इस साल जुलाई के आखिरी सप्ताह में 62 वर्षीय उर्मिला चौधरी अपने जिले नालंदा के डाकघर पर लगी एक लंबी कतार में खड़ी थीं. उर्मिला एक गृहणी हैं. वह अपने आधार कार्ड को मोबाइल नंबर से जुड़वाने डाकघर आई हुई थीं. घंटों कतार में लगने के बाद उनका आवेदन स्वीकृत हो गया. डाकघर के एक कर्मचारी ने उनसे कहा कि एक सप्ताह में उनका मोबाइल नंबर और आधार कार्ड जुड़ जाएंगे. उर्मिला के पास एक छोटा कीपैड फोन है. अपने नंबर का रिचार्ज करवाने के लिए भी उर्मिला अपने बेटे और पति पर आश्रित हैं.
दरअसल उन्हें अपने मोबाइल को आधार कार्ड से जुड़वाने की जल्दबाजी तब हुई, जब पिछले दिनों उन्हें किसी ने बताया कि गृहमंत्री अमित शाह सहारा इंडिया में लोगों के फंसे पैसे वापस दिलवा रहे हैं. करीब दस साल पहले उर्मिला के पिता ने मरने से पहले उनके नाम से सहारा इंडिया में 50000 रुपए निवेश किए थे. उर्मिला जनवरी 2022 में करीब 125000 रुपए की हकदार होतीं अगर सहारा इंडिया ने अपने निवेशकों को धोखा नहीं दिया होता. पिछले एक साल में उर्मिला सैकड़ों बार सहारा इंडिया के स्थानीय कार्यालय जा चुकी हैं. लेकिन हर बार सहारा इंडिया के कर्मचारी उन्हें उनके पैसे देने की बजाए उनसे दुबारा निवेश करने को कहते.
उर्मिला के लिए उनका खुद का पैसा होना आत्मसम्मान की बात है. इस मायने में शाह का वादा एक उम्मीद बन कर आया. मगर उर्मिला को यह इल्म नहीं था कि मोबाइल को आधार से जुड़वाना पैसे मांगने की प्रक्रिया का पहला ही कदम था. गृहमंत्री ने जितनी आसानी से पैसे मिलने की बात कही थी, असल प्रक्रिया बिलकुल ही उलट थी. उर्मिला एक महीने बाद ही सितंबर में अपने बेटे की मदद से अपना आवेदन ऑनलाइन जमा करने में कामयाब हो पाईं. हालांकि वह अब भी आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें पैसा मिल ही जाएगा. इसकी दो वजहें हैं: सरकार द्वारा बनाया पोर्टल और उससे जुडी समस्यों को सुनने वाला कोई नहीं है. शाह ने कहा था कि सरकार आवेदन प्रक्रिया में मदद करेगी मगर उनके द्वारा जारी दो हेल्पलाइन अक्सर व्यस्त होते हैं. उर्मिला जैसी करोड़ों गृहणियां, मजदूर और किसान सहारा इंडिया के छोटे निवेशक हैं, जो खुद को इस डिजिटल प्रक्रिया में गुम पाते हैं. जिन्हें न तो स्मार्ट फोन चलना आता है और न इंटरनेट. कइयों को तो ये चीजें उपलब्ध ही नहीं हैं. साइबर कैफे उनके लिए एकमात्र सहारा है जहां डाटा प्रोटेक्शन राइट्स जैसी चीजें अगल समस्याएं हैं. अगर उन्हें अपने पैसों की इतनी जरूरत न होती तो वे कभी भी खुद को साइबर कैफे, डाकघर, बैंक और निजी एजेंट्स की सनक के हवाले न करते. बहरहाल उर्मिला का अनुभव न सिर्फ सरकार के पैसे वापसी के वादों का खुलासा करता है बल्कि भविष्य के आवेदन कर्ताओं के लिए सीख प्रस्तुत करता है.
