सुप्रीम कोर्ट में हो जाति संवेदीकरण समिति

20 अक्टूबर 2023
विकिमीडिया कॉमन्स
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13 अप्रैल 2023 को, संविधान निर्माता डॉ भीम राव आंबेडकर की जयंती के एक दिन पहले, सुप्रीम कोर्ट के आंबेडकरवादी वकीलों ने कोर्ट के पुस्तकालय में पुष्पांजलि अर्पण का एक छोटा सा कार्यक्रम रखा था. साल 2018 में इन्हीं वकीलों ने करीब तीन साल के संघर्ष के बाद कोर्ट प्रशासन की अनुमति से पुस्तकालय में बाबा साहेब आंबेडकर की एक बड़ी तस्वीर लगवाई थी. तब से ही हर साल 13 अप्रैल और 6 दिसंबर को ऐसे ही कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. 6 दिसंबर को बहुजन समाज आंबेडकर पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मानता है. इस मौके पर हर साल दलित, आदिवासी, पिछड़े वर्ग और कुछ प्रगतिशील सवर्ण वकील भी पुस्तकालय में जमा होते है और डॉ आंबेडकर की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं. मगर इस बार आंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या कुछ खास थी. मुख्य न्यायधीश जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने आंबेडकरवादी वकीलों के आमंत्रण को स्वीकार कर लिया था और कार्यक्रम में वह भी शामिल होने वाले थे.

मुख्य न्यायधीश का शामिल होना बड़ी मशक्कत के बाद हुआ था. दो सप्ताह पहले ही आंबेडकरवादी वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश को खत लिखना शुरू कर दिया था. खत अपने आप में एक मांग याचिका थी कि 14 अप्रैल को छुट्टी की घोषणा की जाए. सुप्रीम कोर्ट में आज भी 14 अप्रैल एक स्थाई छुट्टी नहीं है, बल्कि हर साल कुछ दिन पहले कोर्ट प्रशासन अधिसूचना के जरिए इस दिन को छुट्टी घोषित करती है. "हमारे लिए यह दिन दीवाली या ईद से कम नहीं है. हम इस दिन अपने परिवार के साथ खुशियां मनाते है, घूमने जाते है और हमारे घरों में इस दिन अच्छे पकवान बनते हैं. ऐसे में कई लोग जयंती उत्सव की अपनी निजी योजना नहीं बना पाते हैं क्योंकि छुट्टी की घोषणा आखिरी वक्त में होती है," सुप्रीम कोर्ट वकील प्रतीक आर. बॉमबार्डे ने मुझसे कहा. प्रतीक ही इन आंबेडकरवादी वकीलों के मुखिया है. उन्होंने अपने समूह को "डॉ बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक न्याय अधिवक्ता समूह" का नाम दिया है. समूह के अधिवक्ताओं की बेचैनी तब और बढ़ गई जब खबर आई कि एक बेंच ने ज्ञानवापी मस्जिद मामले की सुनवाई को 14 अप्रैल को तय की है.

प्रतीक ने मुझसे कहा कि उन्होंने जब अपने पत्र की स्थिति का पता करना चाहा तो कोर्ट के रजिस्ट्रार ने उन्हें महासचिव से मिलने को कहा था. कोर्ट का रजिस्ट्रार एक मायने से कोर्ट के सारे प्रशासनिक विभागों के बीच की कड़ी होता है. रजिस्ट्रार के पास ही प्रत्येक फाइल आती है और वहां से आगे भेजी जाती है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के महासचिव प्रशासनिक कार्यों के प्रमुख होते हैं. प्रतिक बताते हैं कि महासचिव ने उन्हें मुख्य न्यायधीश के निजी सचिव से मिलने को कहा. जिसके बाद वह निजी सचिव से मिले और मुख्य न्यायधीश से मिलने की इच्छा जाहिर की, लेकिन निजी सचिव ने उन्हें आश्वासन दे कर भेज दिया कि वह मौका मिलते ही उनका याचना पत्र मुख्य न्यायधीश के सामने रख देंगे. प्रतिक ने मुझे बताया कि वह आखिरी समय तक छुट्टी को लेकर आश्वस्त नहीं थे. हालांकि, 11 अप्रैल को महासचिव के विभाग ने अधिसूचना जारी कर दी जिसमें लिखा था कि 14 अप्रैल को भारत की सर्वोच्च्य न्यायलय और इसका रजिस्ट्री विभाग बी. आर. आंबेडकर की जयंती के अवसर पर बंद रहेंगे. छुट्टी के बाद, मुख्य न्यायधीश को निमंत्रण देने के लिए भी आंबेडकरवादी वकीलों को उतने ही प्रशासकीय स्तरों से गुज़रना पड़ा.

