गोवा बंदरगाह आधुनिकीकरण : सागरमाला निवेश से वेदांत कंपनी को लाभ

वास्को द गामा शहर के पास गोवा का मोरमुगांव पोर्ट लौह अयस्क से कोकिंग कोयले तक अपनी उत्पाद की प्रोफाइल को ट्रांसफर करने के अपने प्रयासों की वजह से विवादों के केंद्र में है . दिनोदिया फोटो
19 December, 2018

25 मार्च 2015 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सागरमाला कार्यक्रम को मंजूरी दी. यह भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य भारत के बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करना है. कार्यक्रम से लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करने और बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देकर इसके नेतृत्व वाले आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. इसके अगले साल जुलाई-अगस्त में सरकार ने भारत के प्रमुख बंदरगाहों में से 12 के लिए सागरमाला के तहत विस्तृत मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिया. इसमें गोवा के वास्को द गामा शहर के पास एक प्रमुख बंदरगाह मोरमुगांव पोर्ट ट्रस्ट यानी एमपीटी शामिल था. इस बात के विस्तृत आकलन के आधार पर कि 2035 तक बंदरगाह से कार्गो की कैसी प्रकृति और कितनी मात्रा संभाल सकता है- सागरमाला के उद्देश्यों को प्राप्त करने के तय किया गया साल- एमपीटी के लिए मास्टर प्लान ने इन अनुमानों के अनुरूप पोर्टफोलियो में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में बदलाव की सिफारिश की.

हालांकि, एमपीटी में बंदरगाह विस्तार परियोजना को लेकर मेरी जांच, जिसकी सागरमाला के तहत कल्पना की गई है, इस ओर इशारा करती है कि परियोजना आर्थिक तर्क पर खरी नहीं उतरती. परियोजना मुश्किल से व्यवहारिक है क्योंकि भविष्य में ये कार्गो में किसी भी तरह की वृद्धि नहीं करेगी और केवल बंदरगाह की मौजूदा सुविधाओं को बदल देगी, जो फिलहाल तो 2035 तक कार्गो विकास के लिए पर्याप्त नजर आती है. मछुआरों के लिए लाभप्रद परियोजना के रूप में एमपीटी को पेश किए जाने को भी इस समुदाय ने खारिज कर दिया है. जिनमें से कई का कहना है कि ये पारंपरिक मछुआरों की आजीविका के लिए खतरा है. स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ मछुआरे भी यही दावा करते हैं कि परियोजना क्षेत्र की इकोलॉजी के भारी क्षति पहुंचाएगी. मास्टर प्लान और अन्य बंदरगाह दस्तावेज बताते हैं कि इस परियोजना को बंदरगाह पर जगह बनाने के एकमात्र उद्देश्य से उचित ठहराया गया है ताकि खनन समूह के लिए वेदांत रिसोर्सेज अपने प्रस्तावित कोयले और लौह अयस्क टर्मिनल का निर्माण कर सके.

अप्रैल 2016 में सागरमाला मास्टर प्लान को अंतिम रूप देने से चार महीने पहले, वेदांत लिमिटेड, वेदांत रिसोर्सेज की एक सहायक और दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक संसाधन कंपनियों में से एक, एमपीटी में 1200 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए सफल बोली लगाने वाले के रूप में उभरी. इसकी डिजाइन, बिल्ड, ऑपरेट, फाइनेंस एंड ट्रांसफर (डीबीओएफटी) परियोजना को एमपीटी के आठ सक्रिय बर्थों को-बंदरगाहों में तय जगहें जहां जहाजों को लोड करने और उतारने के लिए डॉक या मूर कर सकते हैं- लौह अयस्क, कोयले और अन्य ड्राई बल्क-कार्गो के लिए एक टर्मिनल में बदलने के लिए तैयार किया गया था.

