28 फरवरी को ब्रिटेन के डिजिटल समाचार पत्र द इंडिपेंडेंट में रणनीतिक विश्लेषक और मध्य पूर्व संवाददाता रॉबर्ट फिस्क ने “भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने में इजराइल की बढ़ी भूमिका” नाम से लेख प्रकाशित किया. अपने इस तर्क के बचाव में उन्होंने दो एक साथ चल रही प्रक्रियाओं का हवाला दिया. “इजराइल एक राजनीतिक रूप से खतरनाक अघोषित, अनाधिकारिक और अप्रत्यक्ष मुस्लिम विरोधी गठबंधन, भारत की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के साथ बना रहा है”. दूसरा, भारत उसके हथियारों के लिए सबसे बड़ा बाजार बन गया है. वे भारत के सैन्य-औद्योगिक तानेबाने की ओर इशारा कर रहे थे. जुलाई 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इजराइल की यात्रा की और इस यात्रा के छह महीने बाद वहां के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर आए. फिस्क का तर्क है कि पाकिस्तान के बालाकोट में भारतीय हवाई आक्रमण का जिक्र करते हुए भारतीय मीडिया द्वारा राफेल स्पाइस-2000 “स्मार्ट बम” की बात करना कोई सामान्य बात नहीं है.
अपने उस लेख में फिस्क ने ब्रुसेल्स में यूरोपीय एशिया अध्ययन संस्था में एसोसिएट शोधकर्ता शयरी मल्होत्रा को उद्धृत किया. जनवरी में इजराइली अखबार हारेट्ज में शयरी मल्होत्रा ने लिखा था, “भारत को इजराइल के साथ मजबूत रणनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंध बनाना जारी रखना चाहिए किंतु इन संबंधों को व्यवहारिक और परिवर्तनशील संबंधों की तरह देखा जाना चाहिए न कि वैचारिक संबंधों की तरह.” लेकिन फिस्क इस तरह के संबंधों को लेकर बहुत आशावान नहीं है. वे लिखते हैं, “यह कहना मुश्किल है कि जब इजराइल भारी मात्रा में भारत को हथियार बेच रहा है तो यहूदी राष्ट्रवाद, हिंदू राष्ट्रवाद को प्रभावित नहीं करेगा.”
फिस्क और मल्होत्रा दोनों ही भारत इजराइल संबंधों को मुस्लिम विरोधी गठबंधन की तरह पेश करने के प्रति सतर्क करते हैं तो भी मल्होत्रा फिस्क के कई निष्कर्षो को स्वीकार नहीं करतीं. इस संबंध में कारवां के स्टाफ राइटर प्रवीण दोंती ने शयरी मल्होत्रा से ईमेल से बात की. शयरी मल्होत्रा कहती हैं, “भारत सरकार में शामिल लोग, सामरिक समुदाय और साथ ही भारतीय जनता को इस बात का ख्याल अच्छी तरह से रखना चाहिए कि इस संबंध को मुस्लिम विरोधी गठबंधन बताना आकर्षक तो है लेकिन भारत का विवाद सिर्फ पाकिस्तान से है न कि अन्य मुस्लिम देशों से. इन देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं.”
प्रवीण दोंती : वरिष्ठ पत्रकार रॉबर्ट फिस्क ने हाल में लिखा था कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ाने का काम इजराइल कर रहा है क्योंकि भारत उसके हथियारों का सबसे बड़ा ग्राहक है. 2008-2012 और 2013-17 के बीच इजराइल से भारत में होने वाले हथियारों के आयात में 285 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी. 2017 में मात्र इजराइल के साथ भारत ने 9 खरब 20 अरब डॉलर का रक्षा करार किया है. इस बारे में आपका क्या कहना है?
