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अमृतपाल : पंजाब की त्रासदी या स्वांग

30 अक्टूबर 2022 को पंजाब के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर में अमृतपाल सिंह (बीच में). दुबई में एक दशक बिताने के बाद अमृतपाल अगस्त में भारत लौटा. अपनी वापसी के बाद की छोटी अवधि में, उसने खुद को सिख समुदाय का रक्षक बना लिया और खालिस्तान की मांग का सबसे स्पष्ट समर्थक बन गया. नरिंदर नानू/एएफपी/गैटी इमेजिस

23 फरवरी की दोपहर करीब 2 बजे लगभग आठ सौ जवानों की पंजाब पुलिस की एक टुकड़ी लाठियों से लैस हो कर अमृतसर के अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर लगे बैरिकेडों के पीछे मुस्तैद खड़ी थी. बैरिकेडों के दूसरी तरफ भी इतनी ही भीड़ थी. भीड़ में ऐसे लोग भी थे जिनके हाथों में कृपाण थे. ये लोग पालकी बनाई गई एक बस को घेरे हुए थे.

वहां राइफल से लैस मर्दों से घिरे वाहन के साथ चल रहा था 30 वर्षीय अमृतपाल सिंह. इससे पहले उसने पिछले छह महीनों तक राज्य का दौरा किया था और सिखों के लिए एक स्वतंत्र राज्य खालिस्तान की स्थापना की मांग कर रहा था. वह सिख धर्म के मूल उपदेशों को अपने की बात करता, जो और कुछ नहीं धर्म की उसकी अपनी परिभाषा थी.

चंद मिनटों में भीड़ की अग्रिम पंक्ति में खड़े कई निहंग सिखों ने बैरिकेडों को तोड़ दिया. उपलब्ध मीडिया फुटेज में देखा जा सकता है कि किस लाचारी से पुलिस भीड़ को रास्ता दे रही थी. इसके साथ ही, अमृतपाल और उसके हथियारबंद बंदूकधारी बस को ढाल के रूप में इस्तेमाल करते हुए उसके पीछे चले गए और पुलिस स्टेशन की बढ़ने लगे. जल्द ही, बस को घेरे वाली भीड़ ने पुलिस पर हमला कर दिया. फिर भी पुलिस ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की. हाथापाई में एक अधीक्षक समेत कम से कम छह पुलिसकर्मी घायल हो गए. अमृतपाल और उनके समर्थकों ने अगले कई घंटों तक स्टेशन पर कब्जा जमाए रखा, अंदर से भाषण देने और वहीं से मीडिया को संबोधित करने के लिए माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया. बस स्टेशन के बाहर खड़ी रही और पुलिस हाशिए पर.

3 नवंबर 2022 को पंजाब में मोहाली के पास देसु माजरा गांव में अमृत संचार के दौरान जरनैल सिंह भिंडरांवाले की तस्वीर पकड़े अमृतपाल. 1984 में भारतीय सेना द्वारा भिंडरांवाले की हत्या ने राज्य में एक दशक लंबे विद्रोह को जन्म दिया. भिंडरांवाले भी अमृत संचार का संचालन करता था और अमृतपाल खुद को भिंडरांवाले के उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने से हिचकिचाता नहीं है. संजीव शर्मा/हिंदुस्तान टाइम्स

इस घटना की वजह थी 16 फरवरी को अजनाला पुलिस स्टेशन में दायर एक प्रथम-सूचना रिपोर्ट जिसमें अपहरण और हमले के एक मामले में अमृतपाल, उसके पांच समर्थकों और लगभग बीस अन्य अज्ञात व्यक्तियों का नाम था. मामला सिख मदरसा दमदमी टकसाल (अजनाला) से जुड़े एक उपदेशक वरिंदर सिंह द्वारा दायर किया गया था. वरिंदर पहले अमृतपाल के समर्थक थे लेकिन हाल ही में वह अमृतपाल और उसके समूह "वारिस पंजाब दे" से अलग हो गए थे. दो दिन बाद पुलिस ने अमृतपाल के साथी लवप्रीत सिंह उर्फ तूफान को एफआईआर के सिलसिले में हिरासत में लिया था. लेकिन अमृतपाल कई दिनों तक खुला घूमता रहा.

घटना के बाद, 22 और 25 फरवरी के बीच, अमृतपाल ने कई इंटरव्यू और भाषण दिए जिसमें उसके और उसके समर्थकों के थाने में जमा होने के अलग-अलग कारण बताए. कुछ में अमृतपाल ने दावा किया कि वह गिरफ्तारी देने के लिए जा रहा था. दूसरों में उसने दावा किया कि लवप्रीत पर लगे आरोप बेबुनियाद थे और उसे पुलिस ने हिरासत में प्रताड़ित किया था और "वारिस पंजाब दे" अपने साथी की रिहाई के लिए पहुंचा था.

हालांकि इस घटना का विश्लेषण आने वाले महीनों में होगा लेकिन जो हुआ उसने एक राज्य के लिए सदमे की ऐसी लहरें पैदा की जो अभी भी एक ऐसे विद्रोह के घावों को भर नहीं सका है जो एक दशक से ज्यादा समय तक चला था और जिसमें हजारों मारे और गायब हो गए थे.