वेदांत परियोजना के तहत पुनर्विकास के लिए पहचाने गए बर्थों में बर्थ नंबर आठ पर पेट्रोलियम हैंडलिंग सुविधा थी, बर्थ नंबर नौ और पास के 38 साल पुरानी बार्ज बर्थ में लौह अयस्क लोडिंग सुविधा. गौर करने लायक है कि नौ नंबर बर्थ और बर्ज बर्थों को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है, लेकिन बर्थ आठ के साथ ऐसा नहीं है. साल 2016 में बर्थ आठ गोवा के सालाना घरेलू ईंधन मांग 0.78 मिलियन टन का 0.06 मिलियन टन संभाल रहा था और राज्य के लिए जरूरी था. जाहिर है कि राज्य में पेट्रोलियम परिचालन के भविष्य के लिए किसी भी योजना के बिना ड्राइ कार्गो बे के रूप में बदलने के लिए इसे वेदांत को सौंप दिया गया.

अब, एमपीटी वेदांत परियोजना के लिए एक सफल सहयोगी के रूप में अभी तक अपना सबसे बड़ा विस्तार करने का प्रस्ताव कर रहा है. सागरमाला के तहत, बंदरगाह प्राधिकरणों ने तीन नए बर्थ बनाने की योजना बनाई-एक लिक्विड कार्गो बर्थ; अन्य भारतीय बंदरगाहों से माल ले जाने वाले जहाजों के लिए एक बहुउद्देशीय तटीय कार्गो बर्थ; और सभी प्रकार के जहाजों के लिए एक बहुउद्देश्यीय कार्गो बर्थ. एक कंक्रीट प्लेटफार्म के दूसरी तरफ एक फिशिंग जेटी (मछली पकड़ने के लिए जलबंधक) और एक यात्री जेटी का प्रस्ताव भी दिया गया है जो लिक्विड और कोस्टल कार्गो बर्थ के लिए होगा. इस अपग्रेड की पूरी लागत 680 करोड़ रुपए थी.

हालांकि, जगह और आर्थिक कारणों से एमपीटी ने 136 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत पर फिशिंग जेटी के साथ केवल लिक्विड बर्थ बनाने का फैसला किया. यह विस्तार परियोजना हालांकि सागरमाला मास्टर प्लान की सिफारिशों पर आधारित है और इस योजना के पैसों का उपयोग कर रही है, परियोजना के कई दस्तावेजों से साफ है कि इस विस्तार को सही ठहराने के लिए बहुत कम आर्थिक या तकनीकी तर्क हैं.

सागरमाला मास्टर प्लान ने एमपीटी द्वारा संचालित लिक्विड-कार्गो में भारी वृद्धि के अनुमानों के आधार पर विस्तार को सही ठहराया है. योजना के अनुसार एमपीटी में लिक्वि़ड कार्गो का संचालन अगले दो वर्षों में 70 प्रतिशत बढ़कर 2020 में 1.7 मिलियन टन हो जाएगा, फिर 2025 में 2.3 मिलियन टन से अधिक और 2035 में 4 मिलियन टन पार हो जाएगा. मास्टर प्लान के आंकड़ों के मुताबिक पेट्रोलियम कार्गो में 2035 में 2.3 मिलियन टन शामिल होंगे. थोक लिक्विड कार्गो को संभालने के लिए नए बर्थों का प्रस्ताव दिया गया है. ज्यादातर कार्गो में पेट्रोलियम, तेल और ल्यूब्रिकेंट्स या शिपिंग टर्म्स में पीओएल कार्गो शामिल है और वर्तमान में इसे बंदरगाह के आठ पर संभाला जाता है.

लेकिन एमपीटी की लिक्विड-कार्गो व्यवहार्यता रिपोर्ट के पोर्ट कमोडिटी डेटा के मुताबिक 2011 से एमपीटी में आने वाले लिक्विड कार्गों में कोई वृद्धि नहीं हुई है. एमपीटी में कुल लिक्विड कार्गो 2011-12 में 1.4 मिलियन टन से घटकर 2012-13 में 1 मिलियन टन हो गया और तब से ये आंकड़े ऐसे ही रहे हैं. पीओएल कार्गो की मात्रा, 2012-13 में 0.8 मिलियन टन से घटकर 2016-17 में 0.6 मिलियन टन हो गई.