18 जुलाई को शाह ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा था: "मोदी सरकार ने आज करोड़ों लोगों को आशा की नई किरण दी है. सहारा सहकारी समितियों में जिन लोगों के रुपए फंसे हुए थे, उन्हें अब पारदर्शी तरीके से पैसे वापस मिलेंगे. इसके लिए आज 'सहारा रिफंड पोर्टल' लॉन्च किया जिस पर निवेशक रिफंड के लिए अप्लाई कर सकते हैं. डॉक्यूमेंट वेरीफाई होने के बाद राशि सीधे जमाकर्ताओं के आधार से जुड़े बैंक खातों में ट्रांस्फर कर दी जाएगी."
शाह ने कहा कि निवेशकर्ता को पोर्टल पर अप्लाई करने के लिए सिर्फ दो चीजों की जरूरत पड़ेगी: पहला, निवेशकर्ता के मोबाइल से जुड़ा बैंक अकाउंट और दूसरा आधार कार्ड से जुड़ा हुआ मोबाइल नंबर. घोषणा होते ही, नालंदा जिले के स्थानीय डाकघर में निवेशकर्ताओं की भीड़ लग गई. लाखों ऐसे छोटे निवेशक थे जिनका आधार नंबर मोबाइल से जुड़ा नहीं था. शाह गृहमंत्री होने के साथ-साथ मोदी सरकार द्वारा बनाई सहकारिता मंत्रालय के मंत्री भी हैं. उन्होंने कहा कि वह यह सुविधा इसलिए लेकर आए क्योंकि सहारा इंडिया की धोखेबाजी से लोगों का सहकारिता व्यवस्था में विश्वास उठ गया था. उन्होंने कहा की पोर्टल से लगभग 2.50 करोड़ निवेशकों का फायदा होगा जिन्होंने 30000 रुपए तक का निवेश किया था. शाह ने कहा कि पोर्टल की पहली प्राथमिकता 1.7 करोड़ निवेशक होंगे जिन्होंने सहारा इंडिया के सहकारिता योजनाओं में करीब 10000 रुपए तक निवेश किया था. गृहमंत्री ने कहा कि धीरे-धीरे यह लिमिट बढ़ाई जाएगी. उर्मिला इस चरण में योग्य है या नहीं यह न उन्हें पता है न पोर्टल पर इसकी कोई जानकारी दी गई है. पोर्टल पर यह सूचना नहीं दी गई है कि निवेश की लिमिट 10000 रुपए है या 30000 रुपए ही होने चाहिए. बहरहाल वर्षों से सहारा इंडिया के कार्यालयों में चक्कर काट रहा हर निवेशक अपनी किस्मत आजमाना चाहता है. उर्मिला के पिता ने सहारा की सहकारिता योजना, हमारा इंडिया, के 20000 रुपए और 30000 रुपए के दो बांड खरीदे थे. उर्मिला को उम्मीद है कि शायद उनके एक बांड का मूलधन वापस हो जाए.
मैंने अपने पिछले लेख में सहारा इंडिया की धोखाधड़ी के घटनाक्रम का संक्षेप में विवरण दिया था. भारतीय प्रतिभूति और विनमय बोर्ड (सेबी) ने सबसे पहले 2008-09 में सहारा इंडिया को रियल एस्टेट और आवास क्षेत्र में सक्रिय उसकी दो कंपनियों द्वारा आम लोगों से गलत तरीके से पैसा उगाही करते हुए पकड़ा था. 2012 में सर्वोच्च न्यायलय ने सेबी के आरोप को सही पाया और सहारा इंडिया को लोगों को 15 प्रतिशद सूद के साथ पैसे वापस करने को कहा. 2014 में उच्चतम न्यायलय ने सहारा इंडिया को सेबी के साथ बनाए एक जॉइंट अकाउंट में पैसे डालने को कहा, जिसमें से निवेशकर्ताओं को पैसे वापस देने थे. हालांकि, 8 साल बाद भी सहारा इंडिया के करोड़ों निवेशकर्ताओं को अपने पैसे के भुगतान का इंतजार है. सरकार और कानून से बच कर सहारा इंडिया न सिर्फ व्यापार करती रही बल्कि 2014 के बाद उसके कई सहकारिता योजनाओं में पैसे के गबन का मामला सामने आता गया. पिछले लेख में मैंने सहारा की ऐसी चार सहकारिता सोसाइटियों का जिक्र किया था जिन पर विभिन्न हाई कोर्टों ने लोगों से पैसे उठाने पर पाबंदी लगा दी थी. इन सोसाइटियों में थीं: हमारा इंडिया कोऑपरेटिव सोसाइटी, सहारायण कोऑपरेटिव सोसाइटी, सहारा इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी और स्टार्स मल्टीपर्पसे कोऑपरेटिव सोसाइटी. शाह ने जुलाई में सिर्फ इन्हीं कोऑपरेटिव सोसाइटियों में निवेश किए लोगों का पैसा लौटने की बात कर रहे थे.
