कांग्रेस की हार का कारण बताने वाला एक गुमनाम खत

गुमनाम खत (नोट) के अनुसार, कांग्रेस प्रसार समिति ने विज्ञापन एजेंसियों का चयन करने में आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया. टी नरायण/ब्लूमबर्ग /गैटी इमेजिस

हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के कारणों का खुलासा धीरे-धीरे हो रहा है. इसी कड़ी में एक गुमनाम खत (नोट) में पार्टी के विज्ञापन अभियान और पार्टी कार्यकर्ताओं को पार्टी की हार के लिए जिम्मेदार बताया गया है. जून माह से यह गुमनाम नोट सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. इस खत में कांग्रेस के प्रचार अभियान की प्रमुख कमजोरियों का उल्लेख है. नोट में विज्ञापन एजेंसियों के चयन की अपारदर्शी प्रक्रिया, कमजोर प्रचार के कारण पार्टी के चुनावी वादों का लोगों तक न पहुंच पाना और लक्षित समूह तक पहुंचने में विज्ञापनों की असफलता की ओर इशारा है.

अगस्त 2018 में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (एआईसीसी) ने लोकसभा चुनावों के लिए तीन समितियों- 9 सदस्यीय कोर समूह समिति, 13 सदस्यीय प्रचार समिति और 19 सदस्यीय घोषणा पत्र समिति- का गठन किया था. उपरोक्त नोट में प्रचार समिति के कामकाज पर मुख्य तौर पर सवाल खड़े किए गए हैं. उस नोट में लिखा है, “मीडिया में विज्ञापनों के कार्यान्वयन के लिए एजेंसियों के चुनाव में आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया एवं मनमाने तरीके से चयन कर प्रचार समिति को बता दिया गया.”

कांग्रेस के कई नेताओं ने मुझे बताया कि यह आंतरिक नोट पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को एक ऐसी आंतरिक प्रक्रिया के तहत दिया गया है जिसमें शिकायतकर्ता के नाम का उल्लेख नहीं हो सकता और इसलिए मैं इस नोट के लेखकों की पहचान नहीं कर सका. हालांकि कई कांग्रेस नेताओं ने मुझसे पुष्टि की कि उन्होंने यह नोट देखा है और अब यह पार्टी के व्हाट्सएप में शेयर किया जा रहा है. पार्टी के संचार विभाग, प्रसार विभाग, पार्टी नेता और लोकसभा अभियान में शामिल विज्ञापन निर्माताओं ने उस नोट में बताई गई चिंताओं की पुष्टि की. इन लोगों ने प्रचार अभियान की कमजोरियों के बारे में पार्टी की उदासीनता के बारे में भी मुझसे शिकायत की.

चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी की प्रचार समिति को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई थीं. खास तौर पर उसे कांग्रेस के प्रचार नारों को बनाने और उनका डिजाइन तैयार करने, पोस्टर और होर्डिंग तैयार करने और टीवी, प्रिंट, डिजिटल और रेडियो जैसे माध्यमों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर प्रचार करने का काम सौंपा गया था. विज्ञापन की दुनिया में इस काम को “मीडिया कार्यान्वयन” कहा जाता है. इस आंतरिक नोट के अनुसार प्रसार समिति ने विज्ञापन एजेंसियों का चयन करने में आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया.

प्रचार समिति के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर मुझसे बात की. क्रिएटिव एजेंसी के काम के लिए विज्ञापन एजेंसियों की बोलियों के आधार पर उनको चिन्हित और बाद में चयनित किया गया.

चयन प्रक्रिया के बाद प्रचार समिति ने मुंबई की मीडिया एवं संचार कंपनी ‘परसेप्ट’ का राष्ट्रीय स्तर पर क्रिएटिव एजेंसी के रूप में चयन किया और गुजरात की ‘निकसुन ऐड वर्ल्ड’ को क्षेत्रीय स्तर पर क्रिएटिव प्रचार का जिम्मा दिया.

मैंने प्रचार समिति के कई सदस्यों से इस चयन प्रक्रिया के बारे में बात की लेकिन ये सभी लोग जवाब देने से बचते रहे और इस वजह से इस बारे में अधिक स्पष्टता नहीं है. कांग्रेस संचार विभाग के एक सदस्य ने मुझे बताया कि कांग्रेस पार्टी ने पिछले लोकसभा चुनावों के लिए इसी प्रक्रिया के तहत विज्ञापन एजेंसी का चयन किया था. विज्ञापन एजेंसियां विज्ञापन की दरों के संबंध में मीडिया संस्थानों से बात करती हैं. उस सदस्य ने मुझे बताया कि इस साल हुए चुनावों में “पहली बार इस प्रक्रिया को नहीं अपनाया” गया.