इसके अलावा, सागरमाला मास्टर प्लान के अनुमान एमपीटी में लिक्विड के हाल के रुझानों के विपरीत ही नहीं बल्कि पोर्ट-कमीशन स्टडीज द्वारा लगाए गए अनुमानों के भी विपरीत हैं. 2016 में एमपीटी ने विस्तार परियोजना की व्यवहार्यता रिपोर्ट के लिए हैदराबाद स्थित फर्म अरवी एसोसिएट्स को बुलाया. फरवरी 2017 में जारी रिपोर्ट में पाया गया कि पेट्रोलियम उत्पादों में वृद्धि मास्टर प्लान के हिसाब से नहीं होगी. गोवा में पेट्रोलियम की भविष्य की मांग का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट ने बताया कि विकास "मोटा-मोटी सीधी रेखा में" होगा. ये 2025 में हर साल 1.5 प्रतिशत बढ़कर 0.64 मिलियन टन और 2035 में 0.75 मिलियन टन हो जाएगा. यह मास्टर प्लान के अनुमानों के आधे से भी कम है.

अक्टूबर 2015 में एमपीटी को दिए गए एक कॉन्सेप्ट रिपोर्ट में टाटा समूह की एक सहायक कंपनी टाटा कंसल्टेंसी इंजीनियर्स लिमिटेड ने भी इसी तरह का अनुमान लगाया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2035 में केवल 0.6 मिलियन टन पेट्रोलियम कार्गो आएगा-जो अभी के स्तर के समान.

मास्टर प्लान के अनुमान भी अपने स्वयं के अनुबंधों का खंडन करते हैं. अनुबंधों में से एक बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) जो कि एक बहुराष्ट्रीय परामर्श देने वाली संस्था है के द्वारा किया गया एक बेंचमार्किंग अध्ययन है. बीसीजी अध्ययन में कहा गया है कि गोवा में आने वाले अधिकांश पेट्रोलियम कार्गो स्थानीय इस्तेमाल के लिए पेट्रोल और डीजल के रूप में हैं और "ईंधन की खपत स्थिर रहेगी क्योंकि महत्वपूर्ण रूप से इसके बढ़ने की उम्मीद नहीं है." बीसीजी की रिपोर्ट में कहा गया है, "न तो बर्थ से जुड़ी जगह में वृद्धि और न ही भविष्य में पार्सल के आकार में कोई उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है."

व्यवहार्यता रिपोर्ट ने बताया कि वेदांत को सौंपे जाने से पहले बर्थ आठ 70 प्रतिशत के स्वीकार्य सबसे बड़े स्तर के मुकाबले 30 प्रतिशत की क्षमता से संचालन कर रहा था. मास्टर प्लान ने खुद हिसाब लगाया कि सबसे बड़े स्तर पर बर्थ आठ 2.2 मिलियन टन कार्गो संभाल सकता है- जो कि व्यवहार्यता रिपोर्ट, टाटा रिपोर्ट, बीसीजी अध्ययन और इसके अपने मसौदे के आंकड़ों द्वारा प्रस्तावित अनुमानों के लिए पर्याप्त है. टाटा रिपोर्ट ने यह भी बताया कि बर्थ 11 जहां वर्तमान में रसायनों को संभाला जाता है, पीओएल और रसायनों दोनों की भविष्य की मात्रा को संभाल सकता है, और एक नया बर्थ बनाने के बजाय इसे लिक्विड बर्थ में बदलने की सिफारिश की.

हालांकि, मास्टर प्लान अपने अनुमानों के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं देता है. बंदरगाह पर स्थित आंतरिक इलाकों की आर्थिक प्रोफाइल के आधार पर "प्रमुख माल और उनके अनुमान" खंड में कोयले, लौह अयस्क, स्टील, यहां तक ​​कि वुडचिप्स और जिप्सम की भविष्य की मात्रा भी बताती है, लेकिन लिक्विड कार्गो के बारे में इसमें कुछ नहीं है.

