कानपुर में पुलिस की कार्रवाई के बाद गिरफ्तार मुस्लिम अब तक हिरासत में, परिवार खौफ में

20 दिसंबर 2019 को कानपुर में भारत के नए नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक प्रदर्शनकारी को हिरासत में लेते हुए सुरक्षाकर्मी. एएफपी / गैटी इमेजिस

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में नौबस्ता के रहने वाले 20 साल के मोहम्मद अरमान 21 दिसंबर की शाम लगभग 6 बजे अपने घर से निकले. उनके माता-पिता मोहम्मद हनीफ और अमीना के मुताबिक, हिंदू बहुल इलाके में एकमात्र मुस्लिम परिवार होने के बावजूद पैंतीस सालों से वे यहां आधे-पक्के बने मकान में शांति से रह रहे थे. परिवार में अरमान अकेले कमाने वाले थे. वह अपनी बीमार बहन को देखने के लिए मैनपुरी जिले में जा रहे थे. अपने घर से कम से कम पंद्रह किलोमीटर दूर परेड चौराहा में वह आलू पूरी खाने के लिए रुके. जिसके बाद वह अपनी बहन के घर नहीं पहुंच सके.

अगले दिन, उनके माता-पिता ने पाया कि अरमान उन कम से कम नौ लोगों में से थे जिन्हें कानपुर पुलिस ने उस दिन शहर में नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में गिरफ्तार किया था. कानपुर सेंट्रल जेल में अरमान से हुई एक मुलाकात के दौरान अरमान ने उन्हें बताया कि उनका पूरा नाम जानने के बाद पुलिस वालों ने उन्हें गिरफ्तार किया था. 24 जनवरी को जब हम उनके घर के बाहर उनके माता-पिता से मिले, तो हनीफ रो रहे थे. “हमरा क्या कसूर है कि हम मुसल्मान हैं?” हनीफ ने कहा.

20 दिसंबर को, कानपुर पुलिस ने शहर में सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शनों को शांत करने के लिए मनमाने ढंग से क्रूरतापूर्ण बल इस्तेमाल किया. कई लोगों ने बताया कि उनके क्षेत्र में हुए विरोध प्रदर्शन के बाद, पुलिस ने आस—पास के ही गरीब दलित मुसलमानों के प्रभुत्व वाले बाबू पुरवा और बेगम पुरवा के निवासियों को निशाना बनाया. जैसा कि कारवां ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था, पुलिस ने तीन लोगों को गोली मार दी, जबरन घरों में घुसे, 39 लोगों को गिरफ्तार किया और हिरासत में उनमें से कई पर अत्याचार किया. यह कार्रवाई अगले दिन भी जारी रही, लेकिन इस पर मीडिया का ध्यान कम ही गया - पुलिस ने तमाशबीन या आसपास खड़े मुस्लिमों को उठा लिया. 12 फरवरी तक तेरह में से कम से कम आठ लोगों पर, जो दो दिनों में गिरफ्तार किए गए थे, अभी भी जेल में थे, दंगा करने, बिना लाइसेंस के आग्नेयास्त्र रखने और हत्या का प्रयास करने जैसे आरोप लगे थे.

जनवरी 2019 के अंतिम दो हफ्तों में, हमने कानपुर का दौरा किया और कुछ बंदियों और गिरफ्तार किए गए लोगों, उनके परिवारों और स्थानीय लोगों से बात की. परिजनों ने कहा कि गिरफ्तार किए गए उनके संबंधी सीएए के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुए थे. हमारी रिपोर्टिंग से पता चला कि पुलिस ने गिरफ्तार लोगों को पुलिस हिरासत में यातना दी थी और कानपुर पुलिस धार्मिक पहचान के कारण मुसलमानों को निशाना बना रही थी. हमने जिनसे भी बात की सभी की राय थी कि 20 दिसंबर से कानपुर के मुसलमानों को धमकाने और डराने का यह एक संगठित प्रयास किया जा रहा है.

जब हम हनीफ और अमीना से मिले, तो वे थके हुए लग रहे थे, जैसे कि वे हफ्तों से सोए नहीं हों. उन्होंने हमें बताया कि अरमान ने आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की और घोड़ों, बकरियों और कुत्तों जैसे जानवरों को पालने के अपने पिता का काम करने लगे. परेड चौक पर अरमान को जिस वक्त पुलिस ने गिरफ्तार किया उस वक्त उनके पास 3600 रुपए थे जिसे पुलिस ने ले लिया लेकिन उनके परिवार को नहीं लौटाया. पुलिस ने उन पर कई आरोप लगाए और उनके परिवार को मुआवजे के रूप में 2.5 लाख रुपए देने का नोटिस दिया, जिसमें आरोप लगाया गया कि अरमान ने एक पुलिस वाहन को आग लगा दी थी. परिवार के पास इतना पैसा नहीं है कि वह अदालत में इन आरोपों खिलाफ लड़ सके या मुआवजे का ही भुगतान कर सके.