प्रचार प्रसार विभाग के उस सदस्य के अनुसार, “प्रचार समिति में मीडिया कार्यान्वयन के लिए एजेंसियों का चयन करने के लिए उपसमिति का गठन किया था.” सदस्य ने दावा किया कि उसी उपसमिति ने विज्ञापन दरों के संबंध में मीडिया संस्थानों से सौदेबाजी की थी. उस नोट में लिखा है कि मीडिया एजेंसियों के चयन के लिए आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. उस नोट में कहा गया है कि पूर्व में जो प्रक्रिया स्थापित की गई थी उसका पालन क्रिएटिव एजेंसी के चयन के लिए तो किया गया परंतु विज्ञापन एजेंसियों का चयन मनमाने ढंग से कर उसे प्रचार समिति को बता दिया गया.

संचार विभाग के सदस्य ने मुझे बताया, “मीडिया संस्थाओं ने विज्ञापन दरों का काम, कार्यान्वयन एजेंसियों के दखल के बिना उपसमिति को प्रत्यक्ष तौर पर दे दिया था. इसका भुगतान एआईसीसी ने मीडिया संस्थानों को सीधे तौर पर किया था. कार्यान्वयन एजेंसियों का काम विज्ञप्ति को मीडिया हाउस को भेजना था और उन्हें किसी विशेष विज्ञापन को विशेष संस्करण में छापने का निर्देश देना था.

चुनाव परिणाम आए एक महीने से अधिक हो गया है. मैंने जिन कांग्रेस नेताओं से बात की उन लोगों ने हार के पीछे कारणों के बारे में विरोधाभासी बातें कीं. ऐसा लग रहा था कि वे लोग एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ना चाहते हैं. उदाहरण के लिए प्रचार समिति के सदस्य ने उपसमिति होने की बात का खंडन किया और बताया कि रोहन गुप्ता और अहमद पटेल ने विज्ञापन दरों की सौदेबाजी की थी. पटेल कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्य और गुजरात से पार्टी के राज्यसभा सांसद हैं और गुप्ता कांग्रेस पार्टी के संचार विभाग के मीडिया कोऑर्डिनेटर हैं.

गुप्ता का नाम उस आंतरिक नोट में प्रमुखता से आया है. नोट में लिखा है, “विभिन्न समाचार पत्रों और टीवी चैनलों आदि के लिए विज्ञापन दरों की योजना और सौदेबाजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से श्री रोहन गुप्ता ने की थी.” नोट में आगे लिखा है, “कांग्रेस से प्रचार का ठेका लेने के लिए प्रारंभ में लिओ बर्नेट और एफसीबी भुल्का ने बोली लगाई थी, इसके बावजूद कांग्रेस ने इन दोनों से छोटी एजेंसियों को प्रचार कार्यान्वयन के लिए चयनित किया. इसके विपरीत बीजेपी ने यह काम मैडिसन वर्ल्ड को सौंपा था जिसका सालाना व्यवसाय 5000 करोड़ रुपए का है और जिस की टीम में लगभग 600 लोग हैं. जिन मीडिया संस्थानों में पार्टी ने टीवी, रेडियो और समाचार पत्रों के विज्ञापन किए वहां उसे बीजेपी से 4 गुना अधिक भुगतान करना पड़ा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बीजेपी की ओर से मैडिसन वर्ल्ड ने सौदेबाजी की थी जिसके पास लागत कम करने की क्षमता थी. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से रोहन गुप्ता ने दरों की सौदेबाजी की थी.”