असल में ऐसा लगता है कि मास्टर प्लान में अनुमानों को अंतिम रूप देने से पहले इसे शिपिंग मंत्रालय द्वारा बढ़ाया गया हो. प्रमुख बंदरगाहों के लिए ड्राफ्ट मास्टर प्लान को लॉस एंजिल्स स्थित इंजीनियरिंग परामर्श, एईसीओएम का एक संघ और एक वैश्विक परामर्श फर्म मैककिंसे एंड कंपनी द्वारा तैयार किया गया था. कंसोर्टियम के ड्राफ्ट के आधार पर, शिपिंग मंत्रालय ने 25 मार्च 2015 के कैबिनेट के फैसले को प्रभावी करने के लिए सबसे उपयुक्त रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए "विभिन्न आंतरिक और बाहरी विशेषज्ञों" से इनपुट का उपयोग किया." योजना दस्तावेज के मुताबिक पहली बार फरवरी 2016 में एक मसौदा प्रस्तुत किया गया था जिसके बाद दस्तावेज को शिपिंग मंत्रालय की "टिप्पणियों" को शामिल करने के लिए दो बार संशोधित किया गया था-जब योजना को अंतिम रूप दिया गया था तब पहले मई में और फिर अगस्त में.

हालांकि सागरमाला की वेबसाइट पर ड्राफ्ट प्लान उपलब्ध नहीं हैं, पोर्ट-कमीशन व्यवहार्यता रिपोर्ट में कहा गया है कि फरवरी 2016 के मसौदे ने अनुमान लगाया था कि 2025 में एमपीटी में 0.8 मिलियन टन पेट्रोलियम कार्गो और 2035 में 1.9 मिलियन टन का संचालन किया जाएगा. शिपिंग मंत्रालय द्वारा स्वीकृत अंतिम संस्करण में इन अनुमानों को बिना किसी स्पष्टीकरण के 2025 के लिए 1.8 मिलियन टन और 2035 के लिए 2.7 मिलियन टन तक बढ़ा दिया गया था.

अनुमानों में वृद्धि महत्वपूर्ण है क्योंकि बंदरगाह की मौजूदा सुविधाएं मसौदे के अनुमानों को पूरा करने के लिए पर्याप्त दिखाई देती हैं-वास्तव में, अंतिम मास्टर प्लान में छोड़कर प्रस्तावित सभी अनुमानों के लिए भी. नतीजतन, सागरमाला योजना और एमपीटी दोनों- जिन्हें सागरमाला फंडिंग दिशानिर्देशों के अनुसार लागत के समान हिस्से को पिच करना है- मौजूदा बर्थ जो कि पहले से ही पर्याप्त हैं, उनकी जगह नए बर्थ बनाने में सार्वजनिक धन को बेफजुल में खर्च करेगा. दरअसल, व्यवहार्यता रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के शुरुआती दिनों में एमपीटी अधिकारियों ने कहा कि वे मास्टर प्लान में अनुशंसित 680 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए नहीं बल्कि “वित्तीय लिहाज” से 136 करोड़ रुपए के तरल-कार्गो बर्थ के लिए जाएंगे. अगस्त 2018 में, बंदरगाह के तत्कालीन अध्यक्ष आई जेकुमार ने समाचार वेबसाइट गोवा स्पॉटलाइट को बताया, "चूंकि हम आर्थिक रूप से कठिन स्थिति में हैं, इसलिए हम [ट्रस्टियों के] बोर्ड में चर्चा करेंगे कि क्या एक ही पीओएल बर्थ बनाए रखना है ... क्योंकि नई पीओएल जेटी हमें 136 करोड़ रुपए खर्च करने होगें, जिसके बजाय हम अभी वाली पीओएल जेटी को बरकरार रख सकते हैं."

सूचना के अधिकार (आरटीआई) के माध्यम से पाए गए पोर्ट के दस्तावेज बताते हैं कि नवंबर 2016 में बंदरगाह ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रास्ते नए बर्थों के निर्माण और संचालन के काम को सौंपने की कोशिश की थी. हालांकि, किसी कंपनी ने रुचि नहीं दिखाई. 2017 में, इसने सिर्फ एक तरल बर्थ के लिए एक और टेंडर जारी किया, लेकिन फिर बोलियां नहीं लगीं-ये एक संकेत है कि बर्थ को बनाने की लागत को कवर नहीं किया जा सकता है.