बातचीत के दौरान एक बिंदु पर, हनीफ की नजर घर के बाहर धूल खा रही अरमान की मोटरसाइकिल पर ठहर गई और वे टूट गए, "अरमान रोता रहा, उसकी आँखें लाल हो गई हैं. वह कह रहा था 'पापा, मुझे यहां से निकालो' ... जब से हमारा बच्चा गया है, हम खा नहीं पाए हैं." 23 फरवरी को हनीफ ने हमें बताया कि अरमान अभी जेल में ही हैं और उनकी तबीयत बिगड़ रही है.

21 दिसंबर की रात को, पुलिस ने 30 वर्षीय मोहम्मद एहसान और 25 वर्षीय उनके चचेरे भाई मोहम्मद मोहसिन को भी गिरफ्तार किया. दोनों भाई कानपुर के जाजमऊ उपनगर में साड़ी पर अल्टर करने की वर्कशाप चलाते हैं. एहसान के मुताबिक, 21 दिसंबर की रात को वे एक मोपेड पर अपने कारोबार से संबंधित किसी व्यक्ति से पैसा इकट्ठा करने के लिए जा रहे थे. बारहवीं कक्षा का छात्र एक नाबालिग हिंदू जो कार्यशाला में रहता था और दोनों भाइयों की काम में मदद करता था, वह भी उनके साथ गया था.

एहसान और नाबालिगों के हिसाब से जिस तरह से गिरफ्तारी की गई वह मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पुलिस के एजेंडे को दर्शाती है. एहसान ने हमें बताया कि रात 10 बजे, दो या तीन स्टार वाले अधिकारियों सहित लगभग चालीस पुलिस वालों ने उन्हें परेड चौराहा पर रोक दिया. पुलिस वालों ने उनके फोन जब्त कर लिए और मोपेड भी ले ली. फिर, तीन या चार के समूहों में उन्होंने हरेक को डंडों से पीटा. बाद में पुलिस दोनों भाइयों और नाबालिगों को परेड चौराहा से ढाई किलोमीटर दूर सिविल लाइंस इलाके में पुलिस लाइन पुलिस स्टेशन ले गई. एहसान ने कहा, "मोहसिन की पूरी दाढ़ी है, और एक अधिकारी ने उनसे कहा, 'तुम दाढ़ी वालों का एनकाउंटर करेंगे.''' एहसान ने कहा कि एक अधिकारी ने मोहसिन को इतनी बेरहमी से पीटा कि उसका डंडा टूट गया.

एहसान और मोहसिन के साथ गए हिंदू नाबालिग का अनुभव स्पष्ट रूप से अलग था. नाबालिग ने एहसान और मोहसिन को अपनी देखभाल करने वाला बताया और 21 दिसंबर की रात को जो कुछ घटित हुआ उसके बारे में बड़े भाई ने जो बताया उसकी पुष्टि की. पुलिस उसे भी, पुलिस लाइंस ले गई, लेकिन जब अगले दिन उसने पुलिस को अपना आधार कार्ड दिखाया, तो पुलिस वालों ने देखा कि उन्होंने एक ब्राह्मण को हिरासत में लिया है - नाबालिग ने अपनी बातचीत में इस विवरण पर खासा जोर दिया.

नाबालिग ने कहा कि उसने पुलिस वालों को एक—दूसरे से कहते सुना, "ये लड़का पंडित है, हमारी बिरादरी का है, इसे जाने दो." पुलिस वालों ने नाबालिग को शौचालय का उपयोग करने दिया, जबकि उसके साथ के मुस्लिम पुरुषों के इस अधिकार को नहीं माना. नाबालिग ने कहा कि उसने पुलिस वालों को इस बात पर खेद जताते हुए सुना है कि वह मुस्लिम नहीं था. नाबालिग ने कहा, "वे लखनऊ और यूपी के अन्य शहरों के साथ संख्याओं की तुलना कर रहे थे, उनकी इच्छा थी कि उनकी पदोन्नति हो सके इसके लिए वह सबसे अधिक गिरफ्तारियां करें." नाबालिक ने बताया, ''उन्होंने कहा कि 'अगर ये लड़का मुस्लिम होता, तो हमें अपने टार्गेट मिल जाते."