यह जिक्र जरूरी है कि सहारा-सेबी के रिफंड अकाउंट में अभी भी 23937 करोड़ रूपया पड़ा हुआ है, जो न्यायलय के पूर्व के आदेशों के अनुसार निवेशकों में पहले ही वितरित कर दिया जाना चाहिए था. शाह की सहकारिता मंत्रालय ने इसी अकाउंट में से सिर्फ 5000 करोड़ रुपए न्यायलय से निकालने देने का अनुरोध किया है. भारत सरकार के वकील ने कोर्ट में कहा था कि रिफंड अकाउंट में सहारा कोऑपरेटिव सोसाइटी का भी हिस्सा है इसलिए 5000 करोड़ निकालने का आदेश दिया जाए ताकि कोऑपरेटिव सोसाइटी द्वारा ठगे निवेशकों को पैसा वापस दिया जा सके. यह ज्ञात हो कि, शुरुआत में सहारा की सिर्फ दो कंपनियों, सहारा इंडिया रियल एस्टेट कारपोरेशन लिमिटेड और सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कारपोरेशन लिमिटेड, द्वारा ठगे लोगों को पैसा वापस करने का आदेश था. मगर समय के साथ सहारा के कोऑपरेटिव सोसाइटी में भी धोखाधड़ी का मामला सामने आता गया. शाह का यह कदम आने वाले संसदीय चुनाव में करोड़ों छोटे निवेशकों का दिल जितने में उनके लिए मददगार साबित हो सकता है, बशर्ते सही लोगों तक यह पैसा पहुंचे.
नरेन्द्र मोदी सरकार का यह कदम मोदी की उद्योगपति-समर्थक छवि को सुधारने में भी मददगार साबित होगा. हालांकि, बारीकी से देखे तो समझ आता है कि मोदी सरकार गरीबों का थोड़ा भला करके उद्योगपतियों के लिए बहुत अधिक भला कर रही है. मिसाल के तौर पर, अगस्त में शाह ने राज्य सभा को बताया कि सहारा ग्रुप ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज ने 62643 करोड़ रुपए एंबी वैली में निवेश किए हैं और सिर्फ 2253 करोड़ रुपए सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी से निकाले गए और सेबी के अकाउंट में जमा किए गए. सहारा ग्रुप ऑफ सोसाइटीज में हमारा इंडिया, सहारायण, स्टार्स और सहारा क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी आती हैं. सरकार ने कहा कि यह जानकारी सहारा ग्रुप ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज (चारों सोसाइटी) ने खुद सीआरसीएस को नवंबर 2019 और दिसंबर 2020 को हईं सुनवाइयों के दौरान दिया था. सीआरसीएस केन्द्रीय सहकारिता निबंधन कार्यालय का संक्षेप है. यह सहकारिता मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है और देश में चल रही सभी कोऑपरेटिव सोसाइटियों के संचालन के लिए कानून निर्धारित करती है. एंबी वैली लिमिटेड सहारा इंडिया ग्रुप की ही एक टाउनशिप है जो 10500 एकड़ में लोनावला के पास फैली है. 2017 में सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीशों ने कहा था कि वे चाहते है कि इस टाउनशिप को नीलाम करके निवेशकर्ताओं को पैसे वापस दिलवाए जाए. हालांकि, सरकार के राज्य सभा में दिए हालिया बयानों से लगता है कि एंबी वैली में सहारा नया इन्वेस्टमेंट कर रही है और मुनाफा भी कमा रही है.
