पेशे से इंजीनियर प्रतीक सिन्हा ने दो साल पहले ऑल्ट न्यूज की शुरुआत की. उस वक्त भारत में यही एकमात्र फैक्ट चैकिंग वेबसाइट थी. तब से वे सामाजिक संजाल में जाने माने नाम हैं
फरवरी में कारवां के रिर्पोटिंग फेलो ने प्रतीक सिन्हा से भारत में फेक न्यूज संकट पर बात की. सिन्हा ने ऑल्ट न्यूज में फेक्ट चैकिंग की प्रक्रिया के बारे में बताया. वे कहते हैं, “फर्जी खबरों के प्रसारण को रोका नहीं जा सकता लेकिन उसकी तीव्रता को नियंत्रित किया जा सकते है”. प्रस्तुत है सिन्हा से बातचीत का संपादित अंश.
तुषार धारा : भारत में फेक न्यूज के विकास और प्रक्रिया के बारे में बताइए?
प्रतीक सिन्हा : दक्षिणपंथी संगठनों ने दूसरी पार्टियों से पहले सोशल मीडिया में खुद को संगठित कर लिया था. केवल आम आदमी पार्टी एक अन्य पार्टी थी जिसने 2014 के आम निर्वाचन से पहले सोशल मीडिया में खुद को स्थापित कर लिया था. सोशल मीडिया लोगों से जुड़ने का नेटवर्क प्रदान करता है.
2013-14 में सोशल मीडिया में ढेरों ऐसी पिक्चरें और तथ्य दिखाई पड़ते जो “गुजरात ऐसा है”, “गुजरात वैसा है” बताते थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि उस वक्त गुजरात को मॉडल राज्य की तरह पेश किया जाता था. उदाहरण के लिए, जिसे अहमदाबाद का बीआरटी या बस रैपिड ट्रांसिट सिस्टम बताया गया था, वह चीन की फोटो थी. क्योंकि उस वक्त दक्षिणपंथी लोग बेहतर ढंग से संगठित थे इसलिए गलत जानकारियां उनकी ओर से आ रही थीं.
अब आ जाइए 2016 में. रिलायंस जियो आरंभ होते ही विभिन्न दूरसंचार कंपनियों ने अपनी डाटा दरें गिरा दीं. डाटा सस्ता हो गया. इसी वक्त भारत के बाजार में चीन से आयातित स्मार्ट और अन्य फोन की बाढ़ आ गई. 2000 रुपए में व्हाट्सएप और फेसबुक वाले फोन मिल जाते हैं. डाटा और फोन सस्ता हो गया. हिंदुत्व डॉट इन्फो, दैनिक भारत और पोस्टकार्ड न्यूज जैसी फेक न्यूज वेबसाइट के अस्तित्व में आने को सस्ते फोन और डाटा की उपलब्धता से जोड़कर देखा जा सकता है.
अभी हाल ही में फेक न्यूज बनाने वाले मध्य प्रदेश के अभिषेक मिश्रा को धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में पकड़ा गया है. मुझे बताया गया कि उसका एक बड़ा सा ऑफिस है और वह फर्जी सूचना प्रसारित करने के लिए लोगों की नियुक्ति करता है. इन युवाओं को फर्जी खबरों में आर्थिक फायदा दिखाई देता है. मिश्रा पहले मोदी समर्थक वीडियो बनाया करता था. फिर पाला बदल कर बीजेपी विरोधी वीडियो बनाना शुरू कर दिया क्योंकि उसे लगा कि इसमें ज्यादा फायदा है.
डाटा उपभोग मैं बढ़ोतरी तो हुई, लेकिन आबादी का एक बड़ा हिस्सा इंटरनेट निरक्षर है. राजनीतिक दलों ने यह बात समझ ली और फर्जी खबरों को व्यवस्थित तरीके से प्रसारित करने लगे. जब पोस्ट कार्ड न्यूज के महेश हेगड़े को गिरफ्तार किया गया तो भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े सहित वरिष्ठ पदाधिकारियों ने उनका बचाव किया.
तुषार धारा : क्या भारत में बीजेपी के अलावा दूसरी पार्टियां भी हैं जो फर्जी खबरों को प्रसारित करवाती हैं?
प्रतीक सिन्हा : बिल्कुल हैं. हमने आल्ट न्यूज को फरवरी 2017 में शुरू किया था. उस वक्त फर्जी खबरों के मामले में राइटविंग का दबदबा था. लेकिन आज ऐसे कई पेज हैं जो कांग्रेस के पक्ष में प्रोपोगेंडा करते हैं. लेकिन जब भी आम आदमी पार्टी कोई गलत खबर प्रसारित करती है तो आमतौर पर वह माफी मांग लेती है.