संचार विभाग और प्रचार विभाग के सदस्यों ने पुष्टि की है कि उन लोगों ने वह आंतरिक नोट देखा है लेकिन इन्होंने उसमें लगे आरोपों का खंडन किया है. संचार विभाग के सदस्य का कहना है, “उस नोट पर लिखी 90 प्रतिशत बातें गलत है.” उस सदस्य ने दावा किया कि उपसमिति ने पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया था क्योंकि वह प्रत्यक्ष तौर पर मीडिया घरानों से सौदेबाजी कर रही थी और इन वार्ताओं में कोई मध्यस्थ शामिल नहीं था.” इसी बीच प्रचार समिति के सदस्य ने दावा किया कि “सदस्यों का संस्थानों से प्रत्यक्ष बात करना, लागत कम करने के उपाय के लिए लिया गया निर्णय था.” उसने कहा, “कांग्रेस ने नीतिगत निर्णय किया था क्योंकि राजस्थान में हुए विधानसभा चुनाव में इसी का पालन किया गया था और इसे रोहन गुप्ता ने अमली जामा पहनाया था.” गुप्ता ने नोट में लगाए गए आरोपों का खंडन किया जिसमें विज्ञापन दरों की वार्ता उनके द्वारा किए जाने की बात है लेकिन उन्होंने आगे किसी भी बात पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

नोट में पांच एजेंसियों का उल्लेख है जो मीडिया कार्यान्वयन में शामिल थीं और कहा गया है कि इनमें से तीन ने सही काम नहीं किया. प्रचार समिति ने राष्ट्रीय प्रिंट मीडिया और क्षेत्रीय टेलीविजन मीडिया में विज्ञापन की योजना बनाने और कार्यान्वयन के लिए दिल्ली की गोल्डन रैबिट कम्युनिकेशन का चयन किया था. साथ ही गुजरात की एक्टिव मीडिया को रेडियो विज्ञापन और क्षेत्रीय प्रिंट मीडिया का जिम्मा दिया गया था. इस नोट में दोनों कंपनियों के चयन की आलोचना की गई है और कहा गया है कि इनके पास राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव प्रचार का अनुभव और संसाधन नहीं था.

नोट में लिखा है, “गोल्डन रैबिट खातों को संभालने में सक्षम नहीं थी और न ही उसके पास समाचार पत्रों/पत्रिकाओं के व्यवसाय तथा भारत के क्षेत्रीय टीवी चैनलों को संभालने का अनुभव था.” नोट में आगे लिखा है, “एक्टिव मीडिया के पास इतने बड़े अभियान को हैंडल करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था.” निकसुन ऐड वर्ल्ड के बारे में नोट में लिखा है, “इस एजेंसी ने 2002 से लेकर 2017 तक गुजरात में हुए सभी चुनावों में प्रचार को देखा था और पूर्व परिणामों के बावजूद इसका चयन किया गया.”

मैंने जिन सभी कांग्रेस नेताओं से बात की उन लोगों ने नोट पर लगाए गए आरोप का जवाब नहीं दिया और यह भी नहीं बताया कि इन एजेंसियों का चुनाव क्यों किया गया. जबकि इन विज्ञापन एजेंसियों के प्रतिनिधियों ने माना कि वे कांग्रेस के प्रचार अभियान में काम कर रहे थे लेकिन निर्णय प्रक्रिया के लिए पार्टी नेतृत्व को जिम्मेदार बताया. एक्टिव मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आसिफ कादरी ने माना कि उन लोगों ने रेडियो और क्षेत्रीय मीडिया के लिए विज्ञापन कार्यान्वयन का काम किया था. वह कहते हैं, “हमने कांग्रेस की ओर से प्रचार किया था लेकिन मुझे किसी भी बात का जवाब देने की मनाही है.” जब मैंने उनसे पूछा कि तो जवाब देने का अधिकार किसके पास है तो कादरी ने गुप्ता की ओर इशारा किया. उन्होंने कहा, “आपको रोहन गुप्ता से बात करनी चाहिए जिन्होंने ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी की ओर से संपूर्ण प्रचार को देखा था.

निकसुन एंड वर्ल्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी निकुंज मेहता ने वही बात कही जो संचार विभाग के सदस्य ने कही थी. उन्होंने कहा कि 2019 की तुलना में पहले की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी थी. वह कहते हैं, “यह सही है कि पवन खेड़ा और रोहन एआईसीसी की ओर से दरों की सौदेबाजी कर रहे थे लेकिन भुगतान ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी ने सीधा मीडिया संस्थानों को किया था. लेकिन यह एक पारदर्शी प्रक्रिया थी क्योंकि पार्टी मीडिया घरानों से प्रत्यक्ष वार्ता कर रही थी और उन्हें सीधा भुगतान कर रही थी. खेड़ा पार्टी के प्रवक्ता हैं. उन्होंने बताया कि वह क्रिएटिव एजेंसी की चयन प्रक्रिया में शामिल थे लेकिन मीडिया कार्यान्वयन एजेंसी के चयन में शामिल नहीं थे. इसके अलावा उन्होंने किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया. मेहता ने दावा किया कि दरों की वार्ता तीन चरणों में की गई थी. एआईसीसी और मीडिया संस्थानों के बीच वार्ता में एजेंसियां शामिल थीं. जब मैंने उनसे पूछा कि कांग्रेस ने बीजेपी की तुलना में मीडिया संस्थानों को अधिक भुगतान किया तो मेहता ने बताया, “किसी किसी मामले में ऐसा हुआ होगा लेकिन ऐसे सभी जगह नहीं हुआ.”