परियोजना से जुड़ी संदिग्धता को पुणे स्थित सलाहकार अल्ट्रा-टेक द्वारा तैयार की गई पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट आगे बढ़ाती है. संदर्भ की शर्तों (संरचना), संरचना, उद्देश्य और मूल्यांकन के मानकों का पालन करने में असफल होने के लिए ईआईए रिपोर्ट की गंभीर आलोचना की गई है. परियोजना के लिए ड्रेजिंग कार्य में भूमि स्थिरता और समुद्री जीवन पर विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, जिसमें खारेवाडो समुद्र तट का बड़े पैमाने पर क्षरण भी शामिल है. टीओआर में स्पष्ट निर्देशों के बावजूद ईआईए रिपोर्ट में इनमें से किसी चिंता को संबोधित नहीं किया गया है.

एक और अनोखे तरीके से ईआईए रिपोर्ट ने न केवल नए बर्थ के लिए मास्टर प्लान में पहले से की गई बातों को दोहराया है, बल्कि मछुआरों के लिए एक परियोजना के रूप में इसे घुमाकर पेश कर दिया है.

एक पर्यावरण मंत्रालय के पत्र से पता चलता है कि "परियोजना के लाभ" के तहत, बंदरगाह ने तरल कार्गो का उल्लेख नहीं किया है, इसके बजाय यह कहा गया है कि परियोजना "स्थानीय मछुआरों के आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देगी."

यह मशीनीकृत ट्रॉलरों के लिए एक फिशिंग जेटी के प्रस्ताव को जन्म देता है जिसे नई लिक्विड बर्थ के दूसरी तरफ प्लान किया गया है. ईआईए रिपोर्ट में, बंदरगाह ने स्वीकार किया है कि नई जेटी आवश्यक थी क्योंकि बंदरगाह के पास अपनी वर्तमान साइट पर, ट्रॉलर पेट्रोलियम-वाहक जहाजों में बाधा डालेंगे. लेकिन नीति अनुसंधान केंद्र-नमाती पर्यावरण न्याय कार्यक्रम के साथ गोवा स्थित एक शोधकर्ता तानिया देवैया ने योजना के तर्कों पर सवाल उठाया है. देवैया पूछती हैं, “मछली पकड़ने, नाव लगाने और मछली पालन से जुड़ी अन्य गतिविधियों के लिए समुद्र तट का उपयोग करने वाले पारंपरिक मछुआरों के लिए यह फायदेमंद कैसे है? यह प्रस्ताव पारंपरिक मछुआरों और ट्रॉलर मालिकों के बीच एक आधुनिक जेटी का लालच देकर एक असहज स्थिति पैदा करने की कोशिश करता है.”

कम से कम 150 पारंपरिक मछुआरों को अपनी आजीविका खोने का खतरा हैं क्योंकि बर्थ और जेटी समुद्र तक की पहुंच को रोक देगा. 5 अक्टूबर की सुबह मैंने ओल्ड क्रॉस मछली पालन और नावों के मालिक की सहकारी समिति के अध्यक्ष कस्टोडियो डिसूजा से मुलाकात की जो वास्को बे में चलने वाली 110 नावों के मालिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं.