शयरी मल्होत्रा : श्री फिस्क जानेमाने पत्रकार हैं जिन्होंने दशकों से प्रभावशाली पत्रकारिता की है. उनके प्रति पूरे सम्मान के साथ मैं यह कहना चाहती हूं कि उनका आकलन अधूरा है. यह सही है कि इजराइल भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता देश है और उसके बनाए स्मार्ट बम का प्रयोग पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ हाल में भारतीय हवाई हमले में किया गया था. भारत ढेरों सुरक्षा संबंधी समस्याओं से जूझ रहा है और हाल में पुलवामा में हुए हमले और इस पर केन्द्रित चर्चाओं से स्पष्ट होता है कि भारत के रक्षा उपकरण पुराने हैं और इन्हें अपग्रेड करने की आवश्यकता है. इजराइल वह देश है जिसने सफलता के साथ ऐसी चुनौतियों का सामना किया है और उसके पास व्यापक आयुध उद्योग है. इसलिए यह कोई असमान्य बात नहीं कि भारत और इजराइल सुरक्षा संबंधी मामलों में एक दूसरे से सहयोग करें. एक के पास विशेषज्ञता है और दूसरे को उस विशेषज्ञता की दरकार. इसलिए भारतीय सामरिक सोच में इजराइल केन्द्रीय स्थान में है.
लेकिन यह कहना कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को इजराइल हवा दे रहा है गलत होगा और ऐसा कहना यह मान लेना होगा कि तनाव के लिए भारत और पाकिस्तान से अधिक इजराइल जिम्मेदार है. यह कुछ कुछ यह कहने जैसा है कि पूर्व में हुई भारत और पाकिस्तान की लड़ाइयों के लिए सोवियत रूस और अमेरिका जिम्मेदार थे क्योंकि ये दोनों देश भारत और पाकिस्तान को हथियार आपूर्ति करते थे. यह सच है कि ऐसे देश को, जहां रक्षा उद्योग का अधिक विकास है, उन्हें एक हद तक विश्व में द्वंद्व की स्थिति जारी रखने से फायदा होता है. लेकिन जिस एक वजह ने हाल के तनाव को हवा दी वह यह है कि भारत में चुनावों का जोर है और कड़ा रुख अख्तियार करना और पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा कदम उठाने से वर्तमान सरकार की लोकप्रियता में इजाफा होगा और उसे दुबारा चुनाव जीतने में मदद मिलेगी. 2014 में सरकार में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे आतंकवाद को बर्दास्त नहीं करेंगे और उरी और हाल के हमलों से उन्होंने अपनी बात साबित की है. इसके अलावा, पाकिस्तान से होने वाले आतंकी हमलों में बढ़ोतरी के बाद आतंकवाद के प्रति भारत के धैर्य में कमी आ रही है.
प्रवीण दोंती : मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और इंटरनेट हिंदुओं ने सुरक्षा मामले पर इजराइल के रुख की प्रशंसा की है. क्या मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत में इजराइल का प्रभाव बढ़ रहा है? या यह सिर्फ नजरिए में आया बदलाव है क्योंकि चीजें अधिक खुले तौर पर हो रही हैं?
शयरी मल्होत्रा : यह हकीकत है कि थिंक टैंक, बौद्धिक वर्ग और सैन्य अधिकारियों सहित भारतीय सामरिक समुदाय के बीच ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है जो यह मानते हैं कि इजराइल की दक्षता और अनुवभों से भारत सीख ले सकता है और दोनों देशों को आपसी सहयोग करना चाहिए. भारतीय रक्षा चिंता में इजराइल की भूमिका बढ़ी है और उसे एक ऐसा देश माना जाता है जो आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में फायदा दे सकता है. यह सामरिक संबंध पहले से था लेकिन नेतन्याहू और मोदी की यात्राओं ने इसे खुले में ला दिया है. जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं “आसमां से आगे” की दोस्ती और इस दिशा में जोर बढ़ा है.
