17वीं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का होना भारतीय लोकतंत्र के लिए जरूरी

संभावना है कि 19 जून को लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला भी पूर्ववर्ती सुमित्रा महाजन की तरह ही नेता प्रतिपक्ष का दर्जा किसा को नहीं देंगे.
सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
संभावना है कि 19 जून को लोकसभा अध्यक्ष बने ओम बिरला भी पूर्ववर्ती सुमित्रा महाजन की तरह ही नेता प्रतिपक्ष का दर्जा किसा को नहीं देंगे.
सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

18 जून को कांग्रेस पार्टी ने पश्चिम बंगाल से 5 बार के सांसद अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस के संसदीय दल का नेता नियुक्त किया. इसके दूसरे दिन भारतीय जनता पार्टी के ओम बिरला को सर्वसम्मति से 17वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुन लिए गया. चौधरी की नियुक्ति के बावजूद कांग्रेस ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के दर्जे की मांग नहीं की. पिछली बार पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कांग्रेस पार्टी के संसदीय नेता को नेता प्रतिपक्ष स्वीकार नहीं किया था शायद इसलिए कांग्रेस ने यह मांग नहीं की.

16वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल में महाजन ने नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से यह कह कर इनकार कर दिया था कि कांग्रेस के पास विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद इस दर्जे के लिए आवश्यक संख्या नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के 44 सदस्य थे और महाजन का तर्क था कि इस हैसियत के लिए लोकसभा की कुल संख्या का 10 प्रतिशत यानी 55 सीट होना आवश्यक है. महाजन ने कांग्रेस के सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्ष का नेता नहीं माना था और चौधरी के खिलाफ नए अध्यक्ष बिरला के भी इसी तर्क का प्रयोग करने की संभावना है. इस बार के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने केवल 52 सीटें जीती हैं.

हालांकि महाजन का वह कार्य कानून सम्मत नहीं था. स्वतंत्रता के बाद दो दशकों तक 10 प्रतिशत वाला नियम लागू था किंतु 1977 में इस प्रावधान में बदलाव आया. उस साल संसद में पारित कानून ने लोकसभा अध्यक्ष को सबसे बड़े विपक्षी दल को विपक्ष के नेता की मान्यता देने का अधिकार दे दिया. लग रहा है कि पूर्व और हाल के अध्यक्षों ने 42 साल पुराने इस कानून को नजरअंदाज किया है और इस वजह से भारत की लोकतांत्रिक राजनीति कमजोर हो रही है.

1952 में पहली लोकसभा के गठन के साथ ही 10 प्रतिशत नियम अस्तित्व में आया था. लोकसभा प्रक्रिया पर लागू होने वाले नियम लोकसभा अध्यक्ष को सदन के निचली सदन के कामकाज के लिए निर्देश देने की शक्ति देते हैं. 1956 में तत्कालीन अध्यक्ष जी. वी. मावलंकर, निर्देश क्रमांक 120-123 के तहत पहली बार 10 प्रतिशत नियम संसद में लाए थे. ये निर्देश नेता प्रतिपक्ष के दर्जे से संबंधित हैं और सदस्यों को इस दर्जे के लिए ऐसी पार्टी से सम्बद्ध होना होता है जिसे एक संसदीय पार्टी के रूप में “मान्यता” प्राप्त है. अन्य शर्तों के अलावा एक शर्त यह भी थी कि इस दर्जे के लिए न्यूनतम सीटें संविधान में उल्लेखित लोकसभा कोरम पूरा करने के लिए जरूरी 10 प्रतिशत सीटें जितनी होनी चाहिए.

आजादी के कई बरस तक 10 प्रतिशत वाला निर्देश लागू रहा और प्रत्येक पार्टी द्वारा चुनाव में प्राप्त सीटों के अनुसार ही विपक्षी दल का दर्जा मिलता था. 1969 के चुनावों में पहली बार औपचारिक रूप से लोकसभा में विपक्षी दल अस्तित्व में आया.

मानसी वर्मा ​नीति निर्माण और जनभागीदारी विषय पर काम करने वाली संस्था माध्यम की संस्थापक हैं.

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