जीत के बावजूद कृषि असंतोष को भुनाने में विफल रही कांग्रेस

पिछले दो वर्षों में किसानों ने कर्ज माफी, खरीद कीमत समर्थन और उचित मूल्य की मांग के साथ दिल्ली में कई प्रर्दशन किए हैं. बुरहान कीनू/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
13 December, 2018

हाल में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों पर नजर डालने से पता चलता है कि हिंदी पट्टी के तीन राज्यों— मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसढ़ में कांग्रेस को मिली बढ़त कृषि संकट और किसानों में व्याप्त असंतोष का परिणाम है. हिंदुस्तान टाइम्स डॉट कॉम के आंकड़ों से पता चलता है कि बीजेपी को हिंदी पट्टी के ग्रामीण इलाकों की सीटें कांग्रेस के हाथों गवानी पड़ी हैं.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार 15 सालों तक शासन करने वाली बीजेपी को इस बार के चुनावों में कांग्रेस से पराजित होना पड़ा. मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस ने इस बार 93 सीटें जीतीं. जबकि 2013 के चुनाव में कांग्रेस को 55 और बीजेपी को इस इलाके की 87 सीट मिली थीं. उस साल बीजेपी ने राज्य भर में 125 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं छत्तीसगढ़ के देहाती इलाकों में कांग्रेस ने 62 और बीजेपी ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की. यहां भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. पार्टी ने ग्रामीण इलाकों की 30 सीटें गवाई. जबकि कांग्रेस ने 25 सीटों का इजाफा किया.

प्रत्येक पांच सालों में सत्ताधारी पार्टी को बाहर का रास्ता दिखाने वाले राज्य राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने इस बार 89 ग्रामीण सीटों पर कब्जा जमाया जबकि बसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी को 55 सीटों से संतोष करना पड़ा. 2013 में कांग्रेस को यहां से मात्र 20 सीटें मिली थीं और बीजेपी ने 134 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में कहानी अलग है. मध्य प्रदेश और राजस्थान के शहरी इलाकों में बीजेपी कांग्रेस पर भारी पड़ी है. मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान की पार्टी ने 24 शहरी सीटें जीती और कांग्रेस ने 19. इसी तरह रेतीले प्रदेश राजस्थान की 17 शहरी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया है, जो कांग्रेस से तीन सीट अधिक है. मात्र छत्तीसगढ़ में कांग्रेस शहरी इलाकों में अच्छा प्रदर्शन कर सकी. उसने 6 शहरी सीटें जीती हैं और बीजेपी ने सिर्फ 2. ताजा चुनाव आंकड़ों की तुलना 2013 के आंकड़ों से करने से पता चलता है कि पांच साल में ग्रामीण इलाकों में किस हद तक असंतोष बढ़ा है. राजस्थान में बीजेपी ने 82 ग्रामीण सीटें गवाईं, जबकि कांग्रेस को 69 सीटों का फायदा हुआ है. मध्य प्रदेश में बीजेपी को ग्रामीण इलाकों में 44 सीटों का घाटा हुआ है और कांग्रेस को 41 का फायदा. छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 28 ग्रामीण सीटों का नुकसान हुआ है और कांग्रेस को 21 का फायदा.

2013 में हिंदी पट्टी में खत्म हो जाने के बाद इन चुनावों के साथ कांग्रेस ने वापसी की है. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में 90 सदस्यीय विधानसभा की 68 सीटें जीत ली हैं। मध्य प्रदेश में 114 सीटों के साथ वह बीजेपी से पांच सीट आगे है और राजस्थान में 200 सदस्यीय विधानसभा में वह बहुमत से मात्र दो सीट पीछे है.

चुनाव विश्लेषक और स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेन्द्र यादव ने मुझे बताया, “राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की ग्रामीण आबादी नाराज है. 2003 और 2013 के बीच इन तीनों ही राज्यों में औसत से अधिक कृषि उपज हुई थी लेकिन पिछले पांच सालों में उपज में कमी आई है. यही वह सापेक्षिक बदहाली है जो तकलीफ देती है. लोगों ने अच्छा समय और उसके बाद बुरा वक्त देखा है जिससे वे परेशान हैं.” मध्य प्रदेश के मंदसौर में 2017 की जून में फसल की कीमतों को लेकर हुई झड़प में 5 किसानों की मौत हो गई थी. इसी प्रकार 2017 की मध्यावधि में उपज की गिरती कीमत और सरकार के अपर्याप्त संरक्षण के कारण राजस्थान के किसानों ने आंदोलन किए. इस साल नवंबर में देश भर के किसानों ने कर्ज माफी और उचित मूल्य की मांग के साथ दिल्ली में प्रदर्शन किया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

उत्तरी राज्यों में कांग्रेस की जीत इस बात का संकेत है कि 2019 के आम चुनावों में वह एक ताकत होगी और यह भी कि बीजेपी अपराजय नहीं है. साथ ही इस जीत ने विपक्षी दलों के संयुक्त मोर्चे के प्रयासों को भी बल दिया है.

ग्रामीण असंतोष बीजेपी की हार के लिए जिम्मेदार तो है लेकिन मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी का स्पष्ट बहुमत हासिल ना कर पाने ने चुनावी विश्लेषकों को हैरान किया है.

