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दिल्ली के गोकलपुरी के आंबेडकर कॉलेज के पास 14 से 35 साल के आदमियों के एक हुजूम ने वहां खड़ी एक कार को घेर लिया. उन लोगों ने कार का पिछला शीशा तोड़ा और ''जय श्री राम'' के नारे लगाने लगे. देखते ही देखते कार का सारा कांच सड़क पर बिखर गया. सड़क के दूसरी ओर से जैसे ही मैंने वीडियो बनाने के लिए अपना मोबाइल निकाला, टू-लेन सड़क की दूसरी तरफ से मोटे-मोटे डंडे मेरी तरफ लहराने लगे. उन्होंने इशारा किया मैं वीडियो न बनाऊं. पूरा माहौल इस कदर भयावह था कि एक तरह के अपराधबोध के साथ मैंने अपना फोन जेब में रख लिया और हाथ उठाकर माफी मांग ली.
23 फरवरी को बीजेपी नेता और आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक कपिल मिश्रा ने दिल्ली के जाफराबाद इलाके के मौजपुर चौक में नागरिकता संशोधन कानून (2019) के समर्थन में एक सभा को संबोधित किया. मिश्रा के भड़काऊ भाषण के बाद आसपास के इलाकों में मुस्लिम विरोधी हिंसा शूरू हो गई. जारी हिंसा में अब तक दिल्ली पुलिस के एक कॉन्सटेबल समेत कम से कम 22 लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों लोग घायल हुए हैं.
25 फरवरी की सुबह करीब 11 बजे मैं रिपोर्टिंग करने गोकलपुरी जाने के लिए निकला था. इलाके में मुझे जिस आदमी से मिलना था, रास्ते में उसका फोन आ गया कि मैं फिलहाल वहां न आऊं. उसने मुझे बताया कि मेरी “मुस्लिम” दाढ़ी मेरे लिए परेशानी खड़ी कर सकती है.
हमेशा जाम के कारण परेशान करने वाली वह सड़क उस दिन एकदम सुनसान थी. लोनी गोलचक्कर से बाईं ओर यमुना विहार की तरफ जाती सड़क पर जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ रहा था धुंए का बादल गाढ़ा होता जा रहा था. दिल्ली विश्वविद्यालय के आंबेडकर कॉलेज के सामने वाला टायर बाजार जल रहा था. सड़क पर बने लोहे के ओवर ब्रिज के एक कोने में आग की लपटें ऊंची—ऊंची होती जा रही थीं. मेरे बगल में खड़े एक अधेड़ उम्र के आदमी ने कहा, “पेट्रोल पंप में भी आग लग सकती है.” पेट्रोल पंप से आग की दूरी बहुत ज्यादा नहीं थी. जब-तब आग भड़क उठती और धुंआ कुछ कम होता तो सड़क के दूसरी ओर मौजूद हिंदुओं का हुजूम ''जय श्री राम'' का उद्घोष करने लगता.
इसके बाद गोलचक्कर के फ्लाईओवर से पैदल और मोटरसाइकिल सवार भीड़ उसी लेन पर आने लगी. भीड़ के आगे एक लड़का तिरंगा झंडा लिए चल रहा था और उसके पीछे तकरीबन 200 लोगों की भीड़ ''जय श्री राम'' के नारे के साथ आगे बढ़ रही थी. मोटे-मोटे डंडे, लोहे की रॉड और लकड़ी के डंडे के आगे धातु का एक धारदार हथियार लिए भीड़ बेखौफ घूम रही थी. तभी दिल्ली पुलिस की एक गाड़ी वहां से गुजरी. भीड़ ने उसे घेर लिया. मुझे डर लगा कि पुलिस के साथ अब भीड़ हिंसक बर्ताव करेगी. लेकिन अब नारा बदल गया और भीड़ चिल्लाने लगी, ''दिल्ली पुलिस संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं.'' पुलिस की गाड़ी आगे चली गई. सामने सड़क पर दंगा रोधी बल के दो जवान टहल रहे थे. पास में ही दिल्ली जल बोर्ड के गेट के आगे एक 55-60 साल का आदमी खड़ा था. मैंने उससे पूछा, ''बस दो ही पुलिस वाले हैं?'' उसने कहा, ''तीन थे, एक मूतने गया होगा.'' कुछ देर बाद बोर्ड के अन्य कर्मचारी भी बाहर आ गए. उनमें से एक ने खुश होकर कहा, ''वे लोग अब मजार तोड़ रहे हैं.'' जल बोर्ड के गेट के अंदर टैंकर पर खड़े होकर एक आदमी वीडियो बनाने लगा. कुछ लड़के हाथ में पत्थर और डंडे लिए हमारी तरफ बढ़ने लगे. उन्होंने जोर से कहा, ''जय श्री राम.'' मेरे साथ खड़े लोगों ने उतनी ही जोर से जवाब दिया, ''जय श्री राम.'' मामला निपट गया. सारे लोग हंसने लगे. खुशी का माहौल हो गया.