23 फरवरी 2023 को अमृतसर के पास अजनाला पुलिस स्टेशन में अमृतपाल सिंह के समर्थकों की पंजाब पुलिस के साथ झड़प हुई. अमृतपाल और उनके समर्थकों ने अपहरण के एक मामले में हिरासत में लिए जाने के बाद अपने एक सहयोगी लवप्रीत सिंह की रिहाई की मांग की थी. समीर सहगल /हिंदुस्तान टाइम्स

अमृतपाल को पिछले साल मार्च तक बहुत कम लोग जानते थे. वह दुबई में एक दशक बिताने के बाद अगस्त 2022 में भारत लौटा था. अपनी वापसी के बाद की छोटी अवधि में ही उसने खुद को सिख समुदाय का रक्षक बना लिया है और खालिस्तान की मांग का सबसे स्पष्ट समर्थक बन गया है. क्षेत्रीय और मुख्यधारा के मीडिया ने उसे पर्याप्त कवरेज दी है. अमृतपाल रूढ़िवादी सिख मदरसा दमदमी टकसाल के चौदहवें प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरांवाले के उत्तराधिकारी के रूप में खुद को मॉडल करता है.

1980 के दशक की शुरुआत में भिंडरांवाले ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर से एक समानांतर सरकार चलाई और कानून एवं व्यवस्था तथा राज्य मशीनरी पर कहर बरपाया. 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लूस्टार में भारतीय सेना स्वर्ण मंदिर में घुसी और भिंडरांवाले को मार दिया. इस हत्या के बाद पंजाब में उग्रवाद शुरू हो गया.

23 फरवरी की घटना से कई सवाल पैदा होते हैं. अमृतपाल के प्रति पुलिस के नरम रुख ने विश्लेषकों, सिख धर्मगुरुओं और आम लोगों को समान रूप से हैरान किया है. अजनाला की घटना के बाद शाम को अमृतपाल ने अपने समर्थकों और मीडिया के सामने ऐलान किया कि उसने अधिकारियों के साथ समझौता कर लिया है जिसके तहत भीड़ में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और लवप्रीत को अगले दिन रिहा कर दिया जाएगा.

अजनाला की घटना के एक दिन बाद मीडिया को संबोधित करते हुए राज्य के पुलिस महानिदेशक गौरव यादव ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया. "प्रदर्शन की इजाजत दी गई थी लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिबजी के पालकी साहिब की आड़ में पुलिस पर कायराना तरीके से हमला किया गया." उन्होंने कहा कि अगर पुलिस ने गोली चलाई होती तो “और समस्याएं पैदा होतीं. हमने पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति के कारण संयम से काम लिया है.”

अजनाला संघर्ष से एक महीने पहले, यादव ने केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में पुलिस प्रमुखों की एक राष्ट्रीय बैठक में अमृतपाल के उत्थान के बारे में एक चेताया था.

यादव के बयान के दो दिन बाद, भगवंत मान ने गुजरात में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने अजनाला की झड़प पर कहा कि "इतना बड़ा मुद्दा नहीं था, जैसा कि इसे बनाया गया था" और दावा किया कि "कुछ चंद लोग हैं जिन्हें विदेश से .... पाकिस्तान से पैसा मिलता है."

24 फरवरी 2023 को पंजाब के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर में अमृतपाल सिंह. छह महीने पहले देश में आने के बाद से, अमृतपाल ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह स्पेक्ट्रम के कट्टरपंथी छोर पर खुद को स्थापित कर रहा था और एक कट्टरपंथी सिख धर्म की वकालत कर रहा था. वह कदम-कदम पर भिंडरांवाले की नकल करता है. समीर सहगल /हिंदुस्तान टाइम्स

पुलिस के अलावा सिख धार्मिक नेतृत्व की प्रतिक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं. घटना में पवित्र पुस्तक के इस इस्तेमाल पर, जिसकी कई सिखों ने निंदा की थी, सिख धार्मिक नेतृत्व के उच्चतम सोपानों से दो दिन बाद तब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. सिख धर्म की सर्वोच्च पीठ अकाल तख्त ने घोषणा की कि वह विद्वानों और सिख संप्रदायों, अध्ययन केंद्रों और संगठनों के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित करेगी, जो "विरोध स्थलों, प्रदर्शनों और अन्य विवादित स्थान, जहां गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचने की आशंका बनी रहती है'' के मामले को देखेगी. सिख संस्थानों की देखरेख करने वाले शीर्ष निर्वाचित निकाय शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति, इसी तरह चुप थी जिसने बीतें महीनों में अमृतपाल के कार्यक्रमों में रसद देकर मदद की थी. सिख राजनीति का कट्टरपंथी तत्व जरूर एक निजी एजेंडे के लिए पवित्र किताब के इस्तेमाल से नाराज था और राज्य मशीनरी की असंबद्ध प्रतिक्रिया से हैरान था.