हाल में हमने दो स्टोरी की जिसमें बीजेपी के खिलाफ फर्जी खबर का खुलासा किया. एक खबर में दावा किया गया था कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पुलवामा में मारे जवानों की शोक सभा में हंस रहे थे. सच तो यह था कि वह वीडियो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के दाह संस्कार के वक्त का था.
तुषार धारा : अभी हाल में आपने गूगल डॉक्यूमेंट को संपादित किया था जो बीजेपी समर्थक और सदस्यों के टि्वटर संदेश वाला था. आपको यह डॉक्युमेंट कैसे मिला?
मैं जिन बहुत सारे व्हाट्सएप समूह में घुसपैठ कर पाया उनको मॉनिटर करता हूं. ऐसे ही एक समूह में मुझे वह डॉक्यूमेंट मिला जिसमें ग्लोबल एडिट विकल्प था. मैंने उसे एडिट कर दिया और लोग ट्वीट करने लगे जिसका मैंने वीडियो बना लिया क्योंकि मैं यह लोगों को दिखाना चाहता था. वीडियो वायरल हो गया और राइटविंग वाले चौंक गए.
तुषार धारा : ऑल्ट न्यूज में आप लोग फैक्ट चेकिंग कैसे करते हैं?
प्रतीक सिन्हा : सबसे पहले हम लोग फर्जी खबरों की मॉनिटरिंग करते हैं. फर्जी खबरें वे होती हैं जिनके बारे में आपको पता होता है कि गलत है लेकिन फिर भी प्रसारित की जा रही होती हैं. जबकि गलत खबरें वे हैं जिसमें भेजने वाले को नहीं पता होता है कि वह सही है या गलत लेकिन फिर भी भेज देते हैं. इसलिए यह कहा जा सकता है कि जानबूझ कर भेजी गई गलत खबर, फर्जी खबर है.
फेसबुक के मामले में हम लोग एक टूल का इस्तेमाल करते हैं जिसे “क्राउड टेंगल” कहते हैं. हम इस टूल का इस्तेमाल फेसबुक पेजों को मॉनिटर करने के लिए करते हैं. फिलहाल हम लोग 600 से 800 पेजों को मॉनिटर कर रहे हैं जिन्होंने फर्जी खबरें प्रसारित की है. टेंगल का इस्तेमाल कर जान सकते हैं कि फेसबुक में क्या चल रहा है और क्या वायरल हो सकता है. इसी तरह हम लोग टि्वटर के लिए “ट्वीट डेक” का इस्तेमाल करते हैं. हमारे पास ऐसे लोगों की लिस्ट है, जो नियमित रूप से फर्जी खबर ट्वीट करते हैं.
जब हम किसी पोस्ट की पहचान कर लेते हैं तो पता लगाते हैं कि उसमे फर्जी खबर के तत्व मौजूद हैं या नहीं. जब हमें पता चल जाता है कि यह फर्जी खबर है और वायरल हो चुकी है तब हम फेक्ट चेक करते हैं. फर्जी खबर का वायरल होना हमारे लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यदि वह खबर वायरल नहीं है तो हम उसका फेक्ट चेक नहीं करते क्योंकि इसका उल्टा परिणाम हो सकता है और लोग इसे सर्कूलेट करने लगेंगे.
कई लोग हमें टि्वटर और फेसबुक में टैग करते हैं. हमारे व्हाट्सएप में संदेश भेज कर सूचना देने वालों की संख्या बढ़ गई है.
तुषार धारा : भारत में किस तरह की फेक न्यूज वायरल होती हैं?
प्रतीक सिन्हा : भारत में फर्जी खबरों के अधिकांश मामले भ्रामक तस्वीरों या वीडियो वाले होते हैं जिसके नीचे “टैक्स्ट” लिखा होता है. इस तरह की फर्जी खबरें 70 प्रतिशत होती हैं. खासतौर पर ऐसी खबरें सांप्रदायिक तेवर वाली होती हैं.
भारत में खास कर दो प्रकार की फर्जी खबरें होती हैं. एक राजनीतिक और दूसरी मेडिकल से संबंधित. मेडिकल फर्जी खबरों को मॉनिटर करना कठिन होता है क्योंकि उनका कोई पैटर्न या मकसद नहीं होता. उदाहरण के लिए इस प्रकार की खबरें कि पपीते की पत्तियां खाने से प्लेटलेट काउंट बढ़ता है और डेंगू के इलाज में सहायक है. ऐसी खबरों को मॉनिटर करना कठिन होता है क्योंकि इनका कोई निर्धारित पैटर्न नहीं होता.
