अरुण राजभर

उत्तर प्रदेश की आठ क्षेत्रीय पार्टियों ने 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ भागीदारी संकल्प मोर्चा नाम से चुनावी गठबंधन बनाया है. मोर्चा में शामिल होने वाले दल हैं : सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी), जन अधिकार पार्टी, अपना दल (के), भारतीय वंचित समाज पार्टी, भारतीय मानव समाज पार्टी, जनता क्रांति पार्टी (आर), राष्ट्रीय भागीदारी पार्टी (पी) और राष्ट्र उदय पार्टी.

इन दलों के नेता अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों से आते हैं. गठबंधन के नेता 2022 में राज्य सरकार का गठन करने या नहीं तो सरकार गठन में अपनी भूमिका के प्रति आशावान लग रहे हैं. एसबीएसपी के ओम प्रकाश राजभर संयुक्त मोर्चे के राष्ट्रीय संयोजक हैं और मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट के नेतृत्व में वर्तमान सरकार में मंत्री थे. राजभर ने मुझे बताया, "हमारे मोर्चे में पिछड़ी जातियों के नेता हैं जो अपने समुदायों के भीतर प्रभाव रखते हैं."

पारंपरिक रूप से ऊंची जाति की राजनीति करने वाली बीजेपी ने पिछले छह वर्षों में अन्य पिछड़ा वर्ग समूहों पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई है. उत्तर प्रदेश में यादव और जाटव को क्रमशः समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का मतदाता माना जाता है. सपा और बसपा के नेतृत्व में यादव और जाटव अन्य ओबीसी और दलित जाति समूहों की तुलना में अधिक प्रभावी हुए हैं. 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद, बीजेपी ने गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश की है.

स्क्रॉल डॉट इन में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार बीजेपी ने दावा किया था कि उसने 2017 के राज्य चुनावों में अन्य कारणों के अतिरिक्त उन वर्गों तक पहुंचकर जीत हासिल की थी जो प्रतिनिधित्व से वंचित थे. 2019 के लोक सभा चुनावों में भी बीजेपी को ओबीसी से अच्छा-खासा प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ था. एक अन्य विश्लेषण के अनुसार, “दो प्रमुख ओबीसी जातियों, कुर्मी और कोइरी से बीजेपी को 80 प्रतिशत वोट मिले थे. 72 प्रतिशत अन्य ओबीसी (यादव, कुर्मी और कोइरी को छोड़कर) ने बीजेपी को मतदान किया था." राजनीतिक टिप्पणीकारों ने कहा है कि ओबीसी में उपश्रेणियां बनाने के लिए बीजेपी के प्रयास- जो 27 प्रतिशत कोटे को इन श्रेणी में बांटेगा- प्रमुख ओबीसी समुदायों से इतर ओबीसी मतदाताओं को अपील करते हैं.

भागीदारी संकल्प मोर्चा का गठन उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों के भीतर असंतोष का संकेत दे रहा है. हालांकि मोर्चे में शामिल कुछ पार्टियों से, जो पहले खुद ही बीजेपी के साथ गठबंधन में थीं, जब मैंने अगस्त में बात की थी तो उन सभी ने सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ सख्त विरोध जताया था.

राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की सहयोगी थी. अपनी जीत के बाद, बिष्ट या योगी आदित्यनाथ ने राजभर को पिछड़ा वर्ग कल्याण और दिव्यांगजन सशक्तिकरण मंत्री नियुक्त किया था. मंत्री के रूप में राजभर ने सार्वजनिक रूप से कई बार बीजेपी की आलोचना की. उन्होंने अन्य पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति द्वारा अक्टूबर 2018 में सरकार को सौंपी गई एक रिपोर्ट को लागू नहीं करने पर भी सरकार की आलोचना की थी. राजभर की एसबीएसपी और बीजेपी लोक सभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर सहमत नहीं हो सके थे और 2019 में अलग हो गए. उस साल दिसंबर में राजभर ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के गठन की घोषणा की.

गठबंधन की प्राथमिक मांग ओबीसी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट का कार्यान्वयन है. समिति का गठन मई 2018 में पूर्व न्यायाधीश राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में किया गया था. समिति के एक सदस्य अशोक कुमार ने मुझे इसके निष्कर्षों के बारे में बताया. "79 जातियों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया था- अन्य पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और सबसे पिछड़ा वर्ग. 27 प्रतिशत आरक्षण इन तीन श्रेणियों के बीच क्रमशः 7 प्रतिशत, 11 प्रतिशत और 9 प्रतिशत में विभाजित किया जाना था."