इस आवेशपूर्ण माहौल में राज्य की आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार, जो आमतौर पर आतंकवाद विरोधी नीतियों को धारधार बनाने के लिए तैयार रहती दिखती है, की चुप्पी गगनभेदी है. मुख्यमंत्री, भगवंत मान, जो गृह मामलों को भी देखते हैं, ने इस घटना को स्वीकार करने के लिए दो दिन का समय लिया, एक ट्वीट के जरिए जिसमें अमृतपाल का नाम नहीं था. अक्टूबर में एक संदेश को छोड़ कर, केंद्रीय गृह मंत्रालय भी अमृतपाल के प्रति आश्चर्यजनक रूप से सहिष्णु रहा है. कारवां ने पहले उल्लेख किया है कि कैसे बीजेपी "वारिस पंजाब दे" के संस्थापक दिवंगत अभिनेता दीप सिद्धू जैसी शख्सियतों की पीठ पर खालिस्तान के हौवे को पुनर्जीवित करती दिख रही है.

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यह हैरानी की बात नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकार साथ ही साथ सिख धर्मगुरुओं का नेतृत्व, चालीस साल पहले की गलतियों को दोहराते नजर आ रहे हैं. भिंडरांवाले ने 1977 में "संत" की उपाधि धारण की, जब उसे दमदमी टकसाल का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो सिख धर्म के सबसे प्रमुख मदरसों में से एक है. इसके तुरंत बाद, वह एक भिन्न मत वाले सिख संप्रदाय, संत निरंकारी और उनके प्रमुख, गुरबचन सिंह के साथ एक हाई-प्रोफाइल और जानलेवा धार्मिक संघर्ष में शामिल हो गया. अप्रैल 1980 में, गुरबचन की हत्या कर दी गई और भिंडरांवाले को साजिश में फंसा दिया गया. वह स्वर्ण मंदिर की चारदीवारी में जा छिपा, इस उम्मीद में कि पुलिस मंदिर के भीतर आने की हिम्मत नहीं करेगी. वह तब तक वहीं रहा जब तक कि केंद्रीय गृह मंत्री जैल सिंह उसके बचाव में नहीं आए और उसे गुरबचन की हत्या में किसी भी भूमिका से मुक्त नहीं कर दिया. इस घटना ने अचानक भिंडरांवाले को सिख कट्टपंथ का चेहरा बना दिया. उसने अकालियों को पछाड़ दिया था, जिन्होंने आधी सदी तक उस पद को संभाला था और दिल्ली का ध्यान खींचा था. निरंकारी के साथ संघर्ष ने एक पैटर्न स्थापित किया जिसे भिंडरांवाले ने सालों दोहराया : वह अपनी बयानबाजी के साथ हिंसा का प्रकोप भड़काता, धार्मिक प्रतीकवाद की शरण लेता और अंततः अधिकारियों द्वारा क्लीन चिट दी जाती.

अमृतपाल भी पंजाब के लोगों से जुड़े मुद्दों को उठाता है और उन्हें सिख धर्म और धार्मिक पहचानवादी राजनीति के एक कट्टरपंथी तनाव से भर देता है. उसके बयानों की अत्यधिक विवादास्पद प्रकृति को देखते हुए, जिनमें से बड़े हिस्से प्रभावी रूप से नफरती भाषण हैं, वह मुख्यधारा की क्षेत्रीय मीडिया और अब राष्ट्रीय मीडिया में बहुत जगह बना रहा है. सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म उसे दृश्यमान रहने में मदद करते हैं. पंजाब के राजनीतिक और धार्मिक संस्थानों के कुछ वर्गों से प्रत्यक्ष और गुप्त समर्थन उसे वैधता का एक लिबास देता है.

असली सवाल यह है कि उसे वास्तव में कितना जनसमर्थन मिला है. सभी संकेत, सारी पार्टियां, सुरक्षा बल और यहां तक कि पंजाब में कट्टरपंथी गुटों के नेता उससे सावधान हैं, खासकर 23 फरवरी की घटनाओं के बाद. उसकी अचानक उपस्थिति, भिंडरांवाले की विरासत की नकल करने के उसके जानबूझ कर किए गए प्रयास और उसके संदेश में निहित हिंसा उस राज्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है जो कम से कम दो दशकों से एक किस्म के मंथन से गुजर रहा है. मुख्यधारा के राजनीतिक दल, खासकर शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस स्व-निर्मित राजनीतिक जंगल में भटक रहे हैं. राज्य की भ्रष्ट पंथिक राजनीति के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है. इस मिश्रण में व्यापक बेरोजगारी और नशे की महामारी, किसान आंदोलन के बाद केंद्रीय प्रतिष्ठान से मोहभंग और एक कठोर धार्मिक पहचान से प्रभावित युवाओं की एक पीढ़ी शामिल है. यह चेतने का वक्त है. अमृतपाल के पास राज्य के मुद्दों को हल करने की कोई जादुई छड़ी नहीं है लेकिन जैसा कि पंजाब के इतिहास ने दिखाया है, माहौल यहां तेजी से बदल सकता है और 23 फरवरी की घटना आने वाले माहौल को बदल सकती है.