पॉलीटिकल फर्जी खबरों के मामले में दो या तीन मकसद होते हैं. पहले अल्पसंख्यकों को लक्ष्य बनाकर फर्जी खबरों को प्रसारित किया जाता है. ऐसी खबरों में दिखाया जाता है कि देश में जो कुछ गलत हो रहा है उसके लिए अल्पसंख्यक समुदाय जिम्मेदार है. दूसरा निशाना व्यक्ति होते हैं जैसा कि गुरमेहर कौर के मामला में था. जब वह खबर बड़ी बन गई तो नकली वीडियो बनाकर गुरमेहर को नाचते और ड्रिंक करते दिखाया गया क्योंकि भारतीय समाज के कई हिस्सों में इन चीजों को अच्छा नहीं माना जाता.
पद्मावत फिल्म का विरोध हो रहा था और करनी सेना सड़क पर प्रदर्शन कर रही थी. गुडगांव में एक स्कूल बस जला दी गई. इस घटना के लिए 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद 5 मुस्लिम नाम वाला वीडियो वायरल हुआ और बताया जाने लगा कि बस पर हमला करने वाले मुसलमान थे. यहां एक पैटर्न है कि इन 5 नामों का ऑर्डर फर्जी खबरों के प्रसार के दौरान कहीं नहीं बदला.
इसका दूसरा उदाहरण है, नरेंद्र मोदी को यूनेस्को पुरस्कार मिलने की खबर. इस खबर को हजारों बार दोहराया गया. इसमें बताया गया कि मोदी को विश्व का सर्वोत्तम प्रधानमंत्री पुरस्कार दिया गया है. ऐसी फर्जी खबरों से किसी को नुकसान नहीं होता लेकिन करनी सेना के मामले में जो फर्जी खबरें फैलाई गईं, उनसे समाज में अविश्वास पैदा होता है.
तुषार धारा : 2019 के चुनाव आ रहे हैं, ऐसे में हम राजनीति प्रक्रिया को फर्जी खबरों से कैसे सुरक्षित किया जा सकता है?
प्रतीक सिन्हा : आप फर्जी खबरों के प्रसारण को नहीं रोक सकते लेकिन आप उसकी तीव्रता को नियंत्रित कर सकते हैं, ऐसे में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका होती है. ट्विटर में फर्जी खबरों की रिपोर्ट करने का कोई तरीका. फेसबुक में ऐसा है क्योंकि कैंब्रिज एनालिटिका के खुलासे के बाद उन पर दबाव है.
फेसबुक ने फैक्ट चेकिंग करने वालों से संपर्क स्थापित किया है और अब भारत में भी उन्हें शामिल किया है. फेसबुक ने एक सिस्टम बनाया है जिसे मैंने देखा तो नहीं है लेकिन मैंने इसके बारे में सुना है कि एक कंसोल जैसा कुछ है जिसमें यूआरएल डाल जांच की जाती है और एक समरी लिखी जाती है.
तुषार धारा : फरवरी में फेसबुक ने घोषणा की थी कि थर्ड पार्टी नेटवर्क में 5 नए साझेदारों को जोड़ रही है. आप इन पांच साझेदारों के बारे में क्या कहते हैं?
प्रतीक सिन्हा : सबसे नए फैक्ट चेकरों में इंडिया टुडे है. उसने फैक्ट चैकिंग डेस्क शुरू की है. इसी प्रकार दैनिक जागरण ने भी किया है जिसका नाम विश्वास न्यूज है. एक संस्था है जो यह तय करने के बाद कि कोई प्रत्यक्ष राजनीतिक जुड़ाव या वैचारिक झुकाव तो नहीं है सर्टिफिकेट देती है. फेसबुक का क्राइटेरिया है कि यदि किसी के पास सर्टिफिकेट है तो वह फेसबुक से जुड़ सकता है. लेकिन मुझे ऐसी संस्थाओं के बारे में चिंता है. ऑल्ट न्यूज इन जैसी फैक्ट चेकिंग करने वाली संस्थाओं पर नजर रखेगा और देखेगा कि वह लोग क्या कर रहे हैं. अभी इन पर टिप्पणी करने का वक्त नहीं आया है क्योंकि हमने इनका अध्ययन नहीं किया है.
तुषार धारा : आपकी चिंता किन फैक्ट चैकरों को लेकर है?
प्रतीक सिन्हा : मैं उनके कामों पर टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि मैंने उनके काम को नहीं देखा है. उदाहरण के लिए रिपब्लिक टीवी का पार्टनर न्यूज मोबाइल का संस्थापक है और आपको पता ही है कि रिपब्लिक टीवी ने क्या क्या गुल खिलाए हैं. लेकिन मेरे पास ऐसा कोई डाटा दिखाने को नहीं जो साबित करता हो कि न्यूज मोबाइल पूर्वाग्रही है. इसी प्रकार विश्वास न्यूज है. दैनिक जागरण ने खबर लगाई थी कि कटुवा में कोई बलत्कार नहीं हुआ. यह चिंता की बात है.