खारेवाडो बीच में एक छोटे से कंक्रीट के कमरे में समाज के ऑफिस में डिसूजा ने मुझे बताया कि दिसंबर 2016 में वेदांत के रियायत समझौते पर साइन करने के तीन महीने बाद, बंदरगाह ने ओल्ड क्रॉस से समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा जिसने इसे और खारेवाडो में एक और कनू (डोंगी) समाज को नए बर्थ के निर्माण के साथ "सहयोग" करने के लिए और सीधे बंदरगाह के साथ विवादों को सुलझाने का प्रयास करने का निर्देश दिया. डिसूजा ने एमओयू पर कभी साइन नहीं किया. उन्होंने मुझे बताया, “समझौता ज्ञापन तैयार करने में हमसे कभी परामर्श नहीं लिया गया. ये हमारी जमीन है. एमपीटी के आने से पहले से हम यहां मछली पकड़ रहे हैं. उन्हें हमारे पास आना चाहिए और हमें भरोसे में लेना चाहिए. नए बर्थ खारेवाडो के पारंपरिक मछुआरों को खत्म कर देंगे.”

इस साल सितंबर में, जयकुमार, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है, ने संवाददाताओं से कहा कि बोर्ड ने "5 अक्टूबर को सार्वजनिक सुनवाई का इंतजार" करने का फैसला किया था. सार्वजनिक सुनवाई पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) अधिसूचना, 2006 के प्रावधानों के तहत एक शर्त है और परियोजना की पर्यावरण और व्यवहार्यता रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए आयोजित की गई थी.

मैंने सार्वजनिक सुनवाई में भाग लिया और सुनवाई में एक प्रस्तुति में एमपीटी अधिकारियों ने कहा कि नए लिक्विड बर्थ में हर साल सिर्फ 1.55 मिलियन टन की क्षमता होगी-ये वर्तमान क्षमता से कम है. जब एक व्यक्ति ने इशारा किया कि इसका मतलब है कि मौजूदा बर्थ पर्याप्त है तो पोर्ट प्रतिनिधि डीडी अम्बे ने कहा, "ये तो है लेकिन ये बर्थ 8, 9 के विकास के रास्ते में आ रहा है. 2016 में रियायत समझौते पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं."

गोवा स्थित पर्यावरण कार्य समूह फेडरेशन ऑफ रेन्बो वरियर्स के एक सदस्य अभिजीत प्रभुदेसाई ने सुनवाई में कहा, “यह साफ है कि यह परियोजना वेदांत के साथ रियायत समझौते से जुड़ी हुई है, इसलिए एमपीटी को पीओएल को बर्थ 8 से स्थानांतरित करने का अनुबंधिक (कॉन्ट्रैक्चुअल) दायित्व है”

परियोजना और जिन संदिग्ध परिस्थितियों के तहत इसे आगे बढ़ाया जा रहा है तब सामने आईं जब बंदरगाह को अपनी आधुनिकीकरण योजनाओं पर बढ़ती जांच का सामना करना पड़ा है. एमपीटी अपने ऐतिहासिक मुख्यधारा कार्गो लौह अयस्क को रिप्लेस करना चाहता है, जो कोकिंग कोल के साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के बाद एक अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहा है, जिसकी मांग कर्नाटक में इस्पात उद्योग से बढ़ रही है.

2014 में एनडीए सरकार ने पदभार संभालने के बाद और सागरमाला योजना की घोषणा के पहले बंदरगाह की कोयले की हैंडलिंग क्षमता को दोगुना करने के लिए कई परियोजनाओं का प्रस्ताव रखा गया था. बाद में मास्टर प्लान द्वारा इसे समर्थित किया गया. लेकिन ये सारे प्रस्ताव पर्यावरण मंजूरी में अनियमितताओं और कोयले के संचालन के कारण वायु प्रदूषण के खिलाफ गोवा में बढ़ते सार्वजनिक विपक्ष के कारण ध्वस्त हो गए.