जरनैल सिंह भिंडरावाले कट्टरपंथी सिख मदरसे दमदमी टकसाल के चौदहवें प्रमुख थे. 1980 के दशक की शुरुआत में, भिंडरांवाले ने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर के भीतर से एक समानांतर सरकार चलाई, कानून और व्यवस्था और राज्य मशीनरी पर कहर बरपाया. रघु राय /द इंडिया टुडे ग्रुप/गेटी इमेजेज

अमृतपाल का जन्म 1993 में अमृतसर जिले की बाबा बकाला तहसील के जल्लूपुर खेड़ा गांव में हुआ था. वह तरसेम सिंह और बलविंदर कौर के तीन बच्चों में सबसे छोटा है. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उसने दसवीं कक्षा तक पढ़ाई की और फिर एक पॉलिटेक्निक संस्थान में दाखिला लिया. जबकि उसकी मां जल्लूपुर खेड़ा में रहती है, उसके पिता अपना समय भारत और दुबई के बीच बिताते हैं, जहां उनका परिवहन व्यवसाय है. 2012 में अमृतपाल अपने पिता के साथ काम करने के लिए दुबई चला गया लेकिन इस समय के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.

10 फरवरी 2023 को उसने अपने पैतृक गांव में एक समारोह में किरणदीप कौर से शादी की. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, उसकी पत्नी ब्रिटेन की प्रवासी भारतीय हैं. अमृतपाल ने मीडिया को बताया कि "उसकी शादी प्रवास से आवास यानी रिवर्स माइग्रेशन की मिसाल है" और वह और उसकी पत्नी अब पंजाब में रहेंगे. पिछले छह महीनों में अपने भाषणों में उसने अक्सर युवाओं से विदेश जाने से परहेज करने और इसके बजाए पंजाब में काम करने की अपील की है.

अमृतपाल 2012 से फेसबुक पर सक्रिय है. पिछले दिनों तक वह अपने सोशल-मीडिया प्रोफाइल पर पंजाब से संबंधित जिन मुद्दों के बारे में पोस्ट लिखता था उसमें धार्मिक रंग नहीं था. तब की अपनी तस्वीरों में व​ह सफाचट दाढ़ी, छोटे बाल, अक्सर कैजुअल टी-शर्ट और डेनिम पहने हुए दिखाता है. 2020 तक, जब उसने किसान आंदोलन के समर्थन में पोस्ट करना शुरू किया, उसकी कोई खास सोशल-मीडिया पहचान भी नहीं थी. वह दीप सिद्धू का मुखर समर्थक था और अक्सर फेसबुक लाइव और क्लब हाउस कार्यक्रमों सहित सोशल-मीडिया प्लेटफॉर्म पर उसके साथ जुड़ा रहता था. अमृतपाल की सोशल मीडिया पर फॉलोइंग तब काफी बढ़ गई जब उसने सिद्धू के साथ जुड़ना शुरू किया, खासकर, जब उसेने 26 जनवरी 2021 को ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में भड़की हिंसा में शामिल होने के आरोप में सिद्धू का मुखर रूप से बचाव किया.

अमृतपाल का दावा है कि सिद्धू के साथ उसका मजबूत संबंध था लेकिन दिवंगत अभिनेता के परिजन, जिसमें उसके भाई मनदीप भी शामिल हैं, ने कहा है कि दोनों कभी नहीं मिले. मनदीप ने मीडिया संगठनों को बताया कि एक समय पर सिद्धू ने अमृतपाल को सोशल मीडिया पर ब्लॉक कर दिया था. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, अमृतपाल ने इस आरोप का प्रतिकार करते हुए दावा किया कि सिद्धू अक्सर "सुरक्षा कारणों" से अपने करीबी विश्वासपात्रों के साथ ऐसा करते थे.

सिद्धू ने ही सितंबर 2021 में "वारिस पंजाब दे" बनाया. अगले कुछ महीनों में, जब पंजाब में चुनाव हुए, इस संगठन ने कट्टरपंथी सिमरनजीत सिंह मान और उनके शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के कुछ सदस्यों के लिए प्रचार किया. यह एक अलगाववादी पार्टी है जो अकाली दल से अलग हुए गुट के रूप में बनी है. सिमरनजीत वर्तमान में संगरूर से सांसद हैं.

फरवरी 2022 में एक कार दुर्घटना में सिद्धू की मृत्यु हो गई. इससे यह संगठन बिना नेतृत्व के रह गया. घटनाओं के एक विवादास्पद मोड़ में, 4 मार्च को, सिमरनजीत ने घोषणा की कि अमृतपाल को संगठन का नया प्रमुख नियुक्त किया गया है. इस घोषणा ने संगठन से जुड़े कई लोगों को हैरान कर दिया, खासकर तब जब अमृतपाल उस समय देश में भी नहीं था.

जबकि सिद्धू संगठन का संस्थापक था, इसका आधिकारिक प्रमुख उसका सहयोगी हरनेक सिंह उप्पल था, जिसे फौजी के नाम से भी जाना जाता था. फौजी और सिद्धू का एक अन्य करीबी रिश्तेदार, जो पहचान नहीं बताना चाहता था, ने पुष्टि की कि सिद्धू ने फौजी को अध्यक्ष के रूप में नामित किया था. फौजी ने मुझे बताया, "दीप सिद्धू संगठन के लिए ऐसा नाम चाहता था जो इसके नाम के साथ इसके आदर्श वाक्य को झलकाए." उसने कहा कि पंजीकरण के कागजात शुरू में वर्तनी की समस्या के कारण खारिज कर दिए गए थे. “इस प्रकार, नाम बदलकर पंज-आब (पांच नदियां) कर दिया गया. संगठन का पूरा नाम वारिस पंज-आब दे, सोशल एंड वेलफेयर सोसाइटी है और इसे 15 दिसंबर 2021 को पंजीकृत किया गया था.” फौजी ने मुझे बताया कि उसने ही मोहाली में पंजीकरण के लिए दस्तावेज जमा किए थे.

