हिटलर की पुलिस की तरह काम कर रही बीजेपी शासित राज्यों की पुलिस

24 नवंबर 2018 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद आयोजित धर्म सभा के आयोजन स्थल पर गश्त करते पुलिस अधिकारी. पवन कुमार/रॉयटर्स

बीते मई महीने में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले की पुलिस ने पुलिस बल और बजरंग दल के साथ मिलकर काम करने की सच्चाई को सबके सामने ला दिया. यह सच गोहत्या की आशंका में दो आदिवासी पुरुषों की पीट-पीट कर हत्या करने वाले हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े आरोपियों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद सामने आया. बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की इन हरकतों को वैधता का जामा पहनाने की कोशिश और संगठन के प्रति सहनशीलता इस बात को दर्शाती है कि बीजेपी राज्य में पुलिस के काम करने के तरीके को कैसे बदल रही है. पुलिस का किसी समूह विशेष के साथ सांठ-गांठ करके काम करने का यह तरीका जर्मनी में नाजी शासन में देखे जाने वाले पैटर्न जैसा जान पड़ता है जहां सुरक्षा बल हिटलर की पार्टी की वर्दी पहने अर्धसैनिक दल से मिले निर्देशों के अनुसार काम करते थे.

सिमरिया गांव में लगभग पंद्रह से बीस लोगों द्वारा हमला किए जाने के बाद आदिवासी समुदाय के धनसाई इनवती और संपतलाल वट्टी की 3 मई की सुबह मृत्यु हो गई. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार छह आरोपियों के परिवार वालों ने बताया कि वे बजरंग दल के सदस्य थे. जबकि बजरंग दल ने इस घटना में अपनी भूमिका को स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया है. अखबार ने सिवनी के जिला समन्वयक देवेंद्र सेन के बयान का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा, “उन दो लोगों की मृत्यु नहीं होनी चाहिए थी. हमें इसका खेद है."

रिपोर्ट में कहा गया है कि जैसे ही इस लिंचिंग का मुद्दा राजनीतिक रूप से जोर पकड़ने लगा तब बजरंग दल ने मामले को संभालते हुए पुलिस के साथ तालमेल बैठाकर काम करने का दावा किया. सेन ने अखबार को बताया, "जिन लोगों पर हमारी इकाई के सदस्य होने का आरोप है उन्होंने ही दो लोगों को पुलिस के हवाले किया था. हम गोरक्षा के हर मामले की महत्वपूर्ण सूचनाएं पुलिस को देकर उनके साथ मिलकर काम करते हैं." जिले के पुलिस अधीक्षक कुमार प्रतीक ने सेन के दावे की पुष्टि करते हुए खुलासा किया कि उन्होंने मवेशियों की तस्करी पर नजर रखने के लिए राजमार्ग पर पहरा लगाने वालों का एक समूह बनाया था. प्रतीक ने दावा किया कि निगरानी करने वाले संगठनों के शामिल होने से वे उन दावों को नकार सकते हैं जिनमें कहा जाता है कि प्रशासन पशु तस्करी की जांच नहीं कर रहा है." उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, "मैं इन संगठनों के ज्यादातर सदस्यों के संपर्क में हूं ... रोजाना हमें एक-दो मुखबिरों से सूचना मिलती है."

अधीक्षक द्वारा किया गया खुलासा बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस प्रशासन के काम करने के तरीके की सच्चाई को उजागर करता है. जुलाई 2021 में उत्तर प्रदेश में देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर आर्टिकल 14 बेवसाइट के लिए रिपोर्टिंग करते समय मेरे सामने इसी तरह का एक दूसर मामला आया. 9 नवंबर 2018 को महराजगंज जिले के नौतनवा में एक छोटी सी दुकान चलाने वाले इलेक्ट्रीशियन फिरोज अहमद को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और ढाई महीने बाद आरोप वापस लेते हुए छोड़ दिया गय.

तब मैंने बताया था कि जब अहमद को गिरफ्तार करके पुलिस थाने लाया गया तो कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले प्रशासन और एक हिंदुत्व संगठन हिंदू युवा वाहिनी के बीच मुश्किल से ही फर्क किया जा सकता था. अहमद ने मुझे बाद में बताया, “जब मुझे अंदर ले जाया गया तब थाने में हिंदू युवा वाहिनी के लगभग बीस लोग मौजूद थे. उन्होंने मुझे देखते ही 'जय श्री राम' के नारे लगाने शुरू कर दिए. मैं डर गया क्योंकि मैंने नरसिंह पांडे को पुलिसकर्मियों से मुझ पर लगाए जाने वाले आरोपों के बारे में बात करते हुए देखा." हिंदू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष पांडेय ही मामले में शिकायतकर्ता थे. अहमद ने आगे कहा, "मैं साफ—साफ देख सकता था कि मामला पुलिसकर्मियों के हाथ में नहीं था."

पांडे के दावे के अनुसार एफआईआर में अहमद पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले एक व्हाट्सएप संदेश को फॉरवर्ड करने का आरोप लगाया गया था. एफआईआर में कहा गया है, "वह सरकार को अस्थिर करने और देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने के इरादे से सांप्रदायिक तनाव भड़काना चाहता है."