"हमने पाया कि अब भी पिछड़ी जातियां दूसरों से बहुत पीछे हैं या कहें कि वह दिन-प्रतिदिन और पीछे होती जा रही हैं," कुमार ने मुझे बताया. उन्होंने यह समझाने के लिए एक उदाहरण दिया कि आरक्षण में विभाजन का उद्देश्य ओबीसी श्रेणी के भीतर असमानताओं को सुचारू करना था. उन्होंने कहा, “ठठेरा और चौरसिया समुदायों की आबादी बहुत अधिक नहीं है लेकिन अन्य जातियों की तुलना में सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या बहुत अधिक है. यही कारण है कि वे पहली श्रेणी में हैं.” राजभर ने कहा, “दो साल होने को हैं लेकिन सरकार ने अभी भी रिपोर्ट को लागू नहीं किया है. यह सबसे पिछड़ी जातियों के साथ विश्वासघात है.”

राजभर और भागीदारी संकल्प मोर्चा के अन्य नेताओं ने बताया है कि उनकी प्राथमिकता यह सुनिश्चित करना है कि रिपोर्ट लागू हो. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि मोर्चा "पिछड़ी जातियों और गरीब परिवारों के बच्चों के लिए पहली कक्षा से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक की शिक्षा निशुल्क  उपलब्ध कराना चाहता था." उन्होंने कहा कि गठबंधन सिविल सेवा परीक्षा और मेडिकल तथा इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए इन समुदायों के छात्रों को तैयार करने के लिए कोचिंग सेंटर स्थापित करना चाहता है. भारतीय मानव समाज पार्टी के अध्यक्ष रामधनी बिंद ने मुझे बताया कि पार्टी का नारा है, "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" है. पहले यह नारा बीएसपी का था.

राजभर ने मुझे बताया, "अब तक किसी भी राजनीतिक दल ने सबसे पिछड़ी जातियों के साथ न्याय नहीं किया है." अन्य सदस्य दलों के नेताओं ने भी उनसे सहमति जताई.

अधिकांश नेताओं ने मुझे बताया कि एक के बाद एक आई सरकारों ने पिछड़े वर्गों की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है. राष्ट्र उदय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू रामपाल गडरिया समुदाय से हैं. रामपाल के अनुसार, उनके समुदाय के सदस्य, जो परंपरागत रूप से आजीविका के लिए भेड़ पालते हैं, उत्तर प्रदेश में फैले हुए हैं लेकिन सामाजिक या आर्थिक रूप से आगे नहीं बढ़े हैं. अक्टूबर 2018 की रिपोर्ट ने समुदाय को अधिक पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया है. "सभी सरकारों ने हमारे साथ यानी पिछड़ी जाति के लोगों के साथ अन्याय किया है", उन्होंने कहा. "इन वर्गों की कुछ जातियां आगे बढ़ी हैं लेकिन पिछड़ी जातियों के भूमिहीन लोगों को पीछे छोड़ दिया गया है." रामपाल ने कहा कि मोर्चा इस स्थिति को बदलेगा. "मोर्चा समान अवसर मुहैया कराएगा, असमानता को खत्म करेगा."

राष्ट्रीय जनता पार्टी (पी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेमचंद प्रजापति कुम्हार जाति से हैं, जो परंपरागत रूप से मिट्टी के बर्तन बनाने से जुड़ी है. "इस सरकार ने माटी कला बोर्ड बनाया जिसका उद्देश्य मिट्टी के बर्तनों और हाथ से बनाए गए मिट्टी के बर्तनों को पुनर्जीवित करना है लेकिन हमारे पास मिट्टी पाने के लिए गांव में जमीन ही नहीं है." प्रजापति ने मुझे बताया कि उनके समुदाय के ज्यादातर लोग बड़े पैमाने पर भूमिहीन हैं. उन्होंने कहा, "मेरे समुदाय में ऐसे लोगों को ढूंढना बहुत मुश्किल है, जिनके पास जमीन है."

उन्होंने कहा, "सरकार चाहती है कि हम अब भी केवल जाति आधारित व्यवसाय करें. अगर हम शिक्षा, रोजगार और राजनीति में भाग लेने के बारे में बात करते हैं तो वे हमें हिस्सा नहीं देते." उन्होंने कहा, "सपा और बसपा अन्य पार्टियों जैसी ही हैं."

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि मुलायम सिंह और कांशीराम, जिन्होंने क्रमशः सपा और बसपा की स्थापना की थी, के उभार के साथ 1980 और 1990 के दशक में पिछड़ी जातियां आगे बढ़ीं और उत्तर प्रदेश का राजनीतिक चरित्र बदल गया. लेकिन बाद में सपा और बसपा ने एक-दूसरे के सामाजिक आधारों पर चोट करने की कोशिश की और दोनों ही उच्च जातियों के साथ गठबंधन बनाने की कोशिश करते रहते हैं.”

