बीजेपी नेता क्यों छोड़ रहे हैं पार्टी?

बीजेपी के नेताओं का कहना है कि पार्टी जातिवादी और सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ रही है. राजेंद्र जाधव/रॉयटर्स
01 January, 2019

गत वर्ष अप्रैल में भारतीय जनता पार्टी के तीन नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत पत्र लिख कर दलितों के प्रति हिंसा को नजरअंदाज करने के लिए पार्टी की आलोचना की. ये तीनों नेता वंचित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. उत्तर प्रदेश के नगीना जिले के सांसद यशवंत सिंह ने प्रधानमंत्री के नाम अपने पत्र में लिखा, “दलित होने के कारण मेरी क्षमता का पूरी तरह से दोहन नहीं किया गया. पिछले चार सालों में सरकार ने भारत के 30 करोड़ों दलितों के लिए कुछ नहीं किया”.

पार्टी के अंदर असंतोष की आवाज इन तीन नेताओं तक सीमित नहीं है. पिछले 2 सालों में देशभर के कई पार्टी नेताओं ने सांप्रदायिक और जातिवादी माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए पदों से इस्तीफा दिया है. नेताओं का कहना है कि दलितों और मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर बीजेपी नेतृत्व की खामोशी ने उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया है.

मैंने असम से लेकर मध्य प्रदेश तक बीजेपी के 7 ऐसे सदस्यों से बात की जिन्होंने हाल ही में पार्टी छोड़ी है. मैंने जानना चाहा कि उनके पार्टी छोड़ने के पीछे क्या कारण थे, पार्टी के साथ काम करने का उनका अनुभव कैसा था और वे लोग पार्टी में शामिल क्यों हुए थे.

सावित्रीबाई फुले, सांसद, उत्तर प्रदेश

6 दिसंबर 2018 को दलित समुदाय से आने वाली सावित्रीबाई फुले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. 4 साल पहले उत्तर प्रदेश की बहराइच लोक सभा सीट से फुले निर्वाचित हुईं थीं. उन्होंने मुझे बताया कि प्रधानमंत्री तो कहते हैं कि, “अगर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी आकर कहें कि आरक्षण को समाप्त कर दो, हम तब भी समाप्त नहीं करेंगे” लेकिन पार्टी भारतीय संविधान को बदलने की कोशिश कर रही है.

फुले ने दावा किया कि सांसद के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने संसद में लगातार दलितों के खिलाफ अत्याचार का मामला उठाया है. उन्होंने कहा, “बीजेपी के लोगों ने कई बार मुझे रोकने की कोशिश की कि आप इस तरीके से बातें करती हैं तो समाज हमसे नाराज हो जाएगा”.

फुले ने बताया कि 2014 में आरक्षण को संविधान अनुरूप लागू किए जाने की बात को सुनिश्चित करने के लिए वे बीजेपी में शामिल हुई थीं. उन्होंने कहा कि उनकी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी और यदि वह आरक्षित सीट नहीं होती तो बीजेपी उन्हें कभी टिकट नहीं देती. जब मैंने उनकी भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे अपने पूर्व निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति के लिए काम करेंगी, जो है अपने समुदाय के हितों का प्रतिनिधित्व करना और भारत में आरक्षण को पूर्ण रूप से लागू करवाना.

2. कमलपत आर्य, मध्य प्रदेश

2018 अक्टूबर में दलित समुदाय के कमलपत आर्य ने मध्य प्रदेश बीजेपी की चंबल संभाग इकाई से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने बताया कि आरक्षण के मामले में बीजेपी का कोई स्पष्ट स्टैंड नहीं है. “आरक्षण के मामले में जो खाई पैदा हो रही है, जनरल लोगों के बीच और दलितों के बीच वह खाई बढ़ाने का काम बीजेपी ने किया है”. आर्य के अनुसार इस खाई ने दलित समुदाय के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार को बढ़ावा दिया है.

उन्होंने बताया कि पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें कभी बैठकों में नहीं बुलाते और निर्णय करने की प्रक्रिया में शामिल नहीं करते. उन्होंने कहा, “बीजेपी में जो है अनुसूचित जाति और जनजाति को बोलने का अधिकार नहीं था”.

आर्य 1996 में बीजेपी में शामिल हुए थे. जब मैंने उनसे पूछा कि वह बीजेपी में क्यों शामिल हुए थे तो उन्होंने बताया, “तब लगता था कि राम को मानने वाली पार्टी है, तब लगता है कि अपन भी हिंदू हैं इस पार्टी को ज्वाइन करें और अपना राजनीतिक करियर बनाएं”.

3. राज कुमार सैनी, सांसद हरियाणा

ओबीसी समुदाय के राज कुमार सैनी कुरुक्षेत्र से बीजेपी सांसद हैं. पिछले साल सितंबर  में उन्होंने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से बीजेपी ने हरियाणा में जाट समुदाय को आरक्षण दिया उस बात से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी. उनका कहना है, “सरकार उन से दब गई. हम नहीं चाहते कि जो दब गए उनके लिए हम चलें.  संविधान के हिसाब से आरक्षण किया जाए.