गोल्डन रैबिट कम्युनिकेशंस के प्रबंध निदेशक रशपाल राणा ने माना कि नेशनल प्रिंट मीडिया और क्षेत्रीय टेलीविजन मीडिया कार्यान्वयन का काम कांग्रेस की ओर से उनकी एजेंसी ने किया था. उन्होंने बताया कि उनकी एजेंसी और कांग्रेस पार्टी दोनों ने मीडिया संस्थानों से दरों को लेकर बातचीत की थी. जब मैंने उनसे पूछा क्या बातचीत में उनकी एजेंसी के निर्णय को माने जाने की गुंजाइश थी तो राणा ने कहा, “मैं यह आपको कैसे बता सकता हूं?” राणा ने इस बात की पुष्टि की कि मेडिसन बीजेपी के लिए मीडिया कार्यान्वयन का काम संभाल रही थी लेकिन उन्होंने यह नहीं माना कि कांग्रेस का प्रचार बीजेपी से अधिक खर्चीला था. उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा नहीं लगता. कांग्रेस ने हमारा चयन हमारे अनुभव के आधार पर किया था और हमें विभिन्न प्रकाशनों और चैनलों की दरों का पता था.”

राणा के अनुसार कांग्रेस ने मीडिया कार्यान्वयन की योजना के आधार पर गोल्डन रैबिट का चयन किया था. “हमने अपनी योजना में सुझाव दिया था कि किन समाचार पत्रों और चैनलों में विज्ञापन करना है. हम प्रचार समिति के साथ कार्य कर रहे थे.” पूर्व में गोल्डन रैबिट ने कांग्रेस के साथ विभिन्न कार्य किए हैं. भारतीय निर्वाचन आयोग में जमा दस्तावेजों के अनुसार इस विज्ञापन एजेंसी ने अगस्त 2015 और 2017 में कांग्रेस पार्टी को पांच लाख का चंदा दिया था. राणा ने चंदे की बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा यह सार्वजनिक बात है लेकिन आगे कोई टिप्पणी नहीं की.

वहीं आंतरिक नोट कांग्रेस के चुनाव अभियान और कार्यान्वयन की भी आलोचना करता है. 25 मार्च को राहुल गांधी ने न्यूनतम आय योजना “न्याय” की घोषणा की थी. यह योजना कांग्रेस के चुनावी वायदों में प्रमुख थी. दो सप्ताह के अंदर इस योजना को पूरी तरह से जारी किया गया. पार्टी ने नारा दिया, “अब होगा न्याय”. पार्टी के सभी चुनाव पूर्व वायदे, उसका घोषणा पत्र, यहां तक कि उसकी सोशल मीडिया रणनीति, होर्डिंग और पोस्टरों को इसी योजना के इर्द-गिर्द तैयार किया गया.

नाम न छापने की शर्त पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस योजना की घोषणा देर से की गई. एक कार्यकर्ता ने कहा कि इस योजना को मार्च के मध्य में जारी किया जाना चाहिए था और पार्टी ने सातों चरणों के मतदान में इस योजना को केंद्रीय मुद्दा बनाकर गलती की. वह कहते हैं, “बीजेपी डायनामिक (गतिशील) थी.” पंजाब, दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में मतदान से पहले बीजेपी ने राजीव गांधी पर हमला किया और हिंदी पट्टी में मतदान के दौरान बालाकोट हवाई आक्रमण की बात की. इस साल फरवरी में भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तानी सीमा में हवाई हमला किया था. सेना ने पुलवामा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल पर हुए आतंकी हमले के जवाब में यह आक्रमण किया था. बीजेपी नेताओं ने चुनाव अभियान के दौरान बार-बार इस हमले का हवाला दिया था.

