28 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के हाथरस में 19 साल की दलित युवती के साथ बलात्कार की घटना के बाद इंडिया सिवल वॉच इंटरनेशनल के दलितों के खिलाफ अत्याचारों की निंदा करते हुए बयान जारी किया है. नीचे पेश है बयान का पूर्ण पाठ.
दलित लाइव्ज मैटर! भगवा आतंकवाद की भयावह हिंसा के खिलाफ एकजुट हो
हाथरस में पुलिस एक बलात्कार की हुई औरत के घर की किलेबंदी कर
उसकी लाश का अपहरण कर, उसे जला डालती है एक खूनी रात को
बहरे कान नहीं सुनते उसकी मां का दर्दनाक विलाप, उस देश में जहां
दलित न राज कर सकते हैं, न ही आक्रोश और न ही रुदन
यह पहले भी हुआ है, यह आगे भी होगा.
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सनातन, वो एकमात्र कानून जो उस देश में लागू है
सनातन, जहां कभी भी, कुछ भी नहीं बदलेगा
हमेशा, पीड़ित को दोषी ठहराता कुलटा-फरमा
बलात्कारियों को शह देती पुलिस-सत्ता, जातिवाद को नकारती प्रेस
यह पहले भी हुआ है, यह आगे भी होगा.
मीना कंदसामी की कविता रेप नेशन के यह रूह कंपाने वाले शब्द हमें याद दिलाते हैं उस जातिवादी बर्बरता की जिसके चलते उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में ठाकुर समुदाय के चार पुरुषों ने एक उन्नीस बरस की दलित महिला के साथ नृशंस सामूहिक बलात्कार करके उसे मौत के हवाले कर दिया. जातिवादी हिंसा में पला यह जघन्य अपराध सिर्फ यहीं नहीं थमा, बल्कि जांच के दौरान पुलिस और उच्च जातियों की पूरी शह पाकर अमानवीयता की सारी हदें लांघता चला गया. यही नहीं, पिछले एक माह में उत्तर भारत के कई इलाक़ों से बलात्कार और हत्याओं के ऐसे तमाम केस एक के बाद एक सुर्खियों में आते चले गए हैं, एक बार फिर इस निर्मम सत्य के गवाह बनकर कि दलित महिलाओं के खिलाफ जो अत्याचार एक सदियों पुरानी हिंसक व्यवस्था के अंतर्गत चले आ रहे हैं उन्हें आज के अतिवादी हिंदुत्व का आतंकवाद किस हद तक पाल-पोस कर बढ़ावा देता चला जा रहा है.
पिछले एक महीने के भीतर भारत के तमाम हिस्सों में घटित इन भयावह बलात्कारों और हत्याओं की वारदातों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को हिला कर रख दिया है. भगवा आतंकवाद के अंतर्गत दलितों, और ख़ासकर दलित महिलाओं, के खिलाफ हो रहे इन अकल्पनीय अत्याचारों को धिक्कारने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप, ब्रिटेन, दक्षिण अमरीका, अफ्रिका और एशिय-पैसिफिक के तमाम अकादमिकों, व्यावसायिकों और साधारण नागरिकों ने अपनी आवाज भारत के जन आंदोलनों के साथ जोड़ते हुए एक पेटीशन जारी किया है. इस अंतर्राष्ट्रीय याचिका में इन बर्बर अत्याचारों की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए मांग की गई है कि जिन सवर्ण पुरुषों और पुलिस ने हाथरस में और हाल की सभी वारदातों में जघन्य अपराध किए हैं उनके खिलाफ तुरंत कानूनी कार्रवाई की जाए और साथ ही सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हो रहे हमले और हर प्रतिवाद को कुचलने वाले राज्य दमन पर तुरंत रोक हो. इन मांगों को सामने रखते हुए हम यह भी भली-भांति समझते हैं कि न्याय की खोज केवल उन सत्तावादियों के भरोसे पूरी नहीं हो सकती जो खुद ताकतवरों के हित के लिए काम कर रहे हैं. यदि हम सही मायनों में दलित, मुस्लिम, आदिवासी और कश्मीरी समुदायों के लिए ही नहीं बल्कि उन सबके लिए न्याय चाहते हैं जिनको इस वक्त जबरन खामोश किया जा रहा है तो हमें भारत में जाति प्रथा के विध्वंस तथा आक्रामक पूंजीवाद के उन्मूलन के लिए संघर्ष करना ही होगा.