मजार पर जैसे-जैसे हमला किया जाता भीड़ उत्साहित होती जाती. पगड़ी पहने दो सरदार भीड़ में नजर आए, तो बगल में खड़े एक आदमी ने 1984 के दंगों को याद करना शुरू कर दिया. उनमें से एक आदमी ने बताया कि वह तब भी यहीं रहता था. एक मासूम सा लड़का हमारे बगल में आकर खड़ा हो गया. उसने अपना फोन निकाला और वीडियो लेने लगा. भीड़ दुबारा हमारी तरफ आने लगी. लेकिन भीड़ कुछ कहती इससे पहले ही साथ ही खड़े एक आदमी ने उसे झकझोरते हुए कहा, ''वीडियो ही बनाना है तो चो@# का बना, ताकी हम भी मजा ले सकें. इस वीडियो का क्या करेगा?'' उसने फोन जेब में रख दिया.
मजार को निपटाकर भीड़ आगे चली गई. मुझे भी उसी दिशा में जाना था लेकिन फिलहाल मुझे गोकलपुरी के संपर्क ने फिर फोन कर न आने को कहा और बताया, “यहां मस्जिद को जला रहे हैं.” मैं यमुना विहार जाने की सोचने लगा कि मेरे वहां के संपर्क ने कहा, “कहीं और चले जाओ अभी इधर मत आना गोलियां चल रही हैं. पुलिस कुछ नहीं कर रही है.”
इसके बाद मैं दुर्गापुरी के पास रहने वाले एक पुराने परिचित के घर जाकर गोकलपुरी के हालात शांत होने तक इंतजार करने लगा.
वहां जाकर पता चला कि उस परिचित का 24 साल का भतीजा भी “सबक सिखाने के अभियान” में शामिल होने गया है. मेरा परिचित भी अपने भतीजे से नाखुश था. सबक सिखाने गए भतीजे का छोटा भाई, जो बैडमिंटन का खिलाड़ी है, इस बात से खीजा हुआ था कि उसे खेलने नहीं जाने दिया जा रहा है. कुछ देर बाद गोकलपुरी में हालात शांत होने का फोन आया और मैं उस घर से निकल गया.
गोलचक्कर तक अब थोड़ी चहल-पहल बढ़ गई थी लेकिन बाईं ओर गोकलपुरी, यमुना विहार, भजनपुरा को जाती सड़क अब सुनसान थी, भीड़ भी गायब थी. सिर्फ धुंए के बादल ही नजर आते थे. आंबेडकर कॉलेज के आगे डीटीसी की हरी वाली 4-5 बसें खड़ी थीं. हिंसक भीड़ के गुजर जाने के बाद इनमें भरकर आईटीबीपी और दिल्ली पुलिस के जवान पहुंच चुके थे. सड़क किनारे खड़े होकर सुरक्षा बल के लोग खाना खा रहे थे. कुछ सिपाही गाड़ी के अंदर बैठे थे. मैले-कुचैले कपड़े पहना एक 24-25 साल का नौजवान उनसे कह रहा था, ''मुझे अपने साथ नौकरी पर रख लो, मुझे खाना बनाना आता है.'' किसी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया. आगे सीलमपुर तिराहे पर फ्लाइओवर के नीचे खड़ी डीटीसी की एक बस में भी सुरक्षा कर्मी बैठे थे. कुछ दूरी पर ''जय श्री राम'' के नारों के बीच किसी चीज को तोड़ा जा रहा था. वहां से भी धुंआ उठने लगा.
मैं गोकलपुरी की सड़क के मुहाने पर खड़ा था जहां से मस्जिद की दूरी 30 मीटर थी. सड़क पर भीड़ इधर-उधर छिताराई हुई सुस्ता रही थी. मैं दम साध कर उनके बीच से निकला. बनावटी आत्मविश्वास से मैं अपनी दाढ़ी छिपाने की कोशिश कर रहा था. मेरी नजर भीड़ के हाथों के डंडों, लोहे की रॉडों पर थी. रह-रह कर यह ख्याल भी आ रहा था कि पीछे से कोई रॉड अभी मेरे सिर पर पड़ेगी. मैं एक गली में घुसा जहां अफरा-तफरी मची थी. एक बुजुर्ग सरदार सामने के घर से सामान निकाल-निकाल कर दूसरी जगह सिफ्ट कर रहे थे. बाद में मालूम पड़ा कि जिस घर से वह सामान निकाल रहे थे, वह एक मुसलमान का घर था जिसे जला दिया गया था. वह बुजुर्ग सरदार उसका सामान बचाने की कोशिश कर रहे थे. मस्जिद के आगे संपर्क खड़ा मिला. उसने मुझे देखते ही इशारों में चुप रहने को कहा. सामने मस्जिद के भीतर आग जल रही थी. बाहर बड़े-बड़े कूलर बेतरतीब सड़क पर लुड़के हुए थे. जोश ठंडा हो जाने पर भीड़ में शामिल नौजवान डंडों से उन कूलरों की धुनाई कर वापस अपने अंदर जोश भर रहे थे. हम गली में आगे जाकर एक तिमंजिला घर के पहले माले की बालकनी से नीचे देखने लगे. अचानक लोग गली में भागने लगे. मैंने समझा अब जाकर पुलिस आई है और मामला शांत होगा. लेकिन सुरक्षा बल के एकाद जवान अभी भी गली के मुहाने पर सुस्ता रहे थे. लोगों को दौड़ाने का काम काले रंग का एक सांड कर रहा था. सांड भीड़ देखकर बिदक गया था और बदहवाशी में दौड़ रहा था. थोड़ी देर बाद सांड का दौड़ना एक खेल बन गया. लोगों के लिए यह भी एक मनोरंजन का साधन हो गया.
