चार जनवरी 2018 को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने एक आरोप पत्र यानि चार्जशीट दाखिल की. यह आरोप पत्र “कोलगेट” घोटाले से संबंधित कई मामलों में से एक की जांच से जुड़ा था. आरोप पत्र में सीबीआई ने राज्य अधिकृत कर्नाटक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानि केपीसीएल, इसके प्राइवेट पार्टनर ईएमटीए और उनके संयुक्त उद्यम कर्नाटका ईएमटीए कोल माइन्स लिमिटेड (केपीसीएल) पर अनियमितता के आरोप लगाए. ये अनियमितता कथित तौर पर महाराष्ट्र में छह कोल खंडों के आवंटन में बरती गई थी. सीबीआई ने इन तीन कंपनियों पर गैर-कानूनी काम करने का आरोप लगाया है. जो आरोप सीबीआई ने इन तीन कंपनियों पर लगाए हैं वे ही आरोप एक संयुक्त उद्यम अडानी एंटरप्राइज लिमिटेड पर भी लग सकते हैं. इसके बावजूद अडानी समूह के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया.
सिंतबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने 214 कोयला खंडों के आवंटन को गैर-कानूनी करार दिया था. इनमें केपीसीएल को दिए गए छह खंड भी शामिल थे. सीबीआई इनके आवंटन में अनियमितताओं और इनकी खुदाई की जांच कर रही है. 1993 से शुरू हुए इन आवंटनों की जांच 2012 से चल रही है. अपनी जांच के दौरान 2015 में सीबीआई ने केपीसीएल, ईएमटीए और केईसीएमएल के अध्यक्षों के खिलाफ मामला दर्ज किया. इनके खिलाफ आवंटन के नियम के उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया. ये नियम कोयला मंत्रालय द्वारा बनाए गए थे. वहीं, खारिज कर दिए गए कोयले और साफ किए जाने के दौरान छनने वाले खराब गुणवत्ता वाले कोयले को खुले बाजार में बेचने का भी मामला दर्ज किया गया. तीन साल बाद सीबीआई ने यह प्रमाणित किया कि केपीसीएल, ईएमटीए और केईसीएमएल तीनों ही गोरखधंधे में शामिल थे. केपीसीएमएल पर आरोप लगाया गया कि इसने सरकार से झूठ बोलते हुए कहा कि इनके खादान के बेकार कोयले की कोई कीमत नहीं है जबकि ईएमटीए ने उसी कोयले को प्राइवेट कोयला कंपनियों को बेचा.
“कोलगेट 2.0” कारवां की मार्च 2018 की कवर स्टोरी थी. इसमें मैंने ऐसी ही तीन कंपनियों के गठबंधन द्वारा ऐसे ही घोटाले की जानकारी सार्वजनिक की थी. इनमें राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेल यानि आरआरवीयूएनएल (एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम), इसका प्राइवेट पार्टनर अडानी एंटरप्राइज लिमिटेड यानि एईएल और उनका संयुक्त उपक्रम परसा कांता कोयलरीज लिमिटेड यानि पीकेसीएल शामिल थे. एईएल अडानी समूह की मुख्य कंपनी है. इसके संस्थापक और प्रमुख गौतम अडानी एक उद्योगपति हैं जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है.
सीबीआई का आरोप देखने पर केपीसीएल और आरआरवीयूएनएल संयुक्त उपक्रमों के काम करने के तौर तरीकों में जबरदस्त समानता नजर आती है. आरोप पत्र की एक कॉपी हमारे पास है. लेकिन सीबीआई ने सिर्फ केपीसीएल के संयुक्त उपक्रमों के खिलाफ मामला दर्ज किया है. इन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बंद कर दिया गया था. वहीं, आरआरवीयूएनएल, एईएल और पीकेसीएल कानून की नजर से साफ बच निकले हैं. इन कंपनियों को जांच के घेरे में लाने की सीबीआई की असफलता संदेहास्पद है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मार्च 2018 में कारवां की जिस रिपोर्ट में पीकेसीएल द्वारा बरती गई अनियमितताओं को उजागर किया गया था वो रिपोर्ट पूरी तरह से सार्वजनिक दस्तावेजों पर आधारित है.
सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश ने राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों या सार्वजनिक उपक्रम और निजी पार्टियों के बीच हुए सभी सार्वजनिक उपक्रम समझौतों को रद्द कर दिया. नतीजतन केपीसीएल को बाकी राज्यों के सार्वजनिक उपक्रमों की तरह ईएमटीए के साथ अपने समझौते को रद्द करना पड़ा. राजस्थान सरकार की एक विद्युत कंपनी आरआरवीयूएनएल इकलौता सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम है जिसने अपने संयुक्त उपक्रम समझौते को बरकरार रखा है. इसे इसने 2007 में एईएल के साथ हस्ताक्षरित किया था जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का साफ उल्लंघन था.
साल 2003 में कोयला मंत्रालय ने केपीसीएल को महाराष्ट्र में छह कोल ब्लॉक आवंटित किए. इनमें किलोनी, मनोरादीप और बरंज I, II, III और IV शामिल थे. इन आवंटनों की संभावना के मद्देनजर केपीसीएल 2002 के सितंबर में ही सामूहिक उपक्रम समझौते में शामिल हो गया था. समझौते के तहत इन ब्लॉकों से कोयला निकालकर केपीसीएल के कर्नाटक के बेल्लारी में स्थित थरमल पावर प्लांट में पंहुचाया जाना था. कोयला मंत्रालय के आवंटन पत्र में साफ लिखा था कि इन खादानों का कोयला सिर्फ और सिर्फ केपीसीएल के पावर स्टेशन के लिए है जिसका व्यापारिक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. पत्र में खराब कोयले के इस्तेमाल पर भी रोक की बात साफ लिखी थी. पत्र के अनुसार इनका इस्तेमाल सीमित उपभोग के लिए किया जा सकता था. इस तरह के कोयले का इस्तेमाल सिर्फ उसी परियोजना में किया जा सकता है जिसके लिए इसे आवंटित किया गया है. केपीसीएल के आवंटन समझौते में साफ था कि यहां का बेकार कोयला खादान से जुड़े पावर प्लांट में इस्तेमाल किया जाना है.
जब केईसीएमएल ने दिसंबर 2010 में कोयला मंत्रालय को अपना माइनिंग का प्लान दिया था तो इसने इस बात का आश्वासन दिया था कि बेकार कोयले को इसके अपने खादानों में बिजली उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. माइनिंग प्लान एक दस्तावेज होता है जिसमें वह तरीका बताया जाता है जिससे खादान को विकसित किया जाएगा और इसकी टाइमलाइन भी दी जाएगी. माइनिंग प्लान में एक फ्लूइडसाइड बेड कंबशन प्लान यानि एफबीसी की परिकल्पना की गई थी. यह एक तकनीक है जिसमें बिजली पैदा करने के लिए ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है. इसे वहां लगाया जाना था जहां कोयला धुलता और गुणवत्ता के हिसाब से छांटा जाता है. हालांकि, न तो केईसीएमएल और केपीसीएल ने ऐसा कोई एफबीपी प्लांट लगवाया और न ही ऐसा करने की उनकी कोई इच्छा थी, यह बात सीबीआई जांच में सामने आई है.
