साल 2022 में श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश के उत्तर में मन्नार और पूनरिन में एक पवन ऊर्जा परियोजना में 4 करोड़ 42 लाख डॉलर के निवेश की इजाज़त अडानी ग्रीन को दी. कुछ महीने बाद सीलोन बिजली बोर्ड के एक शीर्ष अधिकारी ने श्रीलंका के संसदीय पैनल के आगे गवाही दी कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दबाव डालने पर 20 साल के उस समझौते को मंजूरी दी गई थी.
हालांकि, बाद में अधिकारी ने अपना बयान वापस ले लिया और से इस्तीफा दे दिया. बाद में राजपक्षे की जगह लेने वाले रानिल विक्रमसिंघे ने कई सवाल उठने के बावजूद इस परियोजना को जाती रखने का फ़ैसला किया. 2023 में श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने घोषणा की कि श्रीलंकाई सरकार को इस परियोजना से बहुत उम्मीदें हैं क्योंकि वह इस करार को नई दिल्ली के साथ किया सीधा सौदा मानती है.
मोदी के शासन में निजी कारोबारी हितों को बढ़ावा देना भारत की विदेश नीति का एक अहम हिस्सा बन गया है. अडानी के ख़िलाफ़ भारत और विदेशों में भ्रष्टाचार के कई इल्ज़ामात के बावजूद उनकी कंपनियां इस सरकार में अकूत मुनाफ़ा बटोर रही हैं. अभी तक का सबसे बड़ा आरोप न्यूयॉर्क की एक अदालत में दर्ज़ हुआ है. अमेरिकी न्याय विभाग और प्रतिभूति विनिमय आयोग ने अडानी, उनके भतीजे सागर अडानी और अन्य छह सहयोगियों पर 2020 और 2024 के बीच अमेरिकी निवेशकों से अपने कारोबार करने के तरीकों को लेकर झूठ बोलने का आरोप लगाया. अडानी और उनके सहयोगियों ने निवेशकों से नियम मुताबिक काम करने का भरोसा जताया था लेकिन उन्होंने भारतीय अधिकारियों को 26 करोड़ 50 लाख डॉलर की रिश्वत दी थी.
पिछले एक दशक में विपक्षी दल के नेता राहुल गांधी ने मोदी और अडानी के बीच की नज़दीकी को लेकर कई आरोप लगाए हैं. लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने न तो इन आरोपों को नकारा है और न ही उन्होंने भारत की भू-राजनीतिक स्थिति के मद्देनज़र देश के दूसरे कारपोरेट घरानों को आगे बढ़ाया है. अडानी को बचाने के लिए अपनी सरकार की छवि को भी ताक पर रख कर मोदी ने इस बात को हवा दी है कि अडानी उनकी सरकार का ही हिस्सा हैं. बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री अपनी तरह से रही सही कसर पूरी करते ही रहते हैं.