कुछ देर बाद मैंने लोहे की सीढ़ियां लेकर लोगों को जाते देखा. अब लूटपाट हो रही थी. सांवले रंग का एक लड़का फेयर एंड लव्ली का एक बड़ा सा डिब्बा लिए लौट रहा था. विजय उल्लास के साथ गली में खड़े बाकी लड़कों, औरतों, आदमियों ने ताली बजाकर उसका स्वागत किया. एक-एक कर और भी लोग कमीज के अंदर, जेबों में, हाथों में सामान लेकर अपने घरों को लौटते नजर आए. सभी का जोरदार स्वागत हुआ. एक लड़के ने हंसी ठिठौली के बीच सामान लेकर लौट रहे एक लड़के से जापानी तेल की एक शीशी छीन ली. उसने दानवीर भाव से शीशी छीनने दी. कसाइयों वाला एक बड़ा सा चाकू लिए एक लड़का वहां से गुजरा. किसी ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. उसने जोर-जोर से दोनों हाथ लहराते हुए कहा, ''काटने के लिए आज कोई खीरा नहीं दिखा.'' मैं खीरे का अर्थ खीरा ही समझना चाहता था. हिंसक भीड़ वापस मस्जिद को घेरने लगी थी. शोर-शराबा और डंडों और लोहे की रॉडों के टकराने की आवाजें तेज होने लगीं थी. मस्जिद की दीवारें उनके जोश का इंतहान ले रही थी. कुछ देर बाद भीड़ ने दीवारों को बक्श दिया. गली के मुहाने पर दिल्ली चिकन दरबार की ऊपर की मंजिल से सामान सड़कों पर फेंका जाने लगा. यह दुकान एक मुसलमान की थी. मस्जिद के आसपास के घर वाले जो थोड़ी दूरी पर आकर उसी मकान में ठहर गए थे जहां मैं था, तय नहीं कर पा रहे थे कि किसके घर से सामान फेंका जा रहा है. वे चिल्लाने लगे. मासूम सी शक्ल का एक नौजवान जो हिंसक भीड़ का हिस्सा नहीं जान पड़ता था और काफी देर से नीचे चुपचाप खड़ा था एलपीजी गैस सिलेंडर लेकर लौटता हुआ दिखाई दिया. उसके चेहरे पर अपने अस्तित्व को साबित कर देने वाला भाव था. अभी तक लूटे गए सामान में उसके पास सबसे कीमती और कम से कम दिखने में सबसे बड़ा सामान था. उसका स्वागत सबसे ज्यादा विजय मिश्रित हंसी के साथ हुआ. उसने इस घर में मौजूद लोगों को ढाढस भी बंधाया कि उनके घरों से सामान नहीं फेंका जा रहा है. मस्जिद के भीतर की आग को और भड़काने के लिए फेंके गए सामान का ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जा रहा था.
मैं तिमंजिला इमारत की छत पर चढ़कर चारों ओर देखने लगा. दूर से कम से कम 15 जगहों पर धुंए के काले बादल बनते नजर आ रहे थे. मैंने वीडियो बनाने के लिए फोन निकाला. संपर्क ने थोड़ा गुस्से से फोन वापस रखवा दिया. मैंने उससे पूरा किस्सा जानना चाहा. उसने बताया कि “कल शाम से ही यहां माहौल खराब है. लगभग सभी मुसलमान परिवार यहां से जा चुके हैं.” पिछली रात से आज दोपहर तक आए बदलाव के बारे में उसने बताया, “कल तक मैं गली में इंसानियत की दुहाई देकर बात कर सकता था, आज ऐसी बात करना भी खतरनाक लग रहा है.”
छत पर 24-25 साल का एक लड़का बैठा था. उसकी टी-शर्ट पर गले में हल्दी लगी थी. घटना के अगले दिन उसकी बारात जानी थी. उसने उदास आवाज में मुझसे पूछा ''भइया ये सब अब कैसे ठीक होगा. आज भी हल्दी लगने की रस्म होनी थी. अब क्या होगा?''
साथ खड़ी एक 60-65 साल की एक महिला से मैंने पूछा, ''आपकी गली में जिस मुसलमान का घर जलाया गया, क्या वह बहुत बुरा आदमी था.'' उन्होंने कहा, ''वह मेरी सहेली थी.''
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