भारतीय वंचित समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकरन कश्यप धीवर समुदाय से हैं, जिन्हें अक्टूबर 2018 की रिपोर्ट में सबसे पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है. उन्होंने कहा, “कभी हमें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और कभी पिछड़ी जाति के तौर पर. इसने हमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से भागीदारी से वंचित रखा. हमें ऐतिहासिक रूप से धोखा दिया गया है." उन्होंने मुझे बताया कि पार्टियों ने गठबंधन बनाने के विचार को "इस बार इसलिए स्वीकार किया है कि क्योंकि हमें लगा कि पिछड़े समुदाय राजनीति में अपनी जगह गुमा रहे हैं."

मजे की बात यह है कि गठबंधन में मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं हैं. सामाजिक संगठन ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हाजी निसार अहमद ने मुझे बताया कि पिछड़ी जातियों के मुस्लिमों को भी उम्मीद थी कि समिति की रिपोर्ट को लागू किया जाएगा. "हमारे धर्म में भी उच्च जातियों का वैसा ही वर्चस्व है जैसा कि हिंदुओं के बीच होता है और केवल अशरफों की राजनीतिक भागीदारी है," उन्होंने बताया. निसार ने मुझे बताया कि उनके संगठन ने हमेशा यह नारा बुलंद किया है कि, "पिछड़ा-पिछड़ा एक समान, हिंदू हो या मुसलमान." निसार ने कहा, "लेकिन उन्हें इस लड़ाई को मजबूत करने के लिए पसमांदा समुदाय को भी शामिल करना चाहिए. संयुक्त मोर्चे पहले भी बनाए जाते रहे हैं लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि यह सफल ही होगा."

लेकिन कश्यप ने कहा कि पिछले चुनावों में भागीदारी संकल्प मोर्चा के सदस्यों ने एक-दूसरे के साथ गठबंधन किया था लेकिन इस बार उनके गठबंधन की प्रकृति अलग है. उन्होंने बताया, "पहले हम पर आरोप लगाया जाता था कि चुनावों में हम किसी के भी साथ चले जाते हैं लेकिन इस बार, हमने चुनाव से दो साल पहले ही यह मोर्चा बना लिया है."

कश्यप की तरह गठबंधन के अन्य राजनीतिक नेताओं ने मुझे बताया कि वह सफलता को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. राजभर ने मुझे बताया कि भागीदारी संकल्प मोर्चा राजनीतिक नेता चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के साथ भी बातचीत कर रहा है. मोर्चे ने इस साल जून में सात रैलियां करने की योजना बनाई थी, लेकिन कोरोनोवायरस महामारी के कारण अमल में नहीं ला सके.

भारतीय मानव समाज पार्टी के अध्यक्ष रामधनी बिंद ने मुझे बताया कि संयुक्त मोर्चा मतदाताओं तक पहुंचने का प्रयास कर रहा है. "हमने तय किया कि अगर हम कोरोनोवायरस के कारण रैली नहीं कर सकते हैं तो हम घर से काम करेंगे," रामधनी ने कहा. "हर सोमवार (13 जुलाई से) हम सरकार के बढ़ते अपराधों और विफलताओं के बारे में राज्य के जिला मुख्यालयों को एक ज्ञापन देते हैं." उन्होंने कहा कि मोर्चा का प्रतिनिधित्व करने वाले समुदायों को बीजेपी के शासन में कोई फायदा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, “हमने अपने समुदायों के सदस्यों से मिलना शुरू किया और उनसे बीजेपी के झूठे वादों पर विश्वास न करने की अपील की. हम उन्हें सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट से अवगत करा रहे हैं.”

अपना दल (के) के राष्ट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने कहा, "इस बार मोर्चा मजबूत बनाने के लिए चुनाव से पहले इसका गठन किया गया है. अगर लॉकडाउन नहीं हुआ होता और महामारी नहीं होती, तो आप पूरे उत्तर प्रदेश में इसका प्रभाव देखते. हम 2022 में अपनी पूरी ताकत से लड़ेंगे और हमारा मोर्चा सरकार बनाएगा."

लेकिन इस दावे के प्रति वरिष्ठ पत्रकार मंडल उतने निश्चित नहीं लगते जितना कि पटेल हैं. उनके अनुसार, फिलहाल कोई भी पार्टी बीजेपी को चुनौती देती नहीं दिख रही है. मंडल ने कहा कि 2014 में केंद्र में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, "पिछड़ी जातियों और दलितों के एक-एक हिस्से ने इसके साथ गठबंधन किया था. बीजेपी का वोट बैंक स्थिर है लेकिन अन्य राजनीतिक दलों की भूमिका क्या होगी, उनसे किसका फायदा होगा, किसका नुकसान होगा, यह बात अभी नहीं कही जा सकती." बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शोध छात्र और राजनीतिक टिप्पणीकार विकास मौर्य ने भी इसी तरह की राय जाहिर की है. उन्होंने कहा, “भागीदारी संकल्प मोर्चा सक्रिय तो है लेकिन समय ही बताएगा कि वह सफल होगा या नहीं.''