अयोध्या के नाराज साधु बढ़ा सकते हैं बीजेपी की मुश्किलें

अयोध्या के तापसी छवानी मंदिर के महंत परमहंस दास 1 अक्टूबर से भूख हड़ताल कर रहे हैं. उनकी मांग है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में कानून पारित कर राम मंदिर निमार्ण के अवरोधों को दूर करें.

लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को फिर से ताजा करना चाहती है. लेकिन शहर के साधु, जो बीजेपी का साथ देते रहें हैं, पार्टी की मंदिर नीति की हवा निकालते दिख रहे हैं. 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के संगठन विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर निर्माण का रोडमैम तैयार करने के घोषित उद्देश्य के साथ दिल्ली के कार्यालय में बैठक बुलाई. इस बैठक में परिषद से जुड़े 50 साधुओं ने हिस्सा लिया लेकिन अयोध्या के सिर्फ 5 साधु ही बैठक में उपस्थित थे.

मंदिर मुद्दे पर शहर के साधुओं ने वीएचपी से अलग अपना आंदोलन शुरू कर दिया है. रामघाट स्थित तापसी छावनी मंदिर के महंत परमहंस दास, मंदिर निर्माण की मांग को लेकर 1 अक्टूबर से भूख हड़ताल पर बैठे हैं. उनकी मांग है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संसद में कानून पास कर राम मंदिर निर्माण की सभी अड़चनों को दूर करें. मंदिर के पास भूख हड़ताल की जगह पर ढेरों साधु जमा होते हैं और बहुत से साधु बीजेपी के खिलाफ नारेबाजी करते हैं. साधुओं के आंदोलन ने वीएचपी के भीतर हड़कंप मचा दिया है और बीजेपी के सामने महत्वपूर्ण आधार के खिसक जाने का खतरा है.

चार साल से वीएचपी के सक्रिय समर्थक रहे परमहंस दास से मैंने फोन पर बात की. वह कहते हैं, ‘‘हमारी मांग बिल्कुल सरल है. कार्यकाल के खत्म होने से पहले बीजेपी मंदिर निर्माण के अपने चुनावी वादे को पूरा करे. हमें लगता है कि और अधिक प्रतीक्षा करने से कुछ मिलने-विलने वाला नहीं है. कुछ ही महीनों बाद चुनावी आचार संहिता लागू हो जाएगी और बीजेपी एक बार फिर राम मंदिर के निर्माण के वादे के साथ लोगों से वोट मांगेगी. इसलिए मैंने प्रतीक्षा न करने का निर्णय लिया है और भूख हड़ताल कर रहा हूं.’’

अयोध्या के सबसे शक्तिशाली निर्वाणी अखाड़ा के प्रमुख धरम दास का कहना है कि इस बवाल के लिए बीजेपी जिम्मेदार है. ‘‘मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और बीजेपी, वीएचपी और आरएसएस के लोग मंदिर का मामला उठा कर अपना अभियान तीव्र कर रहे हैं. उन लोगों को पता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक सरकार कुछ नहीं कर सकती, फिर भी लोगों की भावनाओं को भड़का रहे हैं. लेकिन साधुओं को हमेशा मूर्ख नहीं बनाया जा सकता. साधुओं को लगता है कि उनके साथ छल हुआ है.’’

उनका कहना है कि साधुओं के गुस्से के डर से वीएचपी खुले में मीटिंग तक नहीं कर सकी और उसे दिल्ली में अपनी मीटिंग बुलानी पड़ी. वीएचपी की केन्द्रीय समिति ‘केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल’ के सदस्य होने के बावजूद धरम दास ने दिल्ली की बैठक में भाग नहीं लिया.

1984 से जबसे वीएपी ने हिन्दुओं के राजनीतिक मोबलाइजेशन के लिए राम जन्मभूमि मामले को केन्द्रीय मुद्दा बनाया है साधुओं के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण रहे हैं. 1980 के दशक में उसके इस अभियान को बहुत थोड़े साधुओं का समर्थन मिला और स्थानीय साधुओं ने बहुत कम साथ दिया. 1990 में जब लालकृष्ण आडवाणी ने ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ के नारे के साथ देश भर में रथ यात्रा निकाली तब जाकर वीएचपी को अयोध्या में पैर जमाने का मौका मिला.

जिस गठजोड़ के दम पर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराई गई वह अधिक समय तक बरकरार नहीं रह सका. 1990 के मध्य तक अयोध्या के साधु विभाजित हो गए. अधिकांश साधु अपने अपने कामों में लग गए. कोई जमीन के लेनदेन का अपना काम करने लगा तो कई बीजेपी के साथा साथ कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के नेताओं पर अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगे.

परमदास ने मुझे बताया कि 2014 के लोक सभा चुनावों के लिए जब बीजेपी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में सामने किया तो अयोध्या के साधु फिर एक हो गए और वीएचपी के प्रभाव में आ गए. वह कहते हैं, ‘‘अयोध्या में राम मंदिर बनाने का वादा कर मोदी सत्ता में आए लेकिन उन्होंने इस दिशा में कोई काम नहीं किया. अधिकतर साधुओं की यही शिकायत है. सिर्फ वे साधु जिन्हें लगता है कि वीएचपी में बने रहने से कुछ मिल सकता है, आज इससे जुड़े हुए हैं. मोदी ने तो आज तक अयोध्या की यात्रा नहीं की. वीएचपी से प्रवीण तोगड़िया को हटाने में भी मोदी का हाथ था. तोगड़िया राम मंदिर का वादा पूरा करने की मांग सरकार से कर रहे थे.’’

एक वक्त वीएचपी के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे तोगड़िया मोदी के आज बड़े आलोचक हैं. साधुओं को एक साथ रखने में वर्तमान वीएचपी नेतृत्व की असफलता पर उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. तोगड़िया ने मुझसे फोन पर कहा, ‘‘1984 से आज तक हुईं वीएचपी की सभी 15 धर्म संसदों में मंदिर निर्माण के लिए कानून पास करने की मांग का प्रस्ताव पारित हुआ है. अब जबकि बीजेपी के पास लोक सभा में पूर्ण बहुमत है तो इस बारे में कानून पास करने और इस मांग को पूरा करने से उसे कौन रोक रहा है.’’