तुषार धारा : क्या आपको लगता है कि इस तरह की साझेदारियों से फर्जी खबरों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी?
प्रतीक सिन्हा : मुझे नहीं लगता कि इतना करना पर्याप्त है. मैं यह मानता हूं कि अंतर्राष्ट्रीय फैक्ट चैकिंग नेटवर्क द्वारा मान्य संस्थाओं के साथ साझेदारी बनाना अच्छी बात है क्योंकि इस तरह फेसबुक यह तय नहीं कर रहा कि क्या असली है या फर्जी.
मेरी आलोचना यह कि यह पूरी तरह अथवा बड़े स्तर पर से मानव संचालित प्रक्रिया है. फेसबुक इसे अलग तरह से कर सकता था. वह फैक्ट चैकिंग के लिए टेकनिक का इस्तेमाल कर सकता था. मैं व्हाट्सऐप की बात नहीं कर रहा हूं. उसे फर्जी खबरों को मात देने के लिए बहुत ज्यादा बदलाव करना पड़ेगा.
दशहरा के समय जब अमृतसर में ट्रेन हादसा हुआ तो उसके एक घंटे बाद एक संदेश वाइरल किया गया जिसमें बताया जा रहा था कि ट्रेन के पायलट का नाम इम्तियाज अली है. इस संदेश के कई संस्करण सोशल मीडिया में फैलाए जा रहे थे जिसमें संदेश दिया जा रहा था कि क्योंकि पायलट मुसलमान था इसलिए उसने हिंदुओं पर ट्रेन दौड़ा दी. जब इस तरह का कुछ होता है तो एक व्यक्ति केवल मुख्य उल्लंघनकर्ता को पकड़ सकता है लेकिन हजारों उल्लंघकर्ताओं को पकड़ पाना व्यक्ति के लिए नामुमकिन है. अभी हाल में ही फेसबुक के सबसे पुराने फैक्ट चैकिंग साझेदार स्नूप्स डॉट काम ने साझेदारी को इसी वजह से खत्म कर दिया.
उदाहरण के लिए फेसबुक का एल्गोरिथम है जो वीडियो या फोटो में होने वाले कॉपी राइट उल्लंघन को पकड़ लेता है. यदि कोई फेसबुक उपयोगकर्ता कोई वीडियो जारी करता है तो फेसबुक उसकी तुलना अपने डाटा बेस के वीडियो से करता है. यदि वह वीडियो मैच हो जाता है तो उसे कॉपी राइट उल्लंघन माना जाता है. फेसबुक जिस तकनीक का इस्तेमाल कॉपी राइट उल्लंघन के लिए करता है वही फेक न्यूज के मामले में भी उपयोगी हो सकती है.
तुषार धारा : भारतीय न्यूज रूम में फेक न्यूज से बचने और इसे रोकने की क्या व्यवस्था हो सकती है?
प्रतीक सिन्हा : फैक्ट चैकिंग का लक्ष्य प्रसार की जा रही जानकारी पर शक पैदा करना होता है क्योंकि लोग बिना सोचे समझे चीजों को आगे बढ़ा देते हैं. समाचार चैनलों और रेडियो एफएम में फर्जी खबरों के खंडन वाला कार्यक्रम होना चाहिए. जब लोग लगातार ऐसी चीजें देखेंगे तो सवाल करने लगेंगे. छोटे स्तरों पर हम देखते हैं कि लोग पूछते है “क्या यह सही खबर है”. इस मामले में शिक्षा भी एक फैक्टर हो सकती है. शायद केरल के कन्नूर में फर्जी खबरों को पहचानने का पाठ्यक्रम है. मीडिया में फैक्ट चैकिंग की शुरुआत अच्छी बात है.
तुषार धारा : क्या आपको लगता है कि विश्वसनीय पत्रकारिता का लोगों तक न पहुंच पाना भी भारत में फर्जी खबरों की बाढ़ का कारण है?
प्रतीक सिन्हा : रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ, जी न्यूज और सुदर्शन न्यूज पर गौर किया जाना चाहिए. जिस तरह से ये खबरें दे रहे हैं, उसमें समस्या है. यह सिर्फ फर्जी खबर नहीं है बल्कि और भी बहुत कुछ है. मसलन इस समय कश्मीरियों को सताया जा रहा है. हमें उनके प्रति संवेदना दर्शाने की आवश्यकता है. पत्रकारिता, राजनीतिक और धार्मिक पुर्वाग्रहों को गहरा कर रही है और जब हम इस हद तक पूर्वाग्रही होते हैं तब फर्जी खबरों को सही मानने लगते हैं.
सुधार : इस साक्षात्कार के पहले संस्करण में सिंगापुर की फोटो को अहमदाबाद बताने की बात थी. वह फोटो दरअसल चीन की थी. इस भूल के लिए कारवां को खेद है.