अमित शाह ने बेटे जय शाह की फर्म कुसुम फिनसर्व एलएलपी के लिए अपनी दो संपत्तियों को गिरवी रखा था. कुसुम फिनसर्व की बिगड़ती आर्थिक स्थिति के बावजूद पिछले कुछ वर्षों में मिलने वाली क्रेडिट सुविधाओं में नाटकीय रूप से तेजी देखने को मिली है. हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा 2017 में दाखिल किए गए चुनावी हलफनामे में क्रेडिट सुविधाओं के बदले इस देनदारी के ब्यौरे का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है. सार्वजनिक रूप से मौजूद दस्तावेजों के अनुसार 2016 में कुसुम फिनसर्व के 25 करोड़ रुपए के क्रेडिट के लिए अमित शाह की दो संपत्तियों को कालुपुर कामर्शियल को-ऑपरेटिव बैंक में गिरवी रखा गया था. यह गुजरात का सबसे बड़ा को-ऑपरेटिव बैंक है. कारवां द्वारा हासिल किए गए नए दस्तावेज यह दर्शाते हैं कि 2016 से अब तक कुसुम फिनसर्व को दो बैंकों और एक सरकारी उपक्रम से 97.35 करोड़ रुपए की क्रेडिट सुविधा मिली है. कंपनी द्वारा यह क्रेडिट पांच हिस्सों में क्रमश: 10.35 करोड़ रुपए, 25 करोड़ रुपए, 15 करोड़ रुपए, 30 करोड़ रुपए और 17 करोड़ रुपए के रूप में हासिल किया गया. कुसुम फिनसर्व को मिलने वाले क्रेडिट में पिछले एक वर्ष के दौरान 300 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है, जबकि कंपनी की ताजा बैलेंसशीट में इस की कुल जमा पूंजी मात्र 5.83 करोड़ रुपए दर्शाई गई है.
अहमदाबाद की जिन तीन प्रॉपर्टी के बदले जय शाह की फर्म को क्रेडिट सुविधाओं मिली, जिसमें शिलाज गांव स्थित 3,839 वर्गमीटर व 459 वर्गमीटर के दो प्लॉट और बोडकदेव के सार्थिक-2 कॉम्प्लेक्स के तीसरे फ्लोर में स्थित 186 वर्गमीटर का ऑफिस स्पेस शामिल है.
शिलाज गांव स्थित दो जमीनों का स्वामित्व अमित शाह के पास है. कालुपुर बैंक और कुसुम फिनसर्व के बीच मई 2016 में किए गए बंधकनामे में अमित शाह को मॉर्टगेजर नंबर-2 और दोनों प्लॉट के असली मालिक के रूप में दर्ज किया है. जय शाह को पिता द्वारा गिरवी रखी गई संपत्तियों के पावर ऑफ अटॉर्नी होल्डर (वकालतनामा हासिल करने वाले व्यक्ति) के रूप में दर्ज किया गया है. दस्तावेजों को देखते हुए फाइनेंशियल एक्सपर्ट ने बताया कि जब कोई व्यक्ति कर्ज के लिए संपत्ति गिरवी रखता है तो मूल रूप से वही गारंटीकर्ता या जमानतकर्ता होता है. “कोई वित्तीय लाभ न होने के बावजूद वह बिजनेस में भागीदार बन जाता है.”
अमित शाह राज्यसभा में सांसद हैं. रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट के अनुसार विधानसभा या संसदीय चुनाव में हिस्सा लेने वाले प्रत्येक उम्मीदवार के लिए चुनावी हलफनामे में अपनी सभी संपत्तियों और वित्तीय देनदारियों की सही जानकारी देना आवश्यक है. कानून के मुताबिक चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी मुहैया कराने पर उम्मीदवार का नामांकन रद्ïद किया जाता है.