जांच के दौरान सीबीआई को एक और बात पता चली. दरअसल, माइनिंग प्लान देने के दो साल पहले केईसीएमएल ने गुप्ता कोलफील्ड्स एंड वॉशरीज लिमिटेड यानि जीसीडब्ल्यूएल नाम की एक निजी कंपनी के साथ पहले से ही एक समझौता ज्ञापन यानि एमओयू पर दस्तखत कर लिया था. समझौते के तहत कोयले को धोकर प्लांट तक पहुंचाया जाना था. एमओयू की एक धारा में कहा गया कि बेकार कोयला केईसीएमएल और जीसीडब्ल्यूएल की साझा संपत्ति होगी और इसे दोनों की सहमति से बेचा या इस्तेमाल किया जा सकेगा. 2008 से 2013 के बीच खादान के इस्तेमाल से पांच सालों में केईसीएमएल ने 8.28 लाख टन के करीब बेकार कोयला हासिल किया. कैग यानि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की 2013 की एक ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक केईसीएमएल ने दावा किया कि ये बेकार कोयले किसी इस्तेमाल का नहीं है और इनका इस्तेमाल खुले गड्ढों वाले खादानों को भरने और समतल करने में किया गया है. कैग रिपोर्ट के मुताबिक तकनीकि जानकारों ने कोयले की गुणवत्ता देखकर इस दावे को खारिज कर दिया. साथ ही सीबीआई को पता लगा कि जीसीडब्ल्यूएल ने बेकार बताए जा रहे इस कोयले को बाकी जगहों से खरीदे गए कोयले संग मिलाकर खुले बाजार में बेच दिया.
धोखाधड़ी से भरा ये एमओयू केईसीएमएल के निदेशक और प्रबंध निदेशक के बीच साइन किया गया था. इससे दोनों निजी कंपनियों को उस कोयले को हड़पने का मौका मिला, जो वैसे केपीसीएल का था. कैग के अनुमान के मुताबिक केईसीएमएल और डीसीडब्ल्यूएल द्वारा हड़पे और बेचे गए कोयले की कीमत 52 करोड़ रुपए थी. सीबीआई ने अवैध रूप से इस कोयले को बेचने वाली जीसीडब्ल्यूएल की भागीदारी को एक "आपराधिक साजिश" करार दिया.
जैसा कि कारवां की मार्च 2018 की स्टोरी में बताया गया था कि आरआरवीयूएनएल, एईएल और उनके संयुक्त उपक्रम पीकेसीएल ने भी ऐसा ही किया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए 2015 में कोयला मंत्रालय ने एक नया ड्राफ्ट मॉडल अनुबंध जारी किया. इसमें कहा गया कि “धुलने की जगह से निकला बेकार कोयला प्राधिकरण की संपत्ति होगा” जो इस मामले में आरआरवीयूएनएल था. उसी साल आरआरवीयूएनएल और एईएल ने एक पुनर्वण्टन समझौता किया. ये समझौता परसा ईस्ट और कान्ता बसन यानि पीईकेबी से जुड़ा था. पीईकेबी छत्तीसगढ़ स्थित एक कोयला ब्लॉक है जो पीकेसीएल को दिया गया है. पुनर्वण्टन समझौते में कहा गया कि धुलने की जगह से निकले बेकार कोयले को भागीदार के किसी कैप्टिव पावर प्लांट के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इस मामले में भागीदार आरआरवीयूएनएल था.
हालांकि, केईसीएमएल ने जैसा धोखाधड़ी से भरा एमओयू साइन किया था, जुलाई 2009 में पीकेसीएल ने अडानी माइनिंग के साथ एक माइनिंग-सर्विस समझौता किया जिसके तहत अडानी समूह की कंपनी को बेकार कोयला दिया जाने लगा. गौर करने लायक बात है कि 2015 में एईएल ने अडानी माइनिंग को अपना हिस्सा बना लिया. ऐसा ठीक पुनर्वण्टन के समय किया गया. 2009 के समझौते के मुताबिक पीकेसीएल को परसा ईस्ट एंड कान्ता बासन के पास एक कोल वॉशरी बनानी थी और “यहां से धुलकर निकलने वाला कोयला अडानी माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड की संपत्ति होगा.” मार्च 2013 में सुरगुजा पावर प्राइवेट लिमिटेल ने एक पावर प्लांट से जुड़े पर्यावरणीय मंजूरी के लिए आवेदन किया. सुरगुजा अडानी माइनिंग के अंतर्गत आता है. आवेदन में कहा गया कि “(परसा ईस्ट एंड कान्ता बासन) कोल वॉशरी से निकलने वाला बेकार कोयला संभावित रूप से सुरगुजा पावर द्वारा इस प्रोजेक्ट के लिए इस्तेमाल किया जाना है.”