फौजी और उसके करीबी रिश्तेदार ने कहा कि सिमरनजीत की घोषणा ने उन्हें चौंका दिया. फौजी ने कहा, "मान ने घोषणा की कि पदाधिकारियों ने दुबई के अमृतपाल सिंह को अपना अध्यक्ष चुना है. हमारे संगठन के कुछ सदस्य मान की पार्टी से भी जुड़े थे लेकिन हमें न तो विश्वास में लिया गया और न ही हमसे सलाह ली गई.'' फौजी और करीबी रिश्तेदार के मुताबिक, सिमरनजीत ने सिद्धू के परिवार से कभी भी अमृतपाल को मुखिया बनाने की चर्चा नहीं की. फौजी ने यह भी कहा कि सिमरनजीत ने सिद्धू के मरने के बाद उसके परिवार से मिलने की भी जहमत नहीं उठाई.

फौजी ने मुझे बताया कि अमृतपाल के कब्जे के बाद, उन्होंने जुलाई 2022 में वारिस पंजाब दे सोशल वेलफेयर सोसाइटी, तलवारा, अमलोह, फतेहगढ़ साहिब के नाम से एक और संगठन बनाया और पंजीकृत किया. नतीजतन, अब एक जैसे नाम वाले दो संगठन हैं और तब से सिद्धू का परिवार मानता है कि अमृतपाल के नेतृत्व वाला वारिस पंजाब दे सिद्धू के संगठन का एक गुट है.

29 सितंबर 2022 को पंजाब के मोगा जिले के रोड गांव में एक कार्यक्रम में अमृतपाल सिंह. यह एक दस्तारबंदी कार्यक्रम था. यह घटना वारिस पंजाब दे के टूटे हुए गुट पर अपने आधिकारिक कब्जे की घोषणा थी. रोड भिंडरांवाले का पैतृक गांव भी है. एक्सप्रेस आर्काइव

रोड घटना के दौरान, भिंडरांवाले के खयालों की तरह, अमृतपाल ने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के हिंदू प्रवासियों को भी निशाना बनाया, उन पर ड्रग्स और सिगरेट बेचने का आरोप लगाया. जिसने राज्य में इसकी लत को बढ़ावा दिया. "अगर आप नहीं चाहते कि आपके गांव में ऐसी चीजें हों," उन्होंने दर्शकों से आग्रह किया, "कार्रवाई करें." बाद के भाषणों में, अमृतपाल ने सिखों से "बाहरी लोगों" को जमीन न बेचने के लिए कहा. रोड घटना के बाद राज्य के वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने संवाददाताओं से कहा कि अमृतपाल के भड़काऊ भाषण के लिए उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए जाएंगे. यह अज्ञात है कि क्या कभी जांच शुरू की गई थी, और भगवंत मान ने सवालों का जवाब नहीं दिया.

अगले चार हफ्तों के लिए, अमृतपाल ने वारिस पंजाब दे की वैधता और फैन फॉलोइंग का इस्तेमाल करते हुए, सार्वजनिक और निजी कार्यक्रमों में भाषण देते हुए, राज्य के कई स्थानों के चक्कर लगाए. उसने खुद को भिंडरावाले जैसे दिखने वाले साज—सामानों से घेर लिया - वह पारंपरिक सिख पोशाक में एक दर्जन से ज्यादा लोगों के दल के साथ घूमता, जो बंदूकें और कृपाण और स्टील के तीरों से लैस थे. उसके भाषण तेजी से सांप्रदायिक और विभाजनकारी होने लगे, उदारतापूर्वक खालिस्तान के आह्वान के साथ, हिंसा के अंतर्निहित खतरों के साथ. नतीजतन, 7 अक्टूबर को उसका ट्विटर अकाउंट रोक दिया गया. उसके एक इंस्टाग्राम अकाउंट को दिसंबर में ब्लॉक कर दिया गया था, जबकि दूसरे अकाउंट को अजनाला पुलिस स्टेशन की घटनाओं के तुरंत बाद ब्लॉक कर दिया गया था.

फरीदकोट जिले में बहबल कलान हत्याकांड की सातवीं वर्षगांठ मनाने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था. 2015 में, बेअदबी की एक कथित घटना के विरोध में पुलिस ने दो लोगों की हत्या कर दी गई थी. अमृतपाल ने कार्यक्रम में मंच लेते हुए कहा, "हमें अपने सिख हुकूमत" की घोषणा करनी चाहिए. “हमने डेढ़ सौ साल की गुलामी झेली, पहले अंग्रेजों ने और फिर हिंदुओं ने. हमने गुलाम मानसिकता विकसित कर ली है.''

