बाबरी मस्जिद और राम मंदिर के मामले का फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है लेकिन आरएसएस और उससे जुड़ा संगठन, विश्व हिंदू परिषद, मामले को अयोध्या से बाहर निकाल कर, 250 किलोमीटर में फैले चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग के जरिए हिंदुत्व की दूसरी प्रयोगशाला गढ़ने में लगे हैं. 2019 के चुनावों से कुछ महीने पहले आरएसएस के विचारक राम बहादुर राय ने इस संवेदनशील मुद्दे को हवा दी है.
अयोध्या के सांसद लल्लू सिंह के नेतृत्व में, केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित सरकारी संस्था आईजीएनसीए, प्रज्ञा संस्थान और शंखध्वनि ने, 4 से 6 जनवरी 2019 को तीन दिवसीय ‘अयोध्या पर्व’ का आयोजन किया गया. इस पर्व में अयोध्या की पौराणिक जगहों और पत्थरों पर खुदे शिलालेखों की सचित्र प्रदर्शनी लगाई गई. पहले कार्यक्रम का उद्घाटन परिवहन मंत्री नितिन गडकरी करने वाले थे लेकिन ऐन मौके पर उनकी जगह कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर आए. इस अवसर पर नेहरू मेमोरियल लाईब्रेरी बोर्ड के सदस्य राम बहादुर राय ने यह कहकर सनसनी मचा दी कि अयोध्या के आसपास राम की पौराणिकता से जुड़े 141 या अधिक जगहों की पहचान की जानी बाकी है और हमें अयोध्या को अवध की सेकुलर संस्कृति के चश्मे से देखने की जरुरत नहीं है. राय, हिंदुस्थान समाचार एजेंसी के समूह संपादक और आईजीएनसीए के अध्यक्ष भी हैं. उनकी इस घोषणा के वक्त राम जन्मभूमि न्यास परिषद के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास और विहिप के उपाध्यक्ष चपंत राय भी मौजूद थे. राय ने कहा, "अवध और अयोध्या में फर्क है. अवध की संस्कृति नेहरू की सेक्युलर संस्कृति की लाइन में है, इतिहास की नासमझी की लाइन में है." उन्होंने आगे कहा कि इन 141 स्थानों के बारे में "देश, दुनिया, और समाज को जानना चाहिए". राय आगे कहते हैं कि इस बड़ी अयोध्या के बारे में यहां के सांसद लल्लू सिंह ने जानकारी दी थी.
दावा किया जा रहा है कि ये सभी स्थान चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग पर हैं (एक कोस यानि 3.2 किमी). धार्मिक मान्यता है कि पौराणिक राजा दशरथ की अयोध्या चौरासी कोस में फैली थी और राम सहित दशरथ के परिवार से जुड़े पौराणिक स्थल इस सीमारेखा में मौजूद हैं. चौरासी लाख योनियों में भटकने से बचने के उद्देश्य से श्रद्धालु चैत पूर्णिमा से वैशाख पूर्णिमा के बीच अयोध्या से 20 किमी उत्तर स्थित बस्ती जिले के मखौड़ा धाम से परिक्रमा यात्रा की शुरुआत करते हैं. पांच जिलों में पड़ने वाले 21 पड़ावों को पार करते हुए फिर ये मखौड़ा धाम पहुंच कर अपनी यात्रा समाप्त करते हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 26 जुलाई 2013 को गुवाहटी में हुई मार्गदर्शक मंडल की बैठक में अयोध्या के इस चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग को राजनीतिक एजेंडे में शामिल करते हुए इसे जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी विश्व हिंदू परिषद को सौंपी थी. इसके ठीक एक महीने बाद विहिप ने 25 अगस्त को चौरासी कोसी परिक्रमा यात्रा शुरु करने की घोषणा कर दी. राज्य सरकार ने संघ की इस नई परंपरा को शुरू करने पर प्रतिबंध लगा दिया और लखनऊ हाई कोर्ट ने सरकार के इस प्रतिबंध को सही ठहराते हुए यात्रा की अनुमति नहीं दी. सरकार ने भी मुस्तैदी दिखाते हुए यात्रा को विफल कर दिया.
दिल्ली में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के 15 महीनों के अंदर, अगस्त 2015 में, नितिन गडकरी ने संघ की इस प्रयोगशाला को सरकारी विकास का अमली जामा पहनाते हुए 250 किमी के चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग को फोरलेन में बदलने की स्वीकृति दे दी थी. फिर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दिसंबर 2016 में फैजाबाद की एक रैली में 1056.41 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस फोरलेन परिक्रमा मार्ग को नेशनल हाईवे का दर्जा देने और साथ ही 200 करोड़ की लागत से सरयू नदी पर दो पुल बनाने की भी घोषणा की. गडकरी ने कहा कि विकास की इस योजना से इस परिक्रमा मार्ग में पड़ने वाले छह जिलों— गोंडा, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, बहराइच, बस्ती और फैजाबाद के सैकड़ों गांवों की तस्वीर बदल जाएगी.
