25 मार्च 2015 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सागरमाला कार्यक्रम को मंजूरी दी. यह भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार की एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य भारत के बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करना है. कार्यक्रम से लॉजिस्टिक्स की लागत को कम करने और बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देकर इसके नेतृत्व वाले आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने की उम्मीद है. इसके अगले साल जुलाई-अगस्त में सरकार ने भारत के प्रमुख बंदरगाहों में से 12 के लिए सागरमाला के तहत विस्तृत मास्टर प्लान को अंतिम रूप दिया. इसमें गोवा के वास्को द गामा शहर के पास एक प्रमुख बंदरगाह मोरमुगांव पोर्ट ट्रस्ट यानी एमपीटी शामिल था. इस बात के विस्तृत आकलन के आधार पर कि 2035 तक बंदरगाह से कार्गो की कैसी प्रकृति और कितनी मात्रा संभाल सकता है- सागरमाला के उद्देश्यों को प्राप्त करने के तय किया गया साल- एमपीटी के लिए मास्टर प्लान ने इन अनुमानों के अनुरूप पोर्टफोलियो में बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में बदलाव की सिफारिश की.
हालांकि, एमपीटी में बंदरगाह विस्तार परियोजना को लेकर मेरी जांच, जिसकी सागरमाला के तहत कल्पना की गई है, इस ओर इशारा करती है कि परियोजना आर्थिक तर्क पर खरी नहीं उतरती. परियोजना मुश्किल से व्यवहारिक है क्योंकि भविष्य में ये कार्गो में किसी भी तरह की वृद्धि नहीं करेगी और केवल बंदरगाह की मौजूदा सुविधाओं को बदल देगी, जो फिलहाल तो 2035 तक कार्गो विकास के लिए पर्याप्त नजर आती है. मछुआरों के लिए लाभप्रद परियोजना के रूप में एमपीटी को पेश किए जाने को भी इस समुदाय ने खारिज कर दिया है. जिनमें से कई का कहना है कि ये पारंपरिक मछुआरों की आजीविका के लिए खतरा है. स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ मछुआरे भी यही दावा करते हैं कि परियोजना क्षेत्र की इकोलॉजी के भारी क्षति पहुंचाएगी. मास्टर प्लान और अन्य बंदरगाह दस्तावेज बताते हैं कि इस परियोजना को बंदरगाह पर जगह बनाने के एकमात्र उद्देश्य से उचित ठहराया गया है ताकि खनन समूह के लिए वेदांत रिसोर्सेज अपने प्रस्तावित कोयले और लौह अयस्क टर्मिनल का निर्माण कर सके.
अप्रैल 2016 में सागरमाला मास्टर प्लान को अंतिम रूप देने से चार महीने पहले, वेदांत लिमिटेड, वेदांत रिसोर्सेज की एक सहायक और दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक संसाधन कंपनियों में से एक, एमपीटी में 1200 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए सफल बोली लगाने वाले के रूप में उभरी. इसकी डिजाइन, बिल्ड, ऑपरेट, फाइनेंस एंड ट्रांसफर (डीबीओएफटी) परियोजना को एमपीटी के आठ सक्रिय बर्थों को-बंदरगाहों में तय जगहें जहां जहाजों को लोड करने और उतारने के लिए डॉक या मूर कर सकते हैं- लौह अयस्क, कोयले और अन्य ड्राई बल्क-कार्गो के लिए एक टर्मिनल में बदलने के लिए तैयार किया गया था.
वेदांत परियोजना के तहत पुनर्विकास के लिए पहचाने गए बर्थों में बर्थ नंबर आठ पर पेट्रोलियम हैंडलिंग सुविधा थी, बर्थ नंबर नौ और पास के 38 साल पुरानी बार्ज बर्थ में लौह अयस्क लोडिंग सुविधा. गौर करने लायक है कि नौ नंबर बर्थ और बर्ज बर्थों को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है, लेकिन बर्थ आठ के साथ ऐसा नहीं है. साल 2016 में बर्थ आठ गोवा के सालाना घरेलू ईंधन मांग 0.78 मिलियन टन का 0.06 मिलियन टन संभाल रहा था और राज्य के लिए जरूरी था. जाहिर है कि राज्य में पेट्रोलियम परिचालन के भविष्य के लिए किसी भी योजना के बिना ड्राइ कार्गो बे के रूप में बदलने के लिए इसे वेदांत को सौंप दिया गया.
अब, एमपीटी वेदांत परियोजना के लिए एक सफल सहयोगी के रूप में अभी तक अपना सबसे बड़ा विस्तार करने का प्रस्ताव कर रहा है. सागरमाला के तहत, बंदरगाह प्राधिकरणों ने तीन नए बर्थ बनाने की योजना बनाई-एक लिक्विड कार्गो बर्थ; अन्य भारतीय बंदरगाहों से माल ले जाने वाले जहाजों के लिए एक बहुउद्देशीय तटीय कार्गो बर्थ; और सभी प्रकार के जहाजों के लिए एक बहुउद्देश्यीय कार्गो बर्थ. एक कंक्रीट प्लेटफार्म के दूसरी तरफ एक फिशिंग जेटी (मछली पकड़ने के लिए जलबंधक) और एक यात्री जेटी का प्रस्ताव भी दिया गया है जो लिक्विड और कोस्टल कार्गो बर्थ के लिए होगा. इस अपग्रेड की पूरी लागत 680 करोड़ रुपए थी.
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