सितंबर में उर्मिला ने जब सीआरसीएस की पोर्टल पर आवेदन करना शुरू किया तो आधार डालते ही उनका डिफॉल्ट बैंक अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दिखने लग गया. उर्मिला के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का अकाउंट 2021 से ही निष्क्रिय पड़ा था. वह पैसे कमाती नहीं और उन्हें बैंक की व्यवस्था समझ भी नहीं आती तो उर्मिला ने अकाउंट को ऐसे ही छोड़ दिया था. मगर हाल में जब उन्होंने पेंशन के लिए नगरपालिका को आवेदन किया तो लोकल ग्राहक सेवा केंद्र ने उनके सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में नए अकाउंट खोल दिए थे. नया अकाउंट खोलते समय ग्राहक सेवा केंद्र ने भी उनसे आधार और पैन कार्ड मांगा था. तभी उर्मिला ने एक एजेंट के जरिए अपना पैन कार्ड बनवाया था. वह आश्वस्त थी कि उनका एक अकाउंट तो आधार से जुड़ा है, मगर सीआरसीएस के पोर्टल पर सिर्फ उनका एसबीआई का अकाउंट ही दिखा रहा था. कोई और चारा नहीं था. वह अपने बेटे को लेकर अपने घर से दो किलोमीटर दूर एसबीआई बैंक गईं. बैंक कर्मचारियों ने अकाउंट को सक्रिय करने के लिए उनसे केबाईसी करवाने को कहा. मतलब उर्मिला को यहां भी एक आवेदन अपने पैन कार्ड, आधार कार्ड और मोबाइल नंबर के साथ देना पड़ा ताकि उनका अकाउंट सक्रिय हो जाए. उन्होंने सब किया. दिक्कत फिर आई कि उनका पैन कार्ड और आधार कार्ड लिंक नहीं था. मोदी सरकार ने इसी साल किसी भी सेवा को उपलब्ध कराने के लिए सभी नागरिकों के लिए उनके पैन कार्ड और आधार कार्ड को लिंक करवाना अनिवार्य कर दिया है, चाहे वे उर्मिला जैसी गृहणी ही क्यों न हों जो न कुछ कमाती है और न इनकम टैक्स बनता है. उर्मिला ने फिर से निजी एजेंट के जरिए 2000 रुपए देकर अपने आधार और पैन कार्ड को पहले लिंक करवाया और फिर केबाईसी करवाया.