कारवां ने जब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी से यह जानना चाहा कि किसी उम्मीदवार द्वारा चुनावी हलफनामे में वित्तीय देनदारी के बारे में जानकारी छुपाने के क्या मायने हैं, तो उन्होंने बताया कि चुनावी हलफनामे में और कुछ नहीं बल्कि पूरा सच बताया जाना चाहिए. यदि पहली नजर में किसी उम्मीदवार के खिलाफ अनियमितता का मामला नजर आता है तो जरूरी कार्रवाई की जानी चाहिए. लेकिन वास्तविक प्रश्न यह है कि ऐसे राजनीतिज्ञों के लिए सजा कितनी कठोर होनी चाहिए.
इसी संदर्भ में एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कारवां से बातचीत में बताया कि चुनाव आयोग को बड़ी संख्या में नामांकन मिलते हैं, इसलिए नामांकन दाखिले के दौरान ऐसे गलत केस की पूरी जांच करना मुमकिन नहीं होता है. वे आगे कहते हैं कि चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने पर उम्मीदवार को अयोग्य ठहराया जाना चाहिए और कानून के अंतर्गत जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए.
चुनावी सुधारों के क्षेत्र में सक्रिय एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर बताते हैं कि रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट के अनुच्छेद 75ए के अनुसार प्रत्येक उम्मीदवार के लिए चुनावी हलफनामे में संपत्ति के ब्यौरे के साथ-साथ वित्तीय कर्ज या वित्तीय देनदारियों की सही जानकारी देना आवश्यक है. वे आगे बताते हैं कि यह जानकारी चुनाव आयोग द्वारा तय किए गए फॉर्मेट में जमा कराई जाती है. यदि कोई उम्मीदवार गलत जानकारी देता है, तो उसका नामांकन रद्ïद किया जाना चाहिए और उस पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए. कोई भी भारतीय नागरिक उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव आयोग को लिखित शिकायत दे सकता है.
2017 के अंत में ऑनलाइन न्यूज़ प्लेटफॉर्म द वायर ने सार्वजनिक रूप से मौजूद दस्तावेजों के आधार पर पहली बार यह खबर प्रकाशित की थी कि कुसुम फिनसर्व को कालुपुर बैंक द्वारा 25 करोड़ और एक सार्वजनिक उपक्रम द्वारा 10.35 करोड़ रुपए की क्रेडिट सुविधा प्राप्त हुई है. पिछले वर्ष सितंबर के बाद से फर्म को मिलने वाले लोन में तीन गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. कालुपुर बैंक और कोटक महिंद्रा बैंक दोनों के द्वारा क्रमश: 40 करोड़ रुपए और 47 करोड़ रुपए की क्रेडिट सुविधा दी गई है. वित्त वर्ष 2012-13 और 2015-16 के दौरान बैलेंशशीट से पता चलता है कि फर्म को प्रत्येक वर्ष घाटा हुआ है.
2017 में अमित शाह ने चुनावी हलफनामे में शिलाज की संपत्तियों की कुल कीमत 5 करोड़ रुपए बताई थी. बाजार भाव के मुताबिक छोटे प्लॉट की कीमत करीब 55 लाख रुपए और बोडकदेव ऑफिस की कीमत 2 करोड़ रुपए है. कुसुम फिनसर्व ने इन संपत्तियों का उपयोग मई 2016 में कालुपुर कॉमर्शियल को-ऑपरेटिव बैंक से 25 करोड़ रुपए की क्रेडिट सुविधा हासिल करने के लिए किया. सितंबर 2017 में इसी बैंक ने फर्म को 15 करोड़ की क्रेडिट सुविधा दी. उसी माह में इसी फर्म ने एक प्राइवेट बैंक से 30 करोड़ रुपए का एक और क्रेडिट प्राप्त किया. जुलाई 2017 में फर्म को गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन द्वारा साणंद इंडस्ट्रियल एस्टेट में 15,754.83 वर्गमीटर की जमीन लीज पर दी गई थी. लीज पर हस्ताक्षर होने के एक महीने बाद ही इस प्रॉपर्टी को गिरवी रखते हुए कुसुम फिनसर्व ने अप्रैल 2018 में प्राइवेट बैंक से 17 करोड़ रुपए का क्रेडिट हासिल किया. वर्तमान में गिरवी रखी गई साणंद की इस जमीन पर एक फैक्टरी स्थित है.