अहमद ने मुझे बताया कि थाने में वह जोर देकर कहता रहा कि उसने ऐसा कोई मैसेज फॉरवर्ड नहीं किया है, वह अनपढ़ है और मुश्किल से अपना नाम लिख पाता है. लेकिन पुलिस ने यूवा वाहिनी के दबाव में आकर उसकी एक न सुनी.

पांडे से बात करने पर उन्होंने इस मामले के बारे में बताया कि, "हिंदू युवा वाहिनी के नेता के रूप में मेरा कर्तव्य उन लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करना है जो हमारे देवी-देवताओं या हमारे महाराज-जी (आदित्यनाथ या कोई अन्य हिंदू धार्मिक गुरु) के खिलाफ बोलते या लिखते हैं." उन्होंने आगे कहा, "हम सोशल मीडिया पर इस तरह के पोस्ट शेयर करने वालों को भी नहीं बख्शते." पांडे ने यह भी दावा किया कि आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से हिंदू यूवा वाहिनी जिले के विभिन्न हिस्सों में लगभग एक दर्जन शिकायतें दर्ज करा चुकी है. उन्होंने कहा, ''कुछ मामलों में मैं तो कुछ मामलों में हिंदू युवा वाहिनी के अन्य सदस्य शिकायतकर्ता हैं.''

2002 में गुजरात दंगों के मद्देनजर गठित हिंदू युवा वाहिनी गोरखपुर, महाराजगंज, बस्ती और आसपास के कुछ जिलों में मुसलमानों को निशाना बनाकर एक रक्षक सेना की तरह काम करती रही है. पांडे ने यह भी बताया संगठन की पसंदीदा रणनीति हिंदू और मुस्लिम के बीच हर तर्क और विवाद को सांप्रदायिक नजर से देखने और इसे सांप्रदायिक दंगे में बदलने की रही है. लेकिन आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद गैर हिंदुओं के खिलाफ शिकायत दर्ज करना इसके कार्यकर्ताओं की प्राथमिकताओं में से एक रहा है. अनौपचारिक तौर पर ही सही हिंदुत्ववादी संगठनों और पुलिस के बीच तालमेल का मतलब सिविल सेवा के साथ कट्टर विचार रखने वाले एक संगठन का घालमेल है. और अगर यह कोशिश बेकाबू हो जाती है तो वे दोनों के बीच संबंधों को संस्थागत बना सकते हैं.

यह याद रखने वाली बात है कि नाजी शासन के एक शक्तिशाली तानाशाही में बदले में शुट्ज़स्टाफ़ेल (हिटलर की नाजी पार्टी का सुरक्षा दस्ता) और पुलिस को एक दूसरे में मिला देने के कदम बेहद महत्वपूर्ण थे. 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के तुरंत बाद नाजियों ने जर्मन पुलिस बलों पर नियंत्रण कर लिया और धीरे-धीरे उन्हें दमन करने के राज्य के उपकरण बतौर इस्तेमाल करने लगे. नाजी विरोधी पुलिस अधिकारियों को न केवल हटा दिया गया बल्कि पुलिस बल को नाजी लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में मोड़ दिया गया. 1930 और 1940 के दशक की शुरुआत में इस बदलाव के कारण नाजी शासन की कट्टरपंथी योजनाएं लागू हुईं और यहूदियों की सामूहिक हत्या सहित असंख्य अपराधों में बढ़ोतरी हुई.

वैसे भी देश के कई हिस्सों में भारतीय पुलिस बलों के बारे में पहले से ही कहा जाता रहा है कि वे सांप्रदायिक और जातिवादी सोच रखते हैं. उदाहरण के लिए कई मीडिया रिपोर्टों से पता चला है कि फरवरी 2020 में उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान भीड़ द्वारा मुसलमानों के घरों और दुकानों को जलाते हुए देखकर भी दिल्ली पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया. कई मामलों में पुलिस पर पीड़ितों पर हमला करने का भी आरोप है. जैसे कि एक वायरल हुए वीडियो में घायल लोगों के एक समूह को राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर करते हुए पुलिसकर्मियों द्वारा पीटते हुए देखा भी जा सकता है.

यहां तक की जांच के दौरान भी पुलिस की भूमिका निचले दर्जे की रही. दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लेकर हुए दंगे प्रदर्शनकारियों द्वारा केंद्रीय रूप से एक पूर्व नियोजित साजिश थी. लेकिन जैसे-जैसे मामलों पर अदालतों में सुनवाई हो रही है ऐसे आरोप झूठे साबित हो रहे हैं. अगर पुलिस और हिंदुत्ववादी संगठन आगे भी इसी तरह मिलजुल कर काम करते रहे तो दोनों में मौजूद पक्षपात दूर होने के बजाय और गहरा होता जाएगा. और वे कानूनी रास्ते पर चलने के बजाए शासन के हिंसक अलोकतांत्रिक मॉडल को बनाए रखने के लिए बहुसंख्यकों को अधिक मजबूत करने वाली रणनीति पर ही काम करते रहेंगे. कुल मिलाकर यह चलन बेहद खतरनाक है और इसे अनदेखा करने के खतरे देश को उठाने पड़ेंगे.