8 अक्टूबर को पटना के मौर्या होटल में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के शीर्ष नेता असदुद्दीन ओवैसी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के मुखिया और नरेन्द्र मोदी सरकार में पूर्व मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक के देवेंद्र यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर बहुजन समाज पार्टी, सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी और जनतांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव के लिए ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट बनाने का ऐलान किया.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में फ्रंट का संयोजक देवेंद्र यादव ने महागठबंधन पर तंज किया कि “वे लोग सियासी सेक्युलर हैं और हम लोग जहनी सेक्युलर हैं.” बिहार में एनडीए बनाम महागठबंधन के बारे में उन्होंने बताया कि बिहार में सिर्फ दो ही विकल्प की बात करना और सेक्युलर फ्रंट को तीसरा मोर्चा कहना गलत होगा क्योंकि “जनता ने अगर चाहा तो हमारा मोर्चा पहला होगा.” प्रेस कॉन्फ्रेंस में साझा रूप से उपेंद्र कुशवाहा को फ्रंट की तरफ से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया.
असदुद्दीन ओवैसी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “पिछले 30 सालों की सरकार से बिहार को कोई लाभ नहीं हुआ है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए के 15 साल और राजद और कांग्रेस के 15 सालों के शासन के बाद बिहार के गरीबों की स्थिति और भी खराब हो गई.” उन्होंने कहा कि “बिहार के मुस्तकबिल के लिए इस गठबंधन का बनना जरूरी” था.
इससे पहले साल 2015 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने बिहार में पहली बार चुनाव लड़ा था. उस चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल के किशनगंज की 6 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. (बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार जिले आते हैं.) लेकिन इस बार, सितंबर में प्रकाशित समाचारों के अनुसार, वह 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी.
उस चुनाव में नीतीश कुमार ने “मिट्टी में मिल जाएंगे, लेकिन बीजेपी से हाथ नहीं मिलाएंगे” का नारा देकर राजद से हाथ मिला लिया था. नीतीश कुमार का यह कदम राजनीतिक पंडितों के लिए सबसे बड़ा सियासी फैसला था. पूरे चुनाव भर नीतीश कुमार और राजद मुखिया तथा पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द ही राजनीतिक विश्लेषण होता रहा. विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई और राजद-जदयू-कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बन गई. नीतीश कुमार ने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
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