न्यूज रिपोर्ट्स और संसद में क्रेडिट सुविधा मिलने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए जाने के बावजूद जय शाह के स्वामित्व वाली कुसुम फिनसर्व ने वित्त वर्ष 2016-17 का अकाउंट स्टेटमेंट फाइल नहीं किया है, जबकि इसके लिए तय समयसीमा 9 माह पहले ही समाप्त हो चुकी है. एक एलएलपी (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) के लिए प्रत्येक वर्ष की 30 अक्तूबर से पहले अकाउंट स्टेटमेंट फाइल करना आवश्यक है. ऐसा न करने पर लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप एक्ट के तहत 5 लाख रुपए तक का जुर्माने का प्रावधान है. फर्म द्वारा 2016-17 का अकाउंट स्टेटमेंट न जमा कराए जाने के कारण कारवां इस बात की पुष्टि नहीं कर सकता है कि कुसुम फिनसर्व को 97.35 करोड़ रुपए से ज्यादा का क्रेडिट दिया गया है.
अमित शाह और को-ऑपरेटिव बैंक ने कारवां द्वारा भेजे गए सवालों का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. जय शाह ने अपने मैनेजर के जरिए जवाब दिया है. हम यह बता सकते हैं कि हम कानून के दायरे में और सभी नियमों का पालन करते हुए बिजनेस कर रहे हैं. हमारे प्रत्येक ट्रांजेक्शन का लेखाजोखा दर्ज है और कर अधिकारियों को इसकी पूरी जानकारी है. हमारा मानना है कि हमारे बिजनेस की जानकारी पत्रकारिता संबंधी किसी उद्ïदेश्य के लिए प्रासंगिक नहीं हैं और न ही ये किसी सार्वजनिक बहस या प्रकाशन का विषय हैं. इसके साथ ही उन्होंने जवाब देने के लिए जरूरी कानूनी परामर्श हेतु 7 से 10 दिन का समय मांगा है. आगे अन्य कोई जवाब मिलने पर उसे लेख में शामिल किया जाएगा. कोटक बैंक ने जवाब दिया कि बैंक ने क्रेडिट देने के लिए कड़ी प्रक्रिया का पालन किया है. हम किसी भी ग्राहक की गोपनीय जानकारी किसी तीसरे पक्ष से साझा नहीं कर सकते हैं.
दिलचस्प बात यह भी है कि कालुपुर बैंक और कुसुम फिनसर्व के बीच हुए बंधकनामे में भरी गई जानकारियों में कंपनी के स्टॉक, मशीनरी और कर्ज संबंधी जानकारियों की जगह को रिक्त छोड़ा गया है. जिन जगहों पर स्टॉक इन्वेन्ट्री और स्टॉक की कीमत आदि के बारे में जानकारी भरी जानी थी, उन्हें खाली छोड़ दिया गया है. प्राइवेट बैंक द्वारा जारी किए गए स्वीकृति पत्र में फर्म की आर्थिक स्थिति स्पष्ट करने वाले दो जरूरी मानकों- आधार पूंजी और कुल बाहरी कर्ज के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.
1970 में स्थापित हुआ कालुपुर कॉमर्शियल को-ऑपरेटिव बैंक हाल के वर्षों में गुजरात के को-ऑपरेटिव बैंकों में सबसे मजबूत स्थिति वाले बैंकों में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है. गुजरात अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक फेडरेशन द्वारा पिछले वर्ष जारी की गई रिपोर्ट में कालुपुर बैंक को 6,249 करोड़ रुपए की जमा राशि और 4,221 करोड़ रुपए के एडवांस के लिए राज्य का शीर्ष बैंक बताया गया है.
