लॉकडाउन के दूसरे दिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों की भोजन आवश्यकता और उनके खातों में धन उपलब्ध कराने के लिए 1.70 लाख करोड़ रुपए की राहत योजना की घोषणा की. इस घोषणा की कई जानकारों ने यह कहते हुए आलोचना की कि यह आवश्यक धन का आधा है. 635 सुविख्यात शिक्षाविदों, सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं और नीति विश्लेषकों ने एक पत्र जारी कर राज्यों और केंद्र की सरकारों से संकट से बचाव के लिए न्यूनतम आपातकालीन उपाय लागू करने की अपील की है.
इस पत्र को जारी करने वालों में एक हैं रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर ज्यां द्रेजजो एक अर्थशास्त्री होने के साथ एक्टिविस्ट भी हैं. आने वाले दिनों में गरीबों के लिए भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की संभावित कमी के बारे में कारवां के स्टाफ रिपोर्टर कौशल श्रॉफ ने उनसे बात की.
हमें नहीं पता कि कोविड-19 का जारी संकट कब खत्म होगा. यह कई महीनों या पूरे साल ही जारी रह सकता है. हमारे अर्थतंत्र पर इसका असर इस बात पर निर्भर करेगा कि इस वायरस का असर कितने लंबे वक्त तक रहता है. यदि हम स्वास्थ्य संकट से चंद हफ्तों में उबर जाते हैं तो भी इसकी बहुत बड़ी मानवीय कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन अर्थतंत्र शायद एक हद तक तेजी से सुधार भी कर जाए. लेकिन यदि संकट लंबा खिंचता है और कम-ज्यादा प्रबलता वाले लॉकडाउन होते रहते हैं तो अर्थतंत्र के नीचे ढुलकने की संभावना है क्योंकि यह एक तरंगनुमा असर छोड़ेंगे. बैंक दीवालिया हो जाएंगे. बैंक अपना कर्ज नहीं वसूल पाएंगे और आर्थिक संकट पैदा होगा. इस बीच स्वास्थ्य सेवाओं और संभवतः आवश्यक सामग्री पर भारी बोझ बना रहे. यह आर्थिक और मानवीय रूप से डरावनी स्थिति होगी.
सामाजिक रूप से देखें तो अन्य तरह की विकृतियां पैदा हो जाएंगी. मिसाल के लिए जैसे-जैसे लोग और डरेंगे, आवासीय कॉलोनियां अपने आपको बंद कर लेंगी और जिन लोगों पर संक्रमण का शक होगा उन्हें निकाल देंगी या खाने के लिए दंगे जैसी हालत बन जाएगी. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि ऐसा न हो.
अल्पावधि में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली कैसे काम करती है. पीडीएस व्यवस्था भूख से बचा सकती है लेकिन अभी इस पर बहुत दबाव है. यह अपने-आप में काम नहीं करती बल्कि एक चेन का हिस्सा होती है जिसमें लोगों तक खाद्यान्न पहुंचाने के लिए अर्थतंत्र के बाकी हिस्सों को काम करते रहना होता है. खाद्यान्न को यहां से वहां पहुंचाने के लिए यातायात, दूरसंचार, उपकरण, चालू प्रशासन और अन्य चीजों की आवश्यकता होती है. यह सुनिश्चित करना बहुत कठिन होगा कि ऐसी परिस्थिति में यह व्यवस्था प्रभावी रूप से काम करती रहे.
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