दोनों देशों के बीच बढ़ती मित्रता में दिल्ली में बनने वाली किसी भी सरकार का असर नहीं होगा और इसमें चिंता करने या नकारात्मक मानने वाली कोई बात नहीं है. यह व्यवहारिक और हितों के मद्देनजर सोच है जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में आवश्यक होते हैं. लेकिन चिंता करने वाली बात यह है कि इस व्यवहारिक मित्रता को कई टिप्पणीकार और शिक्षाविद वैचारिक जामा पहना रहे है.
प्रवीण दोंती: क्या यह संभव है कि भारत ने हाल में जो पाकिस्तान पर हमले किए वे इजराइल द्वारा 1967 में इजिप्त पर किए गए प्री एमटिव हमलों से प्ररित थे?
शयरी मल्होत्रा: हां, मुझे लगता है कि भारत ने पूर्व के इजराइली कार्रवाई से प्रेरणा ली है. इसके अलावा हाल के दिनों में भारतीय रक्षा समुदाय से लगातार आवाज आती रही है कि क्यों नहीं भारत छिपे और सैन्य कार्रवाइयों के जरिए इजराइल और अमेरिका की तर्ज पर आतंकी ठिकानों को नष्ट कर देता. इन देशों की तथाकथित सफलताओं ने जरूर प्रेरित किया है खासकर ऐसी मजबूत सरकार को जो बड़े जनादेश से सत्ता में आई है और जिसने नोटबंदी से विवादास्पद कड़े कदम उठाए हैं.
क्या इन हमलों को प्री एमटिव कहना चाहिए? मैं कहूंगा कि ये हमले जवाबी और प्री एमटीव दोनों की तरह के थे. जवाबी इसलिए कि जैश ए मोहम्मद ने भारत पर आक्रमण किया था और इसलिए भारत ने उसके ठिकानों पर हमला किया. और प्री एमटिव इस कारण कि भारत ने जैश के अड्डे नष्ट करने के लिए यह हमला किया ताकि वह दुबारा हमला न कर सके.
प्रवीण: आपने हारजेट लेख में लिखा था कि भारत इजराइल संबंध व्यवहारिक और परिवर्तनशील संबंध है न कि वैचारिक. क्या यह संभव है कि वैचारिक कारणों से साझेदारी में तीव्रता आई है जैसा कि भारत प्रवास के दौरान नेतन्याहू ने घोषणा की थी? मिसाल के तौर पर 2018 की अपनी भारत यात्रा में नेतन्याहू ने कहा था कि हमारी जीने की पद्धति को चुनौती दी जा रही है खासकर आधुनिकता और नविनमेश की हमारी चाहत को कट्टरवादी इस्लाम और विभिन्न कोणों से इसके आतंकी घटकों द्वारा चुनौती दी जा रही है.
शयरी मल्होत्रा : यह वैचारिक संबंध नहीं है लेकिन इसे इस तरह का दिखाया जा रहा है जो एक समस्या है. संबंध में वैचारिकता देखना इसका सरलीकरण है और शायद खतरनाक भी. इस बारे में मैंने अपने हारजेट लेख में विस्तार से बताया है.
भारत की व्यवहारिक रक्षा जरूरतें हैं और इजराइल भारत का मुख्य हथियार आपूर्तिकर्ता देश है. इस संबंध में रक्षा का बड़ा हिस्सा है लेकिन यह यहीं तक सीमित नहीं है. हालांकि इजराइल ने आपूर्ति में जल्दी बढ़त बना ली है लेकिन वही एकमात्र आपूर्तिकर्ता देश नहीं है. रूस, अमेरिका और फ्रांस अभी भी बड़े आपूर्तिकर्ता हैं. मैं दोहराना चाहता हूं कि भारत की रक्षा जरूरतें व्यवहारिक है और उसे अपनी रक्षा क्षमता को अपग्रेड करने की आवश्यकता है. यह वैचारिक मामला नहीं है और हमारी रक्षा जरूरतों के लिए इजराइल बना बनाया साझेदार मिल गया हैं.