गुजरात के गांवों में को-ऑपरेटिव बैंकों की स्थिति मजबूत है. को-ऑपरेटिव बैंकों का नेटवर्क प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से गुजरात की एकतिहाई आबादी तक पहुंच रखता है. इसी के चलते इन बैंकों पर अपनी मौजूदगी को मजबूत बनाने के लिए राजनीतिक पार्टियों में होड़ लगी रहती है. गुजरात में भाजपा का पलड़ा भारी है और यह राज्य के 18 में से 16 जिला को-ऑपरेटिव बैंकों को कंट्रोल करती है. कालुपुर बैंक कोई अपवाद नहीं है.
निरमा एजुकेशन एंड रिसर्च के मैनेङ्क्षजग ट्रस्टी अम्बुभाई मगनभाई पटेल इस बैंक के चेयरमैन हैं. गुजरात के उपमुख्यमंत्री नितिनभाई पटेल द्वारा 2017 में दाखिल किए गए चुनावी हलफनामे के मुताबिक वे और उनकी पत्नी कालुपुर बैंक में शेयर होल्डर हैं.
कालुपुर बैंक द्वारा क्रेडिट का दूसरा हिस्सा जारी किए जाने के कुछ दिन बाद ही 27 सितंबर को प्राइवेट बैंक द्वारा 30 करोड़ रुपए की क्रेडिट सुविधा के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट जारी कर दिया गया. प्राइवेट बैंक ने यह क्रेडिट कालुपुर बैंक के साथ परी-पस्सु चार्ज स्थापित करते हुए दिया. इसमें कर्जदाता की सभी मौजूदा और भविष्य प्राप्तियों, चलअचल संपत्ति को शामिल किया गया. इसके अलावा जय शाह ने इस क्रेडिट के लिए प्राइवेट बैंक को पर्सनल गारंटी भी दी थी.
परी-पस्सु चार्ज के तहत दो बैंक या बैंकों का समूह एक ही संपत्ति के लिए चार्ज स्थापित करते हैं यानी यदि कुसुम फिनसर्व क्रेडिट चुकता करने में असमर्थ रहती है तो प्राइवेट और को-ऑपरेटिव बैंक उन संपत्तियों के हक के लिए लड़ते रहेंगे, जिसके आधार पर फर्म को क्रेडिट दिया गया है.
द वायर का लेख मुख्य रूप से टेंपल एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड के वित्तीय मसलों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह जय शाह के स्वामित्व वाला एक अन्य व्यवसाय है, जिसके कारोबार में 16 हजार गुना वृद्धि देखी गई. कुछ सालों तक नगण्य लाभ या हानि दिखाने के बाद वित्तीय वर्ष 2014-15 में टेंपल एंटरप्राइज ने 50 हजार का रेवेन्यू घोषित किया. इसके ठीक अगले साल कंपनी का टर्नओवर बढ़कर सीधा 80.5 करोड़ रुपए हो गया. अक्तूबर 2016 में कंपनी ने अपने व्यापार को पूरी तरह से रोक दिया और निर्देशक रिपोर्ट में घोषित किया कि कंपनी की नेटवर्थ पूरी तरह से घट गई है. कारवां की लगातार जांच से पता चलता है कि जय शाह के बिजनेस का ध्यान पूरी तरह से टेंपल एंटरप्राइज से हटकर कुसुम फिनसर्व पर केंद्रित हो गया.