लगभग उसी समय, अमृतपाल ने राज्य के ईसाई समुदाय को निशाना बनाना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया पर सामने आए उसके कुछ वीडियो में, उसे गांव के निवासियों से गांव में ईसाई पा​दरियों के घुसने पर ही प्रतिबंधित लगाने के लिए कहते देखा जा सकता है. एक अन्य वीडियो में, जिसने ईसाई समुदाय में एक बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया, वह पूछता है, "यीशु, जो खुद को नहीं बचा सके, बाकी सभी को कैसे बचाएंगे?" उसके बयानों ने 17 अक्टूबर को जालंधर में पंजाबी ईसाइयों द्वारा उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया. अधिकारियों ने जब समुदाय को मामले की जांच करने का भरोसा दिया तब जाकर विरोध प्रदर्शन बंद हुआ. लेकिन अमृतपाल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.

पंजाब के ईसाई समुदाय के सदस्यों ने 17 अक्टूबर 2022 को जालंधर में पीएपी चौक पर समुदाय के खिलाफ अमृतपाल सिंह की अभद्र भाषा का विरोध किया. पुलिस अधिकारियों ने चार घंटे के बाद प्रदर्शनकारियों को अमृतपाल की जांच करने का आश्वासन देकर विरोध को शांत कर दिया. लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. एएनआई फोटो

इसके बाद 4 नवंबर को शिव सेना (टकसाली) के एक नेता सुधी सूरी को अमृतसर में मजीठा रोड पर एक मंदिर के प्रबंधन का विरोध करते हुए दिनदहाड़े गोली मार दी गई थी, जहां कुछ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को कथित रूप से खंडित किया गया था. सांप्रदायिक मुद्दों को लेकर सूरी का अक्सर स्थानीय लोगों से टकराव होता था. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, " सूरी सिख 'कट्टरपंथियों' के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं और इन्होंने अतीत में विवादों को जन्म दिया है." स्थानीय पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में हुई हत्या भी कैमरे में कैद हो गई. हमलावर की पहचान संदीप सिंह के रूप में हुई, जिसकी सोशल-मीडिया फीड खालिस्तान समर्थक सामग्री से भरी हुई थी. कुछ घंटों बाद, एक वीडियो सामने आया जिसमें संदीप को अमृतपाल से मिलते हुए और शूटिंग से कुछ दिन पहले उनका आशीर्वाद लेते हुए देखा जा सकता है. स्थानीय मीडिया ने हत्या को "सिख गनमैन" द्वारा मारे गए "हिंदू नेता" के रूप में पेश किया.

अमृतपाल की विवादास्पद लोकप्रियता का एक और पैमाना सूरी की हत्या के तुरंत बाद आया. 23 नवंबर को अमृतपाल ने अकाल तख्त से खालसा वाहीर नामक पहले चरण का शुभारंभ किया. अभियान अमृत संचार और नशा विरोधी गतिविधि कार्यक्रम का मिश्रण था. पहला चरण 21 दिसंबर को आनंदपुर साहिब में खत्म हुआ, और एक दर्जन से अधिक स्थानों में फैला हुआ था. अभियान के कई वीडियो में भारी हथियारों से लैस सुरक्षाकर्मियों से घिरे अमृतपाल को खालिस्तान समर्थक नारे लगाते और सिख युवाओं से खुद को हथियारबंद करने का आग्रह करते हुए दिखाया गया है. अमृतपाल का नशे के खिलाफ अभियान भी युवाओं के बीच उसकी लोकप्रियता का एक अहम कारण है. कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल दोनों राज्य में नशीले पदार्थों की महामारी में विभिन्न बिंदुओं पर फंसे हैं; सत्तारूढ़ आप ने इस मुद्दे के प्रबंधन में कोई बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है, एक शून्य को गहरा कर दिया है जिसे अमृतपाल जैसा कोई व्यक्ति भुना सकता है.

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अजनाला झड़प से पहले भी खालसा वाहीर के दौरान तीन घटनाएं हो चुकी हैं ऐसा लगता है कि अभियान ने अमृतपाल के धार्मिक उत्साह की चमक को हटा दिया है. दो अलग-अलग मौकों पर उसके अनुयायियों ने  गुरुद्वारों में तोड़फोड़ की. 9 दिसंबर को, उसके अनुयायियों ने कपूरथला जिले के एक गांव बिहारीपुर के एक गुरुद्वारे से बैठने की व्यवस्था को हटा दिया और आग लगा दी. चार दिन बाद, उन्होंने जालंधर में गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा में भी यही किया. दोनों ही मामलों में अमृतपाल के अनुयायियों ने दावा किया कि गुरुद्वारों में बैठने की व्यवस्था ने रेहट मर्यादा यानी सिख आचार संहिता का उल्लंघन किया है. अमृतपाल और उसके समर्थकों के अनुसार, कोई भी गुरु ग्रंथ साहिब के समान स्तर पर नहीं बैठ सकता था और एक ही ऊंचाई पर कुर्सियों की लगाना पवित्र किताब का अपमान है.

18 दिसंबर को, अमृतपाल के अनुयायियों ने शहीद भगत सिंह नगर जिला के गरचा गांव के एक गुरुद्वारे में स्थापित एक स्थानीय परिवार के पूर्वजों का सम्मान करते हुए बनी स्मारक संरचना को गिरा दिया. समाचार रिपोर्टों के अनुसार, अमृतपाल ने कहा कि "गुरुद्वारे में संरचना स्थापित करने के लिए किसी भी व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं थी."

