बस्तर में पुलिस गोलीबारी में तीन गोंड प्रदर्शनकारियों की मौत पर बेला भाटिया और ज्यां द्रेज का बयान

31 मई 2021
23 मई को कोइतुर समाज के लोग गांव में सीआरपीएफ कैंप की स्थापना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए थे. 17 मई को हुई पुलिस की गोलीबारी के बावजूद आदिवासी अडिग हैं और विरोध प्रदर्शन रोजाना जारी है.
साभार : बेला भाटिया
23 मई को कोइतुर समाज के लोग गांव में सीआरपीएफ कैंप की स्थापना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए एकत्र हुए थे. 17 मई को हुई पुलिस की गोलीबारी के बावजूद आदिवासी अडिग हैं और विरोध प्रदर्शन रोजाना जारी है.
साभार : बेला भाटिया

17 मई को बस्तर के सिलगर में पुलिस फायरिंग में गोंड जनजाति के तीन प्रदर्शनकारी मारे गए. कवासी वागा, उर्सम भीमा और नाबालिग उइका पांडु गांव की सहमति लिए बिना सिलगर में सीआरपीएफ द्वारा स्थापित एक नए शिविर का विरोध कर रहे थे. सीआरपीएफ जवानों द्वारा उत्पीड़न का संदेह जताते हुए सिलगर और आसपास के गांवों के आदिवासी 14 मई से शिविर का विरोध कर रहे हैं. 22 मई को सीआरपीएफ ने टोलेवर्ती में मिडियम मासा की भी गोली मारकर हत्या कर दी थी.

लेखक बेला भाटिया और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने एक प्रेस नोट जारी कर सिलगर की स्थिति पर प्रकाश डाला है. बयान बस्तर अधिकार शाला की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर आधारित है. इस बयान को नीचे पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है. 

सिलगर (बस्तर) में हुई गोलीबारी की सच्चाई क्या है

पिछले दो में बस्तर में सीआरपीएफ शिविरों के विस्तार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इन प्रदर्शनों को मीडिया का कवरेज नहीं मिलता. 17 मई 2021 को पुलिस गोलीबारी में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद सिलगर में जारी आंदोलन पर सब की नजर गई.

सिलगर एक छोटा आदिवासी गांव है जो बीजापुर और सुकमा जिलों की सीमा के पास है. ये दोनों ही क्षेत्र पांचवी अनुसूची के तहत आते हैं. बीजापुर से सिलगर तक 66 किलोमीटर की सड़क सीआरपीएफ कैंपों से भरी पड़ी है. पक्की सड़क सिलगर से कुछ किलोमीटर पहले समाप्त हो जाती है लेकिन सरकार इसे जगरगुंडा तक ले जाने और रास्ते में और शिविर बनाने की योजना बना रही है. 

Keywords: CRPF Bastar Adivasi rights
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