इस याचिका को 1800 से अधिक हस्ताक्षरकर्ताओं का समर्थन मिला है, जिनमें विश्व के जाने-माने सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता, प्रख्यात दलित और ब्लैक बुद्धिजीवियों के साथ-साथ दक्षिण एशियाई अध्ययन तथा क्रिटिकल रेस स्टडीज, महिला अध्ययन, और फेमिनिस्ट स्टडीज के विख्यात विद्वान शामिल हैं. प्रमुख हस्ताक्षरकर्ताओं में एंजेला डेविस, ग्लोरिया स्टाइनेम, मॉड बारलो, बारबरा हैरिस-व्हाइट, चंद्रा तलपदे मोहंती, अर्जुन अप्पादुरई, शैलजा पाइक, सूरज येंगड़े, रॉड फर्गुसन, कैथरिन मैककिट्रिक, मार्गो ओकाज़ावा-रे, लाउरा पुलीदो, हुमा दार, निदा किरमानी, और मीना ढांडा जैसे नाम मौजूद हैं. इनके साथ ही हैं कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन, मसलन दलित सॉलिडेरिटी फोरम इन द यूएसए, नेशनल विमेंस स्टडीज एसोसिएशन, एशियन इंडियन फैमिली वैलनेस, कोड पिंक, विमेंस लीगल एंड ह्यूमन राइट्स ब्यूरो-क्यूजोन सिटी, और कई नामी पत्रिकाएं और अकादमिक जरनल जैसे एंटीपोड, फेमिनिस्ट स्टडीज और एजिटेट. यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा-मिनियापोलिस के जेंडर, वीमेन, एन्ड सेक्सुअलिटी स्टडीज सहित कई प्रख्यात अकादमिक संस्थानों के विभागों और कार्यक्रमों ने भी याचिका पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी का विमेंस, जेंडर, एंड सेक्सुअलिटी स्टडीज विभाग और यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स-बोस्टन का विमेंस, जेंडर एंड सेक्सुअलिटी स्टडीज विभाग और ह्यूमन राइट्स प्रोग्राम शामिल हैं.
आज के ऐसे ऐतिहासिक क्षण में जब मिनियापोलिस में एक श्वेत पुलिस अधिकारी द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की नृशंस हत्या ने अमेरिका में ब्लैक लाइव्स मैटर आन्दोलन को एक नई आग से भर दिया है भारत में हुए दलित महिलाओं के बलात्कार और हत्याओं को लेकर विश्व भर में लाखों प्रदर्शनकारी उठ खड़े हुए हैं. भारत में हिंसक हिंदुत्व द्वारा रचे पुलिस राज के खिलाफ और उसकी अमानवीय हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए दुनिया भर से मांग आ रही है. याचिका ने इस चर्चा को भी आगे बढ़ाया है कि इस समय और काल में वैश्विक एकजुटता का क्या महत्व है और उसका क्या स्वरूप हो. इस याचिका में अकादमिक संस्थानों से आयी एकजुटता की ज़ोरदार अभिव्यक्तियां बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन संस्थानों में लगातार सिलसिलेवार ढंग से उत्पीड़ित समुदायों को बहिष्कृत करने वाली उन प्रथाओं का निर्माण होता आया है जिनके माध्यम से योग्यता उच्च-जाति की संपत्ति या अधिकार बन जाती है.
प्रख्यात ब्लैक दार्शनिक और राजनीतिक कार्यकर्ता एंजेला वाई डेविस ने इस याचिका का समर्थन करते हुए एक प्रभावशाली वीडियो बयान दिया है, जिसमें उन्होंने श्वेत वर्चस्व और जातिवादी-ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के खिलाफ वैश्विक आक्रोश के इस समय में सार्थक अंतरराष्ट्रीय एकजुटता को बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है. साथ ही, ब्लैक लाइव्ज मैटर, दलित लाइव्ज मैटर, और मुस्लिम लाइव्ज मैटर नारों को दोहराते हुए उन्होंने उन कड़ियों पर हमारा ध्यान केंद्रित किया है जो हमें न्याय और मानव गरिमा के लिए किए गए लम्बे संघर्षों की याद दिलाती हैं. एंजेला डेविस ने इन समुदायों के बीच बने उन ऐतिहासिक संबंधों की ओर इशारा किया है जिनकी नींव उस समय पड़ी थी जब अमरीका में दास प्रथा प्रचलित थी. साथ ही, उन्होंने ब्लैक अमरीकियों से दलित महिलाओं पर हो रही नस्लवादी, यौनिक, और जातिवादी हिंसा के खिलाफ रोष व्यक्त करने का आग्रह किया है. इसी समन्वय के मनोभाव की गूंज नेशनल फेडेरेशन ऑफ दलित वीमेन की अध्यक्ष, रूथ मनोरमा के वीडियो बयान में भी सुनाई देती है. इस बयान में रूथ मनोरमा ने भारत में दलित महिलाओं द्वारा अनुभव किए गए शोषण और उत्पीड़न को ऐतिहासिक और संरचनात्मक जातिवाद के संदर्भ में समझाया है और ब्लैक अमरीकियों और दलितों से नस्लीय और जातीय भेदभाव के खिलाफ लड़ने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया है.