उर्मिला जब फिर आवेदन करने लगीं तो उन्होंने ने खाता संख्या, खाता जारी करने की तिथि और खाता में जमा राशि वाली कॉलम में अपने बैंक खाता से संबंधित जानकारी भर दी. आवेदन प्रक्रिया के तीसरे चरण में निवेशकर्ता को ऑनलाइन भरे हुए फॉर्म को निकाल कर उस पर हस्ताक्षर करके वापस अपलोड करना पड़ता है. इसी स्टेज पर एक फोटोकॉपी शॉप ने उर्मिला से कहा कि उन्हें खाता संख्या कॉलम में बैंक का खाता संख्या नहीं बल्कि सहारा इंडिया के बांड पेपर में दी गई खाता संख्या भरनी थी. उर्मिला ने आवेदन को फिर से भरा और अपलोड कर दिया. मगर अब वह आश्वस्त नहीं हैं क्योंकि वह नहीं जानतीं कि कौन सी जानकारी कहां भरनी थी. उर्मिला पढ़ी लिखी हैं. उनसे गलती इसलिए हुई क्योंकि सीआरसीएस का पोर्टल अपने आप में भ्रामक है. कोई भी निवेशकर्ता खाता संख्या शब्द से अपने बैंक अकाउंट को जोड़कर देखेगा. पोर्टल में यह भी दिक्कत है कि रसीद संख्या का कॉलम भरने को है ही नहीं जबकि हस्ताक्षर के लिए जो फॉर्म अनुमोदित होता है उसमें रसीद संख्या का कॉलम खाली दिखता है. इन सब से जुड़े भ्रम को दूर करने वाला कोई नहीं है. ऐसे में यह पता नहीं कि निवेशकों का आवेदन किस बुनियाद पर मूल्यांकित किए जाएंगे. यह भी आम बात है कि अक्सर लोगों के आधार कार्ड और पैन कार्ड में जन्म तिथि सरकारी दफ्तरों द्वारा गलत अंकित की जाती है या दोनों डाक्यूमेंट्स के डिटेल्स एक दूसरे से अलग हो जाते हैं: जैसे रहने का पता, इत्यादि. इन गलतियों की जिम्मेदार अक्सर वे एजेंसियां होती हैं जो इन्हें इशू करती हैं, न कि आम नागरिक. अगर ऐसा निवेशकों के साथ भी है तो उनका काम और बढ़ जाएगा. पहले उन्हें अपने कागज सही करवाने पड़ेंगे.
प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो के अनुसार, अमित शाह ने रिफंड प्रोटाल का उद्घाटन करते हुए जानकारी दी थी कि निवेशकर्ता के आवेदन की जांच एक समिति करेंगी जिसके नियुक्त सदस्यों में सहारा के चारों कोऑपरेटिव सोसाइटीज के सदस्य, ओएसडी (ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी) और ऑडिटर्स होंगे. ओएसडी सरकारी अफसर होते हैं जबकि ऑडिटर्स सरकारी और निजी दोनों हो सकते हैं. पीआईबी की प्रेस रिलीज से यह स्पष्ट नहीं है. कुल कितने सदस्य होंगे यह भी स्पष्ट नहीं है. हालांकि यह कहा गया है कि चार ओएसडी होंगे जो सहारा के प्रत्येक कोऑपरेटिव सोसाइटी को सहयोग देंगे. यह थोड़ा अटपटा लगता है कि सहारा कोऑपरेटिव सोसाइटीज के सदस्यों को आवेदन के मूल्यांकन का काम क्यों दिया गया है. जब पैसे सीआरसीएस के पास ट्रांसफर कर दिए गए हैं और सहारा की चारों कोऑपरेटिव सोसाइटियां पहले ही जांच एजेंसियों द्वारा जांची जा रही हैं फिर सरकारी ऑडिटर्स और ओएसडी खुद क्यों नहीं निवेशकों का मूल्यांकन करेंगे. सरकार ने यह भी बताया था कि वितरण की पूरी प्रणाली पूर्व न्यायधीश आर. सुभाष रेड्डी की निगरानी में हो रही है.
उर्मिला ने कहा कि सरकार को जब लॉकडाउन करवाना था तो कदम-कदम पर पुलिस खड़ी कर दी मगर जब नागरिकों को मदद चाहिए तो बस एक पोर्टल बनवा कर छोड़ दिया गया. "फिर हम बैंक, डाकघर, प्राइवेट एजेंसियों की लाइन में लगते रहें, उन्हें कुछ फर्क नहीं पड़ता. इतने सालों बाद भी सिर्फ मूलधन देने के लिए इतना परेशान कर रहे हैं." ज्ञात हो कि, शाह ने भले पूरे पैसे 45 दिनों में दिलवाने का वादा किया है, मगर सच्चाई यह है कि वेरिफिकेशन के बाद सिर्फ मूलधन वापस दिया जाएगा न की ब्याज. जबकि उच्चतम न्यायलय का शुरुआती आदेश निवेशकर्ताओं को 15 फीसदी सूद समेत पैसे वापस करने का था. आज दस साल बाद भी लोग अपने मूलधन के लिए कतारों में खड़े हैं.