एईएल और आरआरवीयूएनएल की सालाना रिपोर्ट 2009 के माइनिंग सेवा समझौते के तहत बनती रही. बावजूद इसके कि ये मॉडल कॉन्ट्रैक्ट और पुनर्वण्टन की शर्तों का उल्लंघन करता है. अडानी पावर की वेबसाइट कहती है कि वॉशरी का कोयला एफबीसी आधारित सुरगुजा थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट के लिए प्राथमिक ईंधन का काम करेगा, जिसे वो छत्तीसगढ़ में बनाने की योजना बना रहे हैं. ऊपर से आरआरवीयूएनएल द्वारा पर्यावरण मंत्रालय को 2016 से 2018 के बीच सौंपी गई छमाही पर्यावरणीय अनुमति अनुपालन रिपोर्ट कहती है कि सभी बेकार कोयले को एफबीसी पावर प्लांट में इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसे छह से सात सालों में बनाया जाना है. अनुपालन रिपोर्ट कहती है, “तब इसे उन्हें बेचा जाना चाहिए जो बेकार कोयले को इस्तेमाल करते हैं जिसके लिए एक समझौता किया जाना चाहिए.” अभी तक तो ये पावर प्लांट सिर्फ कागज पर ही दिखाई देता है.
2017 में आरआरवीयूएनएल ने बताया कि पीकेसीएल ने 2.25 एमटीपीए (मिलियन टन हर साल) बेकार कोयला “समझौते के तहत इसे इस्तेमाल करने वालों को” बेचा है. इससे साफ है कि अडानी माइनिंग को अपना बनाने के बाद एईएल को पीईकेबी के बेकार कोयले को बेचने की अनुमति मिल गई जबकि इसे सिर्फ आरआरवीयूएनएल के पावर प्लांट के लिए इस्तेमाल किया जाना था. ऊपर से मई 2017 में जब एक आरटीआई आवेदन के तहत पीईकेबी में उत्पन्न बेकार कोयला के इस्तेमाल की जानकारी मांगी गई तो आरआरवीयूएनएल ने कहा कि इसके पास ये जानकारी नहीं है.
कारवां की मार्च 2018 की रिपोर्ट में बताया गया था कि एईएल की 2016-17 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने 8.6 लाख टन बेकार कोयला हड़प लिया था जिसकी कीमत 40.42 करोड़ रुपए थी. इस आंकड़े को खादान की निर्धारित 30 साल की लीज के साथ एक साल के लिए बढ़ाकर देखें तो अवैध लाभ 12000.6 करोड़ रुपए हो जाता है. अप्रैल 2018 में कोयला घोटाला मामलों में याचिकाकर्ताओं में से वकील सुदीप श्रीवास्तव ने आरआरवीयूएनएल और एईएल द्वारा नियमों के अनियंत्रित प्रवाह के विवरण के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. श्रीवास्तव ने अनुमान लगाया कि 30 साल की लीज से अधिक की बिक्री से अवैध लाभ 5500 करोड़ रुपए से अधिक की राशि का रहा.