यादव बताते हैं, “असल सवाल है कि ग्रामीण इलाकों में व्याप्त गुस्सा चुनावी परिणामों में क्यों नहीं बदल पाया? ऐसा कांग्रेस पार्टी की उदासीन और वह असली विपक्ष की भूमिका में नहीं दिख पाने की वजह से हुआ. छत्तीसगढ़ में वह ऐसा कर पाई और उसे फायदा हुआ. लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में पार्टी गायब सी थी. मात्र नाराजगी से चुनाव में असर नहीं पड़ता क्योंकि गुस्से को आगे मूर्त रूप देने वाला विकल्प चाहिए होता है. यह कांग्रेस की तकनीकी जीत है जबकि उसे नॉकआउट करना चाहिए था.”

यादव के अनुसार मध्य प्रदेश में 3.5 से 4 प्रतिशत वोट बीजेपी से छिटका और कांग्रेस को 5 प्रतिशत वोटों का फायदा हुआ. राजस्थान में बीजेपी को 6 प्रतिशत का घाटा हुआ और कांग्रेस को इतने ही प्रतिशत का लाभ. “कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन मेरा सवाल है कि मध्य प्रदेश में उसे केवल 5 प्रतिशत अतिरिक्त वोट क्यों मिला? 10 प्रतिशत क्यों नहीं? राजस्थान में जिस हद तक असंतोष था उससे 10, 12 या 15 प्रतिशत अधिक वोट कांग्रेस को मिलना चाहिए था. यदि ऐसा होता तो कम से कम ग्रामीण इलाकों में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो जाता.”

अपने चुनाव प्रचार में कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में किसानों के कर्ज माफी को मुद्दा बनाया था. दोनों ही राज्यों में पार्टी ने सत्ता में आने के 10 दिनों के अंदर ऐसा करने का वादा किया है. शिवराज को जब यह पता चला कि किसानों का मुद्दा समर्थन पा रहा है तो उन्होंने भी कृषक मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया. राजस्थान में किसानों की आय को दोगुना करने के मोदी के लक्ष्य के मद्देनजर बीजेपी ने कृषि उत्पाद को न्यूनतम सर्मथन मूल्य में खरीदने की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने का वादा किया.

कृषि लागत और मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का कहना है, “किसानों की आय दोगुना करने के लिए अगले पांच सालों तक कृषि वृद्धि दर 13 प्रतिशत रहनी चाहिए. यानी हर साल 13 प्रतिशत.” जुलाई और सितंबर की तिमाही में कृषि क्षेत्र में विकास दर 2.8 प्रतिशत थी जबकि भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 7.1 प्रतिशत रही. इन आंकड़ों से पता चलता है कि सेवा और उपभोग के रूप में विकास “इंडिया” के पक्ष में रहा और “भारत” का आय स्तर कम रहा. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हरीश दामोदरन के लेख में बताया गया है कि फसल की कम कीमत और मजदूरी की दर में वृद्धि ना होने से इस अवधि में अन्य किसी भी क्षेत्र के हुए लाभ को नुकसान में बदल दिया और इसी के चलते मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ताधारी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. जिस लाभ की बात दामोदरन ने की है वह हैं- सड़क, आवास और शौचालय, बिजली, एलपीजी और ब्रॉडबैंड कनेक्शन.

गुलाटी ने मुझे बताया, “गत चार वर्षों में दो साल सूखा पड़ने से किसानों को घाटा हुआ. उसके बाद फसलों की कीमत में गिरावट आई. राजस्थान की प्रमुख खरीफ फसल मोती बाजरा की कीमत न्यूनतम समर्थन मूल्य से 30 प्रतिशत कम रही.” गुलाटी आगे कहते हैं, ”मध्य प्रदेश की कहानी अलग है. वहां उपज में वृद्धि हुई लेकिन मांग कम होने से मूल्यों में गिरावट आई. प्याज 1 रुपए प्रति किलो से कम में बिक रही है और मंदसौर में प्याज के कारण गोलियां चलीं. आज भी प्याज 1 रुपए प्रति किलो से कम है. लहसुन 7 रुपए प्रति किलो बिक रहा है. यह किसानों की आय लागत से बहुत कम है. जब किसान वोट देता है तो वह इन बातों का ख्याल रखता है.”

यह संभव है कि अगले पांच महीनों में जब राजनीतिक दल लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रहे होंगे तो किसानों का सवाल केन्द्रीय मुद्दा बन जाए. योगेन्द्र यादव का मानना है कि यदि कांग्रेस सत्ता में आती है तो उसे किसानों के असंतोष को शांत करने के लिए उत्तरी राज्यों में कुछ ना कुछ करना होगा.” यादव कहते हैं, “उसके पास कोई विकल्प नहीं है क्योंकि उसे अपने घोषणापत्र में लिए वादों को पूरा करना ही होगा.” अब यह जानना बाकि है कि ग्रामीण इलाकों में व्याप्त असंतोष को शांत करने के किए बीजेपी क्या करती है.


तुषार धारा कारवां में रिपोर्टिंग फेलो हैं. तुषार ने ब्लूमबर्ग न्यूज, इंडियन एक्सप्रेस और फर्स्टपोस्ट के साथ काम किया है और राजस्थान में मजदूर किसान शक्ति संगठन के साथ रहे हैं.