तीनों घटनाओं ने स्थानीय लोगों में आक्रोश पैदा कर दिया, जिसमें निवासियों ने अमृतपाल और उसके समर्थकों को गुंडा करार दिया. दोनों गांवों के कई निवासियों ने बताया कि गुरुद्वारों में नियमित रूप से आने वाले लोगों के लिए कुर्सियों को रखा गया था, जिनमें से अधिकांश काफी बुजुर्ग हैं और घुटने की समस्या या गठिया से पीड़ित हैं. स्थानीय प्रचारकों ने भी उनके पवित्र स्थलों की तोड़-फोड़ पर नाराजगी जताई. सिख विद्वानों और उपदेशकों ने धार्मिक मामलों पर अमृतपाल के अधिकार पर सवाल उठाया.

जालंधर में श्री गुरु ग्रंथ साहिब सतकार कमेटी के अध्यक्ष सुखजीत सिंह खोस ने मुझसे कहा, "यह बिल्कुल गलत है, एक व्यक्तिगत लड़ाई को पूरे समुदाय की लड़ाई बनाना." उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्रता और अर्थ के बारे में अमृतपाल की समझ पर सवाल उठाया. "हम गुरु ग्रंथ साहिब से आशीर्वाद लेकर काम शुरू कर सकते हैं लेकिन इसे व्यक्तिगत हितों की सेवा के लिए ढाल के रूप में उपयोग नहीं कर सकते."

वास्तव में, पंजाब भर में विभिन्न गुटों ने, आमतौर पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होकर, अमृतपाल के स्टंट की स्पष्ट रूप से निंदा की है.

प्रदेश बीजेपी के सदस्य सरचंद सिंह ख्याला दमदमी टकसाल के प्रवक्ता और अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के मीडिया सलाहकार हुआ करते थे. उन्होंने भी कुक्की और खोस की ही बात दोहराई.

मुख्यधारा के राजनेताओं ने भी अमृतपाल के बारे में चिंता व्यक्त की लेकिन केवल एक-दूसरे पर उंगली उठाने के लिए. अक्टूबर में अमरिंदर सिंह- पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री, जिन्होंने हाल ही में कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए- ने सत्तारूढ़ आप सरकार से राज्य में बढ़ती खालिस्तान समर्थक बातचीत के खिलाफ स्पष्ट रुख अपनाने को कहा. “हाल ही में दुबई से पंजाब आए इस युवक के पीछे कौन सी ताकतें हैं?” अमरिंदर पूछते हैं.

23 फरवरी 2023 को पंजाब में अमृतसर के पास अजनाला पुलिस स्टेशन में अमृतपाल सिंह और उसके समर्थक. पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए अमृतपाल द्वारा गुरु ग्रंथ साहिब को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की विद्वानों, सिख धर्मगुरुओं, पुलिस और सभी राजनेताओं ने निंदा की. पीटीआई

एक और सवाल पूछा जा रहा है कि सुरक्षा बल अमृतपाल के खिलाफ कार्रवाई करने में क्यों हिचकिचाते हैं. सुखजिंदर रंधावा, जो पिछली कांग्रेस सरकार में उपमुख्यमंत्री थे, ने कहा कि “जबकि अमृतपाल खुले तौर पर खालिस्तान के बारे में बात कर रहा है और आजादी की मांग और विभिन्न धर्मों के खिलाफ भाषण दे रहा है, यह राज्य स्तर पर आप सरकार और केंद्र में बीजेपी सरकार है. केंद्र स्तर को यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि वे उसके खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हैं.”

अमृतसर की सीमा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक मोहनीश चावला ने मुझे बताया कि अमृतपाल और उसके लोग "चाहते थे कि इस तरह का उपद्रव किया जाए और फिर हमें बेअदबी के लिए दोषी ठहराया जाएगा." चावला ने कहा कि अमृतपाल ने दावा किया था कि वह गिरफ्तारी देगा. "उसने सार्वजनिक रूप से घोषणा की और पुलिस ने भी उससे बात की, जिसमें उसने आश्वासन दिया कि वह शांतिपूर्ण बातचीत के लिए आएगा- पुलिस जहां भी रुकने को कहेगी, वह रुक जाएगा. गुरु ग्रंथ साहिब को साथ लाकर, उसने हिंसा करने के लिए हर चीज की योजना बनाई थी.

अमृतपाल को जिन राजनीतिक खिलाड़ियों का समर्थन हासिल है, उनमें से एक वर्ग सिमरनजीत एसएडी (ए.) का है. ऐसा लगता है कि सिमरनजीत एकमात्र कट्टरवादी हैं जिसने अमृतपाल को मुखर और ठोस समर्थन दिया है. जब मैंने उनसे बात की, तो अमृतपाल पर मेरे सवालों का जवाब देने के बजाए, उन्होंने मुझे बीजेपी के बारे में लिखने के लिए कहा. "आपको हिंदुत्व उभार के बारे में चिंतित होना चाहिए," उन्होंने कहा. "2002 में, मुसलमानों को इतना नुकसान हुआ, भारतीय सेना द्वारा चित्तीसिंहपुरा में पैंतीस सिख मारे गए. आप बीजेपी और कश्मीर के बारे में क्यों नहीं लिखते? आप मोदी के बारे में क्यों नहीं लिखते?”

