बीते मई महीने में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की पुलिस ने पुलिस बल और बजरंग दल के साथ मिलकर काम करने की सच्चाई को सबके सामने ला दिया. यह सच गोहत्या की आशंका में दो आदिवासी पुरुषों की पीट-पीट कर हत्या करने वाले हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े आरोपियों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद सामने आया. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की इन हरकतों को वैधता का जामा पहनाने की कोशिश और संगठन के प्रति सहनशीलता इस बात को दर्शाती है कि बीजेपी राज्य में पुलिस के काम करने के तरीके को कैसे बदल रही है. पुलिस का किसी समूह विशेष के साथ सांठ-गांठ करके काम करने का यह तरीका जर्मनी में नाजी शासन में देखे जाने वाले पैटर्न जैसा जान पड़ता है जहां सुरक्षा बल हिटलर की पार्टी की वर्दी पहने अर्धसैनिक दल से मिले निर्देशों के अनुसार काम करते थे.
सिमरिया गांव में लगभग पंद्रह से बीस लोगों द्वारा हमला किए जाने के बाद आदिवासी समुदाय के धनसाई इनवती और संपतलाल वट्टी की 3 मई की सुबह मृत्यु हो गई. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार छह आरोपियों के परिवार वालों ने बताया कि वे बजरंग दल के सदस्य थे. जबकि बजरंग दल ने इस घटना में अपनी भूमिका को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया है. अखबार ने सिवनी के जिला समन्वयक देवेंद्र सेन के बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा, “उन दो लोगों की मृत्यु नहीं होनी चाहिए थी. हमें इसका खेद है."
रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे ही इस लिंचिंग का मुद्दा राजनीतिक रूप से जोर पकड़ने लगा तब बजरंग दल ने मामले को संभालते हुए पुलिस के साथ तालमेल बैठाकर काम करने का दावा किया. सेन ने अखबार को बताया, "जिन लोगों पर हमारी इकाई के सदस्य होने का आरोप है उन्होंने ही दो लोगों को पुलिस के हवाले किया था. हम गोरक्षा के हर मामले की महत्वपूर्ण सूचनाएं पुलिस को देकर उनके साथ मिलकर काम करते हैं." जिले के पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक ने सेन के दावे की पुष्टि करते हुए खुलासा किया कि उन्होंने मवेशियों की तस्करी पर नजर रखने के लिए राजमार्ग पर पहरा लगाने वालों का एक समूह बनाया था. प्रतीक ने दावा किया कि निगरानी करने वाले संगठनों के शामिल होने से वे उन दावों को नकार सकते हैं जिनमें कहा जाता है कि प्रशासन पशु तस्करी की जांच नहीं कर रहा है." उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मैं इन संगठनों के ज्यादातर सदस्यों के संपर्क में हूं ... रोजाना हमें एक-दो मुखबिरों से सूचना मिलती है."
अधीक्षक द्वारा किया गया खुलासा बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस प्रशासन के काम करने के तरीके की सच्चाई को उजागर करता है. जुलाई 2021 में उत्तर प्रदेश में देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर आर्टिकल 14 बेवसाइट के लिए रिपोर्टिंग करते समय मेरे सामने इसी तरह का एक दूसर मामला आया. 9 नवंबर 2018 को महराजगंज जिले के नौतनवा में एक छोटी सी दुकान चलाने वाले इलेक्ट्रीशियन फिरोज अहमद को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और ढाई महीने बाद आरोप वापस लेते हुए छोड़ दिया गय.
तब मैंने बताया था कि जब अहमद को गिरफ्तार करके पुलिस थाने लाया गया तो कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले प्रशासन और एक हिंदुत्व संगठन हिंदू युवा वाहिनी के बीच मुश्किल से ही फर्क किया जा सकता था. अहमद ने मुझे बाद में बताया, “जब मुझे अंदर ले जाया गया तब थाने में हिंदू युवा वाहिनी के लगभग बीस लोग मौजूद थे. उन्होंने मुझे देखते ही 'जय श्री राम' के नारे लगाने शुरू कर दिए. मैं डर गया क्योंकि मैंने नरसिंह पांडे को पुलिसकर्मियों से मुझ पर लगाए जाने वाले आरोपों के बारे में बात करते हुए देखा." हिंदू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष पांडेय ही मामले में शिकायतकर्ता थे. अहमद ने आगे कहा, "मैं साफ—साफ देख सकता था कि मामला पुलिसकर्मियों के हाथ में नहीं था."
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