22 दिसंबर को, पुलिस ने नाबालिग को हिरासत से रिहा कर दिया. कुछ दिनों बाद जब पुलिस को यह महसूस हुआ कि मोपेड मुस्लिम भाइयों की नहीं बल्कि नाबालिग की है तो उसे मोपेड ले जाने की इजाजत भी दे दी. अपनी रिहाई के दो या तीन दिन बाद नाबालिग फिर से पुलिस के पास गया और अपने धर्म और जाति का लाभ उठाकर अपने दोस्तों के मामले को सुलझाने की कोशिश की. पुलिस वालों ने उससे कहा कि अगर उसने फिर कभी ऐसा करने की कोशिश की तो वे उसे जेल में ठूंस देंगे.

7 जनवरी को, पुलिस ने एहसान और मोहसिन सहित गिरफ्तार किए गए तीन लोगों को जमानत पर रिहा कर दिया. एहसान के मुताबिक, पुलिस ने चचेरे भाइयों के साथ इतनी बेरहमी से मारपीट की थी कि बाद में कई दिनों तक उनके हाथ—पैर दर्द करते रहे. एहसान का पाचन तंत्र इतनी बुरी तरह से प्रभावित था कि वह "बहुत उल्टी" कर रहा था. एक बच्चे का पिता मोहसिन,अवसादग्रस्त है और फिर से काम शुरू कर पाने में असमर्थ है. उन्हें जमानत देने के लिए खर्च किए गए धन के कारण, परिवार के व्यवसाय को नुकसान हुआ है.

पुलिस की आक्रामकता की लक्षित प्रकृति कानपुर में प्रचारित हो रहे विभिन्न वीडियो क्लिपों से भी सामने आती है, हालांकि हम इन वीडियो क्लिपों की सत्यता और स्रोतों का स्वतंत्र रूप से सत्यापन नहीं कर सके. एक वीडियो में जिसके बारे में स्थानीय लोगों का दावा है कि यह 20 दिसंबर को बाबू पुरवा का है, पुलिस वालों को प्रदर्शनकारियों के लिए "कटुआ" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हुए देखा जा सकता है.

जिन लोगों को पुलिस ने 20 दिसंबर को उठाया था उनका अनुभव भी ऐसा ही था. पुलिस ने अगले दिन ही हिरासत में लिए गए 39 लोगों में से 35 को रिहा कर दिया. उस दिन गिरफ्तार किए गए 19 वर्षीय मोहम्मद आदिल और 22 साल के मुस्तकीम की मांओं शाहीन और अफरोज ने जब जनवरी के आखिर में अपने बेटों को रिहा करने के लिए पुलिस से गुजारिश करने की कोशिश की तो पुलिस ने उनके साथ मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया गया. चार दिन बाद, उन्होंने बाबू पुरवा पुलिस स्टेशन में घंटों बिताए, जहां उनके बेटों को बंद किया गया था, उन्होंने इस उम्मीद में कि पुलिस उन्हें छोड़ देगी अपने बच्चों के पहचान प्रमाण पत्र भी दिखाए. लेकिन रात 11.30 बजे पुलिस ने उन्हें बताया कि उनके बेटों को दो अन्य लोगों के साथ कानपुर जिला जेल में भेजा जाएगा. अफरोज ने हमें बताया, "उन्होंने कोई आधिकारिक दस्तावेज - गिरफ्तारी वारंट, एफआईआर वगैरह नहीं दिखाया और अपने मनमाफिक आरोप लगा दिए."

शाहीन ने कहा कि आदिल को जेल में यातना दी गई थी - पुलिस ने उसकी मुस्लिम पहचान, उसकी दाढ़ी में आग लगा दी थी. बेगम पुरवा में महमूदिया मस्जिद के इमाम अंसार अहमद, जो नियमित रूप से गिरफ्तार लोगों से मिलते रहे हैं, ने पुष्टि की कि पुलिस ने आदिल की दाढ़ी में आग लगा दी थी. 24 जनवरी को अहमद ने कहा उसका चेहरा, "अभी भी कुछ जला हुआ है." अफरोज़ ने कहा, "पुलिस की पिटाई से मुस्तकीम का हाथ सूज गया था... उन्होंने उसका इलाज भी नहीं किया, हमने उसे लगाने के लिए घर से मरहम दिया." हमने कानपुर पुलिस को उनके खिलाफ लगे आरोपों के बारे में प्रतिक्रिया के लिए उनकी वेबसाइट पर दिए गए पते पर ईमेल किया. अगर कोई जवाब आता है इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा. 20 दिसंबर को कानपुर में हिंसा करने के लिए प्राथमिकी में सात लोगों को आरोपी के रूप में नामित किया गया है, साथ ही चार-पांच हजार अज्ञात व्यक्ति भी इसमें शामिल हैं. जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया, उनमें से परवेज आलम और सरफराज आलम, जिनकी उम्र क्रमश: 55 और 40 साल है, को 12 फरवरी को जमानत पर रिहा कर दिया गया. कानपुर जिला अदालत ने आदिल और मुस्तकीम की जमानत याचिका खारिज कर दी है और यह मामला अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय में है.