द वायर की स्टोरी प्रकाशित होने के पांच दिन बाद ही अमित शाह ने इंडिया टुडे ग्रुप के सम्मेलन में इस विषय पर बात की. उन्होंने दर्शकों से कहा कि उनके बेटे की कंपनी टेंपल एंटरप्राइज ने सरकार के साथ एक रुपए का भी कारोबार नहीं किया और न ही किसी भी प्रकार की सरकारी भूमि का अधिग्रहण किया और न ही सरकार के साथ एक रुपए का भी अनुबंध किया. बीजेपी प्रमुख ने बिल्कुल सही कहा था कि टेंपल एंटरप्राइज ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था. परंतु जय शाह की दूसरी कंपनी कुसुम फिनसर्व ने टेंपल एंटरप्राइज के ठीक उलट भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था समित, जो केंद्र सरकार के अंतर्गत एक सरकारी क्षेत्र का उपक्रम है, से न सिर्फ एक लोन लिया बल्कि गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कार्पोरेशन द्वारा इस कंपनी को एक 15,000 वर्गमीटर की जमीन भी अनुबंध के तहत आवंटित की गई.
जीआईडीसी एक सरकारी स्वामित्व वाला उपक्रम है जो गुजरात में औद्योगिक एस्टेट और पार्क विकसित करता है. साल 2010 में टाटा मोटर्स ने साणंद में अपने वाहन टाटा नैनो के लिए एक प्लांट का उद्घाटन किया था. इसके तुरंत बाद जीआईडीसी ने इस क्षेत्र को इंडस्ट्रियल एस्टेट के रूप में विकसित करना शुरू किया था. फोर्ड ने टाटा को बारीकी से फॉलो किया. आज 5000 एकड़ के साणंद इंडस्ट्रियल एस्टेट में कोका-कोला, नेस्ले, बॉश, हिताची और कोलगेट-पामोलिव जैसी कंपनियां काम कर रही हैं.
कुसुम फिनसर्व का नाम अमित शाह की मां कुसुमबेन शाह के नाम पर रखा गया है. इस कंपनी ने 16 मई 2017 को जीआईडीसी को भूमि आवंटन के लिए एक आवेदन दिया. जल्दी ही 2 महीने बाद जीआईडीसी ने 15754.83 वर्गमीटर की जमीन आवंटित कर दी. जुलाई 2017 में जारी आवंटनपत्र के अनुसार इस भूमि का शुद्ध आवंटन मूल्य 6.33 करोड़ रुपए के आसपास था.
8 महीने बाद मार्च 2018 में जीआईडीसी ने कुसुम फिनसर्व के साथ लीज डीड साइन की. इसके ठीक एक महीने बाद ही एक प्राइवेट बैंक ने इस आवंटित भूमि पर 17 करोड़ रुपए का लोन पास कर दिया. शेयर प्लेज करने के साथ ही इस बैंक के प्रति कुसुम फिनसर्व की देनदारी बढ़कर 47 करोड़ की हो गई.
जीआईडीसी की वेबसाइट पर भूमि आवंटन के लिए मानदंड स्पष्ट रूप से दिए गए हैं. प्रत्येक आवेदन को कुल 100 अंकों में स्कोर करना होता है. जीआईडीसी के मानदंडों के अनुसार एक नई यूनिट शुरू करने के लिए उसके वित्तीय आधार को 20 अंक दिए जाते हैं. कारवां यह पता लगाने में असमर्थ रहा कि कुसुम एंटरप्राइज किस आधार पर जीआईडीसी के मापदंडों पर खरा उतरा जबकि 2015-16 तक इस कंपनी की वित्तीय हालत पूरी तरह खस्ता थी. इस कंपनी की खस्ता हालत का पता इसके बैलेंसशीट से साफ चलता है, जीआईडीसी द्वारा इस कंपनी को भूमि आवंटन निश्चित रूप से कुछ प्रश्न जरूर खड़े करता है.
लीज डीड की एक प्रति या कुसुम फिनसर्व को भूमि आवंटन के संबंध में सवालों के जवाब प्राप्त करने के लिए कारवां के प्रयास असफल रहे. साणंद जीआईडीसी के क्षेत्रीय प्रबंधक दीप्ति मराठा ने लीज डीड की एक प्रति देने या मेरे सवालों के जवाब देने से इनकार कर दिया और कहा कि उन्हें संबंधित कंपनी से इसकी अनुमति लेनी होगी.