जो नेतन्याहू ने कहा वह इजराइल के लिए सच है लेकिन दोनों देशों की स्थितियां बहुत अलग हैं. सच तो यह है कि उनका कथन खुद इजराइल के लिए भी ठीक नहीं है. हम देख सकते हैं कि हाल के वर्षों में सउदी अरब और जाॅर्डन ने साझा दुश्मन ईरान के खिलाफ इजराइल से सहयोग किया है.
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में वैचारिकता को देखना अक्सर मजाकिया होता है. यहां तक कि लोकतांत्रिक शांति सिद्धांत की आलोचना करने वाले लोग हैं. यह सिद्धांत मानता है कि लोकतांत्रिक देश आपस में बहुत कम यु़द्ध करते हैं. इस्लामिक धर्म मान्यता उम्माह, पैन इस्लामवाद और मुस्लिम बहुल्य देशों के बीच निरंतर हो रहे युद्धों के कारण, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से लगभग गायब हो चुकी है. आॅकस्फोर्ड डिक्शनरी के अनुसार उम्माह का अर्थ “अलग अलग संस्कृति और भूभागों में बसने वाले मुसलमानों में होने वाली एकता और सैद्धांतिक बराबरी को उम्माह कहते हैं”. अंतर्राष्ट्रीय संबंध हितों से चलते हैं विचारों से नहीं. तो भी देश अक्सर अपने कामों और संबंधों को मानदंड का आवरण देते हैं ताकि उन्हें व्यापक समर्थन मिल सके और संबंध को न्यायोचित ठहराया जा सके. इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण लोकतंत्र को बढ़ावा देने का हवाला देकर इराक में अमेरिका का आक्रमण था.
भारत और इजराइल के संबंध का समर्थन करते हुए भी भारत सरकार में शामिल लोग, सामरिक समुदाय और साथ ही भारतीय जनता को इस बात का ख्याल अच्छी तरह से रखना चाहिए कि इस संबंध को मुस्लिम विरोधी गठबंधन बताना आकर्षक है लेकिन भारत का विवाद सिर्फ पाकिस्तान से है न कि अन्य मुस्लिम देशों से. इन देशों के साथ भारत के संबंध अच्छे हैं. भारत सरकार भी इस बात से वाकिफ दिखाई देती है. हमें याद रखना चाहिए कि जब भारत इजराइल संबंध अपने उफान पर था तब भारत ने यूएनजीए में येरूशलम के पक्ष में वोट दिया था. इसी तरह भारत इराक के प्रति अमेरिकी दवाब में भी नहीं आया है. इसलिए भारत किसी भी तरह के इस्लाम विरोधी त्रिपक्षीय गठबंधन का हिस्सा नहीं बन रहा है और बहुत ही सतर्क हो कर संतुलित कदम बढ़ा रहा है.
मैंने अपने उस लेख में बहुत गंभीर तथ्य भी बताए हैं. जैसे 18 करोड़ मुस्लिम आबादी वाले देश भारत से 2016 के आखिर तक केवल 23 लोग आईएसआईएस में शामिल होने गए थे जबकि 5 लाख से भी कम मुस्लिम आबादी वाले बेल्जियम से 500 लोग आईएसआईएस में शामिल होने गए. मैंने यह भी बताया है कि ब्रुसेल्स में शोध में काम करते हुए मैंने पाया कि यूरोप में भारत को इस्लाम को सफलता के साथ मिलाने के एक उदाहरण के रूप में देखा जाता है.