आदिल, मुस्तकीम और परवेज का केस लड़ रहे वकीलों में से एक, नसीर खान के मुताबिक, मामला बहुत कमजोर है. उन्होंने हमें परवेज के नियोक्ता से एक पत्र दिखाया - वह बाबू पुरवा से लगभग साढ़े छह किलोमीटर दूर जाजमऊ में एक कारखाने में काम करते थे. पत्र में कहा गया है कि परवेज दोपहर 2.45 बजे कारखाने से निकले थे. शाहीन के अनुसार, परवेज साइकिल से जा रहे थे, जो बेगम पुरवा में उसके घर के पास गिर गई, जिससे उन्हें मामूली चोट आई. उसने कहा कि आदिल और मुस्तकीम ने उनकी मदद की और उन्हें आदिल के घर के अंदर ले गए. इसके तुरंत बाद लगभग 4 बजे पुलिस ने अंदर आकर उन्हें उठाया. लेकिन एफआईआर में दावा किया गया है कि वे सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान दोपहर 2.30 से 4.30 बजे के बीच अपराधों में शामिल थे. अगले दिन हुई हिंसा की एफआईआर में नौ लोगों के नाम हैं, जिनमें अरमान, एहसान और मोहसिन शामिल हैं. अरमान के पड़ोसी, 119 हिंदू, जो मुख्य रूप से उच्च-जाति समुदायों से हैं, ने उनके अच्छे चरित्र के लिए एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं.

खान ने एक उदाहरण दिया कि कैसे कानपुर पुलिस यह तय करने के लिए धमकियों और डराने—धमकाने की कोशिशें कर रही हैं कि सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामलों को आसानी से हल नहीं किया जाए. जिला मजिस्ट्रेट तिवारी ने 20 दिसंबर के मामले में 25 जनवरी तक लोगों को अपने सामने गवाही देने की अनुमति दी थी. खान के अनुसार, इस समय के दौरान, कार्यालय के बाहर तैनात पुलिस वालों ने गवाहों के लिए माहौल बहुत शत्रुतापूर्ण बना दिया. पुलिस वालों ने गवाहों के सा​थ धक्कामुक्की की और उन्हें वापस जाने के लिए कहा. खान ने कहा, "जब मैं वहां गया तो मेरे प्रभाव के चलते तब जाकर उनके लिए मेरे साथ घुस पाना मुमकिन हुआ."

बाबू पुरवा के एक वकील अहमद और मोहम्मद आरिफ दोनों ने हमें बताया कि 20 दिसंबर के बाद बाबू पुरवा के निवासी अंधेरा होने के बाद इस डर से कि पुलिस उन्हें आतंकित करने के लिए आएगी, अपने घरों में रोशनी बंद कर देते हैं. कुछ लड़कों को, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में लिया था और पीटा था, चुपचाप इलाके से कहीं और भेज दिया गया है. जब हमने जनवरी के अंत में क्षेत्र का दौरा किया, तो हम कई दुकानों के शटर पर बुलेट के निशान देख सकते थे. अहमद ने कहा कि बाबू पुरवा पुलिस स्टेशन के पुलिस वालों ने देर रात को उन्हें और समुदाय के अन्य प्रमुख सदस्यों को फोन किया और उनसे सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बारे में अनुचित बैठकों में आने के लिए कहा. आरिफ ने कहा, "इसमें शक नहीं कि वे मुसलमानों के मन में एक डर पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं."


कामायनी शर्मा लेखक और दृश्य संस्कृति, मीडिया अध्ययन और दर्शन पर शोध कार्य करती हैं. उनका काम आर्टफोरम, द व्हाइट रिव्यू, एआरटी इंडिया, स्क्रॉल.इन, द वायर और फर्स्टपोस्ट में देखा जा सकता है. उनका ट्विटर हैंडल @SharmaKamayani है.
शालमोली हलदर डेवलपमेंट क्षेत्र में पेशेवर हैं जो भूमि अधिकारों, न्याय और शासन की पहुंच पर काम कर रही हैं. वह इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू, द इंडियन एक्सप्रेस, एरे आदि के लिए लिखती रही हैं। उनसे @shalmolih पर संपर्क किया जा सकता है.