श्रीवास्तव ने कहा कि आरआरवीयूएनएल कोल माइनिंग वितरण समझौते यानि सीएमडीए के तहत पीकेईबी के ऑप्टीमम ग्रेड कोयले का सकल कैलोरिफिक वैल्यू यानि जीसीवी 4500 किलो कैलोरीज प्रति किलोग्राम होना चाहिए था. वहीं, 4000 किलो कैलोरीज प्रति किलोग्राम वाले कोयले को बेकार करार दे दिया जाना था. उन्होंने कहा कि जीसीवी के 2200 से 4000 किलो कैलोरीज प्रति किलोग्राम वाले सभी की बाजार में अच्छी कीमत है और इसे बेकार कोयला नहीं माना जा सकता जिसकी कोई कीमत नहीं. आरआरवीयूएनएल द्वारा 2015 और 2017 के बीच छापी गई प्रारंभिक सूचना ज्ञापन के मुताबिक पीईकेबी के माइनिंग प्रोजेक्ट्स में 22.5 प्रतिशत बेकार कोयला सामने आया. ये अनुमान 30 सालों की लीज पीरियड के लिए सही बैठता है. श्रीवास्तव ने अनुमान लगाया कि पीईकेबी के 454 मिलियन टन के कुल भंडार में से 20 प्रतिशत बेकार कोयला भी 90 मिलियन टन के करीब बैठेगा. कोयले की 615 रुपए प्रति टन की बेंचमार्क कीमत जो कि केंद्रीय पीएसयू कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा सालाना आधार पर जारी की गई है इससे एईएल को 5535 करोड़ का अवैध फायदा पहुंचेगा. पीईकेबी को आवंटित किए गए कोयला ब्लॉकों की अनियमितताओं की पांच साल तक जांच के बाद भी ऐसा लगता है की सीबीआई को ये अनियमितताएं साफ नहीं दिखाई दीं.
आरआरवीयूएनएल और एईएल को अलग से सहयोग प्रदान करने का मामला यहीं तक सीमित नहीं है. 2013 में कोयला मंत्रालय ने पीईकेबी के लिए एक विस्तार योजना को पास करते हुए इसे एक करोड़ टन सालाना से बढ़ाकर एक करोड़ 50 लाख टन सालाना कर दिया. बावजूद घोर अनियमितताओं के पर्यावरण मंत्रालय ने भी इस नए प्लान को अगस्त 2018 में पास कर दिया. एक बार एईएल के कोयले का उत्पादन बढ़ता है तो खराब कोयले की मात्रा में पहले से मौजूद इसकी मात्रा आधी और बढ़ जाएगी. इससे साफ है कि एईएल को इसके फ्यूल प्लांट के लिए फ्री में कोयला मिलना जारी रहेगा. ये सुरगुजा प्लांट के शुरू हो जाने के बावजूद जारी रहेगा.
कोयला मंत्रालय और कोयला नियंत्रक कार्यालय, पीएसयू और उनसे जुड़ी जेवी द्वारा सभी कोयला खनन गतिविधियों की निगरानी के लिए जिम्मेदार प्राधिकारी हैं. मैंने इन दोनों एजेंसियों और एईएल को उनके पक्ष के लिए ईमेल किया. स्टोरी छपने तक उनमें से किसी ने जवाब नहीं दिया.
पीईकेबी द्वारा नियमों को कई बार ताक पर रखने के मामलों के बावजूद अडानी सूमह ने अपने काम के विस्तार की अनुमति हासिल की है. वहीं, ईएमटीए, केपीसीएल और केईएमसीएम के अधिकरियों को सीबीआई द्वारा सजा दी जा रही है. जून 2018 को प्रवर्तन निदेशालय जो खुद भी सीबीआई की मार्च 2015 की एफआईआर के आधार पर मामलों की जांच कर रहा है, उसने केपीसीएल के 49 करोड़ रुपए की संपत्ति को जब्त कर लिया और बेकार कोयले की धन शोधन निरोधक अधिनियम के तहत बिक्री की. इस बीच सीबीआई ने अपनी जांच जारी रखी है और स्पेशल कोर्ट मामले की सुनवाई अप्रैल 2019 में करने वाली है.
दोनों मामलों में जांच एजेंसी का अलग रवैया इस आलोचना को बल देता है कि सीबीआई कोयला घोटाले की जांच में पक्षपाती रही है. वहीं, पीईकेबी-एईएल के ज्वाइंट वेंचर का जारी रहना इस ओर इशारा करता है कि हालांकि 2014 में मोदी ने चुनावों के दौरान कोयला ब्लॉकों के गैरकानूनी आवंटन को भले ही बड़ा मुद्दा बनाया था, लेकिन पिछले चार सालों में उनकी सरकार भी कोयला क्षेत्र में अनियमितताओं से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने में विफल रही है.