अन्य हस्ताक्षरकर्ता एक गहरी चिंता साझा करते हैं कि दलित महिलाओं को निशाना बनाकर किए गए बलात्कार और हत्या के मामले एक ऐसे सत्तावादी शासन के लक्षण हैं जो बुद्धिजीवियों, छात्रों, लेखकों, कलाकारों, तथा नागरिक स्वतंत्रता के लिए सक्रिय वकीलों और कार्यकर्ताओं को तेज़ी से गिरफ्तार कर रहा है जो भारत के मुस्लिम नागरिकों पर लक्षित एक प्रमुख संवैधानिक संशोधन के खिलाफ असंतोष व्यक्त करने वालों का व्यवस्थित ढंग से पीछा कर रहा है; और जो भारत द्वारा कश्मीर के कब्जे का विरोध करने वालों पर मुक़द्दमे चला रहा है. यह कट्टर सत्तावाद और दमन इस भयानक सच्चाई की पुष्टि करते हैं कि भारतीय राज्य अब खुले तौर पर एक हिंसक हिंदुत्व और जातिवादी व्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है. यह व्यवस्था उन्हीं समुदायों को अपनी लूट, बलात्कार, और अपमान का केंद्र-बिंदु बना रही है जो पहले से ही उत्पीड़ित हैं, जिनकी भूमि छीनी जा रही है और जिनकी सामुदायिक पहचान तथा मानवाधिकारों का बराबर हनन हो रहा है.
हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा रेखांकित वैश्विक एकजुटता की जरुरत से यह साफ है कि हाथरस की घटना को दलितों के खिलाफ राज्य-संघटित हिंसा का एक और मामला बनाकर क़तई खारिज नहीं किया जा सकता. धार्मिक अध्ययन के विद्वान क्रिस्टोफर क्वीन ने याचिका पर दी अपनी टिप्पणी में नस्ल और जाति पर आधारित हिंसा के बीच की समानता की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि “जिस तरह संयुक्त राज्य अमेरिका में हिंसक नस्लवाद को भ्रष्ट अधिकारियों और क्रूर नागरिकों द्वारा शह दी जाती है ठीक उसी तरह लोकतांत्रिक संस्थाओं और मानवीय मूल्यों को बनाए रखने का दावा करने वाला भारत दलित नागरिकों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के साथ क्रूरतापूर्ण बर्ताव के कारण आज अपनी ही दुर्दशा करने में जुटा है.” अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या और भारत में दलित महिलाओं के हाल के बलात्कारों और हत्याओं से आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भीषण आक्रोश फैला हुआ है. वक्त की मांग है कि दुनिया-भर के लोग आज नस्लवादी और जातिवादी पितृसत्तात्मक पूंजीवाद की संरचनाओं को खत्म करने के लिए एक साथ अपनी आवाज बुलंद करें. अंत में, हम दलित और मूलवासी अध्ययन की विदुषी रोजा सिंह की बात को अंगीकार करते हैं -- “जातिवाद और जातिवादी यौन हिंसा की इस बढ़ती महामारी के दौर में हम सब एक मानव समुदाय के रूप में एकजुटता खोजने में सक्षम हैं. हम अपनी सामूहिक आवाज को बुलंद करते हुए पुकारते हैं -- दलित लाइव्ज़ मैटर! हमें दलित महिलाओं के साथ हो रहे अत्यंत दर्दनाक उत्पीड़न के सच को स्वीकार करना होगा, हमें उस अमानवीयता को महसूस करना होगा जिसके तहत दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुए हैं और उनका अंग भंग करके उन्हें जलाया गया है. आज एक वैश्विक आंदोलन के रूप में हम इन्हीं दलित महिलाओं की राख से उठकर सभी इंसानों के लिए दृढ़ न्याय और उनकी मानव गरिमा के लिए अपनी आवाज मजबूत करते हैं. ब्लैक अमेरिकी कवियित्री जून जॉर्डन के शब्दों में कहें तो, 'वी आर द वन्स वी हॅव बीन वेटिंग फ़ॉर’ (हम ही वे हैं जिनका हम इंतजार करते आए हैं).”