इसके अलावा मैंने दोनों देशों की वैचारिक जड़ों, अनूठी परिस्थितियां और दिशाओं के अंतर पर भी विस्तार से बात की है. भारत एक बहु जातीय, विविधताओं वाला और धर्मनिर्पेक्ष राज्य है. वहीं इजराइल की अवधारणा धर्माधारित की गई है. ये तथाकथित इंटरनेट हिंदू बहुत ही सतही समानता और इजराइल ने मुस्लिमों से कैसे मुकाबला किया जैसी सरलीकृत निष्कर्षों के आधार पर इजराइल को व्यापक समर्थन देते हैं. टिप्पणीकार और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों को इस तरह के बचकाने निष्कर्षों से बचना चाहिए जो हिंदुत्व कट्टरवादियों का फायदा पहुंचाता है, उसे वैधता प्रदान करता है और भारत की शांतिप्रिय मुस्लिम आबादी के भीतर अलगाव पैदा करता है. भारत को पाकिस्तान से पैदा होने वाले आतंकवाद की भारी कीमत चुकानी पड़ी है और इस लिहाज से इजराइल के साथ सुरक्षा मामलों में सहकार्य महत्वपूर्ण है. लेकिन इसे मुस्लिम विरोधी गठबंधन की तरह दिखाना खतरनाक है जो भारत के लिए इस्लाम को मुख्य सुरक्षा खतरा दिखाता है.
प्रवीण दोंती: आपने लिखा है कि भारत इजराइल संबंध दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी और बीजेपी एवं इजराइल की यहूदी राष्ट्रवादी पार्टी लिकुड के संबंधों से बढ़ कर है. दोनों देशों के बीच 1992 से ही पूर्ण कूटनयिक संबंध रहे हैं लेकिन लगता है कि दोनों देशों में हाल सत्तारूढ़ पार्टियों के बीच “वैचारिक सामानता” ने वास्तव में इन दो देशों को करीब ला दिया है.
शयरी मल्होत्रा: हां, यह शायद मुमकिन है कि दोनों देशों की सत्तारूढ़ पार्टियों के बीच “वैचारिक समानता” ने इन दो देशों को करीब कर दिया हो. ये दोनों पार्टियां नस्लीय राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलन हैं जिनकी राष्ट्र की अवधारणा बहुसंख्यवादी बहिष्करण है. दोनों ही अपनी बहुसंख्यक आबादी का मुस्लिमों के हाथों पीड़ित होने का भाष्य को प्रोत्साहन देते हैं. इजराइल अपनी विवादास्पद स्थापना और उसके बाद मुस्लिम दुनिया के साथ उसके संबंध के चलते ऐसा प्रचारित करता है और भारत रक्तरंजित विभाजन और पाकिस्तान के साथ उसके अशांत संबंधों के हवाले से ऐसा कहता है.
लेकिन दोनों से संबंधों के पीछे के व्यवहारिक तर्क पर कोई बदलाव नहीं आएगा यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो भी या इजराइल में विपक्ष की सरकार बनती है तो भी. और इजराइल में नेतन्याहू पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप और उनका इस मामले में उन पर लगे जुर्माें के साबित होने की संभावना के मद्देनजर यह होना संभव है. इस संबंध को लेकर दिखाई दे रहा जोश-खरोश और शब्दाडम्बर थोड़ा कम हो जाए लेकिन इजराइल की तकनीकी दक्षता और विशेषज्ञता जिसके जरिए वह न सिर्फ अपनी सीमाओं का बचाव कर और शत्रुओं से भिड़ रहा बल्कि कृषि और जल संरक्षण कर रहा है वह भारत के लिए महत्वपूर्ण है. इसी बीच भारत के वर्तमान नीति निर्माता यानी बीजेपी विदेश संबंधों की जटिलता को समझती है और वह फिलिस्तीन मामले में भारत के सैद्धांतिक स्टैंड पर कायम है और आर्थिक और ऊर्जा हितों वाले मुस्लिम विश्व के साथ भारत का नजदीकी संबंध कायम है.
लंबे अर्से तक रणनीतिक स्वायत्ता बनाए रखने के नाम पर भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मित्रता के खुले प्रदर्शन से खुद को बचाता रहा. भारत और इजराइल संबंध का विस्तार होते रहना चाहिए. बस इस बात से बचना जरूरी है कि इन संबंधों से भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध खराब न हों और घरेलू स्थिति पर भी असर न पड़े.