ऐसे में जब मुख्य न्यायधीश 13 अप्रैल को बाबासाहेब की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने आए तो समूह के अध्यक्ष प्रतिक मौके को चूकना नहीं चाहते थे. उन्हें नहीं पता था कि मुख्य न्यायाधीश से रू-ब-रू मिलने का मौका दुबारा कब मिले. इसलिए मुख्य न्यायाधीश ने बाबासाहेब की तस्वीर पर जैसे ही फूल चढ़ाए और उन्हें नमन कर वापस जाने लगे कि प्रतिक ने उन्हें समूह की तरफ से एक याचना पत्र थमा दिया. पत्र में समूह ने मुख्य न्यायधीश के सामने तीन मांगें रखी थीं. उनकी प्रमुख मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट में "जाति संवेदीकरण समिति" का गठन हो. वकीलों ने लिखा कि, "योर लॉर्डशिप, हम आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहते हैं कि हम वंचित और शोषित वर्गों से आने वाले अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वकील अक्सर सुप्रीम कोर्ट में जातीय भेदभाव का सामना करते हैं. सिर्फ हम ही नहीं, रजिस्ट्री विभाग के अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों ने भी हमें बताया कि उनके साथ भी जातीय भेदभाव किया जाता है. जातिगत भेदभाव हमारे समाज का एक सच है. अतः आपसे अनुरोध है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के वकीलों और कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए एक जाति संवेदीकरण समिति का गठन किया जाए".

पत्र सौंपते हुए प्रतीक ने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि वह एक "कास्ट सेंसटाइजेशन कमेटी" [जाति संवेदीकरण समिति] चाहते हैं. पत्र स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायधीश ने सबके सामने उनसे कहा, "मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं कि हमने कास्ट सेंसटाइजेशन (जाति संवेदीकरण) कार्यक्रम अपने ज्यूडिशियल अफसरों के लिए पहले ही शुरू कर दिया है". प्रतिक ने बाद में मुझे बताया कि शायद मुख्य न्यायधीश ने उन्हें ठीक से सुना नहीं या गलत सुन गए, जिस वजह से उनकी जाति संवेदीकरण को ले कर दिया जवाब पर्याप्त नहीं था. प्रतिक ने बताया कि, “सिर्फ 20 फीसदी लोग ही ज्यूडिशियल अकादमी जा पाते हैं, जो प्रमोशनल कैडर से होते हैं. बाकियों का क्या? सीधे जज बन जाने वालों का जातिगत सेंसटाइजेशन कैसे होगा? फिर सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की कास्ट सेंसटाइजेशन का क्या होगा? वे सब के सब तो ज्यूडिशियल अकादमी नहीं जाते और उन वकीलों का क्या होगा जो अकादमी गए बिना सीधे जज बना दिए जाते हैं?" प्रतिक ने कहा कि अगर जाति संवेदीकरण समिति होगी तो अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए भेदभाव के मामलों को सुनने का एक प्लेटफार्म होगा. "कई अनुसूचित जाति और जनजाति के वकील और कर्मचारी मेरे पास आते हैं और अपने साथ हुए अलग-अलग तरह के भेदभाव के बारे में बताते हैं. ये भेदभाव उनके साथ उनके अफसर या सहयोगी, काम के दौरान करते हैं. मगर चूंकि इन मामलों की सुनवाई के लिए कोई फोरम नहीं है इसलिए इन समस्याओं का कभी निपटारा नहीं हो पाता," प्रतिक ने बताया.

सागर कारवां के स्‍टाफ राइटर हैं.

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