सैनी 1990 के दशक में राजनीति में आए थे. वे पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी में शामिल हुए. उसके बाद वह ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोक दल में शामिल हुए. वे कहते हैं कि उन्होंने दोनों पार्टियों को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि इन पार्टियों का नेतृत्व करने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री अपने समुदाय के लोगों का पक्ष लेते थे.

बीजेपी छोड़ने के बाद सैनी ने लोकतंत्र सुरक्षा नाम की अपनी पार्टी बना ली है. जब मैंने उनसे पूछा कि वे बीजेपी में क्यों शामिल हुए थे तो उनका कहना था, “हमें लगा यह हमारे सिद्धांत के अनुसार है”.

4. चौधरी मोहन लाल, पंजाब

अप्रैल 2018 में अनुसूचित जाति समुदाय के चौधरी मोहन लाल ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. वे 1997 से 2000 के बीच अकाली दल के सदस्य थे. लाल पंजाब की आरक्षित बांगा सीट से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे. उनका आरोप है कि बीजेपी वंचित समुदायों से आने वाले मजबूत नेताओं को आगे आने नहीं देती. जगजीवन राम, काना सिंह रहे, बूटा सिंह रहे हैं. आप बताइए बीजेपी में कौन है कैबिनेट मिनिस्टर जो अनुसूचित जाति से है, इनका नाम दुनिया जानती है”.

उनका आरोप है कि बीजेपी मुस्लिमों के प्रति पूर्वाग्रह रखती है और सिख समुदाय की अनदेखी करती है क्योंकि, “सिख एक है अल्पसंख्यक आयोग में वह भी आरएसएस की विचारधारा का”. लाल के अनुसार, “बीजेपी ब्राह्मणों की पार्टी बनकर रह गई है. यह लोग एंटी शेड्यूल्ड कास्ट है, एंटी माइनॉरिटी है”.

लाल 2016 में बीजेपी में शामिल हुए थे. पिछले लोकसभा चुनावों में होशियारपुर के सांसद विजय सांपला ने उन्हें बीजेपी में शामिल होने का अनुरोध किया था. उन्होंने दावा किया कि उन्हें अपने पिता की निर्वाचन सीट फगवाड़ा से टिकट देने का भरोसा दिया गया था लेकिन पार्टी अपने वादे से पीछे हट गई. लाल अब बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए हैं.

5. बेनजीर अरफान, पूर्व बीजेपी प्रवक्ता, असम

बेनजीर अरफान असम में 5 सालों तक बीजेपी की प्रवक्ता रहीं. 2017 में, मृत रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए आयोजित एक शोक सभा में शामिल होने का अनुरोध उनसे किया गया. उन्होंने बताया कि उन्होंने जब यह आमंत्रण स्वीकार कर लिया तो उन्हें पार्टी के उपनेता रंजीत कुमार दास का व्हाट्सएप संदेश मिला कि उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया है.

अरफान कहती हैं, “मुस्लिम को वो फ्लावर वास बना कर टेबल में सजाते हैं”. वह कहती हैं कि 2016 में जब वह असम की जानिया विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही थीं तब पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता या विधायक उनके लिए प्रचार करने नहीं आया.

अब अरफान असम प्रदेश कांग्रेस कमिटी की प्रवक्ता हैं. उन्होंने बताया कि 2012 में वे बीजेपी में इसलिए शामिल हुई थीं क्योंकि उनके शौहर ने उन्हें तीन तलाक दिया था. उस वक्त बीजेपी इस मामले को उठा रही थी और अरफान को लगा था कि पार्टी महिलाओं की हितैषी है.

6 और 7 दानिश अंसारी और अमान मेमोन, पूर्व सदस्य, मध्य प्रदेश बीजेपी

24 नवंबर 2018 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में भाषण दिया. कांग्रेस नेता कमलनाथ की एक टिप्पणी के जवाब में आदित्यनाथ ने कहा कि “अपने अली को अपने पास रखो, हमारे लिए बजरंग बली काफी हैं”. आदित्यनाथ की इस टिप्पणी के बाद कम से कम छह सदस्यों ने बीजेपी की इंदौर शाखा से इस्तीफा दे दिया. इनमें से तीन सदस्यों से मैंने बात की.

दानिश अंसारी इंदौर में बीजेपी की शहर स्तरीय समिति महाराणा प्रताप मंडल के उपाध्यक्ष थे. उन्होंने मुझसे कहा, “ऐसे किस्से और भी हुए थे पर हमें लगा बंद हो जाएंगे. लेकिन डे-बाई-डे ऐसी चीजें बढ़ती गई”.

अमान मेमोन 10 साल तक बीजेपी में रहे और इंदौर में पार्टी की लक्ष्मीबाई मंडल के उपाध्यक्ष नियुक्त हुए. वे कहते हैं, “मुस्लिम समाज में भाजपा की छवि अच्छी नहीं है इसलिए वहां हम मेहनत करते हैं पार्टी के लिए ताकि उसे आगे पहुंचा सके”. आदित्यनाथ की टिप्पणी का उल्लेख करते हुए मेमोन ने कहा, “ऐसे में क्या मुंह लेकर जाएं हम अपनी कौम के पास”.