जब मैंने आवंटन के बारे में पूछताछ के लिए साणंद के बोल गांव में जीआईडीसी कार्यालय का दौरा किया तो वहां भूमि विभाग के एक अधिकारी ने मुझे एक अन्य अधिकारी झाला साहेब का इंतजार करने के लिए कहा. इसके बाद दो व्यक्ति आए, एक के बाद एक. उनमें से एक ने मुझसे पू्छा कि क्या मैं ही हूं जिसे कुसुम फिनसर्व को आवंटित प्लॉट नम्बर 55, 56 और 57 के बारे में जानकारी चाहिए. मैंने सिर हिलाकर उत्तर दिया.
आप जानते हैं कि प्लॉट के मालिक कौन हैं- है ना?
मैंने कहा- हां मुझे पता है.
दूसरे व्यक्ति थे मौलिक सुखादिया, जो पहले कुसुम फिनसर्व के लिए काम करते थे और इन्होने जीआईडीसी भूमि पर प्राइवेट बैंक की मॉर्टगेज डीड पर गवाह बनकर हस्ताक्षर भी किए थे. दोनो व्यक्तियों ने मेरे किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया और मुझे आगे पूछताछ ना करने की सलाह दी.
फर्म को आवंटित भूमि को ढूंढऩा आसान नहीं था- साणंद परिसर में प्लॉट्स का पता लगाने में मुझे दो घंटे लग गए. फर्म के नाम का वहां कोई साइनबोर्ड भी नहीं था. जमीन में एक फैक्टरी स्थित थी. साइट पर मैंने अंदर जाने की कोशिश की तो वहां मौजूद सिक्योरिटी गाड्ïर्स ने रोक दिया. बैंक दस्तावेजों के अनुसार कंपनी थर्मोप्लास्टिक पॉलीमर, उच्च घनत्व पॉली एथिलीन और बड़े बैग्स बनाती है. फैक्टरी की साइट पर ऐसा कुछ निर्माण होने के संकेत नहीं थे.
कुसुम फिनसर्व ने प्राइवेट बैंकों से 17 करोड़ के लोन लेने के साथ 14 कंपनियों के शेयर को भी प्लेज किया. बैंक दस्तावेज के अनुसार, इस साल 9 मई तक शेयर 13.62 करोड़ रुपए के थे.
बैंकों से क्रेडिट सुविधाओं के अलावा कुसुम फिनसर्व को केआईएफएस से अनसिक्योर्ड लोन भी मिल रहे हैं. केआईएफएस कंपनी जिसके प्रमोटर राजेश खंडवाला हैं. केआईएफएस ने वित्त वर्ष 2014 और 2015 में कुसुम फिनसर्व को बैंकरोल किया, लेकिन केआईएफएस द्वारा कुसुम फिनसर्व को दिए गए अनसिक्योर्ड लोन की जानकारी बाद के वर्षों में सार्वजनिक नहीं किया गया है. खंडवाला राज्यसभा में संसद सदस्य परिमल नाथवानी के संबंधी हैं, जो रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के ग्रुप प्रेसिडेंट हैं. खंडवाला की बेटी की शादी नाथवानी के बेटे से हुई है. द वायर द्वारा भेजे गए प्रश्न के जवाब में जय शाह के वकील ने खंडवाला को पिछले कई सालों से जय शाह के परिवार के लिए एक स्टॉक ब्रोकर बताया है.
जय शाह की कंपनियां एक रूप से दूसरे रूप में बदल रही हैं. टेंपल एंटरप्राइज का अचानक से एक ही साल में 16 हजार गुना तरक्की करती है पर बाद में पता चलता है कि कंपनी बंद हो गई है और कुसुम फिनसर्व शुरू से ही एक बिजनेस गतिविधि से दूसरे में जा रही है.
