गत वर्ष अप्रैल में भारतीय जनता पार्टी के तीन नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत पत्र लिख कर दलितों के प्रति हिंसा को नजरअंदाज करने के लिए पार्टी की आलोचना की. ये तीनों नेता वंचित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. उत्तर प्रदेश के नगीना जिले के सांसद यशवंत सिंह ने प्रधानमंत्री के नाम अपने पत्र में लिखा, “दलित होने के कारण मेरी क्षमता का पूरी तरह से दोहन नहीं किया गया. पिछले चार सालों में सरकार ने भारत के 30 करोड़ों दलितों के लिए कुछ नहीं किया”.
पार्टी के अंदर असंतोष की आवाज इन तीन नेताओं तक सीमित नहीं है. पिछले 2 सालों में देशभर के कई पार्टी नेताओं ने सांप्रदायिक और जातिवादी माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाते हुए पदों से इस्तीफा दिया है. नेताओं का कहना है कि दलितों और मुसलमानों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर बीजेपी नेतृत्व की खामोशी ने उन्हें पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर किया है.
मैंने असम से लेकर मध्य प्रदेश तक बीजेपी के 7 ऐसे सदस्यों से बात की जिन्होंने हाल ही में पार्टी छोड़ी है. मैंने जानना चाहा कि उनके पार्टी छोड़ने के पीछे क्या कारण थे, पार्टी के साथ काम करने का उनका अनुभव कैसा था और वे लोग पार्टी में शामिल क्यों हुए थे.
सावित्रीबाई फुले, सांसद, उत्तर प्रदेश
6 दिसंबर 2018 को दलित समुदाय से आने वाली सावित्रीबाई फुले ने बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. 4 साल पहले उत्तर प्रदेश की बहराइच लोक सभा सीट से फुले निर्वाचित हुईं थीं. उन्होंने मुझे बताया कि प्रधानमंत्री तो कहते हैं कि, “अगर डॉक्टर भीमराव अंबेडकर भी आकर कहें कि आरक्षण को समाप्त कर दो, हम तब भी समाप्त नहीं करेंगे” लेकिन पार्टी भारतीय संविधान को बदलने की कोशिश कर रही है.
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