उस कार्यकर्ता के अनुसार फरवरी में कांग्रेस के नेतृत्व ने निर्णय किया था कि उनकी चुनावी रणनीति जन आंदोलनों पर केंद्रित रहेगी. लेकिन जब पुलवामा हुआ तो बीजेपी ने राष्ट्रवाद का खूब प्रचार किया. इसके बाद इसे काउंटर करने के लिए न्याय योजना पर फोकस करने का निर्णय किया गया. “हमारा चुनाव अभियान न्यूनतम आय से न्याय में बदल गया. इसके तहत हमने वर्ष 2020 तक 22 लाख सरकारी नौकरियां, सरकारी नौकरियों में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण और किसानों के लिए अलग बजट, आदि की बात की.” इस कार्यकर्ता का कहना है कि कांग्रेस के सभी चुनावी वादों को एक जगह रखने की रणनीति प्रभावकारी नहीं रही और पार्टी की हार में इसकी भूमिका है.

एक अन्य कांग्रेसी नेता ने बताया कि बीजेपी के पास चार टैग लाइन थीं- “मैं भी चौकीदार”, “मोदी है तो मुमकिन है”, “फिर एक बार मोदी सरकार” और “देश न झुके, काम न रुके.” उस कांग्रेस नेता ने कहा, “हमने सोचा कि वे लोग गलती कर रहे हैं. लेकिन उन लोगों ने इन सभी नारों को राष्ट्रवाद के साथ जोड़ कर सफल प्रचार किया.”

इस नोट में उन विज्ञापनों की भी आलोचना है जो दर्शकों को लक्षित करने में चूक गए. उदाहरण के लिए सरकारी अस्पताल में निशुल्कः चेकअप और सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी महिला आरक्षण वाला विज्ञापन अंग्रेजी में था जिसे इकोनामिक टाइम्स के पहले पृष्ठ पर प्रकाशित किया गया था. विज्ञापन क्षेत्र से जुड़े एक व्यक्ति से जब मैंने इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि यह रणनीति गलत थी क्योंकि वित्तीय अखबार पढ़ने वाले लोग सरकारी अस्पताल नहीं जाते और न ही उन्हें सरकारी आरक्षण की बात आकर्षक लगती है. यह व्यक्ति भी कांग्रेस के चुनाव प्रचार में शामिल थे. इस नोट में एक अन्य गलती का भी उल्लेख है. अब होगा न्याय अभियान हिंदी में प्रकाशित हुआ था लेकिन समाचार पत्रों में इसे अंग्रेजी लिपि में लिखा गया था. यह विज्ञापन पूरी तरह विफल रहा. उस व्यक्ति ने मुझे बताया, “हिंदी का पाठक अंग्रेजी लिपि में लिखे विज्ञापन को नहीं पढ़ सकता और उसी तरह अंग्रेजी के पाठक को भी इसे समझने में मुश्किल होगी”.

आंतरिक नोट में प्रचार अभियान के कार्यान्वयन को लेकर अन्य प्रकार की चिंताएं भी हैं. “प्रचार अभियान का गीत एक रैप गीत था जो ग्रामीण और उम्रदराज लोगों को आकर्षित नहीं करता था. इसके अलावा उसमें कांग्रेस या कांग्रेस को वोट देने की बात नहीं थी.” कांग्रेस के थीम गीत के वीडियो में सुना जा सकता है कि इस 1 मिनट के गीत में कांग्रेस पार्टी का नाम केवल एक बार आता है.

मैंने कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा से नोट में लगाए गए आरोपों पर बात की. शर्मा ने दावा किया कि उनके पास प्रचार के काम का दैनिक हिसाब किताब नहीं था. “यह काम समिति के कन्वीनर देख रहे थे और उनकी गैर-मौजूदगी में न मैं आपसे बात कर सकता हूं और न ही आपसे मिल सकता हूं.” उनका इशारा पवन खेड़ा की ओर था. जब मैंने उनसे और भी सवाल पूछे तो उन्होंने दावा किया, “मेरी जेब में रिमोट कंट्रोल नहीं है. मैं हेलीकॉप्टर और हवाई जहाज से पूरे भारत में घूम रहा था. क्या आपको लगता है कि मैं रिमोट कंट्रोल से प्रचार अभियान चला रहा था.”