भारतीय समाज और व्यक्ति का मुकम्मल आधुनिकीकरण जिन चिंतकों के विचारों के आधार पर होना है, उनमें ई.वी. रामासामी पेरियार अग्रणी हैं. पेरियार ने उन सभी बिंदुओं को चिह्नित और रेखांकित किया है जिनका खात्मा भारतीय समाज के आधुनिकीकरण की अनिवार्य शर्त है.
ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ भारत की प्रगतिशील श्रमण बहुजन-परंपरा के ऐसे लेखक हैं जिन्होंने उत्तर भारत के द्विजों की आर्य श्रेष्ठता और मर्दवादी दंभ, राष्ट्रवाद, ब्राह्मणवाद, वर्ण-जाति व्यवस्था, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और शोषण-अन्याय के सभी रूपों को चुनौती दी. वर्चस्व, अन्याय, असमानता और दासता का कोई रूप उन्हें स्वीकार नहीं था. उनकी आवेगात्मक अभिव्यक्ति पढ़ने वालों को हिला देती है. तर्क-पद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति की शैली के चलते उन्हें यूनेस्को ने 1970 में “दक्षिणी एशिया का सुकरात” कहा था.
पेरियार 1920 से 1925 तक कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़े रहे. वह औपचारिक तौर पर 1920 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और 1920 और 1924 में वह तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और 1921 और 1922 में उसके सचिव रहे. इस दौरान उन्होंने गांधी के सशक्त सहयोगी के रूप में काम किया लेकिन कांग्रेस और गांधी के साथ काम करते हुए बहुत जल्दी उन्हें अहसास हो गया कि यह पार्टी और गांधी उत्तर भारतीय आर्य-द्विज मर्दों के वर्चस्व को कायम रखने का उपकरण हैं. उन्होंने कांग्रेसी पार्टी के भीतर काम करने के अपने अनुभवों के बारे में लिखा :
जब मैं तमिलनाडु कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष था, तो मैंने 1925 के सम्मेलन में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया था. उस प्रस्ताव में मैंने जातिविहीन समाज के निर्माण का प्रस्ताव किया था. मेरे मित्र चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (राजाजी) ने इसे अस्वीकृत कर दिया था. मैंने यह भी अनुरोध किया था कि कांग्रेस के विभिन्न पक्षों और क्षेत्रों में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व (वंचित एवं अल्पसंख्यक तबकों के लिए आरक्षण) का पालन किया जाना चाहिए. लेकिन यह प्रस्ताव भी विषय समिति में थिरु वि. का. (एक सम्मानित तमिल विद्वान कल्यानासुन्दरानर) के द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया. तब मुझे अपने प्रस्ताव के समर्थन में 30 प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए कहा गया था. श्री एस. रामानाथन ने 50 प्रतिनिधियों से हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए. तब सर्वश्री सी. राजगोपालाचारी, श्रीनिवास आयंगर, सत्यमूर्ति और अन्य लोगों ने अपना प्रतिरोध दर्ज कराया. उन्हें डर था कि अगर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया, तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी. बाद में यह प्रस्ताव थिरु वि. का. और डॉ. पी. वरदाराजुलू के द्वारा रोक दिया गया. ब्राह्मण बहुत खुश हुए. इतना ही नहीं, उन्होंने मुझे सम्मेलन में बोलने की इजाजत भी नहीं दी.
पेरियार ने बाद में कांग्रेस के बारे में लिखा, “कांग्रेस पार्टी से अकेले ब्राह्मण और धनी लोग ही लाभ उठा रहे हैं. यह आम आदमी, गरीब आदमी और श्रमिक वर्गों के लिए अच्छा काम नहीं करेगी. यह बात मैं काफी लम्बे समय से कह रहा था.”
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