अमृतपाल के बारे में दक्षिणपंथी हलकों में बात की जा रही है, खासकर पंजाब के धार्मिक-राजनीतिक क्षेत्र में शामिल लोग इन चर्चाओं में शामिल हैं. ऐसे कई लोगों से मैंने बात की, उन्होंने कहा कि वे राज्य और केंद्र सरकार द्वारा दीवार पर लिखी इबारत को देखने से इनकार करने से हैरान हैं. उनमें से ज्यादातर अमृतपाल की धार्मिक साख के प्रति काफी तिरस्कारपूर्ण थे. धार्मिक और राजनीतिक कट्टरपंथियों के साथ मेरी बातचीत का एक और दिलचस्प पहलू यह था कि लगता है कि सिमरनजीत को छोड़ कर, अमृतपाल ने पुराने रक्षकों तक पहुंचने या भाईचारा बनाने या गठजोड़ करने का कोई प्रयास नहीं किया गया.

अमरीक सिंह अजनाला दमदमी टकसाल से टूटे गुट के प्रमुख हैं. अजनाला में झड़प की शुरुआत करने वाली प्राथमिकी के शिकायतकर्ता वरिंदर उनके संगठन से जुड़े थे. जब मैंने पहली बार अजनाला से पिछले साल के अंत में बात की, तो उन्होंने मुझे बताया कि वह अमृतपाल को नहीं जानते हैं और न ही उससे कभी मिले हैं. वह अमृतपाल के सांप्रदायिक कटुता को खासतौर पर खारिज करते थे. उन्होंने कहा, ''कोई भी धर्म बुरा नहीं होता. हर धर्म में लोग अच्छे या बुरे हो सकते हैं. मैंने न तो कोई विवादित मुद्दा उठाया है और न ही ऐसा करने पर सहमत हूं.'' उन्होंने कहा कि सिख धर्म के खिलाफ बात करने वालों की भी काउंसलिंग की जा सकती है या कानूनी रूप से निपटा जा सकता है.

अजनाला पुलिस स्टेशन में अपने समर्थकों के साथ अमृतपाल सिंह. अमृतपाल और उसके समर्थक पुलिस से भिड़ गए, कई घंटों तक स्टेशन पर कब्जा जमाए रखा. अमृतपाल ने स्टेशन के अंदर से भाषण दिया, जबकि पुलिस हाशिए पर खड़ी रही. उसके प्रति पुलिस के नरम रवैये ने विश्लेषकों, सिख धर्मगुरुओं और आम लोगों को समान रूप से हैरान किया है. समीर सहगल /हिंदुस्तान टाइम्स

कई पूर्व खालिस्तान समर्थकों, जैसे दलजीत सिंह बिट्टू, एक पूर्व आतंकवादी ने अमृतपाल पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हरपाल सिंह चीमा एक कट्टरपंथी संगठन दल खालसा का प्रमुख है, जिसको लेकर अमृतपाल ने कुछ भद्दी टिप्पणी की हैं. "खड़े होकर बड़ी-बड़ी बातें करना बहुत आसान है," चीमा ने मुझसे कहा. "बलिदान करना पड़ता है और मामलों में फंसने और राज्य के साथ उलझने के बाद साहस की परीक्षा होती है." पिछले साल के अंत में जब मैंने पहली बार चीमा से बात की तो उसने मुझसे कहा कि कोई भी पंजाब को उग्रवाद के दिनों में वापस नहीं ले जाना चाहता है और अमृतपाल जैसे नवयुवक के बयान राज्य को उस तरह की उथल-पुथल में वापस नहीं ले जा सकते हैं.

चीमा ने अमृतपाल के पीछे एक छिपा हुआ हाथ देखा. "यह एक मास्टर प्लान है, और उसे संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले की वापसी के रूप में पेश किया जा रहा है, उसके जीवन की सभी प्रमुख घटनाओं की नकल करते हुए, जिसमें स्वर्ण मंदिर की परिक्रमा, दस्तारबंदी, एक खाट का इस्तेमाल करना, बच्चों के साथ बातचीत करना, तौर-तरीके और तस्वीरें शामिल हैं, जो युवाओं और लोगों के दिमाग पर छपी हुई हैं. कुक्की को भी अमृतपाल के अचानक बढ़ने पर शक हो गया था. उसने मुझसे कहा, "जो कुछ भी हो रहा है उसका वैश्विक विषय 2024 का चुनाव है." "दोनों, केजरीवाल और मोदी का भारतीयों के कल्याण से जुड़े ज्वलंत मुद्दों को ढकने के लिए धार्मिक उत्साह और धार्मिकता का इस्तेमाल करने का एक समान नजरिया है." एक अन्य कट्टरपंथी सिख नेता, जो अमृतसर में स्थित है और अपनी पहचान नहीं बताना चाहता था, ने चीमा की बात को ही दोहराया. "असली असली है और नकली नकली है, और एक दिन वह बेपर्दा होगा, और लोगों को पता चल जाएगा," उसने कहा. फर्क सिर्फ इतना है कि उसके आसपास के लोग जो हथियार ले जा रहे हैं, वे लाइसेंसशुदा हैं और भारत में बने हैं.”."