ऐसा पहला प्रस्ताव 2015 की परियोजना थी जो पोर्ट के अप्रोच चैनल को गहरा बनाने के लिए दुनिया के सबसे बड़े कोयला ढोने वाले जहाजों को एमपीटी में डॉक करने में सक्षम बना सकता था. शिपिंग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा कानून के स्पष्ट उल्लंघन और भारी अनियमितताएं सामने आने की वजह से इस परियोजना को 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा रोक दिया गया था, संयोग से यह ओल्ड क्रॉस कैनो सोसाइटी थी जिसने परियोजना के विरोध में ट्रिब्यूनल से संपर्क किया था. अगले वर्ष कोयले के खिलाफ लोगों में बढ़ती भावनाओं को ध्यान में रखते हुए गोवा सरकार ने सज्जन जिंदल के जेएसडब्लू स्टील द्वारा एक परियोजना में पर्यावरण मंजूरी को रोक दिया, जो कि एमपीटी में अपने कैप्टिव कोयला टर्मिनल की क्षमता को दोगुना करने के लिए थी. जुलाई 2018 में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एमपीटी में अदानी समूह द्वारा संचालित बर्थ और टर्मिनल पर कोयले की अनुमत संचालन को कम कर दिया. वेदांत के प्रस्तावित बर्थ भी अभी शुरू नहीं हुआ है, इसके पीछे कोयले का विरोध ही एकमात्र कारण नहीं है, बल्कि गोवा में लौह अयस्क खनन की बहाली पर अनिश्चितताएं भी हैं.

नए कार्गो बर्थ बनाने का प्रस्ताव अब इसी तरह की जांच का सामना कर रहा है. कोयला विरोधी आंदोलन ने अब परियोजना पर अपने हमले बढ़ा दिए हैं, क्योंकि मुख्य रूप से इसे वेदांत के कोयला टर्मिनल के लिए जगह की आवश्यकता के जवाब में प्रस्तावित किया जा रहा है. प्रभुदेसाई ने कहा, “कोयला हैंडलिंग बढ़ाने के लिए यह एक परियोजना है. लेकिन (पर्यावरण मंत्रालय) के लिए पूरी परियोजना की जांच करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि हर बार उन्हें केवल एक हिस्सा दिखाई देगा और कहा जाएगा कि अन्य सभी अभी बाकी हैं.”

इस साल 26 अक्टूबर को, वास्को स्थित वकील सावियो कोर्रिया ने आरटीआई के तहत सूचना प्राप्त की जिसमें कहा गया था कि पर्यावरण मंत्रालय ने सितंबर 2017 में वेदांत परियोजना के पर्यावरण मंजूरी के आवेदन को खारिज कर दिया था. 2 नवंबर को, जब मैंने एमपीटी डिप्टी चेयरमैन जीपी राय से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि डिलीस्टिंग के बारे में उन्हें नहीं पता. हालांकि आरटीआई प्रतिक्रिया से पता चला कि डिलीस्टिंग एक त्रुटि का परिणाम था- सार्वजनिक सुनवाई से छूट के लिए अपने अनुरोध को वापस लेने वाले एमपीटी के पत्र को पूरे प्रस्ताव को वापस लेने के रूप में माना लिया गया था- बंदरगाह के वरिष्ठ अधिकारी 14 महीने बाद डिलीस्टिंग को लेकर अनजान थे. परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी को प्रोसेस करने के लिए एमपीटी ने पर्यावरण मंत्रालय के संपर्क नहीं बनाए रखा था.

राय ने मुझे फोन पर बताया, "लौह अयस्क खनन के आसपास कई अनिश्चितताएं हैं और प्रत्येक विकास के साथ परियोजना अर्थशास्त्र पूरी तरह से बदल जाता है. इसलिए हम इंतजार करेंगे और देखेंगे कि खनन शुरू होता है या नहीं." वेदांत के साथ समानांतर या पूरक समझौते, जो एमपीटी बर्थ आठ बनाए रखेगा और इसलिए विस्तार को रोक देगा, की संभावना के बारे में पूछे जाने पर राय ने कहा, “बर्थ आठ बनाए रखने पर कोई फैसला नहीं लिया गया है. लेकिन हमने सोचा कि क्या हम नए बर्थ में निवेश के पैसे पर पुनर्विचार कर सकते हैं. हमें इस पर वेदांत से चर्चा करनी होगी और दोनों पक्षों को आपसी समझ बनानी होगी.”


Nihar Gokhale is an environmental journalist with an interest in the politics and impacts of infrastructure projects. He is the associate editor at Land Conflict Watch, an independent network of researchers studying land conflicts, climate change and natural-resource governance in India