अयोध्या पर्व के दौरान चौरासी कोसी परिक्रमा का ग्राफिक मॉडल भी दिखाया गया. इस मॉडल में फोरलेन बनने के बाद चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग और यहां स्थित भगवान राम से जुड़े 141 स्थानों में से 80 स्थानों को चिन्हित करते हुए एक तस्वीर दिखाई गई. मॉडल में रुदौली, अमनीगंज, खेमसराय, मेहबूब गंज, कलंदरपुर, नवाबगंज और अन्य गांवों को भी दिखाया गया.
दरअसल, चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग के जरिए 141 नए अयोध्या की तलाश जिन छह जिलों में करने की बात की जा रही है, उनकी आर्थिक—सामाजिक पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक इतिहास को समझना जरूरी है. ये छह जिले अवध की धर्मनिर्पेक्ष संस्कृति के अहम हिस्से रहे हैं. अवध के इस हिस्से में रहने वाले लगभग 2 करोड़ लोग आज भी मिलजुल कर रहने की रवायत वाली संस्कृति को मानते हैं. मुगल शासक हों या मुगल सत्ता से अलग अवध के नवाब, किसी ने भी यहां की सामाजिक और धार्मिक बुनावट के साथ छेड़छाड़ करने की कोई कोशिश नहीं की थी.
गोंडा और फैजाबाद को छोड़कर इन जिलों में स्थाई तौर पर न तो बीजेपी पैर जमा पाई और न ही संघ सांस्कृतिक हिंदुत्व के जरिए गांवों की झोपड़-पट्टियों में दाखिल हो पाया. और तो और लगभग 24 साल पहले सूबे के विधानसभा चुनावों में इन दलित और मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी के सामाजिक धरातल पर “मिल गए मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम” का नारा भी खूब गूंजा था.
1992 में बाबरी मस्जिद गिराने की ऐतिहासिक घटना के बाद बीजेपी इन जिलों में स्थाई तौर पर पैर जमाने में कामयाब हो गई लेकिन उसे ओबीसी और दलित राजनीति से कड़ी चुनौती मिली. इन पार्टियों ने कई बार यहां से जीत भी दर्ज की. इन जिलों की आबादी का बड़ा हिस्सा दलित और मुसलमान है. 2014 के आम चुनावों में मोदी लहर को एक अपवाद मान लिया जाए तो पिछले दो दशक से अंबेडकर नगर में बीएसपी मजबूत रही है और स्वयं मायावती यहां से चार बार लोक सभा चुनाव जीत चुकी हैं. अंबेडकर नगर की 40 प्रतिशत आबादी मुस्लिम-दलित है और 2014 से पहले बीजेपी को यहां कभी जीत नहीं मिली थी. इसी तरह पिछले तीस सालों में बाराबंकी से बीजेपी केवल दो बार लोक सभा चुनाव जीत सकी और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित बहराइच में बीजेपी सफलता के लिए कठिन संघर्ष कर रही है. इसी बहराइच से बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखवाने वाले तत्कालीन अयोध्या के डीएम के. के. नैयर जनसंघ के टिकट पर 1967 में लोक सभा पहुंचे थे और रफी अहमद किदवई से लेकर अन्य मुस्लिम भी यहीं से संसद पहुंचते रहे हैं. अगर बाराबंकी और बहराइच की अनुसूचित जाति और मुस्लिमों की आबादी को मिला दें तो पूरी आबादी में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा इनका ही है.
संभव है कि आने वाले दिनों में हिंदुत्व अपने प्रयोगशाला की सीमा रेखा का विस्तार रायबरेली और अमेठी तक ले जाए क्योंकि इन दोनों जिलों में भी आबादी का जातीय और धार्मिक स्वरूप बाकी के छह जिलों से जुदा नहीं है और यह बात संघ और बीजेपी को चुभती रही है. इसलिए राम बहादुर राय, हिंदुत्व की प्रयोगशाला के विस्तार की गुंजाइश रखते हुए राम की पौराणिकता से जुड़े “141 या उससे ज्यादा” जगहों की पहचान करने की बात करते हैं.
गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजमार्ग उन सड़कों को कहा जाता है जो भारत के राज्यों को आपस में जोड़ते हैं. गडकरी ने इस चौरासी परिक्रमा मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा तो दे दिया लेकिन यह नहीं बताया कि वे इस गोल रास्ते से अन्य राज्यों को कैसे जोड़ेंगे.
नितिन गडकरी के इस चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग वाले विकास मॉडल से विकास के किसी नए रास्ते की गुंजाइश नहीं है. भारत के सबसे पिछड़े जिलों में से एक बहराइच की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खेती-किसानी पर निर्भर है. ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है कि ये पौराणिक मार्ग लोगों को किस स्वर्ग में ले जाएगा. क्या अब यह भी बताना जरूरी है कि सरकारी खर्च पर संघ के प्रोजेक्ट को बढ़ावा देकर मोदी सरकार क्या हासिल करना चाहती है.