सार्वजनिक दस्तावेजों और बयानों से यह पता चलता है कि कुसुम फिनसर्व कई तरह की व्यापारिक गतिविधियों में शामिल है, जैसे- शेयर ट्रेडिंग, कोक और कोयला व्यापार एवं सीमेंट बैग निर्माण. सार्वजनिक दस्तावेजों से यह पता चलता है कि जय शाह के उनकी फर्म में 60 प्रतिशत शेयर हैं जबकि उनकी पत्नी ऋषिता शाह का 39 प्रतिशत शेयर है. बचा हुआ एक प्रतिशत प्रदीप भाई कांतीलाल शाह का है.
जय शाह के वकील ने द वायर के जवाब में कहा कि कुसुम फिनसर्व शेयर, आयातनिर्यात, वितरण और मार्केङ्क्षटग कंसल्टेंसी के रूप में व्यवसाय करती है. वित्त वर्ष 2014-2015 के लिए फर्म के बयान से पता चलता है कि यह कमोडिटी ट्रेडिंग में भी शामिल है. कंसल्टेंसी कारोबार फर्म के कुल कारोबार का 60 प्रतिशत से भी अधिक है, कमोडिटी ट्रेडिंग का व्यवसाय 29 प्रतिशत से कम का है. कालुपुर बैंक द्वारा दी गई क्रेडिट सुविधा से संबंधित एक रिकॉर्ड में कोल और कोक के व्यवसाय का भी उल्लेख है. हालांकि फर्म को पहली बार 2012 में कुसुम फिनसर्व प्राइवेट लिमिटेड के रूप में शामिल किया गया था लेकिन उसने 2014-15 में अपने विभिन्न बिजनेस सेगमेंट का सिर्फ टर्नओवर बताया था. जुलाई 2015 में कुसुम फिनसर्व एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप में बदल गई.
मार्च 2016 में फर्म को इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम से 10.35 करोड़ का लोन मिला जो कि मध्य प्रदेश के रतलाम में 2.1 मेगावाट पवन ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए था. इसके बावजूद की इस कंपनी को पवन ऊर्जा उत्पादन में कोई अनुभव नहीं था. यह लोन आईआरईडीए के उन नियमों के विरुद्ध दिया गया था जो नियम इसकी खुद की वेबसाइट पर बताए गए हैं. पीएसयू की वेबसाइट बताती है कि यह केवल 1 मेगावाट तक की फर्म को ही ऋण मंजूर कर सकती है वो भी परियोजना की लागत का कुल 70 प्रतिशत तक ही. भारत में 1 मेगावाट पवन ऊर्जा फार्म स्थापित करने की लागत आमतौर पर 4 से 7 करोड़ रुपए के बीच है. यहां तक कि सबसे महंगे संयंत्र के लिए, अपनी 70 प्रतिशत कैप का पालन करते हुए, अधिकतम ऋण जो आईआरईडीए दे सकता है, वह लगभग 4.9 करोड़ रुपए होगा. कुसुम फिनसर्व का उस राशि से दोगुना हो गया. जय शाह के वकील ने अक्तूबर 2017 में द वायर को दावा किया था कि उस वर्ष जून तक इस ऋण पर बकाया राशि 8.52 करोड़ रुपए थी. हालांकि यह अभी तक एमसीए वेबसाइट पर फर्म सूचकांक में उपलब्ध नहीं है.
कुसुम फिनसर्व के मामलों की वर्तमान स्थिति में कोई और जानकारी संभव नहीं है, क्योंकि वित्तीय वर्ष 2015-16 के बाद से उसने खातों का कोई विवरण नहीं दर्शाया है. फर्म ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए वार्षिक रिटर्न दाखिल किया है, लेकिन दस्तावेज में इसके मामलों में कोई वित्तीय विवरण शामिल नहीं है. यह केवल कहता है कि फर्म का कारोबार 5 करोड़ से अधिक है.
वर्तमान में फर्म का दावा है कि प्लास्टिक बैग के निर्माण को बंद कर दिया गया है. कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के पास भी इस क्षेत्र में इस फर्म के कार्य करने के दस्तावेज नहीं हैं.